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जब तक कोरोना का ठोस इलाज नहीं मिल जाता तब तक अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करना मुश्किल - Economy can't be revived unless medical science finds an answer to Coronavirus

अर्थशास्त्रियों का कहना है कि सरकार कि ओर से दिए जाने राहत पैकेज राजकोषीय मदद और मौद्रिक नीति के उपाय देश की अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने में सफल नहीं होंगे जब तक कि कोरोना की कोई दवाई या वैक्सीन नहीं बन जाती.

जबतक कोरोना का ठोस इलाज नहीं मिल जाता तबतक अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करना मुश्किल
जबतक कोरोना का ठोस इलाज नहीं मिल जाता तबतक अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करना मुश्किल
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Published : Jun 10, 2020, 11:22 AM IST

Updated : Jun 10, 2020, 2:17 PM IST

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने पिछले महीने वैश्विक महामारी के कारण देश में आर्थिक गतिविधि को पुनर्जीवित करने के और भारत को आत्मनिर्भर (आत्मनिर्भर) बनाने के लिए 20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की थी.

हालांकि, सुनील सिन्हा जैसे अर्थशास्त्रियों का मानना ​​है कि अर्थव्यवस्था पर कोरोना का असर तबतक बना रहेगा जबतक इस वायरस को कोई ठोस इलाज नहीं मिल जाता.

इंडिया रेटिंग्स के प्रधान अर्थशास्त्री सुनील सिन्हा ने कहा कि लॉकडाउन उठाया जा रहा है और देश सामान्यीकरण की ओर बढ़ रहा है. वह कहते हैं कि 2008 और 2018-19 की पहले की मंदी के विपरीत, वर्तमान वैश्विक आर्थिक मंदी वित्तीय बाजार या अर्थव्यवस्था के कुछ अन्य क्षेत्रों में समस्या के कारण नहीं हुई है. सुनील सिन्हा ने कहा कि जब तक कोरोना का जवाब चिकित्सा विज्ञान को नहीं मिल जाता तब तक इसका प्रतिकूल प्रभाव जारी रहेगा.

राजकोषीय, मौद्रिक नीति उपकरण समस्या का समाधान नहीं कर सकते

व्यापक आर्थिक मुद्दे पर बारीकी से नजर रखने वाले शीर्ष अर्थशास्त्री का कहना है कि सरकार के पास अर्थव्यवस्था को होने वाले नुकसान को कम करने का प्रयास करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.

उन्होंने कहा कि कोविड-19 के प्रभाव को कम करने के लिए सरकार या केंद्रीय बैंक क्या कर सकते हैं. उनके पास वास्तव में कोरोना के कारण उत्पन्न सभी समस्याओं का जवाब नहीं है.

ये भी पढ़ें-फ्लिपकार्ट पर हिंदी, अंग्रेजी में मौखिक निर्देश से कर सकेंगे किराना सामान की खरीदारी

सुनील सिन्हा ने कहा, "कुछ क्षेत्रों को पुनर्जीवित किया जाएगा, लेकिन यह उम्मीद करने के लिए कि सबकुछ सामान्य हो जाएगा, तब तक ऐसा नहीं होगा, जब तक कि चिकित्सा विज्ञान समस्या का जवाब नहीं देता है."

यद्यपि चिकित्सा समुदाय और वैज्ञानिक अत्यधिक संक्रामक और घातक वायरस के लिए एक वैक्सीन या एंटीडोट खोजने की कोशिश कर रहे हैं, जो दुनिया में 4,10,000 से अधिक लोगों को मार चुका है, लेकिन कोई भी सफलता तत्काल दृष्टि में देखने को नहीं मिली है. भारतीय वैज्ञानिकों और शोधकर्ता भी लगातार वैक्सीन पर काम कर रहे हैं. पिछले सप्ताह कोरोना मामलों की संख्या में लगातार वृद्धि देखी गई है.

सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश में कुल पुष्टि किए गए मामलों ने मंगलवार को 2,73,000 मामलों को पार कर लिया है. जिससे भारत अब अमेरिका, ब्राजील, रूस, ब्रिटेन और स्पेन के बाद दुनिया का छठा सबसे अधिक प्रभावित देश बन गया है. देश में पिछले कुछ दिनों में औसतन लगभग हर दिन 9,000 या अधिक नए मामलों आ रहें हैं.

अगला लॉकडाउन आत्मनिर्भर पैकेज को फेल कर देगा

सुनील सिन्हा ने कहा कि अगर कोरोना के मामले इसी तरह बढ़ते रहे तो एक और लॉकडाउन की जरुरत पड़ सकती है और सरकार ने एक और लॉकडाउन लगाया तो इससे सरकार की ओर से दिए गए 20 लाख करोड़ के प्रोत्साहन पैकेज का कोई मतलब नहीं रह जाएगा.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने पीएम गरीब कल्याण पैकेज के तहत आम लोगों के दर्द को कम करने के लिए कई उपायों की घोषणा की. यह भी घोषणा की कि यह नौकरियों की सुरक्षा के लिए नियोक्ता के ईपीएफओ योगदान की लागत को वहन करेगा और कंपनियों को लोगों को नौकरी ना हटाने की भी अपील की.

सिन्हा ने कहा कि अगर चिकित्सा विज्ञान सितंबर तक एक टीका बना लेती और जल्द ही टीकाकरण शुरु हो जाता है तो लोग काम पर लौटने लगेंगे, निवेश आना शुरु हो जाएगा और अर्थव्यवस्था फिर से पटरी पर लौट आएगी.

(लेखक- कृष्णानन्द त्रिपाठी, वरिष्ट पत्रकार)

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने पिछले महीने वैश्विक महामारी के कारण देश में आर्थिक गतिविधि को पुनर्जीवित करने के और भारत को आत्मनिर्भर (आत्मनिर्भर) बनाने के लिए 20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की थी.

हालांकि, सुनील सिन्हा जैसे अर्थशास्त्रियों का मानना ​​है कि अर्थव्यवस्था पर कोरोना का असर तबतक बना रहेगा जबतक इस वायरस को कोई ठोस इलाज नहीं मिल जाता.

इंडिया रेटिंग्स के प्रधान अर्थशास्त्री सुनील सिन्हा ने कहा कि लॉकडाउन उठाया जा रहा है और देश सामान्यीकरण की ओर बढ़ रहा है. वह कहते हैं कि 2008 और 2018-19 की पहले की मंदी के विपरीत, वर्तमान वैश्विक आर्थिक मंदी वित्तीय बाजार या अर्थव्यवस्था के कुछ अन्य क्षेत्रों में समस्या के कारण नहीं हुई है. सुनील सिन्हा ने कहा कि जब तक कोरोना का जवाब चिकित्सा विज्ञान को नहीं मिल जाता तब तक इसका प्रतिकूल प्रभाव जारी रहेगा.

राजकोषीय, मौद्रिक नीति उपकरण समस्या का समाधान नहीं कर सकते

व्यापक आर्थिक मुद्दे पर बारीकी से नजर रखने वाले शीर्ष अर्थशास्त्री का कहना है कि सरकार के पास अर्थव्यवस्था को होने वाले नुकसान को कम करने का प्रयास करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.

उन्होंने कहा कि कोविड-19 के प्रभाव को कम करने के लिए सरकार या केंद्रीय बैंक क्या कर सकते हैं. उनके पास वास्तव में कोरोना के कारण उत्पन्न सभी समस्याओं का जवाब नहीं है.

ये भी पढ़ें-फ्लिपकार्ट पर हिंदी, अंग्रेजी में मौखिक निर्देश से कर सकेंगे किराना सामान की खरीदारी

सुनील सिन्हा ने कहा, "कुछ क्षेत्रों को पुनर्जीवित किया जाएगा, लेकिन यह उम्मीद करने के लिए कि सबकुछ सामान्य हो जाएगा, तब तक ऐसा नहीं होगा, जब तक कि चिकित्सा विज्ञान समस्या का जवाब नहीं देता है."

यद्यपि चिकित्सा समुदाय और वैज्ञानिक अत्यधिक संक्रामक और घातक वायरस के लिए एक वैक्सीन या एंटीडोट खोजने की कोशिश कर रहे हैं, जो दुनिया में 4,10,000 से अधिक लोगों को मार चुका है, लेकिन कोई भी सफलता तत्काल दृष्टि में देखने को नहीं मिली है. भारतीय वैज्ञानिकों और शोधकर्ता भी लगातार वैक्सीन पर काम कर रहे हैं. पिछले सप्ताह कोरोना मामलों की संख्या में लगातार वृद्धि देखी गई है.

सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश में कुल पुष्टि किए गए मामलों ने मंगलवार को 2,73,000 मामलों को पार कर लिया है. जिससे भारत अब अमेरिका, ब्राजील, रूस, ब्रिटेन और स्पेन के बाद दुनिया का छठा सबसे अधिक प्रभावित देश बन गया है. देश में पिछले कुछ दिनों में औसतन लगभग हर दिन 9,000 या अधिक नए मामलों आ रहें हैं.

अगला लॉकडाउन आत्मनिर्भर पैकेज को फेल कर देगा

सुनील सिन्हा ने कहा कि अगर कोरोना के मामले इसी तरह बढ़ते रहे तो एक और लॉकडाउन की जरुरत पड़ सकती है और सरकार ने एक और लॉकडाउन लगाया तो इससे सरकार की ओर से दिए गए 20 लाख करोड़ के प्रोत्साहन पैकेज का कोई मतलब नहीं रह जाएगा.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने पीएम गरीब कल्याण पैकेज के तहत आम लोगों के दर्द को कम करने के लिए कई उपायों की घोषणा की. यह भी घोषणा की कि यह नौकरियों की सुरक्षा के लिए नियोक्ता के ईपीएफओ योगदान की लागत को वहन करेगा और कंपनियों को लोगों को नौकरी ना हटाने की भी अपील की.

सिन्हा ने कहा कि अगर चिकित्सा विज्ञान सितंबर तक एक टीका बना लेती और जल्द ही टीकाकरण शुरु हो जाता है तो लोग काम पर लौटने लगेंगे, निवेश आना शुरु हो जाएगा और अर्थव्यवस्था फिर से पटरी पर लौट आएगी.

(लेखक- कृष्णानन्द त्रिपाठी, वरिष्ट पत्रकार)

Last Updated : Jun 10, 2020, 2:17 PM IST

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