मुंबई: एसबीआई के अर्थशास्त्रियों ने आर्थिक वृद्धि में नरमी को देखते हुए राजकोषीय घाटे पर ध्यान देने की जरूरत पर सवाल उठाये हैं. इन अर्थशास्त्रियों ने राजकोषीय घाटे की जगह संरचनात्मक घाटे को अपनाने का सुझाव दिया है. इससे सरकार को वृद्धि की जरूरतों को पूरा करने में मदद मिलेगी.
संरचनात्मक घाटा से आशय ऐसे घाटे से है जो कमोबेश स्थायी होता है और जब तक कोई बड़ा बदलाव नहीं आता, वह स्थिर रहता है. इसमें दूरसंचार क्षेत्र (स्पेक्ट्रम नीलामी) से होने वाली आय और अन्य गैर-चक्रीय यानी अनियमित पहलुओं को बाहर रखा जाता है. एसबीआई रिसर्च ने एक नोट में कहा कि कई विकसित और उभरते बाजारों ने संरचनात्मक घाटे की व्यवस्था को स्वीकार किया है.
ये भी पढ़ें- सीआईआई का 10 प्रतिशत जीडीपी वृद्धि दर के लिए भूमि और श्रम सुधारों पर जोर
इसमें कहा गया है, "देश में आर्थिक वृद्धि में नरमी को देखते हुए यह सवाल उठता है कि क्या सरकार को राजकोषीय मजबूती पर ध्यान देते रहना चाहिए या इसमें और कमी लाने से पहले घाटे के आंकड़े को अगले दो साल तक स्थिर रखना चाहिए तथा वृद्धि को गति देनी चाहिए." यह रिपोर्ट ऐसे समय जारी की गयी है कि जब जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) वृद्धि दर 2018-19 की चौथी तिमाही में पांच साल के न्यूनतम स्तर 5.8 प्रतिशत रही है.
इसमें कहा गया है, "राजकोषीय घाटे का विकल्प संरचनात्मक घाटा है जिसे कई विकसित और उभरती अर्थव्यवस्था वाले देश अपना रहे हैं." वित्त वर्ष 2018-19 क उदाहरण देते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि राजकोषीय घाटे को संशोधित लक्ष्य के अनुसार 3.4 प्रतिशत पर रखने के लिये सरकार को राजस्व में 1.57 लाख करोड़ रुपये की कमी के कारण व्यय में 1.45 लाख करोड़ रुपये की कमी करनी पड़ी.
व्यय में कमी से वित्त वर्ष 2019-20 के लिये बजट अनुमानों को लेकर उलझन बनी हुई है. बजटीय अनुमान को चालू वित्त वर्ष में पूरा करने करने के लिये कर राजस्व में 29.5 प्रतिशत की वृद्धि करनी होगी और राजस्व व्यय में 21.9 प्रतिशत की बढ़ोतरी करनी होगी.
चालू वित्त वर्ष के लिये राजकोषीय घाटा फिर से 3.4 प्रतिशत तय किया गया है. इससे पांच जुलाई को पेश होने वाले पूर्ण बजट के अनुमानों में संशोधन करना होगा. आर्थिक वृद्धि को बढ़ाने की चुनौती को देखते हुए, जीएसटी व्यवस्था तथा प्रत्यक्ष करों में नरमी के बीच सरकार को राजकोषीय मितव्ययिता का रास्ता नहीं अपनाना चाहिए.
हालांकि वृहद आर्थिक स्थिरता के लिये राजकोषीय समझदारी जरूरी शर्त है लेकिन यह पर्याप्त नहीं है. अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष के तरीके के आधार पर संरचनात्मक घाटा भारत के लिये 6.3 प्रतिशत बैठता है.
रिपोर्ट के मुताबिक, "ऐसा जान पड़ता है कि आईएमएफ की नजर में अगले एक-दो साल में 6 प्रतिशत से नीचे जाने को लेकर भी मुश्किल है. इसीलिए सवाल उठता है कि क्या हम इसे 6 से 6.5 प्रतिशत पर रखे या एफआरबीएम (राजकोषीय जवादेही एवं बजट प्रबंधन) को 5 प्रतिशत पर लाये?"
इस बीच, आस्ट्रेलिया की ब्रोकरेज इकाई जेफरीज ने कहा कि सरकार ने राजकोषीय घाटा 3.4 प्रतिशत रखने का लक्ष्य रखा है जो एक कठिन कार्य है.
राजकोषीय घाटे की जगह संरचनात्मक घाटा अपनाने की जरूरत: एसबीआई
एसबीआई रिसर्च ने एक नोट में कहा कि कई विकसित और उभरते बाजारों ने संरचनात्मक घाटे की व्यवस्था को स्वीकार किया है. इन अर्थशास्त्रियों ने राजकोषीय घाटे की जगह संरचनात्मक घाटे को अपनाने का सुझाव दिया है. इससे सरकार को वृद्धि की जरूरतों को पूरा करने में मदद मिलेगी.
मुंबई: एसबीआई के अर्थशास्त्रियों ने आर्थिक वृद्धि में नरमी को देखते हुए राजकोषीय घाटे पर ध्यान देने की जरूरत पर सवाल उठाये हैं. इन अर्थशास्त्रियों ने राजकोषीय घाटे की जगह संरचनात्मक घाटे को अपनाने का सुझाव दिया है. इससे सरकार को वृद्धि की जरूरतों को पूरा करने में मदद मिलेगी.
संरचनात्मक घाटा से आशय ऐसे घाटे से है जो कमोबेश स्थायी होता है और जब तक कोई बड़ा बदलाव नहीं आता, वह स्थिर रहता है. इसमें दूरसंचार क्षेत्र (स्पेक्ट्रम नीलामी) से होने वाली आय और अन्य गैर-चक्रीय यानी अनियमित पहलुओं को बाहर रखा जाता है. एसबीआई रिसर्च ने एक नोट में कहा कि कई विकसित और उभरते बाजारों ने संरचनात्मक घाटे की व्यवस्था को स्वीकार किया है.
ये भी पढ़ें- सीआईआई का 10 प्रतिशत जीडीपी वृद्धि दर के लिए भूमि और श्रम सुधारों पर जोर
इसमें कहा गया है, "देश में आर्थिक वृद्धि में नरमी को देखते हुए यह सवाल उठता है कि क्या सरकार को राजकोषीय मजबूती पर ध्यान देते रहना चाहिए या इसमें और कमी लाने से पहले घाटे के आंकड़े को अगले दो साल तक स्थिर रखना चाहिए तथा वृद्धि को गति देनी चाहिए." यह रिपोर्ट ऐसे समय जारी की गयी है कि जब जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) वृद्धि दर 2018-19 की चौथी तिमाही में पांच साल के न्यूनतम स्तर 5.8 प्रतिशत रही है.
इसमें कहा गया है, "राजकोषीय घाटे का विकल्प संरचनात्मक घाटा है जिसे कई विकसित और उभरती अर्थव्यवस्था वाले देश अपना रहे हैं." वित्त वर्ष 2018-19 क उदाहरण देते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि राजकोषीय घाटे को संशोधित लक्ष्य के अनुसार 3.4 प्रतिशत पर रखने के लिये सरकार को राजस्व में 1.57 लाख करोड़ रुपये की कमी के कारण व्यय में 1.45 लाख करोड़ रुपये की कमी करनी पड़ी.
व्यय में कमी से वित्त वर्ष 2019-20 के लिये बजट अनुमानों को लेकर उलझन बनी हुई है. बजटीय अनुमान को चालू वित्त वर्ष में पूरा करने करने के लिये कर राजस्व में 29.5 प्रतिशत की वृद्धि करनी होगी और राजस्व व्यय में 21.9 प्रतिशत की बढ़ोतरी करनी होगी.
चालू वित्त वर्ष के लिये राजकोषीय घाटा फिर से 3.4 प्रतिशत तय किया गया है. इससे पांच जुलाई को पेश होने वाले पूर्ण बजट के अनुमानों में संशोधन करना होगा. आर्थिक वृद्धि को बढ़ाने की चुनौती को देखते हुए, जीएसटी व्यवस्था तथा प्रत्यक्ष करों में नरमी के बीच सरकार को राजकोषीय मितव्ययिता का रास्ता नहीं अपनाना चाहिए.
हालांकि वृहद आर्थिक स्थिरता के लिये राजकोषीय समझदारी जरूरी शर्त है लेकिन यह पर्याप्त नहीं है. अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष के तरीके के आधार पर संरचनात्मक घाटा भारत के लिये 6.3 प्रतिशत बैठता है.
रिपोर्ट के मुताबिक, "ऐसा जान पड़ता है कि आईएमएफ की नजर में अगले एक-दो साल में 6 प्रतिशत से नीचे जाने को लेकर भी मुश्किल है. इसीलिए सवाल उठता है कि क्या हम इसे 6 से 6.5 प्रतिशत पर रखे या एफआरबीएम (राजकोषीय जवादेही एवं बजट प्रबंधन) को 5 प्रतिशत पर लाये?"
इस बीच, आस्ट्रेलिया की ब्रोकरेज इकाई जेफरीज ने कहा कि सरकार ने राजकोषीय घाटा 3.4 प्रतिशत रखने का लक्ष्य रखा है जो एक कठिन कार्य है.
राजकोषीय घाटे की जगह संरचनात्मक घाटा अपनाने की जरूरत: एसबीआई
मुंबई: एसबीआई के अर्थशास्त्रियों ने आर्थिक वृद्धि में नरमी को देखते हुए राजकोषीय घाटे पर ध्यान देने की जरूरत पर सवाल उठाये हैं. इन अर्थशास्त्रियों ने राजकोषीय घाटे की जगह संरचनात्मक घाटे को अपनाने का सुझाव दिया है. इससे सरकार को वृद्धि की जरूरतों को पूरा करने में मदद मिलेगी.
संरचनात्मक घाटा से आशय ऐसे घाटे से है जो कमोबेश स्थायी होता है और जब तक कोई बड़ा बदलाव नहीं आता, वह स्थिर रहता है. इसमें दूरसंचार क्षेत्र (स्पेक्ट्रम नीलामी) से होने वाली आय और अन्य गैर-चक्रीय यानी अनियमित पहलुओं को बाहर रखा जाता है. एसबीआई रिसर्च ने एक नोट में कहा कि कई विकसित और उभरते बाजारों ने संरचनात्मक घाटे की व्यवस्था को स्वीकार किया है.
ये भी पढ़ें-
इसमें कहा गया है, "देश में आर्थिक वृद्धि में नरमी को देखते हुए यह सवाल उठता है कि क्या सरकार को राजकोषीय मजबूती पर ध्यान देते रहना चाहिए या इसमें और कमी लाने से पहले घाटे के आंकड़े को अगले दो साल तक स्थिर रखना चाहिए तथा वृद्धि को गति देनी चाहिए." यह रिपोर्ट ऐसे समय जारी की गयी है कि जब जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) वृद्धि दर 2018-19 की चौथी तिमाही में पांच साल के न्यूनतम स्तर 5.8 प्रतिशत रही है.
इसमें कहा गया है, "राजकोषीय घाटे का विकल्प संरचनात्मक घाटा है जिसे कई विकसित और उभरती अर्थव्यवस्था वाले देश अपना रहे हैं." वित्त वर्ष 2018-19 क उदाहरण देते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि राजकोषीय घाटे को संशोधित लक्ष्य के अनुसार 3.4 प्रतिशत पर रखने के लिये सरकार को राजस्व में 1.57 लाख करोड़ रुपये की कमी के कारण व्यय में 1.45 लाख करोड़ रुपये की कमी करनी पड़ी.
व्यय में कमी से वित्त वर्ष 2019-20 के लिये बजट अनुमानों को लेकर उलझन बनी हुई है. बजटीय अनुमान को चालू वित्त वर्ष में पूरा करने करने के लिये कर राजस्व में 29.5 प्रतिशत की वृद्धि करनी होगी और राजस्व व्यय में 21.9 प्रतिशत की बढ़ोतरी करनी होगी.
चालू वित्त वर्ष के लिये राजकोषीय घाटा फिर से 3.4 प्रतिशत तय किया गया है. इससे पांच जुलाई को पेश होने वाले पूर्ण बजट के अनुमानों में संशोधन करना होगा. आर्थिक वृद्धि को बढ़ाने की चुनौती को देखते हुए, जीएसटी व्यवस्था तथा प्रत्यक्ष करों में नरमी के बीच सरकार को राजकोषीय मितव्ययिता का रास्ता नहीं अपनाना चाहिए.
हालांकि वृहद आर्थिक स्थिरता के लिये राजकोषीय समझदारी जरूरी शर्त है लेकिन यह पर्याप्त नहीं है. अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष के तरीके के आधार पर संरचनात्मक घाटा भारत के लिये 6.3 प्रतिशत बैठता है.
रिपोर्ट के मुताबिक, "ऐसा जान पड़ता है कि आईएमएफ की नजर में अगले एक-दो साल में 6 प्रतिशत से नीचे जाने को लेकर भी मुश्किल है. इसीलिए सवाल उठता है कि क्या हम इसे 6 से 6.5 प्रतिशत पर रखे या एफआरबीएम (राजकोषीय जवादेही एवं बजट प्रबंधन) को 5 प्रतिशत पर लाये?"
इस बीच, आस्ट्रेलिया की ब्रोकरेज इकाई जेफरीज ने कहा कि सरकार ने राजकोषीय घाटा 3.4 प्रतिशत रखने का लक्ष्य रखा है जो एक कठिन कार्य है.
Conclusion: