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आरबीआई के पूर्व डिप्टी गर्वनर से जानिए क्या है हेलिकॉप्टर मनी और इन दिनों यह चर्चा में क्यों है?

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Published : Apr 14, 2020, 2:58 PM IST

Updated : Jun 5, 2020, 6:01 PM IST

हेलीकाप्टर मनी क्या है? क्या आरबीआई बहुत पैसों को प्रिंट कर सकता है और उन्हें आम लोगों के बीच बांट सकता है? सिस्टम में पैसा डालते समय आरबीआई कौन से सिद्धांत अपनाता है? इन सारे सवालों के जवाब जानने के लिए ईटीवी भारत ने भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व डिप्टी गवर्नर आर गांधी से बात की.

आरबीआई के पूर्व डिप्टी गर्वनर से जानिए क्या है हेलिकॉप्टर मनी और इन दिनों यह चर्चा में क्यों है?
आरबीआई के पूर्व डिप्टी गर्वनर से जानिए क्या है हेलिकॉप्टर मनी और इन दिनों यह चर्चा में क्यों है?

नई दिल्ली: तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने पांच दशक पुराने नीतिगत नुस्खे पर बहस छेड़ दी जब उन्होंने भारतीय रिजर्व बैंक से भारतीय अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार के लिए 'हेलीकॉप्टर मनी' की नीति अपनाने को कहा.

'हेलिकॉप्टर मनी' शब्द का प्रयोग पहली बार 1968 में अर्थशास्त्री मिल्टन फ्रीडमैन द्वारा किया गया था. जिन्होंने इसे एक ऐसी अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करने के लिए अंतिम उपाय के रूप में सुझाया था जो मंदी की चपेट में है और ऐसी स्थिति में जहां कीमतें लगातार गिर रही हैं, कम मांग, कम उत्पादन, कम मजदूरी और परिणामस्वरूप कम कीमतों का एक चक्र बना हुआ है.

ये भी पढ़ें- लॉकडाउन से भारतीय अर्थव्यवस्था पर 7-8 लाख करोड़ रुपये का असर

हेलीकाप्टर मनी क्या है? क्या आरबीआई बहुत पैसों को प्रिंट कर सकता है और उन्हें आम लोगों के बीच बांट सकता है? सिस्टम में पैसा डालते समय आरबीआई कौन से सिद्धांत अपनाता है? इन सारे सवालों के जवाब जानने के लिए ईटीवी भारत ने भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व डिप्टी गवर्नर आर गांधी से बात की.

हेलीकॉप्टर मनी क्या है?

हेलिकॉप्टर मनी का उपयोग आमतौर पर सामाजिक कल्याण उपायों और अर्थव्यवस्था में बड़े पैमाने पर सरकारी खर्च को कहा जाता है. जब इसे कई क्षेत्रों में व्यापक तरीके से वितरित किया जाता है, तो इसे हेलीकॉप्टर मनी कहा जाता है.

अमेरिका के पूर्व फेड चेयरमैन बेन बर्नानके को भी इस नीति का प्रस्तावक माना जाता है. उन्होंने 2002 में अर्थशास्त्रियों के एक समूह को नीति का संदर्भ देने के लिए हेलीकॉप्टर बेन का उपनाम अर्जित किया जब वह यूएस फेड के गवर्नर थे. बर्नानके ने सुझाव दिया था कि जापान में वित्त पोषण कर कटौती अनिवार्य रूप से मिल्टन फ्रीडमैन के प्रसिद्ध 'हेलिकॉप्टर ड्रॉप' की मौद्रिक नीति के जैसे थी.

2014 से 2017 के बीच रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर रहे राम सुब्रमण्यम गांधी बताते हैं कि जब लोग हेलिकॉप्टर मनी शब्द का इस्तेमाल करते हैं तो इसका मतलब यह होता है कि सरकार की ओर से अर्थव्यवस्था में भारी मात्रा में पैसा डालना.

आमतौर पर इस शब्द का उपयोग सेंट्रल बैंक के लिए नहीं किया जाता है. एक केंद्रीय बैंक के लिए क्वांटिटेटिव ईजिंग (क्यूई) मानक शब्दावली है. इसका मतलब है कि सेंट्रल बैंक को अर्थव्यवस्था में अधिक पैसा लगाने के लिए परिसंपत्तियों, बांडों और सरकारी प्रतिभूतियों को बड़े पैमाने पर खरीदना चाहिए.

हालांकि, उन्होंने बताया कि भारतीय रिजर्व बैंक के विपरीत, पश्चिमी देशों के कई केंद्रीय बैंक सरकारी प्रतिभूतियों खरीदने के साथ-साथ कॉर्पोरेट बॉन्ड और कुछ मामलों में इक्विटी में भी निवेश करते हैं.

किस तरह के आर्थिक पैकेज की तलाश में है तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर?

तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने देश के सकल घरेलू उत्पाद के 5 फीसदी के बराबर राजकोषीय प्रोत्साहन पैकेज की मांग की है. जीडीपी के पांच प्रतिशत के बराबर के पैकेज का मतलब है 10 लाख करोड़ से अधिक का प्रोत्साहन पैकेज है.

कुछ अन्य नेताओं ने भी जीडीपी के 10-12 प्रतिशत के पैकेज के लिए कहा है. जिसका मतलब पैकेज का कुल आकार 20-24 लाख करोड़ रुपये के आसपास है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले महीने 1.7 लाख करोड़ रुपये के पीएम गरीब कल्याण पैकेज की घोषणा की थी, जिसमें किसानों के लिए पीएम किसान सम्मान निधि के तहत कई मौजूदा योजनाएं भी शामिल थीं.

तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, केरल जैसे राज्यों ने विशेष रूप से किसानों के लिए अधिक समर्थन और नरेगा के लिए आवंटन में वृद्धि करने की मांग की है.

रिजर्व बैंक कैसे बनाता है पैसा ?

आर गांधी बताते हैं कि सेंट्रल बैंक सिस्टम में पैसा प्रदान करता है. लेकिन पैसा बनाने का मतलब केवल भौतिक मुद्रा को छापना नहीं है. यह पूरे मूल्य का एक छोटा सा हिस्सा है.

जब भी रिजर्व बैंक सिस्टम में पैसा बनाता है तो उस पैसे का केवल एक-छठा हिस्सा करेंसी नोटों के रूप में छापा जाता है और लगभग पांच-छठा हिस्सा खातों की किताबों में प्रविष्टियों के रूप में होता है.

कैसे मुद्रित और परिचालित होती है मुद्रा?

आरबीआई या कोई अन्य सेंट्रल बैंक बहुत अधिक मुद्रा छापते हैं और वे इसे स्टॉक में रखते हैं और जब भी अर्थव्यवस्था भौतिक नकदी चाहता है तो बैंक नकद प्रदान करता है.

फिलहाल भारतीय प्रणाली में कितने पैसे हैं?

मार्च 2020 में सिस्टम में उपलब्ध कुल मुद्रा 24.39 लाख करोड़ रुपये आंकी गई थी, जो वित्त वर्ष 2019-20 के जीडीपी (204 लाख करोड़ रुपये) के 12 प्रतिशत से कम थी.

केंद्रीय बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्त वर्ष 2020-21 में 10 प्रतिशत नॉमिनल जीडीपी वृद्धि का अनुमान लगाया था. इससे सकल घरेलू उत्पाद का कुल आकार 225 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया.

आरबीआई के पूर्व अधिकारियों के अनुसार बैंक डिजिटल भुगतान, नकदी का उपयोग, सरकार की नीतियों और कई अन्य कारकों को ध्यान में रखते हुए नए नोटों की छपाई का काम करता है.

हालांकि, पिछले तीन वर्षों में कैश-टू-जीडीपी अनुपात में लगातार वृद्धि देखी गई है. नवंबर 2016 में किए गए नोटबंदी के कारण मार्च 2017 में यह घटकर 8.69 प्रतिशत रह गया था.

हालांकि, मार्च 2018 में कैश-टू-जीडीपी अनुपात 10.7 प्रतिशत और मार्च 2019 में 11.23 प्रतिशत हो गया, जो अंत में मार्च 2020 के अंत में 12.2 प्रतिशत पर पहुंच गया.

क्या आरबीआई अपने हिसाब से बहुत सारे पैसे छाप सकता है?

कुछ लोग यह मान सकते हैं कि केंद्र सरकार या आरबीआई बहुत अधिक मुद्रा छाप सकते हैं और और सिस्टम में मुद्रा आपूर्ति बढ़ा सकते हैं. हालांकि, वास्तविकता इससे थोड़ी अलग है और आमतौर पर ऐसा नहीं होता है, क्योंकि इसके कई दुष्प्रभाव हैं.

उदाहरण के लिए कई लैटिन अमेरिकी और अफ्रीकी देशों ने सिस्टम में ज्यादा पैसा डालने के लिए नोटों की छपाई की. जिसके बाद उन्हें उच्च मुद्रास्फ़ीति का सामना करना पड़ा और सिस्टम में अतिरिक्त पैसा आ जाने से उन्हें अपनी मुद्रा के अवमूल्यन का सामना करना पड़ा.

जिम्बाब्वे का उदाहरण

जिम्बाब्वे में रॉबर्ट मुगाबे की सरकार ने उत्पादन या राजस्व आय के स्रोतों के बिना बहुत सी मुद्रा मुद्रित की. जिससे देश की मुद्रा के मूल्य में जबरदस्त गिरावट आई. जिम्बाब्वे की मुद्रा का इतना अवमूल्यन हो गया कि उसे 100 ट्रिलियन जिम्बाब्वे डॉलर के नोट को छापने पड़े थे जिसे सिर्फ 40 अमेरिकी सेंट के साथ एक्सचेंज किया गया था.

आरबीआई एक अन्य पूर्व अधिकारी ने ईटीवी भारत को नाम न बताने का अनुरोध करते हुए कहा, "जिम्बाब्वे सरकार ने बिना किसी राजस्व प्राप्तियों के सिर्फ अपनी मुद्रा के छपवाए, इससे उनकी मुद्रा का मूल्य पूरी तरह से समाप्त हो गया. उन्होंने कहा कि अब भी अमेरिकी डॉलर, भारतीय मुद्रा और अन्य मुद्रा जिम्बाब्वे में उपयोग किये जाते हैं.

जिम्बाब्वे के बारे में एक सवाल के जवाब में आर गांधी ने कहा, "जिम्बाब्वे एक सबसे खराब उदाहरणों में से एक है लेकिन दुनिया में और भी कई बुरे उदाहरण हैं."

आरबीआई ने विकास और मुद्रास्फीति के बीच संतुलन कैसे बनाया?

गांधी ने कहा, "जब भी कोई सेंट्रल बैंक मनी सप्लाई बढ़ाता है, तो इससे महंगाई बढ़ जाती है. यही वजह है कि सेंट्रल बैंक जल्दी सप्लाई नहीं बढ़ाते हैं जबकि राजनेता और लोग इस तरह का सुझाव देते हैं."

अर्थशास्त्रियों का कहना है कि अतिरिक्त धन के सृजन करने से ज्यादा पैसों में कम सामान मिलने लगेंगे. जिससे समान और वस्तुओं की कीमतें बढ़ेंगी. यही कारण है कि अधिकांश उन्नत अर्थव्यवस्थाओं ने राजनीतिक हस्तक्षेप से केंद्रीय बैंकों के कार्यों को अछूता रखा है.

गांधी ने कहा कि अर्थव्यवस्था में ज्यादा पैसा डालने के बाद रिजर्व बैंक यह देखता है कि यह किस हद तक मुद्रास्फीति को बढ़ावा देगा और यह प्रबंधनीय है या नहीं? यदि यह केवल प्रबंधनीय है तो रिजर्व बैंक पैसे के सृजन को बढ़ावा देगा और अगर यह बड़े पैमाने पर मुद्रास्फीति को बढ़ावा देगा तो आरबीआई ऐसा नहीं करेगा.

आधुनिक अर्थव्यवस्थाएं कार्यकारी प्रभाव से मौद्रिक नीति को करती हैं प्रभावित

आर्थिक विकास को आगे बढ़ाने के लिए कुछ सरकारें अपने केंद्रीय बैंकों को बेंचमार्क ब्याज दरों को कम करने या सिस्टम में आरक्षित धन की राशि में कटौती करके पैसे की आपूर्ति बढ़ाने के लिए मनाने या आगे बढ़ाने की कोशिश करती हैं.

भारत में रिजर्व बैंक के गवर्नर और वित्त मंत्रालय अक्सर दर में कटौती के मुद्दे पर अड़ गए हैं. कुछ लोगों का मानना ​​है कि रिजर्व बैंक के दो पूर्व गवर्नर रघुराम राजन और उर्जित पटेल के जाने का कारण यही था कि उनकी नीतियां सरकार के भीतर की सोच के अनुरूप नहीं थीं.

अमेरिका में राष्ट्रपति ट्रम्प ने दरों में कटौती की अपनी सलाह के लिए सार्वजनिक रूप से यूएस फेड को बुलाया था.

क्या रिजर्व बैंक द्वारा निर्मित धन संपत्ति द्वारा समर्थित है?

ईटीवी भारत के एक सवाल के जवाब में आर गांधी ने स्पष्ट किया कि अगर आरबीआई को अतिरिक्त भौतिक मुद्रा नोट जारी करने की आवश्यकता है तो इसके लिए भारत सरकार की सुरक्षा या विदेशी प्रतिभूति होनी चाहिए.

भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व अधिकारी ने कहा कि रिजर्व बैंक जब पैसा बनाता है तो उसके पास हमेशा संपत्ति होनी चाहिए. संपत्ति आमतौर पर भारत सरकार की प्रतिभूतियों की होती है और इसे वह बाजार से खरीदेगा.

मुद्रा को छापने की प्रणाली के बारे में बताते हुए पूर्व बैंकर ने कहा कि केंद्र सरकार उन बाजारों के लिए सुरक्षा जारी करती है जो बैंकों, एलआईसी और अन्य संस्थानों द्वारा खरीदे जाते हैं और फिर रिजर्व बैंक मुद्रा को छापने से पहले इन बॉन्ड या प्रतिभूतियों को उच्च ब्याज दर पर खरीदता है.

विदेशों में क्वांटिटेटिव ईजिंग कैसे काम करती है?

वित्तवर्ष 2007-08 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद अमेरिका और यूरोपीय केंद्रीय बैंकों ने अपने देशों में बड़े पैमाने पर संपत्ति खरीदने का काम किया. उद्देश्य आर्थिक गतिविधि का समर्थन करने के लिए बाजार में अधिक पैसा डालना था.

अमेरिका में क्वांटिटेटिव ईजिंग

साल 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद यूएस फेड ने 2 ट्रिलियन डॉलर से अधिक की प्रतिभूतियां खरीदीं. जिसे अक्टूबर 2014 तक 4.4 ट्रिलियन डॉलर तक कर दिया गया था.

हालांकि, विशेषज्ञों इसकी प्रभावकारिता पर विभाजित है. आईएमएफ और कुछ अर्थशास्त्रियों ने तर्क दिया कि क्वांटिटेटिव ईजिंग ने अर्थव्यवस्था को समर्थन देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. वहीं, साल 2012 में फेड के पूर्व चेयरमैन एलन ग्रीनस्पैन ने गणना की थी कि अर्थव्यवस्था इसका थोड़ा प्रभाव पड़ा था.

हेलिकॉप्टर मनी पॉलिसी ने जापान में काम क्यों नहीं किया?

दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जापान दो दशकों से अपस्फीति की चपेट में है और बैंक ऑफ जापान की नीतियों ने देश को इससे बाहर आने में मदद नहीं की है.

बैंक ऑफ जापान ने ब्याज दरों को ऐतिहासिक रूप से शून्य या नकारात्मक कर दिया है. लेकिन फिर भी यह अपस्फीति के चक्र को तोड़ने में सफल नहीं हुआ. गांधी जापान में अपस्फीति के लिए जापानी समाज के बचत व्यवहार को जिम्मेदार ठहराते हैं.

उन्होंने कहा कि अगर कोई सेंट्रल बैंक पैसा बनाता है तो लोगों को माल और सेवाओं को खरीदने के लिए इसका इस्तेमाल करना चाहिए तभी अर्थव्यवस्था में सुधार होगा.

आरबीआई के डिप्टी गवर्नर के रूप में रघुराम राजन और उर्जित पटेल दोनों के साथ काम करने वाले आर गांधी ने कहा, "पैसों का अत्यधिक बचत या खर्च दोनों खराब हैं."

नई दिल्ली: तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने पांच दशक पुराने नीतिगत नुस्खे पर बहस छेड़ दी जब उन्होंने भारतीय रिजर्व बैंक से भारतीय अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार के लिए 'हेलीकॉप्टर मनी' की नीति अपनाने को कहा.

'हेलिकॉप्टर मनी' शब्द का प्रयोग पहली बार 1968 में अर्थशास्त्री मिल्टन फ्रीडमैन द्वारा किया गया था. जिन्होंने इसे एक ऐसी अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करने के लिए अंतिम उपाय के रूप में सुझाया था जो मंदी की चपेट में है और ऐसी स्थिति में जहां कीमतें लगातार गिर रही हैं, कम मांग, कम उत्पादन, कम मजदूरी और परिणामस्वरूप कम कीमतों का एक चक्र बना हुआ है.

ये भी पढ़ें- लॉकडाउन से भारतीय अर्थव्यवस्था पर 7-8 लाख करोड़ रुपये का असर

हेलीकाप्टर मनी क्या है? क्या आरबीआई बहुत पैसों को प्रिंट कर सकता है और उन्हें आम लोगों के बीच बांट सकता है? सिस्टम में पैसा डालते समय आरबीआई कौन से सिद्धांत अपनाता है? इन सारे सवालों के जवाब जानने के लिए ईटीवी भारत ने भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व डिप्टी गवर्नर आर गांधी से बात की.

हेलीकॉप्टर मनी क्या है?

हेलिकॉप्टर मनी का उपयोग आमतौर पर सामाजिक कल्याण उपायों और अर्थव्यवस्था में बड़े पैमाने पर सरकारी खर्च को कहा जाता है. जब इसे कई क्षेत्रों में व्यापक तरीके से वितरित किया जाता है, तो इसे हेलीकॉप्टर मनी कहा जाता है.

अमेरिका के पूर्व फेड चेयरमैन बेन बर्नानके को भी इस नीति का प्रस्तावक माना जाता है. उन्होंने 2002 में अर्थशास्त्रियों के एक समूह को नीति का संदर्भ देने के लिए हेलीकॉप्टर बेन का उपनाम अर्जित किया जब वह यूएस फेड के गवर्नर थे. बर्नानके ने सुझाव दिया था कि जापान में वित्त पोषण कर कटौती अनिवार्य रूप से मिल्टन फ्रीडमैन के प्रसिद्ध 'हेलिकॉप्टर ड्रॉप' की मौद्रिक नीति के जैसे थी.

2014 से 2017 के बीच रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर रहे राम सुब्रमण्यम गांधी बताते हैं कि जब लोग हेलिकॉप्टर मनी शब्द का इस्तेमाल करते हैं तो इसका मतलब यह होता है कि सरकार की ओर से अर्थव्यवस्था में भारी मात्रा में पैसा डालना.

आमतौर पर इस शब्द का उपयोग सेंट्रल बैंक के लिए नहीं किया जाता है. एक केंद्रीय बैंक के लिए क्वांटिटेटिव ईजिंग (क्यूई) मानक शब्दावली है. इसका मतलब है कि सेंट्रल बैंक को अर्थव्यवस्था में अधिक पैसा लगाने के लिए परिसंपत्तियों, बांडों और सरकारी प्रतिभूतियों को बड़े पैमाने पर खरीदना चाहिए.

हालांकि, उन्होंने बताया कि भारतीय रिजर्व बैंक के विपरीत, पश्चिमी देशों के कई केंद्रीय बैंक सरकारी प्रतिभूतियों खरीदने के साथ-साथ कॉर्पोरेट बॉन्ड और कुछ मामलों में इक्विटी में भी निवेश करते हैं.

किस तरह के आर्थिक पैकेज की तलाश में है तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर?

तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने देश के सकल घरेलू उत्पाद के 5 फीसदी के बराबर राजकोषीय प्रोत्साहन पैकेज की मांग की है. जीडीपी के पांच प्रतिशत के बराबर के पैकेज का मतलब है 10 लाख करोड़ से अधिक का प्रोत्साहन पैकेज है.

कुछ अन्य नेताओं ने भी जीडीपी के 10-12 प्रतिशत के पैकेज के लिए कहा है. जिसका मतलब पैकेज का कुल आकार 20-24 लाख करोड़ रुपये के आसपास है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले महीने 1.7 लाख करोड़ रुपये के पीएम गरीब कल्याण पैकेज की घोषणा की थी, जिसमें किसानों के लिए पीएम किसान सम्मान निधि के तहत कई मौजूदा योजनाएं भी शामिल थीं.

तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, केरल जैसे राज्यों ने विशेष रूप से किसानों के लिए अधिक समर्थन और नरेगा के लिए आवंटन में वृद्धि करने की मांग की है.

रिजर्व बैंक कैसे बनाता है पैसा ?

आर गांधी बताते हैं कि सेंट्रल बैंक सिस्टम में पैसा प्रदान करता है. लेकिन पैसा बनाने का मतलब केवल भौतिक मुद्रा को छापना नहीं है. यह पूरे मूल्य का एक छोटा सा हिस्सा है.

जब भी रिजर्व बैंक सिस्टम में पैसा बनाता है तो उस पैसे का केवल एक-छठा हिस्सा करेंसी नोटों के रूप में छापा जाता है और लगभग पांच-छठा हिस्सा खातों की किताबों में प्रविष्टियों के रूप में होता है.

कैसे मुद्रित और परिचालित होती है मुद्रा?

आरबीआई या कोई अन्य सेंट्रल बैंक बहुत अधिक मुद्रा छापते हैं और वे इसे स्टॉक में रखते हैं और जब भी अर्थव्यवस्था भौतिक नकदी चाहता है तो बैंक नकद प्रदान करता है.

फिलहाल भारतीय प्रणाली में कितने पैसे हैं?

मार्च 2020 में सिस्टम में उपलब्ध कुल मुद्रा 24.39 लाख करोड़ रुपये आंकी गई थी, जो वित्त वर्ष 2019-20 के जीडीपी (204 लाख करोड़ रुपये) के 12 प्रतिशत से कम थी.

केंद्रीय बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्त वर्ष 2020-21 में 10 प्रतिशत नॉमिनल जीडीपी वृद्धि का अनुमान लगाया था. इससे सकल घरेलू उत्पाद का कुल आकार 225 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया.

आरबीआई के पूर्व अधिकारियों के अनुसार बैंक डिजिटल भुगतान, नकदी का उपयोग, सरकार की नीतियों और कई अन्य कारकों को ध्यान में रखते हुए नए नोटों की छपाई का काम करता है.

हालांकि, पिछले तीन वर्षों में कैश-टू-जीडीपी अनुपात में लगातार वृद्धि देखी गई है. नवंबर 2016 में किए गए नोटबंदी के कारण मार्च 2017 में यह घटकर 8.69 प्रतिशत रह गया था.

हालांकि, मार्च 2018 में कैश-टू-जीडीपी अनुपात 10.7 प्रतिशत और मार्च 2019 में 11.23 प्रतिशत हो गया, जो अंत में मार्च 2020 के अंत में 12.2 प्रतिशत पर पहुंच गया.

क्या आरबीआई अपने हिसाब से बहुत सारे पैसे छाप सकता है?

कुछ लोग यह मान सकते हैं कि केंद्र सरकार या आरबीआई बहुत अधिक मुद्रा छाप सकते हैं और और सिस्टम में मुद्रा आपूर्ति बढ़ा सकते हैं. हालांकि, वास्तविकता इससे थोड़ी अलग है और आमतौर पर ऐसा नहीं होता है, क्योंकि इसके कई दुष्प्रभाव हैं.

उदाहरण के लिए कई लैटिन अमेरिकी और अफ्रीकी देशों ने सिस्टम में ज्यादा पैसा डालने के लिए नोटों की छपाई की. जिसके बाद उन्हें उच्च मुद्रास्फ़ीति का सामना करना पड़ा और सिस्टम में अतिरिक्त पैसा आ जाने से उन्हें अपनी मुद्रा के अवमूल्यन का सामना करना पड़ा.

जिम्बाब्वे का उदाहरण

जिम्बाब्वे में रॉबर्ट मुगाबे की सरकार ने उत्पादन या राजस्व आय के स्रोतों के बिना बहुत सी मुद्रा मुद्रित की. जिससे देश की मुद्रा के मूल्य में जबरदस्त गिरावट आई. जिम्बाब्वे की मुद्रा का इतना अवमूल्यन हो गया कि उसे 100 ट्रिलियन जिम्बाब्वे डॉलर के नोट को छापने पड़े थे जिसे सिर्फ 40 अमेरिकी सेंट के साथ एक्सचेंज किया गया था.

आरबीआई एक अन्य पूर्व अधिकारी ने ईटीवी भारत को नाम न बताने का अनुरोध करते हुए कहा, "जिम्बाब्वे सरकार ने बिना किसी राजस्व प्राप्तियों के सिर्फ अपनी मुद्रा के छपवाए, इससे उनकी मुद्रा का मूल्य पूरी तरह से समाप्त हो गया. उन्होंने कहा कि अब भी अमेरिकी डॉलर, भारतीय मुद्रा और अन्य मुद्रा जिम्बाब्वे में उपयोग किये जाते हैं.

जिम्बाब्वे के बारे में एक सवाल के जवाब में आर गांधी ने कहा, "जिम्बाब्वे एक सबसे खराब उदाहरणों में से एक है लेकिन दुनिया में और भी कई बुरे उदाहरण हैं."

आरबीआई ने विकास और मुद्रास्फीति के बीच संतुलन कैसे बनाया?

गांधी ने कहा, "जब भी कोई सेंट्रल बैंक मनी सप्लाई बढ़ाता है, तो इससे महंगाई बढ़ जाती है. यही वजह है कि सेंट्रल बैंक जल्दी सप्लाई नहीं बढ़ाते हैं जबकि राजनेता और लोग इस तरह का सुझाव देते हैं."

अर्थशास्त्रियों का कहना है कि अतिरिक्त धन के सृजन करने से ज्यादा पैसों में कम सामान मिलने लगेंगे. जिससे समान और वस्तुओं की कीमतें बढ़ेंगी. यही कारण है कि अधिकांश उन्नत अर्थव्यवस्थाओं ने राजनीतिक हस्तक्षेप से केंद्रीय बैंकों के कार्यों को अछूता रखा है.

गांधी ने कहा कि अर्थव्यवस्था में ज्यादा पैसा डालने के बाद रिजर्व बैंक यह देखता है कि यह किस हद तक मुद्रास्फीति को बढ़ावा देगा और यह प्रबंधनीय है या नहीं? यदि यह केवल प्रबंधनीय है तो रिजर्व बैंक पैसे के सृजन को बढ़ावा देगा और अगर यह बड़े पैमाने पर मुद्रास्फीति को बढ़ावा देगा तो आरबीआई ऐसा नहीं करेगा.

आधुनिक अर्थव्यवस्थाएं कार्यकारी प्रभाव से मौद्रिक नीति को करती हैं प्रभावित

आर्थिक विकास को आगे बढ़ाने के लिए कुछ सरकारें अपने केंद्रीय बैंकों को बेंचमार्क ब्याज दरों को कम करने या सिस्टम में आरक्षित धन की राशि में कटौती करके पैसे की आपूर्ति बढ़ाने के लिए मनाने या आगे बढ़ाने की कोशिश करती हैं.

भारत में रिजर्व बैंक के गवर्नर और वित्त मंत्रालय अक्सर दर में कटौती के मुद्दे पर अड़ गए हैं. कुछ लोगों का मानना ​​है कि रिजर्व बैंक के दो पूर्व गवर्नर रघुराम राजन और उर्जित पटेल के जाने का कारण यही था कि उनकी नीतियां सरकार के भीतर की सोच के अनुरूप नहीं थीं.

अमेरिका में राष्ट्रपति ट्रम्प ने दरों में कटौती की अपनी सलाह के लिए सार्वजनिक रूप से यूएस फेड को बुलाया था.

क्या रिजर्व बैंक द्वारा निर्मित धन संपत्ति द्वारा समर्थित है?

ईटीवी भारत के एक सवाल के जवाब में आर गांधी ने स्पष्ट किया कि अगर आरबीआई को अतिरिक्त भौतिक मुद्रा नोट जारी करने की आवश्यकता है तो इसके लिए भारत सरकार की सुरक्षा या विदेशी प्रतिभूति होनी चाहिए.

भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व अधिकारी ने कहा कि रिजर्व बैंक जब पैसा बनाता है तो उसके पास हमेशा संपत्ति होनी चाहिए. संपत्ति आमतौर पर भारत सरकार की प्रतिभूतियों की होती है और इसे वह बाजार से खरीदेगा.

मुद्रा को छापने की प्रणाली के बारे में बताते हुए पूर्व बैंकर ने कहा कि केंद्र सरकार उन बाजारों के लिए सुरक्षा जारी करती है जो बैंकों, एलआईसी और अन्य संस्थानों द्वारा खरीदे जाते हैं और फिर रिजर्व बैंक मुद्रा को छापने से पहले इन बॉन्ड या प्रतिभूतियों को उच्च ब्याज दर पर खरीदता है.

विदेशों में क्वांटिटेटिव ईजिंग कैसे काम करती है?

वित्तवर्ष 2007-08 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद अमेरिका और यूरोपीय केंद्रीय बैंकों ने अपने देशों में बड़े पैमाने पर संपत्ति खरीदने का काम किया. उद्देश्य आर्थिक गतिविधि का समर्थन करने के लिए बाजार में अधिक पैसा डालना था.

अमेरिका में क्वांटिटेटिव ईजिंग

साल 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद यूएस फेड ने 2 ट्रिलियन डॉलर से अधिक की प्रतिभूतियां खरीदीं. जिसे अक्टूबर 2014 तक 4.4 ट्रिलियन डॉलर तक कर दिया गया था.

हालांकि, विशेषज्ञों इसकी प्रभावकारिता पर विभाजित है. आईएमएफ और कुछ अर्थशास्त्रियों ने तर्क दिया कि क्वांटिटेटिव ईजिंग ने अर्थव्यवस्था को समर्थन देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. वहीं, साल 2012 में फेड के पूर्व चेयरमैन एलन ग्रीनस्पैन ने गणना की थी कि अर्थव्यवस्था इसका थोड़ा प्रभाव पड़ा था.

हेलिकॉप्टर मनी पॉलिसी ने जापान में काम क्यों नहीं किया?

दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जापान दो दशकों से अपस्फीति की चपेट में है और बैंक ऑफ जापान की नीतियों ने देश को इससे बाहर आने में मदद नहीं की है.

बैंक ऑफ जापान ने ब्याज दरों को ऐतिहासिक रूप से शून्य या नकारात्मक कर दिया है. लेकिन फिर भी यह अपस्फीति के चक्र को तोड़ने में सफल नहीं हुआ. गांधी जापान में अपस्फीति के लिए जापानी समाज के बचत व्यवहार को जिम्मेदार ठहराते हैं.

उन्होंने कहा कि अगर कोई सेंट्रल बैंक पैसा बनाता है तो लोगों को माल और सेवाओं को खरीदने के लिए इसका इस्तेमाल करना चाहिए तभी अर्थव्यवस्था में सुधार होगा.

आरबीआई के डिप्टी गवर्नर के रूप में रघुराम राजन और उर्जित पटेल दोनों के साथ काम करने वाले आर गांधी ने कहा, "पैसों का अत्यधिक बचत या खर्च दोनों खराब हैं."

Last Updated : Jun 5, 2020, 6:01 PM IST
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