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पूंजी व राजस्व दोनों तरह के व्यय बढ़ाने से होगा सुधार : अर्थशास्त्री एनआर भानुमूर्ति - अगले वित्तवर्ष में सुधार का अनुमान

प्रख्यात अर्थशास्त्री और बेंगलुरु स्थित बीएएसई विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर एनआर भानुमूर्ति का कहना है कि देश बहुत ही परेशानी भरे वर्ष से गुजर रहा है. इस स्तर पर राजकोषीय घाटे का अनुमान लगाने का कोई भी प्रयास केवल एक अटकलबाजी होगी. क्योंकि अर्थव्यवस्था कोविड-19 से बाहर आ रही है. सरकार को (एफआरबीएम) काे भूलकर, व्यय बढ़ाना होगा. पढ़ें पूरी रिपोर्ट

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Published : Jan 5, 2021, 4:22 PM IST

नई दिल्ली : वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था बहुत खराब स्थिति में है. वास्तव में यह एक ऐतिहासिक मंदी है और इसके सार्वजनिक व्यय में इजाफा करने की आवश्यकता होगी. अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए पूंजी और राजस्व दोनों तरह के व्यय बढ़ाने होंगे. प्रख्यात अर्थशास्त्री और बेंगलुरु स्थित बीएएसई विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर एनआर भानुमूर्ति का कहना है कि देश बहुत ही परेशानी भरे वर्ष से गुजर रहा है. इस स्तर पर राजकोषीय घाटे का अनुमान लगाने का कोई भी प्रयास केवल एक अटकलबाजी होगी. क्योंकि अर्थव्यवस्था कोविड-19 से बाहर आ रही है.

एनआर भानुमूर्ति से बातचीत

कम हुआ है राजस्व संग्रह
शीर्ष अर्थशास्त्री ने कहा कि ऐसी स्थिति में सरकार को कम से कम दो साल के लिए राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम 2003 (एफआरबीएम) के रोडमैप को भूल जाना चाहिए. अर्थशास्त्री कहते हैं कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के लिए मुश्किल दौर से जूझने का एकमात्र तरीका राजकोषीय जिम्मेदारी और बजट प्रबंधन अधिनियम द्वारा निर्धारित राजकोषीय समेकन के रास्ते को भूलना होगा. क्योंकि वे राजस्व संग्रह के समय में बढ़ती व्यय जरुरतों के बीच संघर्ष करती नजर आ रही हैं. चालू वित्त वर्ष के पहले 8 महीनों (अप्रैल-नवंबर) में केंद्र ने वर्ष के लिए 16.36 लाख करोड़ रुपये से अधिक के बजट प्रक्षेपण के सापेक्ष महज 6.88 लाख करोड़ रुपये (केंद्र का शुद्ध) का कर राजस्व एकत्र किया है.

अगले वित्तवर्ष में सुधार का अनुमान
प्रोफेसर भानुमूर्ति ने ईटीवी भारत को बताया कि सामंजस्य स्थापित करने का एक तरीका यह है कि केवल एक वर्ष के लिए नहीं बल्कि अगले वर्ष के लिए भी एफआरबीएम रोडमैप को न भूल जाएं. उन्होंने कहा कि अगले वित्तवर्ष में स्थिति में सुधार हो सकता है क्योंकि अधिकांश पूर्वानुमान उच्च विकास दर की भविष्यवाणी कर रहे हैं, जिनमें कुछ ऐसे भी हैं जो 2021-22 में दोहरे अंक की वृद्धि की भविष्यवाणी करते हैं. उन्होंने कहा कि अगर ऐसा है तो हमें अगले साल बेहतर राजस्व जुटाना पड़ सकता है. यह वित्त मंत्री को व्यय के साथ-साथ राजस्व के बीच के अंतर को कम करने में मदद करेगा.

यह भी पढ़ें-वृहत आर्थिक आंकड़े, टीकाकरण की खबरें, तिमाही परिणाम तय करेंगे बजार की चाल

अधिक खर्च करना होगा ही विकल्प
अर्थशास्त्री कहते हैं कि राजस्व संग्रह में गिरावट के बावजूद सरकार को बीमार अर्थव्यवस्था का समर्थन करने के लिए पिछले कुछ वर्षों में जितना खर्च किया गया है, उससे अधिक खर्च करना होगा. प्रोफेसर भानुमूर्ति के अनुसार अभी भी खर्च बढ़ाने की गुंजाइश है क्योंकि सरकार ने लॉकडाउन अवधि के दौरान बड़े राजकोषीय प्रोत्साहन उपायों का विकल्प नहीं चुना था. उन्होंने कहा कि अब तक सरकार ने वित्तीय स्थिति को खराब नहीं होने दिया है. मंदी की अवधि होने के बावजूद हमें उम्मीद है कि राजकोषीय घाटे की स्थिति थोड़ी बेहतर होगी. प्रोफेसर भानुमूर्ति का कहना है कि सरकार के लिए अपने राजस्व संग्रह को बढ़ाने का एक और तरीका है कि कर की दर को कम करें. शीर्ष अर्थशास्त्री ने कहा कि विशेष रूप से जीएसटी की कम दरों के कारण अधिक अनुपालन और राजस्व में उछाल आएगा जो कि अर्थव्यवस्था में गुणात्मक प्रभाव पैदा कर सकता है.

नई दिल्ली : वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था बहुत खराब स्थिति में है. वास्तव में यह एक ऐतिहासिक मंदी है और इसके सार्वजनिक व्यय में इजाफा करने की आवश्यकता होगी. अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए पूंजी और राजस्व दोनों तरह के व्यय बढ़ाने होंगे. प्रख्यात अर्थशास्त्री और बेंगलुरु स्थित बीएएसई विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर एनआर भानुमूर्ति का कहना है कि देश बहुत ही परेशानी भरे वर्ष से गुजर रहा है. इस स्तर पर राजकोषीय घाटे का अनुमान लगाने का कोई भी प्रयास केवल एक अटकलबाजी होगी. क्योंकि अर्थव्यवस्था कोविड-19 से बाहर आ रही है.

एनआर भानुमूर्ति से बातचीत

कम हुआ है राजस्व संग्रह
शीर्ष अर्थशास्त्री ने कहा कि ऐसी स्थिति में सरकार को कम से कम दो साल के लिए राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम 2003 (एफआरबीएम) के रोडमैप को भूल जाना चाहिए. अर्थशास्त्री कहते हैं कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के लिए मुश्किल दौर से जूझने का एकमात्र तरीका राजकोषीय जिम्मेदारी और बजट प्रबंधन अधिनियम द्वारा निर्धारित राजकोषीय समेकन के रास्ते को भूलना होगा. क्योंकि वे राजस्व संग्रह के समय में बढ़ती व्यय जरुरतों के बीच संघर्ष करती नजर आ रही हैं. चालू वित्त वर्ष के पहले 8 महीनों (अप्रैल-नवंबर) में केंद्र ने वर्ष के लिए 16.36 लाख करोड़ रुपये से अधिक के बजट प्रक्षेपण के सापेक्ष महज 6.88 लाख करोड़ रुपये (केंद्र का शुद्ध) का कर राजस्व एकत्र किया है.

अगले वित्तवर्ष में सुधार का अनुमान
प्रोफेसर भानुमूर्ति ने ईटीवी भारत को बताया कि सामंजस्य स्थापित करने का एक तरीका यह है कि केवल एक वर्ष के लिए नहीं बल्कि अगले वर्ष के लिए भी एफआरबीएम रोडमैप को न भूल जाएं. उन्होंने कहा कि अगले वित्तवर्ष में स्थिति में सुधार हो सकता है क्योंकि अधिकांश पूर्वानुमान उच्च विकास दर की भविष्यवाणी कर रहे हैं, जिनमें कुछ ऐसे भी हैं जो 2021-22 में दोहरे अंक की वृद्धि की भविष्यवाणी करते हैं. उन्होंने कहा कि अगर ऐसा है तो हमें अगले साल बेहतर राजस्व जुटाना पड़ सकता है. यह वित्त मंत्री को व्यय के साथ-साथ राजस्व के बीच के अंतर को कम करने में मदद करेगा.

यह भी पढ़ें-वृहत आर्थिक आंकड़े, टीकाकरण की खबरें, तिमाही परिणाम तय करेंगे बजार की चाल

अधिक खर्च करना होगा ही विकल्प
अर्थशास्त्री कहते हैं कि राजस्व संग्रह में गिरावट के बावजूद सरकार को बीमार अर्थव्यवस्था का समर्थन करने के लिए पिछले कुछ वर्षों में जितना खर्च किया गया है, उससे अधिक खर्च करना होगा. प्रोफेसर भानुमूर्ति के अनुसार अभी भी खर्च बढ़ाने की गुंजाइश है क्योंकि सरकार ने लॉकडाउन अवधि के दौरान बड़े राजकोषीय प्रोत्साहन उपायों का विकल्प नहीं चुना था. उन्होंने कहा कि अब तक सरकार ने वित्तीय स्थिति को खराब नहीं होने दिया है. मंदी की अवधि होने के बावजूद हमें उम्मीद है कि राजकोषीय घाटे की स्थिति थोड़ी बेहतर होगी. प्रोफेसर भानुमूर्ति का कहना है कि सरकार के लिए अपने राजस्व संग्रह को बढ़ाने का एक और तरीका है कि कर की दर को कम करें. शीर्ष अर्थशास्त्री ने कहा कि विशेष रूप से जीएसटी की कम दरों के कारण अधिक अनुपालन और राजस्व में उछाल आएगा जो कि अर्थव्यवस्था में गुणात्मक प्रभाव पैदा कर सकता है.

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