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ऋण घटाने पर जोर दे केंद्र और राज्य, राजस्व के नए तरीके खोजें: अर्थशास्त्री

अर्थशास्त्रियों ने बजट की गुणवत्ता सुधारने पर जोर दिया जिससे सरकार कम राजकोषीय घाटे के लिए बजट नहीं बनाए. उसे पूरी तरह पता होना चाहिए कि वह क्या हासिल करने जा रही है.

ऋण घटाने पर जोर दे केंद्र और राज्य, राजस्व के नए तरीके खोजें: अर्थशास्त्री
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Published : May 9, 2019, 4:38 PM IST

नई दिल्ली: प्रबुद्ध अर्थशास्त्रियों ने केंद्र और राज्यों के ऋण को कम करने की जरूरत बताते हुए सुझाव दिया है कि सरकार राजस्व जुटाने के नए तरीके मसलन खान नीलामी आदि पर जोर दे. साथ ही वह खर्चों को कम करने का भी प्रयास करे. देश के 12 प्रमुख अर्थशास्त्रियों की बुधवार को यहां 15वें वित्त आयोग के साथ बैठक हुई.

इस बैठक में अर्थशास्त्रियों ने बजट की गुणवत्ता सुधारने पर जोर दिया जिससे सरकार कम राजकोषीय घाटे के लिए बजट नहीं बनाए. उसे पूरी तरह पता होना चाहिए कि वह क्या हासिल करने जा रही है.

ये भी पढ़ें- चीन के व्यापार वार्ताकार 'समझौता' करने के इरादे से आ रहे अमेरिका: ट्रंप

वित्त आयोग को दी गयी जिम्मेदारी में कहा गया है कि भारतीय राज्यों को संसाधनों के आवंटन के लिए 2011 की जनगणना का इस्तेमाल होना चाहिए, बजाय दशक पुरानी 1971 की जनगणना का. अर्थशास्त्रियों ने बंटवारे में 'प्रोत्साहन ढांचे' का भी सुझाव दिया. इसमें बुजुर्ग आबादी का ध्यान रखा जाए जो विभिन्न राज्यों में अलग-अलग है.

राज्य सरकारों के कर्ज पर अर्थशास्त्रियों ने कहा कि राज्य ऋण एकीकरण के विभिन्न चरणों में हैं और वित्तीय जवाबदेही और बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) लक्ष्यों के लिए कुछ राज्यों को बेहद कठिन समायोजन करना होगा.

एक आधिकारिक बयान के अनुसार मुंबई में हुई इस बैठक में अर्थशास्त्रियों ने कहा कि यह महत्वपूर्ण होगा कि केंद्र सरकार और राज्य सरकारें कुल मिलाकर अपनी ऋण की स्थिति को बेहतर करें. कुछ अर्थशास्त्रियों का कहना था कि खर्च में समायोजन से जरूरी बदलाव नहीं किया जा सकता.

राजस्व के नए तरीके खोजने की भी जरूरत है. खानों की नीलामी से होने वाली प्राप्तियां राजस्व का एक प्रमुख स्रोत हैं. एन के सिंह समिति ने 2017 में एफआरबीएम नियमों की समीक्षा की थी और केंद्र सरकार के लिए 40 प्रतिशत के ऋण से जीडीपी अनुपात और राज्यों के लिए सामूहिक रूप से 20 प्रतिशत के ऋण से जीडीपी अनुपात का सुझाव दिया था.

इसके अलावा समिति ने 2022-23 तक राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 2.5 प्रतिशत पर भी लाने का सुझाव दिया था. बैठक में अर्थशास्त्रियों में सौगत भट्टाचार्य, प्राची मिश्रा, समीरन चक्रवर्ती, प्रांजल भंडारी, अंजन देब बोस, नरेश टक्कर, सौम्या कांति घोष, अजित रनाडे, प्रोफेसर आशिमा गोयल आदि शामिल थीं.

नई दिल्ली: प्रबुद्ध अर्थशास्त्रियों ने केंद्र और राज्यों के ऋण को कम करने की जरूरत बताते हुए सुझाव दिया है कि सरकार राजस्व जुटाने के नए तरीके मसलन खान नीलामी आदि पर जोर दे. साथ ही वह खर्चों को कम करने का भी प्रयास करे. देश के 12 प्रमुख अर्थशास्त्रियों की बुधवार को यहां 15वें वित्त आयोग के साथ बैठक हुई.

इस बैठक में अर्थशास्त्रियों ने बजट की गुणवत्ता सुधारने पर जोर दिया जिससे सरकार कम राजकोषीय घाटे के लिए बजट नहीं बनाए. उसे पूरी तरह पता होना चाहिए कि वह क्या हासिल करने जा रही है.

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वित्त आयोग को दी गयी जिम्मेदारी में कहा गया है कि भारतीय राज्यों को संसाधनों के आवंटन के लिए 2011 की जनगणना का इस्तेमाल होना चाहिए, बजाय दशक पुरानी 1971 की जनगणना का. अर्थशास्त्रियों ने बंटवारे में 'प्रोत्साहन ढांचे' का भी सुझाव दिया. इसमें बुजुर्ग आबादी का ध्यान रखा जाए जो विभिन्न राज्यों में अलग-अलग है.

राज्य सरकारों के कर्ज पर अर्थशास्त्रियों ने कहा कि राज्य ऋण एकीकरण के विभिन्न चरणों में हैं और वित्तीय जवाबदेही और बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) लक्ष्यों के लिए कुछ राज्यों को बेहद कठिन समायोजन करना होगा.

एक आधिकारिक बयान के अनुसार मुंबई में हुई इस बैठक में अर्थशास्त्रियों ने कहा कि यह महत्वपूर्ण होगा कि केंद्र सरकार और राज्य सरकारें कुल मिलाकर अपनी ऋण की स्थिति को बेहतर करें. कुछ अर्थशास्त्रियों का कहना था कि खर्च में समायोजन से जरूरी बदलाव नहीं किया जा सकता.

राजस्व के नए तरीके खोजने की भी जरूरत है. खानों की नीलामी से होने वाली प्राप्तियां राजस्व का एक प्रमुख स्रोत हैं. एन के सिंह समिति ने 2017 में एफआरबीएम नियमों की समीक्षा की थी और केंद्र सरकार के लिए 40 प्रतिशत के ऋण से जीडीपी अनुपात और राज्यों के लिए सामूहिक रूप से 20 प्रतिशत के ऋण से जीडीपी अनुपात का सुझाव दिया था.

इसके अलावा समिति ने 2022-23 तक राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 2.5 प्रतिशत पर भी लाने का सुझाव दिया था. बैठक में अर्थशास्त्रियों में सौगत भट्टाचार्य, प्राची मिश्रा, समीरन चक्रवर्ती, प्रांजल भंडारी, अंजन देब बोस, नरेश टक्कर, सौम्या कांति घोष, अजित रनाडे, प्रोफेसर आशिमा गोयल आदि शामिल थीं.

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ऋण घटाने पर जोर दे केंद्र और राज्य, राजस्व के नए तरीके खोजें: अर्थशास्त्री

नई दिल्ली: प्रबुद्ध अर्थशास्त्रियों ने केंद्र और राज्यों के ऋण को कम करने की जरूरत बताते हुए सुझाव दिया है कि सरकार राजस्व जुटाने के नए तरीके मसलन खान नीलामी आदि पर जोर दे. साथ ही वह खर्चों को कम करने का भी प्रयास करे. देश के 12 प्रमुख अर्थशास्त्रियों की बुधवार को यहां 15वें वित्त आयोग के साथ बैठक हुई. 

इस बैठक में अर्थशास्त्रियों ने बजट की गुणवत्ता सुधारने पर जोर दिया जिससे सरकार कम राजकोषीय घाटे के लिए बजट नहीं बनाए. उसे पूरी तरह पता होना चाहिए कि वह क्या हासिल करने जा रही है. 

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वित्त आयोग को दी गयी जिम्मेदारी में कहा गया है कि भारतीय राज्यों को संसाधनों के आवंटन के लिए 2011 की जनगणना का इस्तेमाल होना चाहिए, बजाय दशक पुरानी 1971 की जनगणना का. अर्थशास्त्रियों ने बंटवारे में 'प्रोत्साहन ढांचे' का भी सुझाव दिया. इसमें बुजुर्ग आबादी का ध्यान रखा जाए जो विभिन्न राज्यों में अलग-अलग है. 

राज्य सरकारों के कर्ज पर अर्थशास्त्रियों ने कहा कि राज्य ऋण एकीकरण के विभिन्न चरणों में हैं और वित्तीय जवाबदेही और बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) लक्ष्यों के लिए कुछ राज्यों को बेहद कठिन समायोजन करना होगा. 

एक आधिकारिक बयान के अनुसार मुंबई में हुई इस बैठक में अर्थशास्त्रियों ने कहा कि यह महत्वपूर्ण होगा कि केंद्र सरकार और राज्य सरकारें कुल मिलाकर अपनी ऋण की स्थिति को बेहतर करें. कुछ अर्थशास्त्रियों का कहना था कि खर्च में समायोजन से जरूरी बदलाव नहीं किया जा सकता. 

राजस्व के नए तरीके खोजने की भी जरूरत है. खानों की नीलामी से होने वाली प्राप्तियां राजस्व का एक प्रमुख स्रोत हैं. एन के सिंह समिति ने 2017 में एफआरबीएम नियमों की समीक्षा की थी और केंद्र सरकार के लिए 40 प्रतिशत के ऋण से जीडीपी अनुपात और राज्यों के लिए सामूहिक रूप से 20 प्रतिशत के ऋण से जीडीपी अनुपात का सुझाव दिया था. 

इसके अलावा समिति ने 2022-23 तक राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 2.5 प्रतिशत पर भी लाने का सुझाव दिया था. बैठक में अर्थशास्त्रियों में सौगत भट्टाचार्य, प्राची मिश्रा, समीरन चक्रवर्ती, प्रांजल भंडारी, अंजन देब बोस, नरेश टक्कर, सौम्या कांति घोष, अजित रनाडे, प्रोफेसर आशिमा गोयल आदि शामिल थीं.


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