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मंत्रिमंडल ने इथेनॉल की कीमतों में बढ़ोतरी, जूट किसानों के लिए अधिक पैसा और बांध सुरक्षा को दी मंजूरी

पीएम मोदी की अध्यक्षता में आज कैबिनेट की बैठक हुई है. कैबिनेट बैठक में फैसला लिया है गया है कि अब खाद्यान्न को जूट के बैग में पैक करना अनिवार्य होगा. यह जानकारी केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने दी.

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Published : Oct 29, 2020, 6:55 PM IST

मंत्रिमंडल ने इथेनॉल की कीमतों में बढ़ोतरी, जूट किसानों के लिए अधिक पैसा और बांध सुरक्षा को दी मंजूरी
मंत्रिमंडल ने इथेनॉल की कीमतों में बढ़ोतरी, जूट किसानों के लिए अधिक पैसा और बांध सुरक्षा को दी मंजूरी

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गुरुवार को गन्ना आधारित इथेनॉल की खरीद के लिए बढ़ी कीमत को मंजूरी दे दी.

जूट उद्योग की मदद के लिए सरकार ने खाद्यान्नों की सौ फीसदी पैकिंग और चीनी की 20 प्रतिशत पैकिंग जूट की बोरियों में किया जाना अनिवार्य कर दिया है.

केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने बताया कि कैबिनेट ने 10,211 करोड़ रुपये से अधिक की अनुमानित लागत पर बांध पुनर्वास और सुधार कार्यक्रम के दूसरे और तीसरे चरण को मंजूरी दी.

केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने यहां संवाददाताओं को बताया कि दिसंबर 2020 से शुरू हो रहे आपूर्ति वर्ष के लिये गन्ना से निकाले गये एथनॉल की कीमत मौजूदा 59.48 रुपये प्रति लीटर से बढ़ाकर 62.65 रुपये प्रति लीटर कर दी.

सी-हैवी मोलासेज (खांड़) से तैयार एथनॉल की दर 43.75 रुपये से बढ़ाकर 45.69 रुपये प्रति लीटर और बी-हैवी मोलासेज से बने एथनॉल की दर 54.27 रुपये से बढ़ाकर 57.61 रुपये प्रति लीटर कर दी गयी है. भारत ईंधन की जरूरतों की पूर्ति के लिये 85 प्रतिशत आयात पर निर्भर है.

भारत वाहनों का उत्सर्जन कम करने के साथ ही पेट्रोलियम पदार्थां का आयात घटाने के लिये पेट्रोल में 10 प्रतिशत एथनॉल मिलाने की अनुमति देता है.

ईंधन विपणन कंपनियों के द्वारा भुगतान की गयी एथनॉल कीमत में लगातार वृद्धि से एथनॉल की खरीद 2013-14 के 38 करोड़ लीटर से बढ़कर 2019-20 में 195 करोड़ लीटर पर पहुंच गयी

ये भी पढ़ें: आरबीआई ने राज्य सरकार के प्रतिभूतियों की नीलामी की अनुमति दी

जावड़ेकर ने कहा कि जीएसटी और परिवहन लागत तेल विपणन कंपनियों द्वारा पूरी की जाएगी जो ईंधन सम्मिश्रण के लिए इथेनॉल की खरीद करेगी.

यह निर्णय महाराष्ट्र, गुजरात और कर्नाटक के गन्ना किसानों के लिए सीधे लाभकारी होगा क्योंकि अधिकांश मिलें गन्ना किसानों को अग्रिम धनराशि देने वाली सहकारी समितियों के स्वामित्व में हैं.

उन्होंने कहा कि यह भारत के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में गन्ना किसानों के लिए भी फायदेमंद होगा क्योंकि निजी चीनी मिलों के हाथों में अधिक पैसा अंततः राज्य के किसानों को लाभान्वित करेगा.

जावड़ेकर ने कहा कि ईंधन सम्मिश्रण के लिए इथेनॉल की खरीद में भारी वृद्धि के बावजूद, 2018 में 38 करोड़ लीटर से लेकर 2019 में 195 करोड़ लीटर तक, यह अभी भी इथेनॉल के 10% ईंधन सम्मिश्रण के लिए कुल आवश्यकता का 40-45% है.

उन्होंने कहा कि इथेनॉल के बढ़ते मिश्रण से देश के लिए विदेशी मुद्रा भंडार और आयात लागत में बचत होगी.

जूट किसानों के लिए राहत

जूट उद्योग की मदद के लिए सरकार ने खाद्यान्नों की सौ फीसदी पैकिंग और चीनी की 20 प्रतिशत पैकिंग जूट की बोरियों में किया जाना अनिवार्य कर दिया है.

मंत्री ने कहा, "100% खाद्यान्न और 20% चीनी को जूट के थैली में पैक किया जाएगा. इससे आने वाले वर्षों में जूट की मात्रा बढ़ेगी. प्रत्येक किसान को 10,000 रुपये प्रति हेक्टेयर की अतिरिक्त आय होगी."

इस फैसले से पश्चिम बंगाल, ओडिशा, त्रिपुरा, मेघालय और आंध्र प्रदेश के 4,00,000 से अधिक किसानों को लाभ मिलने की उम्मीद है.

मंत्री ने कहा कि सरकारी ई-मार्केट प्लेस (जेम) पोर्टल पर जूट की 10% नीलामी के लिए खुला रहेगा.

बांध सुरक्षा के लिए 10,211 करोड़ रुपये

कैबिनेट ने 10,211 करोड़ रुपये की लागत से बांध पुनर्वास और सुधार कार्यक्रम के दूसरे और तीसरे चरण को भी मंजूरी दी.

जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि कार्यक्रम को चार साल के दो चरणों में लागू किया जाएगा, जिसमें दो साल की ओवरलैपिंग अवधि होगी, जिसमें कुल कार्यान्वयन की अवधि 10 साल होगी.

शेखावत ने कहा कि 5,034 मौजूदा बांधों और 411 बांधों के साथ निर्माणाधीन, भारत अमेरिका और चीन के बाद बांधों के मामले में तीसरा सबसे बड़ा देश है.

शेखावत ने कहा, "बांधों का अस्सी प्रतिशत हिस्सा 25 वर्ष पुराना है. इस कार्यक्रम से इन बांधों की सुरक्षा और उत्पादकता में सुधार होगा."

शेखावत ने कहा कि कार्यक्रम का 80% वित्तपोषण विश्व बैंक और एशियाई अवसंरचना सुधार बैंक (एआईआईबी) जैसे बहुपक्षीय उधार संस्थानों के माध्यम से होगा और 19 राज्यों और दो केंद्रीय संगठन कार्यक्रम के दूसरे और तीसरे चरण में शामिल होंगे.

मंत्री ने यह भी बताया कि 200 से अधिक बांधों का पुनर्वास कार्य पूरा हो चुका है.

मंत्री ने कहा कि कुल परिव्यय का 4% पैसा इन बांधों पर पर्यटन, जल आधारित पर्यटन और मत्स्य पालन संबंधित परियोजनाओं के निर्माण में खर्च किया जाएगा, जो इन बांधों के निरंतर रखरखाव के लिए राजस्व उत्पन्न करने में मदद करेगा.

(वरिष्ठ पत्रकार कृष्णानन्द त्रिपाठी का लेख)

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गुरुवार को गन्ना आधारित इथेनॉल की खरीद के लिए बढ़ी कीमत को मंजूरी दे दी.

जूट उद्योग की मदद के लिए सरकार ने खाद्यान्नों की सौ फीसदी पैकिंग और चीनी की 20 प्रतिशत पैकिंग जूट की बोरियों में किया जाना अनिवार्य कर दिया है.

केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने बताया कि कैबिनेट ने 10,211 करोड़ रुपये से अधिक की अनुमानित लागत पर बांध पुनर्वास और सुधार कार्यक्रम के दूसरे और तीसरे चरण को मंजूरी दी.

केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने यहां संवाददाताओं को बताया कि दिसंबर 2020 से शुरू हो रहे आपूर्ति वर्ष के लिये गन्ना से निकाले गये एथनॉल की कीमत मौजूदा 59.48 रुपये प्रति लीटर से बढ़ाकर 62.65 रुपये प्रति लीटर कर दी.

सी-हैवी मोलासेज (खांड़) से तैयार एथनॉल की दर 43.75 रुपये से बढ़ाकर 45.69 रुपये प्रति लीटर और बी-हैवी मोलासेज से बने एथनॉल की दर 54.27 रुपये से बढ़ाकर 57.61 रुपये प्रति लीटर कर दी गयी है. भारत ईंधन की जरूरतों की पूर्ति के लिये 85 प्रतिशत आयात पर निर्भर है.

भारत वाहनों का उत्सर्जन कम करने के साथ ही पेट्रोलियम पदार्थां का आयात घटाने के लिये पेट्रोल में 10 प्रतिशत एथनॉल मिलाने की अनुमति देता है.

ईंधन विपणन कंपनियों के द्वारा भुगतान की गयी एथनॉल कीमत में लगातार वृद्धि से एथनॉल की खरीद 2013-14 के 38 करोड़ लीटर से बढ़कर 2019-20 में 195 करोड़ लीटर पर पहुंच गयी

ये भी पढ़ें: आरबीआई ने राज्य सरकार के प्रतिभूतियों की नीलामी की अनुमति दी

जावड़ेकर ने कहा कि जीएसटी और परिवहन लागत तेल विपणन कंपनियों द्वारा पूरी की जाएगी जो ईंधन सम्मिश्रण के लिए इथेनॉल की खरीद करेगी.

यह निर्णय महाराष्ट्र, गुजरात और कर्नाटक के गन्ना किसानों के लिए सीधे लाभकारी होगा क्योंकि अधिकांश मिलें गन्ना किसानों को अग्रिम धनराशि देने वाली सहकारी समितियों के स्वामित्व में हैं.

उन्होंने कहा कि यह भारत के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में गन्ना किसानों के लिए भी फायदेमंद होगा क्योंकि निजी चीनी मिलों के हाथों में अधिक पैसा अंततः राज्य के किसानों को लाभान्वित करेगा.

जावड़ेकर ने कहा कि ईंधन सम्मिश्रण के लिए इथेनॉल की खरीद में भारी वृद्धि के बावजूद, 2018 में 38 करोड़ लीटर से लेकर 2019 में 195 करोड़ लीटर तक, यह अभी भी इथेनॉल के 10% ईंधन सम्मिश्रण के लिए कुल आवश्यकता का 40-45% है.

उन्होंने कहा कि इथेनॉल के बढ़ते मिश्रण से देश के लिए विदेशी मुद्रा भंडार और आयात लागत में बचत होगी.

जूट किसानों के लिए राहत

जूट उद्योग की मदद के लिए सरकार ने खाद्यान्नों की सौ फीसदी पैकिंग और चीनी की 20 प्रतिशत पैकिंग जूट की बोरियों में किया जाना अनिवार्य कर दिया है.

मंत्री ने कहा, "100% खाद्यान्न और 20% चीनी को जूट के थैली में पैक किया जाएगा. इससे आने वाले वर्षों में जूट की मात्रा बढ़ेगी. प्रत्येक किसान को 10,000 रुपये प्रति हेक्टेयर की अतिरिक्त आय होगी."

इस फैसले से पश्चिम बंगाल, ओडिशा, त्रिपुरा, मेघालय और आंध्र प्रदेश के 4,00,000 से अधिक किसानों को लाभ मिलने की उम्मीद है.

मंत्री ने कहा कि सरकारी ई-मार्केट प्लेस (जेम) पोर्टल पर जूट की 10% नीलामी के लिए खुला रहेगा.

बांध सुरक्षा के लिए 10,211 करोड़ रुपये

कैबिनेट ने 10,211 करोड़ रुपये की लागत से बांध पुनर्वास और सुधार कार्यक्रम के दूसरे और तीसरे चरण को भी मंजूरी दी.

जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि कार्यक्रम को चार साल के दो चरणों में लागू किया जाएगा, जिसमें दो साल की ओवरलैपिंग अवधि होगी, जिसमें कुल कार्यान्वयन की अवधि 10 साल होगी.

शेखावत ने कहा कि 5,034 मौजूदा बांधों और 411 बांधों के साथ निर्माणाधीन, भारत अमेरिका और चीन के बाद बांधों के मामले में तीसरा सबसे बड़ा देश है.

शेखावत ने कहा, "बांधों का अस्सी प्रतिशत हिस्सा 25 वर्ष पुराना है. इस कार्यक्रम से इन बांधों की सुरक्षा और उत्पादकता में सुधार होगा."

शेखावत ने कहा कि कार्यक्रम का 80% वित्तपोषण विश्व बैंक और एशियाई अवसंरचना सुधार बैंक (एआईआईबी) जैसे बहुपक्षीय उधार संस्थानों के माध्यम से होगा और 19 राज्यों और दो केंद्रीय संगठन कार्यक्रम के दूसरे और तीसरे चरण में शामिल होंगे.

मंत्री ने यह भी बताया कि 200 से अधिक बांधों का पुनर्वास कार्य पूरा हो चुका है.

मंत्री ने कहा कि कुल परिव्यय का 4% पैसा इन बांधों पर पर्यटन, जल आधारित पर्यटन और मत्स्य पालन संबंधित परियोजनाओं के निर्माण में खर्च किया जाएगा, जो इन बांधों के निरंतर रखरखाव के लिए राजस्व उत्पन्न करने में मदद करेगा.

(वरिष्ठ पत्रकार कृष्णानन्द त्रिपाठी का लेख)

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