नई दिल्ली : कोरोना के बढ़ते प्रसार के बीच 25 मार्च को जहां महज चार घंटे की पूर्व सूचना के साथ देशव्यापी लॉकडाउन लगा दिया गया, उसने पूरे देश में एक उथल-पूथल की स्थिति बना दी, जिसका व्यापक असर अर्थव्यस्था पर पड़ा. भारतीय अर्थव्यवस्था इस महामारी से सबसे ज्यादा प्रभावित अर्थव्यवस्थाओं में से एक रही.
देश के 130 जिलों को रेड जोन के रूप में घोषित किया गया है, जो कि राष्ट्रीय आर्थिक गतिविधि के 41 फीसदी, औद्योगिक उत्पादन का 38% और सबसे अधिक औद्योगिक क्षेत्रों के रूप विस्तृत है. इन क्षेत्रों में आपूर्तिकर्ताओं की आर्थिक गतिविधि में भी गिरावट होने से राजस्व में कमी आई है. श्रृंखला, संचालन और यात्रा की आपूर्ति में व्यवधान के सामूहिक परिणाम अर्थव्यवस्था के लगभग सभी क्षेत्रों में फैल रहे हैं.
इसके फलस्वरूप मांग में कमी आई है, जिसने उत्पादन और क्षमता उत्पादन को भी प्रभावित किया. इससे कॉर्पोरेट परिणामों को भी नुकसान पहुंचा.
तालाबंदी के दौरान प्रवासी मजदूरों को बहुत नुकसान उठाना पड़ा है. भारत सरकार ने मनरेगा में दी जाने वाली सहायता राशि में वृद्धि की, जो ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने वाले वयस्कों के लिए 100 दिनों के भुगतान के माध्यम से आजीविका की सुरक्षा प्रदान करता है. कोविड-19 के प्रभाव से श्रमिक दूसरे राज्यों में काम करने के बजाए अपने घर के पास काम करना ज्यादा सुरक्षित मान रहे थे. जिसके कारण शहरों में श्रमिकों की उपलब्धता की भारी कमी हो गई.
कोविड 19 के आर्थिक प्रभावों के चलते कार्यशील पूंजी पर भी व्यापक असर पड़ा है, इससे बैंकों के फंसे कर्ज में वृद्धि हो सकती है.
कोरोना ने वैश्विक तौर पर यात्रा व परिवहन की रफ्तार को थाम दिया, जिससे भारत के प्रेषणों में कमी आने का अनुमान है. विश्व बैंक के अनुसार इनमें 23% तक की गिरावट आ सकती है.
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बढ़ती बेरोजगारी, कॉर्पोरेट राजस्व में गिरावट कर राजस्व को प्रभावित करने के लिए बाध्य है. पहले ही सरकार ने कई तरह के समर्थन उपायों की घोषणा की है. कर आय में गिरावट और कई सामाजिक और रोजगार योजनाओं का समर्थन करने के लिए बढ़ते खर्च से 2021 में सरकार का राजकोषीय घाटा बढ़ेगा.
भारतीय स्टार्टअप्स ने जनवरी 2020 से लेकर नवंबर 2020 के बीच 765 सौदों के बीच कुल 8.4 बिलियन डॉलर का फंड जुटाया. 2019 में फंडिंग की तुलना में यह 30 प्रतिशत की गिरावट थी. कई छोटे स्टार्ट-अप ने कोरोना प्रेरित लॉकडाउन के कारण अपने व्यवसाय को बंद कर दिया और अनलॉक के बाद भी पुनरारंभ करने में विफल रहे. कई विदेशी देशों से फंडिंग भी प्रतिबंधित की गई थी, जिससे स्टार्ट-अप्स के लिए लाभ का दृश्य अधिक कठिन हो गया था.
वर्ल्ड इकोनॉमिक फ़ोरम की रिपोर्ट "द फ्यूचर ऑफ जॉब्स 2018" के अनुसार, भविष्य की प्रतिभाओं को पूरा करने के लिए आधे से अधिक भारतीय कामगारों को 2022 तक रिस्किलिंग की आवश्यकता होगी. उनमें से प्रत्येक को औसतन 100 दिनों के अतिरिक्त सीखने की आवश्यकता होगी.