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2020 राउंडअप: वैश्विक महामारी के बीच व्यापार प्रभावित, लेकिन विदेशी निवेश में हुआ सुधार

कोविड 19 महामारी ने दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं और व्यापार को प्रभावित किया. फलस्वरूप भारत ने आयात और निर्यात दोनों में भारी गिरावट दर्ज की. ईटीवी भारत के उप समाचार संपादक, कृष्णानंद त्रिपाठी की रिपोर्ट के अनुसार, आर्थिक क्षेत्र में अशांति के माहौल के बावजूद, भारत ने इस वित्त वर्ष के पहले छह महीनों में एफडीआई प्रवाह में वृद्धि देखी है.

2020 राउंडअप: वैश्विक महामारी के बीच व्यापार प्रभावित, लेकिन विदेशी निवेश में हुआ सुधार
2020 राउंडअप: वैश्विक महामारी के बीच व्यापार प्रभावित, लेकिन विदेशी निवेश में हुआ सुधार
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Published : Dec 28, 2020, 3:58 PM IST

नई दिल्ली : हालिया मानव इतिहास में साल 2020 किसी भी अन्य अवधि के मुकाबले ज्यादा प्रतिकूल रहा, क्योंकि वैश्विक महामारी कोविड 19 ने न सिर्फ अर्थव्यवस्थाओं को तबाह किया, बल्कि दुनिया भर में 1.7 मिलियन लोगों की मृत्यु का भी कारक बना.

महामारी ने अर्थव्यवस्था के हर क्षेत्र को प्रभावित किया और भारत का वैश्विक व्यापार इसका कोई अपवाद नहीं है क्योंकि इसे चालू वित्त वर्ष में भारी गिरावट का सामना करना पड़ा. अप्रैल-नवंबर की अवधि में निर्यात में 14% जबकि आयात में भी 30 प्रतिशत की गिरावट आई.

हालांकि इन सबके बावजूद कुछ अच्छे पहलु भी रहे. भारत के एफडीआई प्रवाह ने इस वित्त वर्ष के पहले छह महीनों के दौरान साल-दर-साल आधार पर वृद्धि दर्ज की.

2020 में व्यापार और वाणिज्य में प्रमुख विकास:

जैसा कि अपेक्षित था, कोविड प्रेरित लॉकडाउन ने भारतीय अर्थव्यवस्था को गहता धक्का दिया. वित्त वर्ष की पहली और दूसरी तिमाही के दौरान जीडीपी विकास दर में क्रमश: 24 फीसदी और 7.5 फीसदी की गिरावट आई. इस अवधि के दौरान भारत के निर्यात और आयात भी गंभीर रूप से प्रभावित हुए.

अप्रैल-नवंबर के दौरान भारत का माल निर्यात 17.76% घटकर 173.66 बिलियन डॉलर हो गया, जबकि सेवाओं का निर्यात 8.52% घटकर 130.60 बिलियन डॉलर हो गया. कुल निर्यात के संदर्भ में, गिरावट 14.03% थी, क्योंकि इस अवधि के दौरान कुल निर्यात 304.25 बिलियन डॉलर आंका गया.

इसी तरह, आयात के मामले में, माल का आयात 33.55% घटकर 215.69 बिलियन डॉलर हो गया, और सेवाओं के आयात में 17% से 75 बिलियन डॉलर की गिरावट आई, जिससे देश के आयात में 30% की कुल गिरावट आई और यह घटकर 290.6 बिलियन डॉलर हो गया.

उक्त अवधि के दौरान आयात अधिक प्रभावित हुआ, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने एक महत्वकांक्षी कार्यक्रम आत्मनिर्भर भारत शुरू किया, जो आयात को हतोत्साहित करता है. आयात में तेज गिरावट के कारण इस अवधि के दौरान व्यापार अधिशेष की स्थिति पैदा हुई. जिससे पता चलता है कि देश ने इस अवधि के दौरान अधिक निर्यात और कम आयात किया.

इस दौरान कच्चे तेल और गैस के आयात में सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की गई क्योंकि तीन महीने के पूर्ण लॉकडाउन ने पेट्रोलियम उत्पादों की मांग को प्रभावित किया. पेट्रोलियम के आयात में 43% से अधिक की गिरावट आई, इसके बाद परिवहन उपकरण (19.62%), कोयला (12%), और कीमती और अर्ध-कीमती पत्थरों (7%) कम आयात हुआ.

इस साल कोई बड़ा व्यापार सौदा नहीं

द्विपक्षीय और बहुपक्षीय व्यापार समझौते किसी देश की व्यापार नीतियों का एक महत्वपूर्ण घटक हैं. हालांकि, इस साल, भारत ने किसी भी बड़े मुक्त व्यापार समझौते में प्रवेश नहीं किया.

बहुत सारी अपेक्षाओं के बावजूद, भारत और अमेरिका इस साल फरवरी में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की पहली भारत यात्रा के दौरान एक सीमित व्यापार सौदे को भी हासिल नहीं कर सके. उम्मीद जताई जा रही थी कि ये सौदे साल के अंत तक हो सकते हैं, हालांकि ऐसा भी न हो सका.

इसी तरह, भारत ने भारतीय किसानों और अन्य क्षेत्रों पर प्रतिकूल प्रभाव की आशंकाओं के कारण चीन समर्थित क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) से दूर जाने के अपने फैसले पर पुनर्विचार नहीं किया.

महामारी के बीच एफडीआई प्रवाह चमका

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) प्रवाह क्षेत्र के प्रदर्शन को दर्शाता है. इस साल जुलाई-सितंबर में, वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल-सितंबर के दौरान एफडीआई प्रवाह में साल-दर-साल आधार पर 11% की वृद्धि दर्ज की गई.

देश ने इस साल अप्रैल-सितंबर के दौरान 39.9 बिलियन डॉलर का एफडीआई निवेश प्राप्त किया, जबकि पिछले साल की समान अवधि के दौरान यह 36.1 बिलियन डॉलर था.

इसी तरह, एफडीआई प्रवाह ने वित्त वर्ष 2018-19 और 2019-20 के बीच लगभग 20% की वृद्धि दर्ज की.

वित्त वर्ष 2019-20 में, देश को वित्त वर्ष 74 बिलियन डॉलर का एफडीआई प्राप्त हुआ, जो कि 2018-19 में 62 बिलियन डॉलर के मुकाबले अधिक है.

लिबरल एफडीआई शासन

एक बड़े सुधार के तहत, सरकार ने कोयला खनन गतिविधियों में 100% एफडीआई की अनुमति दी. इसी सप्ताह सरकार ने डायरेक्ट-टू-होम (डीटीएच) कंपनियों में 100% एफडीआई की भी अनुमति दी.

चीनी अधिग्रहण को रोकने के लिए कड़े मानदंड

एक प्रमुख फैसले में, सरकार ने कोविड के कारण कठिनाई का सामना कर रही भारतीय कंपनियों को अवसरवादी चीनी निवेशकों के अधिग्रहण से बचाने के लिए एफडीआई नीति में संशोधन किया.

इस साल अप्रैल में, सरकार ने भारत से सटे देशों के लिए एफडीआई नियम को रद्द कर दिया क्योंकि इन देशों से आने वाला कोई भी विदेशी निवेश, विशेष रूप से चीन से स्वचालित मार्ग के तहत नहीं होगा. इसका अर्थ है कि इन निवेशों के लिए सरकार से सुरक्षा मंजूरी लेनी होगी, जो चीनी कंपनियों द्वारा किसी भी अवसरवादी अधिग्रहण को निर्धारित और रोक सकती है.

चीन से आयात पर अंकुश

इस साल जून में लद्दाख में भारतीय सेना और चीनी सेना के बीच हिंसक झड़प के बाद, सरकार ने न केवल सैकड़ों चीनी मोबाइल ऐप पर प्रतिबंध लगा दिया, बल्कि कई चीनी कंपनियों को सरकारी निविदाओं और खरीद से हटा दिया, विशेष रूप से दूरसंचार और रेलवे में.

भारतीय कंपनियों को वरीयता

सरकार ने न केवल चीन से आयात को प्रतिबंधित किया और सरकारी खरीद में चीनी कंपनियों की भागीदारी को हतोत्साहित किया, बल्कि भारतीय उद्योग को प्रोत्साहित करने के लिए नियमों को भी बदल दिया. इस साल जून में लिए गए एक बड़े फैसले में, सरकार ने कहा कि 200 करोड़ रुपए से अधिक की खरीद या निविदा के लिए कोई वैश्विक निविदा नहीं होगी.

वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 50% स्थानीय सामग्री वाले स्थानीय आपूर्तिकर्ताओं को वरीयता देने के कारण, स्थानीय विक्रेताओं का समर्थन करने के लिए इस वर्ष 40,000 करोड़ रुपये की निविदाएं या तो रद्द कर दी गईं या संशोधित की गईं.

व्यापार को बढ़ावा देने के लिए डिजिटल इंडिया

वैश्विक व्यापार एक डेटा व्यापक क्षेत्र है क्योंकि देश में हर साल सैकड़ों अरबों डॉलर के सामान और सेवाओं का व्यापार होता है. डेटा एकत्र करने और सूचना प्रवाह को सुव्यवस्थित करने के लिए, सरकार ने निर्यात प्रोत्साहन क्रेडिट गारंटी योजना (ईपीसीजी) और भारत निर्यात योजना (एमईआईएस) जैसे सभी निर्यात प्रोत्साहन योजनाओं को डिजिटल रूप दिया. एक इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफ़ॉर्म (इको) को डिजिटल प्रमाण पत्र जारी करने के लिए रोल आउट किया गया है, और 2 लाख से अधिक प्रमाण पत्र जारी किए गए हैं.

एल्युमीनियम, तांबा, जूते, फर्नीचर, कागज, खेल के सामान और जिम उपकरणों के व्यापार पर नज़र रखने के लिए एक आयात निगरानी प्रणाली (आईएमएस) भी लागू की गई है.

ये भी पढ़ें : देश में इस्पात का उत्पादन नवंबर में 3.5 प्रतिशत बढ़ा

नई दिल्ली : हालिया मानव इतिहास में साल 2020 किसी भी अन्य अवधि के मुकाबले ज्यादा प्रतिकूल रहा, क्योंकि वैश्विक महामारी कोविड 19 ने न सिर्फ अर्थव्यवस्थाओं को तबाह किया, बल्कि दुनिया भर में 1.7 मिलियन लोगों की मृत्यु का भी कारक बना.

महामारी ने अर्थव्यवस्था के हर क्षेत्र को प्रभावित किया और भारत का वैश्विक व्यापार इसका कोई अपवाद नहीं है क्योंकि इसे चालू वित्त वर्ष में भारी गिरावट का सामना करना पड़ा. अप्रैल-नवंबर की अवधि में निर्यात में 14% जबकि आयात में भी 30 प्रतिशत की गिरावट आई.

हालांकि इन सबके बावजूद कुछ अच्छे पहलु भी रहे. भारत के एफडीआई प्रवाह ने इस वित्त वर्ष के पहले छह महीनों के दौरान साल-दर-साल आधार पर वृद्धि दर्ज की.

2020 में व्यापार और वाणिज्य में प्रमुख विकास:

जैसा कि अपेक्षित था, कोविड प्रेरित लॉकडाउन ने भारतीय अर्थव्यवस्था को गहता धक्का दिया. वित्त वर्ष की पहली और दूसरी तिमाही के दौरान जीडीपी विकास दर में क्रमश: 24 फीसदी और 7.5 फीसदी की गिरावट आई. इस अवधि के दौरान भारत के निर्यात और आयात भी गंभीर रूप से प्रभावित हुए.

अप्रैल-नवंबर के दौरान भारत का माल निर्यात 17.76% घटकर 173.66 बिलियन डॉलर हो गया, जबकि सेवाओं का निर्यात 8.52% घटकर 130.60 बिलियन डॉलर हो गया. कुल निर्यात के संदर्भ में, गिरावट 14.03% थी, क्योंकि इस अवधि के दौरान कुल निर्यात 304.25 बिलियन डॉलर आंका गया.

इसी तरह, आयात के मामले में, माल का आयात 33.55% घटकर 215.69 बिलियन डॉलर हो गया, और सेवाओं के आयात में 17% से 75 बिलियन डॉलर की गिरावट आई, जिससे देश के आयात में 30% की कुल गिरावट आई और यह घटकर 290.6 बिलियन डॉलर हो गया.

उक्त अवधि के दौरान आयात अधिक प्रभावित हुआ, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने एक महत्वकांक्षी कार्यक्रम आत्मनिर्भर भारत शुरू किया, जो आयात को हतोत्साहित करता है. आयात में तेज गिरावट के कारण इस अवधि के दौरान व्यापार अधिशेष की स्थिति पैदा हुई. जिससे पता चलता है कि देश ने इस अवधि के दौरान अधिक निर्यात और कम आयात किया.

इस दौरान कच्चे तेल और गैस के आयात में सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की गई क्योंकि तीन महीने के पूर्ण लॉकडाउन ने पेट्रोलियम उत्पादों की मांग को प्रभावित किया. पेट्रोलियम के आयात में 43% से अधिक की गिरावट आई, इसके बाद परिवहन उपकरण (19.62%), कोयला (12%), और कीमती और अर्ध-कीमती पत्थरों (7%) कम आयात हुआ.

इस साल कोई बड़ा व्यापार सौदा नहीं

द्विपक्षीय और बहुपक्षीय व्यापार समझौते किसी देश की व्यापार नीतियों का एक महत्वपूर्ण घटक हैं. हालांकि, इस साल, भारत ने किसी भी बड़े मुक्त व्यापार समझौते में प्रवेश नहीं किया.

बहुत सारी अपेक्षाओं के बावजूद, भारत और अमेरिका इस साल फरवरी में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की पहली भारत यात्रा के दौरान एक सीमित व्यापार सौदे को भी हासिल नहीं कर सके. उम्मीद जताई जा रही थी कि ये सौदे साल के अंत तक हो सकते हैं, हालांकि ऐसा भी न हो सका.

इसी तरह, भारत ने भारतीय किसानों और अन्य क्षेत्रों पर प्रतिकूल प्रभाव की आशंकाओं के कारण चीन समर्थित क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) से दूर जाने के अपने फैसले पर पुनर्विचार नहीं किया.

महामारी के बीच एफडीआई प्रवाह चमका

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) प्रवाह क्षेत्र के प्रदर्शन को दर्शाता है. इस साल जुलाई-सितंबर में, वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल-सितंबर के दौरान एफडीआई प्रवाह में साल-दर-साल आधार पर 11% की वृद्धि दर्ज की गई.

देश ने इस साल अप्रैल-सितंबर के दौरान 39.9 बिलियन डॉलर का एफडीआई निवेश प्राप्त किया, जबकि पिछले साल की समान अवधि के दौरान यह 36.1 बिलियन डॉलर था.

इसी तरह, एफडीआई प्रवाह ने वित्त वर्ष 2018-19 और 2019-20 के बीच लगभग 20% की वृद्धि दर्ज की.

वित्त वर्ष 2019-20 में, देश को वित्त वर्ष 74 बिलियन डॉलर का एफडीआई प्राप्त हुआ, जो कि 2018-19 में 62 बिलियन डॉलर के मुकाबले अधिक है.

लिबरल एफडीआई शासन

एक बड़े सुधार के तहत, सरकार ने कोयला खनन गतिविधियों में 100% एफडीआई की अनुमति दी. इसी सप्ताह सरकार ने डायरेक्ट-टू-होम (डीटीएच) कंपनियों में 100% एफडीआई की भी अनुमति दी.

चीनी अधिग्रहण को रोकने के लिए कड़े मानदंड

एक प्रमुख फैसले में, सरकार ने कोविड के कारण कठिनाई का सामना कर रही भारतीय कंपनियों को अवसरवादी चीनी निवेशकों के अधिग्रहण से बचाने के लिए एफडीआई नीति में संशोधन किया.

इस साल अप्रैल में, सरकार ने भारत से सटे देशों के लिए एफडीआई नियम को रद्द कर दिया क्योंकि इन देशों से आने वाला कोई भी विदेशी निवेश, विशेष रूप से चीन से स्वचालित मार्ग के तहत नहीं होगा. इसका अर्थ है कि इन निवेशों के लिए सरकार से सुरक्षा मंजूरी लेनी होगी, जो चीनी कंपनियों द्वारा किसी भी अवसरवादी अधिग्रहण को निर्धारित और रोक सकती है.

चीन से आयात पर अंकुश

इस साल जून में लद्दाख में भारतीय सेना और चीनी सेना के बीच हिंसक झड़प के बाद, सरकार ने न केवल सैकड़ों चीनी मोबाइल ऐप पर प्रतिबंध लगा दिया, बल्कि कई चीनी कंपनियों को सरकारी निविदाओं और खरीद से हटा दिया, विशेष रूप से दूरसंचार और रेलवे में.

भारतीय कंपनियों को वरीयता

सरकार ने न केवल चीन से आयात को प्रतिबंधित किया और सरकारी खरीद में चीनी कंपनियों की भागीदारी को हतोत्साहित किया, बल्कि भारतीय उद्योग को प्रोत्साहित करने के लिए नियमों को भी बदल दिया. इस साल जून में लिए गए एक बड़े फैसले में, सरकार ने कहा कि 200 करोड़ रुपए से अधिक की खरीद या निविदा के लिए कोई वैश्विक निविदा नहीं होगी.

वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 50% स्थानीय सामग्री वाले स्थानीय आपूर्तिकर्ताओं को वरीयता देने के कारण, स्थानीय विक्रेताओं का समर्थन करने के लिए इस वर्ष 40,000 करोड़ रुपये की निविदाएं या तो रद्द कर दी गईं या संशोधित की गईं.

व्यापार को बढ़ावा देने के लिए डिजिटल इंडिया

वैश्विक व्यापार एक डेटा व्यापक क्षेत्र है क्योंकि देश में हर साल सैकड़ों अरबों डॉलर के सामान और सेवाओं का व्यापार होता है. डेटा एकत्र करने और सूचना प्रवाह को सुव्यवस्थित करने के लिए, सरकार ने निर्यात प्रोत्साहन क्रेडिट गारंटी योजना (ईपीसीजी) और भारत निर्यात योजना (एमईआईएस) जैसे सभी निर्यात प्रोत्साहन योजनाओं को डिजिटल रूप दिया. एक इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफ़ॉर्म (इको) को डिजिटल प्रमाण पत्र जारी करने के लिए रोल आउट किया गया है, और 2 लाख से अधिक प्रमाण पत्र जारी किए गए हैं.

एल्युमीनियम, तांबा, जूते, फर्नीचर, कागज, खेल के सामान और जिम उपकरणों के व्यापार पर नज़र रखने के लिए एक आयात निगरानी प्रणाली (आईएमएस) भी लागू की गई है.

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