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कमजोर पड़ती आर्थिक वृद्धि दर के कारण की गई रेपो दर में कटौती: एमपीसी ब्योरा

मौद्रिक नीति समिति की चार अप्रैल को समाप्त हुई बैठक में रिजर्व बैंक ने मुद्रास्फीति में आई नरमी को देखते हुये लगातार दूसरी बार नीतिगत ब्याज दर में 0.25 प्रतिशत की कटौती करके इसे 6 प्रतिशत कर दिया था.

शक्तिकांत दास (फाइल फोटो)।
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Published : Apr 18, 2019, 9:20 PM IST

मुंबई : घरेलू आर्थिक वृद्धि के कमजोर पड़ने के साथ वैश्विक स्तर पर आर्थिक सुस्ती ने भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास को नीतिगत ब्याज दर (रेपो दर) में 0.25 प्रतिशत कटौती के पक्ष में अपना मत देने के लिए प्रेरित किया. इस महीने के शुरू में हुई मौद्रिक नीति समिति की बैठक के ब्योरे में यह बात कही गई है.

हालांकि, डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने रेपो दर को पहले के स्तर पर बरकार रखने का पक्ष लिया था. उन्होंने आग्रह किया कि रेपो दर में कटौती करने के फैसले से पहले रिजर्व बैंक को अतिरिक्त आंकड़ों के लिए "कुछ समय और इंतजार" करना चाहिए.

छह सदस्यीय समिति के एक और विशेषज्ञ सदस्य चेतन घाटे ने भी कटौती के विरोध में मतदान किया था. समिति के छह में से चार सदस्यों ने रेपो दर में 0.25 प्रतिशत की कटौती के पक्ष में मतदान किया था. मौद्रिक नीति समिति की चार अप्रैल को समाप्त हुई बैठक में रिजर्व बैंक ने मुद्रास्फीति में आई नरमी को देखते हुये लगातार दूसरी बार नीतिगत ब्याज दर में 0.25 प्रतिशत की कटौती करके इसे 6 प्रतिशत कर दिया था. इससे रेपो दर अब पिछले एक साल के निचले स्तर पर आ गयी है.

हालांकि, मानसून को लेकर अनिश्चितता को देखते हुए रिजर्व बैंक ने मौद्रिक नीति के रुख को तटस्थ बनाये रखा. ब्योरे के मुताबिक, दास ने कहा कि घरेलू आर्थिक वृद्धि के कमजोर पड़ने के साथ वैश्विक वृद्धि में सुस्ती भारत के निर्यात के लिए प्रमुख खतरा है.

उन्होंने कहा कि मुख्य सूचकांक वृद्धि में और गिरावट का संकेत दे रहे हैँ. यात्री कारों की बिक्री और घरेलू हवाई यात्रियों की संख्या में गिरावट, टिकाऊ एवं गैर-टिकाऊ उपभोग वस्तुओं का खराब प्रदर्शन तथा सोने और पेट्रोलियम को छोड़कर अन्य आयात में कमी निजी खपत में कमजोरी को दर्शाती है. दास ने कहा कि निवेश मांग में कमी और निर्यात में गिरावट निवेश गतिविधियों को प्रभावित कर सकती है.

उन्होंने कहा, "मुद्रास्फीति का परिदृश्य नरम दिख रहा है और चालू वित्त वर्ष में खुदरा मुद्रास्फीति के लक्ष्य से नीचे रहने की उम्मीद है. इसे देखते हुए भारतीय अर्थव्यवस्था की निरंतर वृद्धि के लिए चुनौतियों का समाधान करना आवश्यक हो गया है."

समिति की बैठक के ब्यौरे के मुताबिक दास ने कहा, "इसलिए मैंने रेपो दर में 0.25 प्रतिशत कटौती के पक्ष में मतदान किया." बैठक में गवर्नर ने यह भी कहा कि रिजर्व बैंक आर्थिक वृद्धि और मुद्रास्फीति की उभरती स्थिति पर लगातार नजर रखेगा. उन्होंने कहा कि आरबीआई कानून में प्राप्त अधिकारों के दायरे में रहते हुये केन्द्रीय बैंक सही समय पर और निर्णायक रूप से कदम उठायेगा.
ये भी पढ़ें : जेट एयरवेज के पांच बोइंग 777 लेने के लिए एयर इंडिया ने जताई इच्छा

मुंबई : घरेलू आर्थिक वृद्धि के कमजोर पड़ने के साथ वैश्विक स्तर पर आर्थिक सुस्ती ने भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास को नीतिगत ब्याज दर (रेपो दर) में 0.25 प्रतिशत कटौती के पक्ष में अपना मत देने के लिए प्रेरित किया. इस महीने के शुरू में हुई मौद्रिक नीति समिति की बैठक के ब्योरे में यह बात कही गई है.

हालांकि, डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने रेपो दर को पहले के स्तर पर बरकार रखने का पक्ष लिया था. उन्होंने आग्रह किया कि रेपो दर में कटौती करने के फैसले से पहले रिजर्व बैंक को अतिरिक्त आंकड़ों के लिए "कुछ समय और इंतजार" करना चाहिए.

छह सदस्यीय समिति के एक और विशेषज्ञ सदस्य चेतन घाटे ने भी कटौती के विरोध में मतदान किया था. समिति के छह में से चार सदस्यों ने रेपो दर में 0.25 प्रतिशत की कटौती के पक्ष में मतदान किया था. मौद्रिक नीति समिति की चार अप्रैल को समाप्त हुई बैठक में रिजर्व बैंक ने मुद्रास्फीति में आई नरमी को देखते हुये लगातार दूसरी बार नीतिगत ब्याज दर में 0.25 प्रतिशत की कटौती करके इसे 6 प्रतिशत कर दिया था. इससे रेपो दर अब पिछले एक साल के निचले स्तर पर आ गयी है.

हालांकि, मानसून को लेकर अनिश्चितता को देखते हुए रिजर्व बैंक ने मौद्रिक नीति के रुख को तटस्थ बनाये रखा. ब्योरे के मुताबिक, दास ने कहा कि घरेलू आर्थिक वृद्धि के कमजोर पड़ने के साथ वैश्विक वृद्धि में सुस्ती भारत के निर्यात के लिए प्रमुख खतरा है.

उन्होंने कहा कि मुख्य सूचकांक वृद्धि में और गिरावट का संकेत दे रहे हैँ. यात्री कारों की बिक्री और घरेलू हवाई यात्रियों की संख्या में गिरावट, टिकाऊ एवं गैर-टिकाऊ उपभोग वस्तुओं का खराब प्रदर्शन तथा सोने और पेट्रोलियम को छोड़कर अन्य आयात में कमी निजी खपत में कमजोरी को दर्शाती है. दास ने कहा कि निवेश मांग में कमी और निर्यात में गिरावट निवेश गतिविधियों को प्रभावित कर सकती है.

उन्होंने कहा, "मुद्रास्फीति का परिदृश्य नरम दिख रहा है और चालू वित्त वर्ष में खुदरा मुद्रास्फीति के लक्ष्य से नीचे रहने की उम्मीद है. इसे देखते हुए भारतीय अर्थव्यवस्था की निरंतर वृद्धि के लिए चुनौतियों का समाधान करना आवश्यक हो गया है."

समिति की बैठक के ब्यौरे के मुताबिक दास ने कहा, "इसलिए मैंने रेपो दर में 0.25 प्रतिशत कटौती के पक्ष में मतदान किया." बैठक में गवर्नर ने यह भी कहा कि रिजर्व बैंक आर्थिक वृद्धि और मुद्रास्फीति की उभरती स्थिति पर लगातार नजर रखेगा. उन्होंने कहा कि आरबीआई कानून में प्राप्त अधिकारों के दायरे में रहते हुये केन्द्रीय बैंक सही समय पर और निर्णायक रूप से कदम उठायेगा.
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मुंबई : घरेलू आर्थिक वृद्धि के कमजोर पड़ने के साथ वैश्विक स्तर पर आर्थिक सुस्ती ने भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास को नीतिगत ब्याज दर (रेपो दर) में 0.25 प्रतिशत कटौती के पक्ष में अपना मत देने के लिए प्रेरित किया. इस महीने के शुरू में हुई मौद्रिक नीति समिति की बैठक के ब्योरे में यह बात कही गई है.

हालांकि, डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने रेपो दर को पहले के स्तर पर बरकार रखने का पक्ष लिया था. उन्होंने आग्रह किया कि रेपो दर में कटौती करने के फैसले से पहले रिजर्व बैंक को अतिरिक्त आंकड़ों के लिए "कुछ समय और इंतजार" करना चाहिए.

छह सदस्यीय समिति के एक और विशेषज्ञ सदस्य चेतन घाटे ने भी कटौती के विरोध में मतदान किया था. समिति के छह में से चार सदस्यों ने रेपो दर में 0.25 प्रतिशत की कटौती के पक्ष में मतदान किया था. मौद्रिक नीति समिति की चार अप्रैल को समाप्त हुई बैठक में रिजर्व बैंक ने मुद्रास्फीति में आई नरमी को देखते हुये लगातार दूसरी बार नीतिगत ब्याज दर में 0.25 प्रतिशत की कटौती करके इसे 6 प्रतिशत कर दिया था. इससे रेपो दर अब पिछले एक साल के निचले स्तर पर आ गयी है.

हालांकि, मानसून को लेकर अनिश्चितता को देखते हुए रिजर्व बैंक ने मौद्रिक नीति के रुख को तटस्थ बनाये रखा. ब्योरे के मुताबिक, दास ने कहा कि घरेलू आर्थिक वृद्धि के कमजोर पड़ने के साथ वैश्विक वृद्धि में सुस्ती भारत के निर्यात के लिए प्रमुख खतरा है.

उन्होंने कहा कि मुख्य सूचकांक वृद्धि में और गिरावट का संकेत दे रहे हैँ. यात्री कारों की बिक्री और घरेलू हवाई यात्रियों की संख्या में गिरावट, टिकाऊ एवं गैर-टिकाऊ उपभोग वस्तुओं का खराब प्रदर्शन तथा सोने और पेट्रोलियम को छोड़कर अन्य आयात में कमी निजी खपत में कमजोरी को दर्शाती है. दास ने कहा कि निवेश मांग में कमी और निर्यात में गिरावट निवेश गतिविधियों को प्रभावित कर सकती है.

उन्होंने कहा, "मुद्रास्फीति का परिदृश्य नरम दिख रहा है और चालू वित्त वर्ष में खुदरा मुद्रास्फीति के लक्ष्य से नीचे रहने की उम्मीद है. इसे देखते हुए भारतीय अर्थव्यवस्था की निरंतर वृद्धि के लिए चुनौतियों का समाधान करना आवश्यक हो गया है."

समिति की बैठक के ब्यौरे के मुताबिक दास ने कहा, "इसलिए मैंने रेपो दर में 0.25 प्रतिशत कटौती के पक्ष में मतदान किया." बैठक में गवर्नर ने यह भी कहा कि रिजर्व बैंक आर्थिक वृद्धि और मुद्रास्फीति की उभरती स्थिति पर लगातार नजर रखेगा. उन्होंने कहा कि आरबीआई कानून में प्राप्त अधिकारों के दायरे में रहते हुये केन्द्रीय बैंक सही समय पर और निर्णायक रूप से कदम उठायेगा.

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