हैदराबाद: नवरात्र चल रहा है, त्योहारी सीजन की शुरुआत हो चुकी है और देश की अर्थव्यवस्था सुस्त है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारामण द्वारा आर्थिक विकास को पुनर्जीवित करने और दिवाली से पहले त्योहारी सीजन में उपभोक्ता की मांग को बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए गए. इसके बाद भी यह प्रशन उठता है कि क्या सीतारमण की ओर से उठाए गए कदम विकास दर को फिर से बढ़ा पाने में सफल हो पाएंगे या नहीं.
बता दें कि चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद छह साल के निचले स्तर 5 प्रतिशत पर पहुंच गया है.
जुलाई में केंद्रीय बजट के तीन महीने बाद सरकार की ओर अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए कई घोषणाएं की गई. इन घोषणाओं में बैंकों को विलय करना, रियल स्टेट को पूंजी प्रदान करना, निर्यात क्षेत्र को बढ़ावा देने के दिए प्रोत्साहन राशी की घोषणा करना और अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए ऋण देने के तरीकों को बढ़ावा देने जैसे कई उपायों किये गए.
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वहीं, घरेलू कंपनियों जो अन्य छूटों का लाभ नहीं उठाती हैं उनके लिए कॉरपोरेट टैक्स 30 प्रतिशत से घटाकर 22 प्रतिशत तक लाया गया. जिसके बाद अब भारत भी कॉरपोरेट टैक्स लेने में अमेरिका, चीन, जापान, जर्मनी और कनाडा जैसे देशों के बराबर आ गया है.
इसके साथ ही नई कंपनियों को कॉरपोरेट टैक्स के रूप में सिर्फ 15 प्रतिशत का भुगतान ही करना होगा. सरचार्ज जोड़ने के बाद टैक्स की दरें घरेलू कंपनियों के लिए 25.17 प्रतिशत और नई कंपनियों के लिए17 प्रतिशत हो जाएंगी.
वहीं, कुछ अर्थशास्त्री इस कदम का स्वागत करते हैं, लेकिन कुछ का कहना है कि कदम सही है लेकिन इसमें अब देर हो गई है और ये उतना प्रभावी नहीं होगा जितना इसके सफल होने की कल्पना की जा रही हैं.
एनआईपीएफपी के अर्थशास्त्री और प्रोफेसर एनआर भानुमूर्ति ने कहा, "मेरा मानना है कि मध्यम से लंबी अवधि में आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए ये उपाय काफी महत्वपूर्ण साबित होंगे. इन घोषणाओं से ना केवल घरेलू निवेश को बढ़ावा मिलेगा बल्कि यह विदेशी निवेशकों को भी भारत में निवेश करने के लिए आकर्षित करेगा."
उन्होंने कहा कि भारत एफडीआई को आकर्षित करने के लिए पहले से कई उपाय किया है. भारत ने सिंगल-ब्रांड रिटेलिंग, रियल स्टेट, पर्यटन आदि क्षेत्रों में निवेश करने पर अच्छी खासी छूट दे रखी हैं.
उद्योग जगत इस बात से आशावादी हैं कि आरबीआई की ओर से अंतिम मौद्रिक नीति में ब्याज दरों में 35% की कटौती के साथ ये राहतें आने वाले त्योहारी सीजन में खपत की मांग बढ़ाएगी. जिससे बाजार में रौनक आएगी.
भानुमूर्ति ने कहा कि हालांकि इससे निवेश में फिलहाल में कोई सुधार नहीं हुआ है. लेकिन टैक्स में कटौती से इसे पुनर्जीवित करने में मदद मिलनी चाहिए. इसके बावजूद कई अर्थशास्त्रियों का कहना है कि आरबीआई के उपायों से निवेश की मांग में सुधार होना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
भानुमूर्ति कहते हैं कि सरकार को उपभोग की मांग को बढ़ावा देने के लिए बहुत कुछ करने की आवश्यकता है या फिर हमें रोजगार वृद्धि के माध्यम से उपभोग की मांग के लिए निवेश के एक पुण्य चक्र की प्रतीक्षा करनी पड़ सकती है.