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अनुकूल होता भारतीय बाजार, दिखने लगी 'रैली' - indian economy

जुलाई महीने में पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था ने कई सकारात्मक परिणाम दिखाए हैं. बाजार में धीरे-धीरे ही सही, लेकिन उसकी रौनक लौट रही है. भारत, अमेरिका, ब्राजील और जापान जैसे देशों की बाजारों में स्थितियां अनुकूल होने लगी हैं. सिर्फ चीन ही एक ऐसा देश रहा, जहां पॉजिटिव के बदले निगेटिव ग्रोथ देखने को मिला. क्या है इसके मायने, जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर.

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Published : Aug 1, 2022, 7:29 PM IST

Updated : Aug 1, 2022, 8:06 PM IST

नई दिल्ली : अभी बाजार कैसा है, क्या कंपनी का प्रबंधन चिंतित है, क्या बाजार में अभी निवेश करें, अभी इस तरह की चर्चाएं बहुत ही आम है. मुद्रास्फीति, मांग में कमी और कमोडिटी की कीमतों में अस्थिरता ऐसे फैक्टर हैं, जिसने भारतीय बाजार की गति धीमी कर दी है. हालांकि, एक तथ्य यह भी है कि जुलाई महीने में वैश्विक स्तर पर बाजार की जो रिपोर्ट आई है, वह भारत, अमेरिका और जापान जैसे बाजार के लिए अच्छी है. विशेषज्ञों का कहना है कि मार्केट में जबरदस्त रैली देखी गई. ईटीवी भारत ने इस विषय पर आर्थिक विशेषज्ञ डॉ पंकज मिश्रा से बात की.

उन्होंने बताया कि जुलाई महीने में पूरी दुनिया के प्रमुख बाजारों में रैली देखने को मिली थी. रैली का मतलब एक लगातार अवधि तक स्टॉक, बॉन्ड या संबंधित इंडेक्स की कीमतों में निरंतर वृद्धि होता है. रैली में आमतौर पर अपेक्षाकृत कम समय में तेजी से या पर्याप्त ऊपर की ओर मार्केट का बढ़ना शामिल होता है. उन्होंने कहा कि डॉलर के टर्म में देखेंगे तो जुलाई में वैश्विक बाजार में कुछ ऐसा ही देखने को मिला. अमेरिकी बाजार में +9.2%, भारतीय बाजार में 8.7%, जापानी बाजार में +5.7%, ब्राज़ील के बाजार में +5.5% और यूरो बाजार में +4.9% वृद्धि देखने को मिला. सभी प्रमुख वैश्विक बाजारों ने जुलाई में डॉलर के संदर्भ में रिटर्न के साथ रैली की. सिर्फ चीन ही ऐसा देश था, जहां नकारात्मक ग्रोथ देखने को मिला. वह भी माइनस 10 फीसदी तक.

मिश्रा ने कहा कि जब भी अमेरिका और पश्चिमी यूरोप के देशों में मंदी आती है, तो आम तौर पर वैश्विक बाजार में चिंता छा जाती है. हालांकि, मुद्रास्फीति और दरों की उम्मीदों में बदलाव न केवल व्यापक बाजारों का समर्थन कर रहा है, बल्कि इसके परिणामस्वरूप हाल ही में वैल्यू के मुकाबले ग्रोथ अधिक हुआ है.

उन्होंने कहा कि भारत में, मिड-कैप (+11.4% MoM) और स्मॉल कैप (+9% MoM) दोनों का प्रदर्शन लार्जकैप निफ्टी (+8.7% MoM) से बेहतर था. एनर्जी को छोड़कर सभी क्षेत्रों में यानी मैटेरियल्स, फाइनेंशियल्स, इंटस्ट्रियल्स और स्टेपल्स सबने मजबूती दिखाई. आपको बता दें कि मिडकैप फंड ऐसे म्यूचुअल फंड हैं, जो ज़्यादातर मिड कैप कंपनियों (बाज़ार के लिहाज़ से 101-250 के बीच रैंक वाली सबसे बड़ी कंपनियां) के शेयरों में निवेश करता है. मिड कैप फंड में जोखिम और रिटर्न/ लाभ का सही तालमेल होता है. जिन कंपनियों का मार्केट कैप 500 करोड़ रुपये से कम होता है, वो स्‍मॉल कैप में आती हैं. इस कैटेगरी में मार्केट कैप में 251वीं रैंक से शुरू होने वाली कंपनियों में निवेश होता है.

वेल्थ प्लानर पंकज मिश्रा ने कहा कि इस फानेंशियल ईयर के पहले क्वार्टर में कुछ अलग संकेत मिल रहे हैं. उनके अनुसार इसकी वजह स्लो डिमांड और कमोडिटी कीमतों में अस्थिरता है. उन्होंने कहा कि इसने ग्रोथ को प्रभावित कर दिया. मिश्रा ने कहा कि मुद्रास्फीति ज्यादा है और ऊर्जा की लागत भी बढ़ चुकी है. ऐसे में सप्लाई चेन बाधित होने से इसका असर ऑटोमोटिव, केमिकल्स, इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स पर पड़ रहा है.

हालांकि उन्होंने कहा कि कुछ क्षेत्रों में मंदी के बीच मजबूत प्रदर्शन के साथ आय में अच्छी स्थिति बनी है. मुद्रास्फीति के दबाव का एक हिस्सा प्राइस एक्शन और ऑपरेटिंग लिवरेज की वजह से कम हुआ है. ऑपरेटिंग लीवरेज एक लागत-लेखा फॉर्मूला होता है जो उस डिग्री को मापता है जिससे एक फर्म या परियोजना राजस्व में वृद्धि करके परिचालन आय में वृद्धि कर सकती है. किसी कंपनी में इन्वेस्ट या ट्रेडिंग करने से पहले उसकी कीमत में होने वाले बदलाव के आधार पर जो एक्शन लेते हैं उसे ही प्राइस एक्शन ट्रेडिंग कहते है.

पूरी स्थिति को समराइज करते हुए पंकज मिश्रा ने कहा कि अधिकांश कंपनियों का प्रबंधन सकारात्मक है. उनकी उम्मीदें हैं कि आगामी त्योहारी मौसम में मांग बढ़ेंगी, कमोडिटी की कीमतों में नरमी आएगी, घरेलू खपत बढ़ेगा और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के निष्पादन में तेजी आएगी.

नई दिल्ली : अभी बाजार कैसा है, क्या कंपनी का प्रबंधन चिंतित है, क्या बाजार में अभी निवेश करें, अभी इस तरह की चर्चाएं बहुत ही आम है. मुद्रास्फीति, मांग में कमी और कमोडिटी की कीमतों में अस्थिरता ऐसे फैक्टर हैं, जिसने भारतीय बाजार की गति धीमी कर दी है. हालांकि, एक तथ्य यह भी है कि जुलाई महीने में वैश्विक स्तर पर बाजार की जो रिपोर्ट आई है, वह भारत, अमेरिका और जापान जैसे बाजार के लिए अच्छी है. विशेषज्ञों का कहना है कि मार्केट में जबरदस्त रैली देखी गई. ईटीवी भारत ने इस विषय पर आर्थिक विशेषज्ञ डॉ पंकज मिश्रा से बात की.

उन्होंने बताया कि जुलाई महीने में पूरी दुनिया के प्रमुख बाजारों में रैली देखने को मिली थी. रैली का मतलब एक लगातार अवधि तक स्टॉक, बॉन्ड या संबंधित इंडेक्स की कीमतों में निरंतर वृद्धि होता है. रैली में आमतौर पर अपेक्षाकृत कम समय में तेजी से या पर्याप्त ऊपर की ओर मार्केट का बढ़ना शामिल होता है. उन्होंने कहा कि डॉलर के टर्म में देखेंगे तो जुलाई में वैश्विक बाजार में कुछ ऐसा ही देखने को मिला. अमेरिकी बाजार में +9.2%, भारतीय बाजार में 8.7%, जापानी बाजार में +5.7%, ब्राज़ील के बाजार में +5.5% और यूरो बाजार में +4.9% वृद्धि देखने को मिला. सभी प्रमुख वैश्विक बाजारों ने जुलाई में डॉलर के संदर्भ में रिटर्न के साथ रैली की. सिर्फ चीन ही ऐसा देश था, जहां नकारात्मक ग्रोथ देखने को मिला. वह भी माइनस 10 फीसदी तक.

मिश्रा ने कहा कि जब भी अमेरिका और पश्चिमी यूरोप के देशों में मंदी आती है, तो आम तौर पर वैश्विक बाजार में चिंता छा जाती है. हालांकि, मुद्रास्फीति और दरों की उम्मीदों में बदलाव न केवल व्यापक बाजारों का समर्थन कर रहा है, बल्कि इसके परिणामस्वरूप हाल ही में वैल्यू के मुकाबले ग्रोथ अधिक हुआ है.

उन्होंने कहा कि भारत में, मिड-कैप (+11.4% MoM) और स्मॉल कैप (+9% MoM) दोनों का प्रदर्शन लार्जकैप निफ्टी (+8.7% MoM) से बेहतर था. एनर्जी को छोड़कर सभी क्षेत्रों में यानी मैटेरियल्स, फाइनेंशियल्स, इंटस्ट्रियल्स और स्टेपल्स सबने मजबूती दिखाई. आपको बता दें कि मिडकैप फंड ऐसे म्यूचुअल फंड हैं, जो ज़्यादातर मिड कैप कंपनियों (बाज़ार के लिहाज़ से 101-250 के बीच रैंक वाली सबसे बड़ी कंपनियां) के शेयरों में निवेश करता है. मिड कैप फंड में जोखिम और रिटर्न/ लाभ का सही तालमेल होता है. जिन कंपनियों का मार्केट कैप 500 करोड़ रुपये से कम होता है, वो स्‍मॉल कैप में आती हैं. इस कैटेगरी में मार्केट कैप में 251वीं रैंक से शुरू होने वाली कंपनियों में निवेश होता है.

वेल्थ प्लानर पंकज मिश्रा ने कहा कि इस फानेंशियल ईयर के पहले क्वार्टर में कुछ अलग संकेत मिल रहे हैं. उनके अनुसार इसकी वजह स्लो डिमांड और कमोडिटी कीमतों में अस्थिरता है. उन्होंने कहा कि इसने ग्रोथ को प्रभावित कर दिया. मिश्रा ने कहा कि मुद्रास्फीति ज्यादा है और ऊर्जा की लागत भी बढ़ चुकी है. ऐसे में सप्लाई चेन बाधित होने से इसका असर ऑटोमोटिव, केमिकल्स, इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स पर पड़ रहा है.

हालांकि उन्होंने कहा कि कुछ क्षेत्रों में मंदी के बीच मजबूत प्रदर्शन के साथ आय में अच्छी स्थिति बनी है. मुद्रास्फीति के दबाव का एक हिस्सा प्राइस एक्शन और ऑपरेटिंग लिवरेज की वजह से कम हुआ है. ऑपरेटिंग लीवरेज एक लागत-लेखा फॉर्मूला होता है जो उस डिग्री को मापता है जिससे एक फर्म या परियोजना राजस्व में वृद्धि करके परिचालन आय में वृद्धि कर सकती है. किसी कंपनी में इन्वेस्ट या ट्रेडिंग करने से पहले उसकी कीमत में होने वाले बदलाव के आधार पर जो एक्शन लेते हैं उसे ही प्राइस एक्शन ट्रेडिंग कहते है.

पूरी स्थिति को समराइज करते हुए पंकज मिश्रा ने कहा कि अधिकांश कंपनियों का प्रबंधन सकारात्मक है. उनकी उम्मीदें हैं कि आगामी त्योहारी मौसम में मांग बढ़ेंगी, कमोडिटी की कीमतों में नरमी आएगी, घरेलू खपत बढ़ेगा और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के निष्पादन में तेजी आएगी.

Last Updated : Aug 1, 2022, 8:06 PM IST
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