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चालू वित्त वर्ष में आर्थिक वृद्धि दर लुढ़क कर 1.1 प्रतिशत रहने की आशका: एसबीआई रिपोर्ट - एसबीआई रिपोर्ट

कोरोना वायरस संक्रमण की रोकथाम के लिये सरकार ने 'लॉकडाउन' (बंद) की मियाद तीन मई तक बढ़ा दी है. हालांकि इस दौरान 20 अप्रैल से कुछ क्षेत्रों को थोड़ी राहत दी गयी है. इससे पहले 25 मार्च से 21 दिन के बंद की घोषणा की गयी थी. एसबीआई की इकोरैप रिपोर्ट के अनुसार बंद की अवधि बढ़ाये जाने से 12.1 लाख करोड़ रुपये या बाजार मूल्य पर सकल मूल्य वर्धन में 6 प्रतिशत का नुकसान होगा.

चालू वित्त वर्ष में आर्थिक वृद्धि दर लुढ़क कर 1.1 प्रतिशत रहने की आशका: एसबीआई रिपोर्ट
चालू वित्त वर्ष में आर्थिक वृद्धि दर लुढ़क कर 1.1 प्रतिशत रहने की आशका: एसबीआई रिपोर्ट
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Published : Apr 16, 2020, 9:32 PM IST

मुंबई: देश की जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) वृद्धि दर कोरोना वायरस महामारी के प्रभाव के कारण चालू वित्त वर्ष में लुढ़क कर 1.1 प्रतिशत तक सीमित रह है. भारतीय स्टैट बैंक (एसबीआई) की एक शोध रिपोर्ट में यह कहा गया है. वित्त वर्ष 2019-20 में आर्थिक वृद्धि घट कर 4.1 प्रतिशत रहने का अनुमान है जबकि कई एजेंसियों ने महामारी से पहले इसके 5 प्रतिशत रहने की संभावना जतायी थी. कोरोना वायरस महामारी सक दुनियाभर में 20 लाख से अधिक लोग संक्रमित हुए हैं और 1.3 लाख लोगों की मौत हुई है.

कोरोना वायरस संक्रमण की रोकथाम के लिये सरकार ने 'लॉकडाउन' (बंद) की मियाद तीन मई तक बढ़ा दी है. हालांकि इस दौरान 20 अप्रैल से कुछ क्षेत्रों को थोड़ी राहत दी गयी है. इससे पहले 25 मार्च से 21 दिन के बंद की घोषणा की गयी थी. एसबीआई की इकोरैप रिपोर्ट के अनुसार बंद की अवधि बढ़ाये जाने से 12.1 लाख करोड़ रुपये या बाजार मूल्य पर सकल मूल्य वर्धन में 6 प्रतिशत का नुकसान होगा.

रिपोर्ट में कहा गया है, "अब जबकि बंद की अवधि तीन मई तक के लिये बढ़ा दी गयी है और साथ ही सरकार ने 20 अप्रैल से कुछ छूट दी है, हमारा अनुमान है कि वित्त वर्ष 2020-21 में करीब 12.1 लाख करोड़ रुपये या बाजार मूल्य पर 6 प्रतिशत जीवीए का नुकसान होगा. इसमें पूरे साल के लिये जीवीए वृद्धि दर करीब 4.2 प्रतिशत माना गया है."

इसमें कहा गया है, "बाजार मूल्य पर जीडीपी वृद्धि दर 2020-21 में 4.2 के करीब रह सकती है. इस बात के प्रबल आसार हैं कि कर संग्रह के मुकाबले सब्सिडी आगे निकल जाए. हालांकि अगर बाजार मूल्य आधारित जीडीपी वृद्धि दर 4.2 प्रतिशत माना जाए तो वास्तविक जीडीपी (मुद्रास्फीति समायोजित करने के बाद) करीब 1.1 प्रतिशत रहेगी."

रिपोर्ट में कहा गया है कि देशव्यापी बंद का विभिन्न वृहत आथिक मानकों पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा. वर्ष 2017-18 के पीएलएफएस (निश्चित अवधि पर होने वाला श्रम बल सर्वेक्षण) सर्वे का हवाला देते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि स्व-रोजगार, नियमित और ठेके पर करीब 37.3 करोड़ कामगार लगे हैं. इसमें स्व-रोजगार वालों की हिस्सेदारी 52 प्रतिशत, ठेका कर्मियों की 25 प्रतिशत और शेष नियमित मेहनताना पाने वाले लोग हैं.

ये भी पढ़ें: मोदी ने सीतारमण के साथ की अर्थव्यवस्था पर कोविड-19 के प्रभाव, प्रोत्साहन उपायों पर चर्चा

रिपोर्ट के अनुसार, "इन 37.3 करोड़ कामगारों को बंद के कारण प्रतिदिन करीब 10,000 करोड़ रुपये की आय के नुकसान का अनुमान है. अगर पूरी बंद अवधि को देखा जाए तो यह 4.05 लाख करोड़ रुपये बैठता है. ठेका कामगारों के लिये आय नुकसान कम-से-कम एक लाख करोड़ रुपये बैठता है. अत: कोई भी वित्तीय पैकेज कम-से-कम इस 4 लाख करोड़ रुपये की आय के नुकसान की भरपाई को ध्यान में रखकर होना चाहिए."

इसमें कहा गया है, "चूंकि हमारा जडीपी अनुमान बदला है. ऐसे में राजकोषीय अनुमान भी उसी अनुरूप बदलेगा. शुद्ध कर राजस्व करीब 4.12 लाख करोड़ रुपये कम होगा और राज्यों के लिये राजस्व में 1.32 लाख करोड़ रुपे की कमी आएगी. संशोधित राजकोषीय घाटा जीडीपी का 5.7 प्रतिशत होगा और केवल मौजूदा ईबीआर (राजकोष के लिए ऋण की आवश्यकता) को लिया जाए तो घाटा बढ़कर जीडीपी का 6.6 प्रतिशत हो जाएगा. सरकार ने चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटा 3.5 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है."

रिपोर्ट के अनुसार, "हमारा अनुमान का है कि ईबीआर संख्या उल्लेखनीय रूप से बढ़ेगी क्योंकि सरकार कोरोना वायरस बांड जैसे गैर-परंपरागत माध्यमों के जरिये कोष जुटाना चाहेगी..."

(पीटीआई-भाषा)

मुंबई: देश की जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) वृद्धि दर कोरोना वायरस महामारी के प्रभाव के कारण चालू वित्त वर्ष में लुढ़क कर 1.1 प्रतिशत तक सीमित रह है. भारतीय स्टैट बैंक (एसबीआई) की एक शोध रिपोर्ट में यह कहा गया है. वित्त वर्ष 2019-20 में आर्थिक वृद्धि घट कर 4.1 प्रतिशत रहने का अनुमान है जबकि कई एजेंसियों ने महामारी से पहले इसके 5 प्रतिशत रहने की संभावना जतायी थी. कोरोना वायरस महामारी सक दुनियाभर में 20 लाख से अधिक लोग संक्रमित हुए हैं और 1.3 लाख लोगों की मौत हुई है.

कोरोना वायरस संक्रमण की रोकथाम के लिये सरकार ने 'लॉकडाउन' (बंद) की मियाद तीन मई तक बढ़ा दी है. हालांकि इस दौरान 20 अप्रैल से कुछ क्षेत्रों को थोड़ी राहत दी गयी है. इससे पहले 25 मार्च से 21 दिन के बंद की घोषणा की गयी थी. एसबीआई की इकोरैप रिपोर्ट के अनुसार बंद की अवधि बढ़ाये जाने से 12.1 लाख करोड़ रुपये या बाजार मूल्य पर सकल मूल्य वर्धन में 6 प्रतिशत का नुकसान होगा.

रिपोर्ट में कहा गया है, "अब जबकि बंद की अवधि तीन मई तक के लिये बढ़ा दी गयी है और साथ ही सरकार ने 20 अप्रैल से कुछ छूट दी है, हमारा अनुमान है कि वित्त वर्ष 2020-21 में करीब 12.1 लाख करोड़ रुपये या बाजार मूल्य पर 6 प्रतिशत जीवीए का नुकसान होगा. इसमें पूरे साल के लिये जीवीए वृद्धि दर करीब 4.2 प्रतिशत माना गया है."

इसमें कहा गया है, "बाजार मूल्य पर जीडीपी वृद्धि दर 2020-21 में 4.2 के करीब रह सकती है. इस बात के प्रबल आसार हैं कि कर संग्रह के मुकाबले सब्सिडी आगे निकल जाए. हालांकि अगर बाजार मूल्य आधारित जीडीपी वृद्धि दर 4.2 प्रतिशत माना जाए तो वास्तविक जीडीपी (मुद्रास्फीति समायोजित करने के बाद) करीब 1.1 प्रतिशत रहेगी."

रिपोर्ट में कहा गया है कि देशव्यापी बंद का विभिन्न वृहत आथिक मानकों पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा. वर्ष 2017-18 के पीएलएफएस (निश्चित अवधि पर होने वाला श्रम बल सर्वेक्षण) सर्वे का हवाला देते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि स्व-रोजगार, नियमित और ठेके पर करीब 37.3 करोड़ कामगार लगे हैं. इसमें स्व-रोजगार वालों की हिस्सेदारी 52 प्रतिशत, ठेका कर्मियों की 25 प्रतिशत और शेष नियमित मेहनताना पाने वाले लोग हैं.

ये भी पढ़ें: मोदी ने सीतारमण के साथ की अर्थव्यवस्था पर कोविड-19 के प्रभाव, प्रोत्साहन उपायों पर चर्चा

रिपोर्ट के अनुसार, "इन 37.3 करोड़ कामगारों को बंद के कारण प्रतिदिन करीब 10,000 करोड़ रुपये की आय के नुकसान का अनुमान है. अगर पूरी बंद अवधि को देखा जाए तो यह 4.05 लाख करोड़ रुपये बैठता है. ठेका कामगारों के लिये आय नुकसान कम-से-कम एक लाख करोड़ रुपये बैठता है. अत: कोई भी वित्तीय पैकेज कम-से-कम इस 4 लाख करोड़ रुपये की आय के नुकसान की भरपाई को ध्यान में रखकर होना चाहिए."

इसमें कहा गया है, "चूंकि हमारा जडीपी अनुमान बदला है. ऐसे में राजकोषीय अनुमान भी उसी अनुरूप बदलेगा. शुद्ध कर राजस्व करीब 4.12 लाख करोड़ रुपये कम होगा और राज्यों के लिये राजस्व में 1.32 लाख करोड़ रुपे की कमी आएगी. संशोधित राजकोषीय घाटा जीडीपी का 5.7 प्रतिशत होगा और केवल मौजूदा ईबीआर (राजकोष के लिए ऋण की आवश्यकता) को लिया जाए तो घाटा बढ़कर जीडीपी का 6.6 प्रतिशत हो जाएगा. सरकार ने चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटा 3.5 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है."

रिपोर्ट के अनुसार, "हमारा अनुमान का है कि ईबीआर संख्या उल्लेखनीय रूप से बढ़ेगी क्योंकि सरकार कोरोना वायरस बांड जैसे गैर-परंपरागत माध्यमों के जरिये कोष जुटाना चाहेगी..."

(पीटीआई-भाषा)

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