ETV Bharat / business

नये साल में बैंकों के सामने होंगी फंसे कर्ज से निपटने की बड़ी चुनौती

कोरोना महामारी ने जिस तरह से अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है, नए साल बैंकों के सामने फंसे कर्ज से निपटने और नए कर्ज की मांग में वृद्धि की चुनौती होगी.

author img

By

Published : Dec 28, 2020, 12:02 PM IST

Updated : Dec 28, 2020, 12:12 PM IST

नये साल में बैंकों के सामने होंगी फंसे कर्ज से निपटने की बड़ी चुनौती
नये साल में बैंकों के सामने होंगी फंसे कर्ज से निपटने की बड़ी चुनौती

नई दिल्ली : नये साल में बैंकों के सामने फंसे कर्ज की समस्या से निपटना मुख्य चुनौती होगी. कई कंपनियों खासतौर से सूक्ष्म, लघु एवं मझौली (एमएसएमई) इकाइयों के समक्ष कोरोना वायरस महामारी से लगे झटके के कारण मजबूती से खड़े रहना संभव नहीं होगा, जिसकी वजह से चालू वित्त वर्ष की शुरुआती तिमाहियों के दौरान अर्थव्यवस्था में भारी गिरावट देखी गई.

बैंकों को आने वाले महीनों में कमजोर कर्ज वृद्धि की चुनौती से भी निपटना होगा. निजी क्षेत्र का निवेश इस दौरान कम रहने से कंपनी क्षेत्र में कर्ज वृद्धि पर असर पड़ा है. बैंकिंग तंत्र में नकदी की कमी नहीं है लेकिन इसके बावजूद कंपनी क्षेत्र से कर्ज की मांग धीमी बनी हुई है.

बैंकों को उम्मीद है कि अर्थव्यवस्था में उम्मीद से बेहतर सुधार के चलते जल्द ही कर्ज मांग ढर्रें पर आयेगी. देश की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में पहली तिमाही के दौरान जहां 23.9 प्रतिशत की गिरावट आई थी वहीं दूसरी तिमाही में यह काफी तेजी से कम होकर 7.5 प्रतिशत रह गई. लेकिन उद्योग जगत के विश्वास और धारणा में अभी वह मजबूती नहीं दिखाई देती हैं जो सामान्य तौर पर होती है.

पिछले कुछ सालों के दौरान निजी क्षेत्र का निवेश काफी कम बना हुआ है और अर्थव्यवस्था को उठाने का काम सार्वजनिक व्यय के दारोमदार पर टिका है. बैंकिंग क्षेत्र का जहां तक सवाल है वर्ष के शुरुआती महीनों में ही कोरोना वायरस के प्रसार से उसके कामकाज पर भी असर पड़ा. गैर- निष्पादित राशि (एनपीए) यानी फेसे कर्ज से उसका पीछा छूटता हुआ नहीं दिखा.

ये भी पढ़ें: उबर के लिए आसान नही रहा साल 2020 का सफर

इस मामले में पहला बड़ा झटका मार्च में उस समय लगा जब रिजर्व बैंक ने संकट से घिरे येस बैंक के कामकाज पर रोक लगा दी. जैसे ही येस बैंक का मुद्दा संभलता दिखा तो अर्थव्यवस्था कोरोना वायरस महामारी की जकड़ में आ गई. देशव्यापी लॉकडाउन लगा दिया गया और संसद के बजट सत्र को भी समय से पहले ही स्थगित करना पड़ा.

हालांकि, वर्ष के दौरान सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के विलय की प्रक्रिया को नहीं रुकने दिया. सार्वजनिक क्षेत्र के छह बैंकों को अन्य चार बैंकों के साथ मिला दिया गया. देश में बड़े वित्तीय संस्थानों को खड़ा करने के उद्देश्य से यह कदम उठाया गया.

एक अप्रैल से यूनाइटेड बैंक आफ इंडिया और ओरिएंटल बैंक आफ कामर्स को पंजाब नेशनल बैंक के साथ मिला दिया गया. इस विलय से पीएनबी देश का सार्वजनिक क्षेत्र का दूसरा बड़ा बैंक बन गया. वहीं आंध्र बैंक और कार्पोरेशन बैंक को मुंबई सथित यूनियन बैंक आफ इंडिया के साथ विलय कर दिया गया. सिंडीकेट बैंक को केनरा बैंक के साथ वहीं इलाहाबाद बैंक का विलय चेन्नई स्थित इंडियन बैंक के साथ कर दिया गया.

वित्त सेवाओं के विभाग के सचिव देबाशीष पांडा ने पीटीआई- भाषा से कहा, "विलय करीब करीब स्थिर हो चला है. लॉकडाउन के बावजूद यह काफी सुनियोजित तरीके से हो गया. बैंकों के विलय के शुरुआती सकारात्मक संकेत दिखने लगे हैं. उनका अब बड़ा पूंजी आधार है और उनकी कर्ज देने की क्षमता भी बढ़ी है. इसके अलावा विभिन्न बैंकों के उत्पाद भी विलय वाले लीड बैंक के साथ जुड़े हैं."

ये भी पढ़ें: साल 2020 में बाधित रही भारतीय विमानन क्षेत्र के विकास की उड़ान

कोरोना वायरस महामारी के कारण लगे लॉकडाउन के दौरान नौकरी जाने और आय का नुकसान उठाने वाले लोगों को राहत देते हुये रिजर्व बैंक ने बैंक कर्ज की किस्त के भुगतान से ग्राहकों को राहत दी. इस दौरान बैंकों के कर्ज एनपीए प्रक्रिया को भी स्थगित रखा गया. इसके बाद उच्चतम न्यायालय ने भी एनपीए मामलों की पहचान पर अगले आदेश तक के लिये रोक लगा दी.

उच्चतम न्यायालय के आदेश पर बैंकों को दो करोड़ रुपये तक के कर्ज पर ब्याज पर ब्याज नहीं लेने को कहा गया. यह आदेश एक मार्च 2020 से अगले छह माह तक की कर्ज किस्त के मामले में दिया गया. इससे सरकार पर 7,500 करोड़ रुपये के करीब अतिरिक्त बोझा पड़ने की संभावना है.

रिजर्व बैंक के निर्देश के तहत बड़ी कंपनियों के लिये बैंकों ने एक बारगी कर्ज पुनर्गठन योजना को लागू किया. इसके लिये कड़े मानदंड तय किये गये. कोरोना वायरस के कारण दबाव में काम कर रही कंपनियों को इस योजना का लाभ उठाने के लिये दिसंबर तक का समय दिया गया.

पांडा ने कहा जहां तक कर्ज मांग की बात है. वर्ष के ज्यादातर समय यह कमजोर बनी रही. हालांकि, कृषि और खुदरा कर्ज के मामले में सितंबर के बाद से गतिविधियां कुछ बढ़ी हैं. एमएसएमई क्षेत्र में सरकार के हस्तक्षेप से शुरू की गई आपातकालीन ऋण सुविधा गारंटी योजना (ईसीएलजीएस) के तहत मांग बढ़ी है.

उन्होंने कहा कि कंपनी वर्ग में मांग बढ़ाने के लिये सरकार की तरफ से प्रयास किये गये और हाल ही में ईसीएलजीएस का लाभ कुछ अन्य क्षेत्रों को भी उपलब्ध कराया गया. रिजर्व बैंक की जुलाई में जारी की गई वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट के मुताबिक इस साल के अंत में बैंकों का सकल एनपीए 12.5 प्रतिशत तक पहुंच सकता है.

इस साल मार्च अंत में यह 8.5 प्रतिशत आंका गया था. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की यदि बात की जाये तो मार्च 2021 में उनका सकल एनपीए बढ़कर 15.2 प्रतिशत तक पहुंच सकता है जो कि मार्च 2020 में 11.3 प्रतिशत पर था. वहीं निजी बैंकों और विदेशी बैंकों का सकल एनपीए 4.2 प्रतिशत और 2.3 प्रतिशत से बढ़कर क्रमश 7.3 प्रतिशत और 3.9 प्रतिशत हो सकता है.

नई दिल्ली : नये साल में बैंकों के सामने फंसे कर्ज की समस्या से निपटना मुख्य चुनौती होगी. कई कंपनियों खासतौर से सूक्ष्म, लघु एवं मझौली (एमएसएमई) इकाइयों के समक्ष कोरोना वायरस महामारी से लगे झटके के कारण मजबूती से खड़े रहना संभव नहीं होगा, जिसकी वजह से चालू वित्त वर्ष की शुरुआती तिमाहियों के दौरान अर्थव्यवस्था में भारी गिरावट देखी गई.

बैंकों को आने वाले महीनों में कमजोर कर्ज वृद्धि की चुनौती से भी निपटना होगा. निजी क्षेत्र का निवेश इस दौरान कम रहने से कंपनी क्षेत्र में कर्ज वृद्धि पर असर पड़ा है. बैंकिंग तंत्र में नकदी की कमी नहीं है लेकिन इसके बावजूद कंपनी क्षेत्र से कर्ज की मांग धीमी बनी हुई है.

बैंकों को उम्मीद है कि अर्थव्यवस्था में उम्मीद से बेहतर सुधार के चलते जल्द ही कर्ज मांग ढर्रें पर आयेगी. देश की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में पहली तिमाही के दौरान जहां 23.9 प्रतिशत की गिरावट आई थी वहीं दूसरी तिमाही में यह काफी तेजी से कम होकर 7.5 प्रतिशत रह गई. लेकिन उद्योग जगत के विश्वास और धारणा में अभी वह मजबूती नहीं दिखाई देती हैं जो सामान्य तौर पर होती है.

पिछले कुछ सालों के दौरान निजी क्षेत्र का निवेश काफी कम बना हुआ है और अर्थव्यवस्था को उठाने का काम सार्वजनिक व्यय के दारोमदार पर टिका है. बैंकिंग क्षेत्र का जहां तक सवाल है वर्ष के शुरुआती महीनों में ही कोरोना वायरस के प्रसार से उसके कामकाज पर भी असर पड़ा. गैर- निष्पादित राशि (एनपीए) यानी फेसे कर्ज से उसका पीछा छूटता हुआ नहीं दिखा.

ये भी पढ़ें: उबर के लिए आसान नही रहा साल 2020 का सफर

इस मामले में पहला बड़ा झटका मार्च में उस समय लगा जब रिजर्व बैंक ने संकट से घिरे येस बैंक के कामकाज पर रोक लगा दी. जैसे ही येस बैंक का मुद्दा संभलता दिखा तो अर्थव्यवस्था कोरोना वायरस महामारी की जकड़ में आ गई. देशव्यापी लॉकडाउन लगा दिया गया और संसद के बजट सत्र को भी समय से पहले ही स्थगित करना पड़ा.

हालांकि, वर्ष के दौरान सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के विलय की प्रक्रिया को नहीं रुकने दिया. सार्वजनिक क्षेत्र के छह बैंकों को अन्य चार बैंकों के साथ मिला दिया गया. देश में बड़े वित्तीय संस्थानों को खड़ा करने के उद्देश्य से यह कदम उठाया गया.

एक अप्रैल से यूनाइटेड बैंक आफ इंडिया और ओरिएंटल बैंक आफ कामर्स को पंजाब नेशनल बैंक के साथ मिला दिया गया. इस विलय से पीएनबी देश का सार्वजनिक क्षेत्र का दूसरा बड़ा बैंक बन गया. वहीं आंध्र बैंक और कार्पोरेशन बैंक को मुंबई सथित यूनियन बैंक आफ इंडिया के साथ विलय कर दिया गया. सिंडीकेट बैंक को केनरा बैंक के साथ वहीं इलाहाबाद बैंक का विलय चेन्नई स्थित इंडियन बैंक के साथ कर दिया गया.

वित्त सेवाओं के विभाग के सचिव देबाशीष पांडा ने पीटीआई- भाषा से कहा, "विलय करीब करीब स्थिर हो चला है. लॉकडाउन के बावजूद यह काफी सुनियोजित तरीके से हो गया. बैंकों के विलय के शुरुआती सकारात्मक संकेत दिखने लगे हैं. उनका अब बड़ा पूंजी आधार है और उनकी कर्ज देने की क्षमता भी बढ़ी है. इसके अलावा विभिन्न बैंकों के उत्पाद भी विलय वाले लीड बैंक के साथ जुड़े हैं."

ये भी पढ़ें: साल 2020 में बाधित रही भारतीय विमानन क्षेत्र के विकास की उड़ान

कोरोना वायरस महामारी के कारण लगे लॉकडाउन के दौरान नौकरी जाने और आय का नुकसान उठाने वाले लोगों को राहत देते हुये रिजर्व बैंक ने बैंक कर्ज की किस्त के भुगतान से ग्राहकों को राहत दी. इस दौरान बैंकों के कर्ज एनपीए प्रक्रिया को भी स्थगित रखा गया. इसके बाद उच्चतम न्यायालय ने भी एनपीए मामलों की पहचान पर अगले आदेश तक के लिये रोक लगा दी.

उच्चतम न्यायालय के आदेश पर बैंकों को दो करोड़ रुपये तक के कर्ज पर ब्याज पर ब्याज नहीं लेने को कहा गया. यह आदेश एक मार्च 2020 से अगले छह माह तक की कर्ज किस्त के मामले में दिया गया. इससे सरकार पर 7,500 करोड़ रुपये के करीब अतिरिक्त बोझा पड़ने की संभावना है.

रिजर्व बैंक के निर्देश के तहत बड़ी कंपनियों के लिये बैंकों ने एक बारगी कर्ज पुनर्गठन योजना को लागू किया. इसके लिये कड़े मानदंड तय किये गये. कोरोना वायरस के कारण दबाव में काम कर रही कंपनियों को इस योजना का लाभ उठाने के लिये दिसंबर तक का समय दिया गया.

पांडा ने कहा जहां तक कर्ज मांग की बात है. वर्ष के ज्यादातर समय यह कमजोर बनी रही. हालांकि, कृषि और खुदरा कर्ज के मामले में सितंबर के बाद से गतिविधियां कुछ बढ़ी हैं. एमएसएमई क्षेत्र में सरकार के हस्तक्षेप से शुरू की गई आपातकालीन ऋण सुविधा गारंटी योजना (ईसीएलजीएस) के तहत मांग बढ़ी है.

उन्होंने कहा कि कंपनी वर्ग में मांग बढ़ाने के लिये सरकार की तरफ से प्रयास किये गये और हाल ही में ईसीएलजीएस का लाभ कुछ अन्य क्षेत्रों को भी उपलब्ध कराया गया. रिजर्व बैंक की जुलाई में जारी की गई वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट के मुताबिक इस साल के अंत में बैंकों का सकल एनपीए 12.5 प्रतिशत तक पहुंच सकता है.

इस साल मार्च अंत में यह 8.5 प्रतिशत आंका गया था. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की यदि बात की जाये तो मार्च 2021 में उनका सकल एनपीए बढ़कर 15.2 प्रतिशत तक पहुंच सकता है जो कि मार्च 2020 में 11.3 प्रतिशत पर था. वहीं निजी बैंकों और विदेशी बैंकों का सकल एनपीए 4.2 प्रतिशत और 2.3 प्रतिशत से बढ़कर क्रमश 7.3 प्रतिशत और 3.9 प्रतिशत हो सकता है.

Last Updated : Dec 28, 2020, 12:12 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.