हैदराबाद: केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सोमवार से कुछ प्रतिबंधों के साथ प्रतिबंध क्षेत्रों को छोड़कर सभी तीन क्षेत्रों अर्थात् लाल, नारंगी और हरे रंग में शराब की दुकानें खोलने की अनुमति दी.
शराब दुकाने खुलने के बाद लोगों ने बड़ी संख्या में देश भर में शराब की विभिन्न दुकानों के बाहर उमड़ पड़ें. कई स्थानों पर सामाजिक भेद दिशानिर्देशों की धज्जियां उड़ा दीं गई.
लॉकडाउन के दौरान आर्थिक गतिविधियों में ठहराव है और चूंकि शराब की दुकानें प्रमुख राजस्व योगदानकर्ताओं में से एक हैं, इसलिए शराब की बिक्री एक राहत होगी.
कैसे होती है राज्यों की कमाई
असल में राज्यों की कमाई के मुख्य स्रोत हैं- राज्य जीएसटी, भू-राजस्व, पेट्रोल-डीजल पर लगने वाले वैट या सेल्स टैक्स, शराब पर लगने वाला एक्साइज और गाड़ियों आदि पर लगने वाले कई अन्य टैक्स. शराब पर लगने वाला एक्साइज टैक्स यानी आबकारी शुल्क राज्यों के राजस्व में एक बड़ा योगदान करता है.
आबकारी शुल्क का राज्यों की कमाई में बड़ा योगदान
राज्यों के राजस्व में शराब पर लगने वाला एक्साइज टैक्स यानी आबकारी शुल्क का बहुत बड़ा योगदान होता है. शराब और पेट्रोल-डीजल के जीएसटी से बाहर होने पर राज्य ही इन पर भारी टैक्स लगाकर अपना राजस्व बढ़ाते हैं. लॉकडाउन के बीच ही राजस्थान सरकार ने शराब पर एक्साइज टैक्स 10 फीसदी बढ़ाया. वहीं, दिल्ली और आंध्र प्रदेश ने भी शराब पर कोरोना सेस लगा दिया.
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देश के सभी राज्यों से करीब 2.5 लाख करोड़ का राजस्व केवल शराब की बिक्री से हासिल होता है. ज्यादातर राज्यों के कुल राजस्व का 15 से 30 फीसदी हिस्सा शराब से ही आता है.
बिहार और गुजरात में पहले से ही शराबबंदी लागू होने के कारण राजस्व में फर्क नहीं पड़ने वाला, लेकिन बाकी राज्यों के राजस्व में काफी फर्क पड़ा है.
एआईडीए के महानिदेशक वी. एन रैना ने कहा कि सरकार को राजस्व की आवश्यकता है और अधिकतम राजस्व शराब उद्योग से आता है.
पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, पंजाब और तेलंगाना जैसे राज्यों में उत्पाद शुल्क में 15-20% राज्यों का अपना टैक्स राजस्व है.
शराब की बिक्री से केरल, महाराष्ट्र और तमिलनाडु को कुल टैक्स राजस्व का करीब 10 फीसदी हिस्सा मिलता है.
यहां अल्कोहल पेय पदार्थों की बिक्री से अधिकतम राजस्व प्राप्त करने वाले राज्यों की सूची दी गई है.
वित्तीय वर्ष 2019-20 में शराब की बिक्री से राज्यों का राजस्व
- उत्तर प्रदेश - 26,000 करोड़
- महाराष्ट्र - 24,000 करोड़ रुपये
- तेलंगाना - 21,500 करोड़
- कर्नाटक - 20,948 करोड़
- पश्चिम बंगाल - 11,874 करोड़ रुपये
- राजस्थान - 7,800 करोड़ रुपये
- पंजाब - 5,600 करोड़ रुपये
- दिल्ली - 5,500 करोड़ रुपये