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बजट 2020: अधिक खर्च करें और सही खर्च करें

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Published : Jan 24, 2020, 6:00 AM IST

Updated : Feb 18, 2020, 4:58 AM IST

आर्थिक मंदी के बीच एक फरवरी को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बजट पेश करेंगी. देश के आम आदमी से लेकर उद्योगपतियों की इस पर नजर रहेगी. इस लेख में अर्थशास्त्री महेंद्र बाबू कुरुवा बताते हैं कि गिरते आर्थिक विकास को पुनर्जीवित करने के लिए सरकारी खर्च क्यों बढ़ाना चाहिए.

बजट 2020: अधिक खर्च करें और सही खर्च करें
बजट 2020: अधिक खर्च करें और सही खर्च करें

नई दिल्ली: एक फरवरी को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण अपना पहला पूर्ण बजट पेश करेंगी. करोड़पति से लेकर आम आदमी तक और कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक पूरा देश इस बजट भाषण पर अपनी निगाहें लगाए रहेगा. देश को उम्मीद है कि यह बजट भारत के ढलती अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करेगा.

भारतीय अर्थव्यवस्था फिलहाल 11 वर्षों में अपनी सबसे धीमी गति से बढ़ रही है. बेरोजगारी दर चार दशकों के उच्चतम स्तर पर है और खाने-पीने के समानों की कीमतें आसमान को छू रही हैं.

बजट 2020: अधिक खर्च करें और सही खर्च करें
पिछले 18 महीनों में भारत की आर्थिक वृद्धि 8% से गिरकर जुलाई-सितंबर 2019 में 4.5% पर पहुंच गई.

ये भी पढ़ें- बजट में कृषि क्षेत्र के लिए क्या हैं संभावनाएं? देखें विशेषज्ञ का आंकलन

विनिर्माण क्षेत्र में उदासी छायी हुई है. यह वह क्षेत्र है जो अर्ध-कुशल श्रम शक्ति के बड़े हिस्से को समायोजित करता है. वहीं, कृषि क्षेत्र और ग्रामीण विकास की हालत भी खस्ता है.

हाल ही में जारी वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक, ग्लोबल सोशल मोबिलिटी इंडेक्स और दावोस में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम समिट की ओर से ऑक्सफेम रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से संकेत दिया गया है कि भारत की धन सृजन दर में गिरावट आ रही है और अमीर-गरीब के बीच का अंतर बढ़ता ही जा रहा है और इस अंतर को कम करने के लिए ठोस कदम उठाए जाने चाहिए.

क्या हो आगे का रास्ता ?
सरकारी खर्च बढ़ाना एक बेहतर समाधान हो सकता है. वर्तमान आर्थिक मंदी का मुख्य कारण आपूर्ति की अड़चनों के बजाय कम खपत है. लोग खर्च करने से बचते हुए नजर आ रहें या उनके पास पैसों की कमी है. इसलिए सरकार को इस ओर कोई ठोस कदम उठाना होगा.

भारतीय रिजर्व बैंक की एक हालिया रिपोर्ट ने भी गिरते हुए उपभोक्ता विश्वास, व्यापार विश्वास और कारखानों द्वारा क्षमता उपयोग की दिशा में सुझाव दिया है जो मांग में गिरावट का संकेत देता है. इसलिए समाधान काफी हद तक अर्थव्यवस्था में मांग को बढ़ाने की ओर होना चाहिए.

साल 2019 में देश के बैंकों को विनियमित करने वाले रिजर्व बैंक ने प्रमुख ब्याज दर (रेपो रेट) को 135 आधार अंकों तक कम कर दिया. आरबीआई का मानना था कि रेपो दर कम हो जाने से ब्याज दरें कम हो जाएंगी. फिर यह मकान, कार खरीदने के लिए क्रेडिट मांग को बढ़ाएगा. दुर्भाग्य से उसका फायदा अभी तक जमीनी स्तर पर मिलता नहीं दिख रहा.

इस समय यह बेहतर होगा कि आगामी बजट में सार्वजनिक निवेशों और खर्च को समयबद्ध तरीके से बढ़ाकर आर्थिक मंदी से निपटने का प्रयास किया जाना चाहिए.

राजकोषीय घाटे का मिथक
सरल शब्दों में फिस्कल डेफिसिट किसी दिए गए वित्तीय वर्ष में सरकार द्वारा आवश्यक कुल उधार को दर्शाता है. यह आय और खर्च के बीच का अंतर है.

ऐसे तर्क हैं कि अधिक सरकारी खर्च राजकोषीय घाटे को बढ़ा सकते हैं और मंहगाई का कारण भी बन सकते हैं और अर्थव्यवस्था के बढ़ने की गति धीमी कर सकते हैं.

वहीं, आरबीआई की रिपोर्ट ने सुझाव दिया कि अर्थव्यवस्था में कम क्षमता है. इसलिए सरकारी खर्च अधिक रोजगार पैदा करेगा और लोगों के हाथों में अधिक आय उत्पन्न करेगा. जिसका उपयोग आगे उपभोग के लिए किया जाएगा और अर्थव्यवस्था पुनर्जीवित होगी.

इसके बाद व्यापार विश्वास और कर राजस्व में सुधार होगा. जिससे राजकोषीय स्थिति बेहतर हो जाएगी.

इसलिए अगर राजकोषीय घाटे के आंकड़े ज्यादा हैं तो चिंता करने की जरूरत नहीं है. वे वह कीमत हैं जो बेहतर कल के लिए हम आज चुका रहे हैं.

क्षेत्रवार खर्च की आवश्यकता
एक बार इस बात पर स्पष्टता हो जाए कि हमें खर्च करना चाहिए या नहीं और जवाब हां में आए तो एक और सवाल आता है कि कहां खर्च किया जाए.

कृषि एक ऐसा क्षेत्र है जो अधिक सरकारी निवेश के साथ बेहतर परिणाम दे सकता है. जीडीपी के प्रतिशत के रूप में कृषि आय 2012-18 के दौरान घटकर 3.1 प्रतिशत हो गई, जो 2002-11 की अवधि के दौरान 4.4 प्रतिशत थी.

बजट 2020: अधिक खर्च करें और सही खर्च करें
इन्फ्रास्ट्रक्चर पर अधिक सरकारी खर्च से अधिक रोजगार पैदा होंगे जिससे वस्तुओं और सेवाओं की मांग बढ़ेगी.
इस तरह के पैमाने पर कृषि आय में गिरावट निश्चित रूप से खपत को कम करेगी और इन आय को बढ़ाकर खपत की मांग को पुनर्जीवित करना चाहिए. यह ग्रामीण बुनियादी ढांचे और आपूर्ति श्रृंखलाओं में निवेश के माध्यम से किया जा सकता है. यह अर्थव्यवस्था को वापस उछाल देने में मदद करते हुए न केवल बुनियादी ढांचे को बदल देगा बल्कि देश के ग्रामीण दृष्टिकोण को भी बदल देगा.

सरकार को वित्त वर्ष 2020-21 का बजट इस तरह से बनाना चाहिए कि उसमें खर्च युक्तिसंगत हो. इसके लिए प्राथमिकता तय करनी होगी. खर्च इस रूप से हो, जिससे प्रत्यक्ष रोजगार सृजित हो और समाज के निचले तबकों की जेब में पैसा पहुंचे. इससे खपत बढ़ाने में मदद मिलेगी. यह समय खर्च करने से कहीं बेहतर सही तरीके से खर्च करने का है.

(डॉ. महेंद्र बाबू कुरुवा, सहायक प्रोफेसर, एच एन बी केंद्रीय विश्वविद्यालय, उत्तराखंड. उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं.)

नई दिल्ली: एक फरवरी को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण अपना पहला पूर्ण बजट पेश करेंगी. करोड़पति से लेकर आम आदमी तक और कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक पूरा देश इस बजट भाषण पर अपनी निगाहें लगाए रहेगा. देश को उम्मीद है कि यह बजट भारत के ढलती अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करेगा.

भारतीय अर्थव्यवस्था फिलहाल 11 वर्षों में अपनी सबसे धीमी गति से बढ़ रही है. बेरोजगारी दर चार दशकों के उच्चतम स्तर पर है और खाने-पीने के समानों की कीमतें आसमान को छू रही हैं.

बजट 2020: अधिक खर्च करें और सही खर्च करें
पिछले 18 महीनों में भारत की आर्थिक वृद्धि 8% से गिरकर जुलाई-सितंबर 2019 में 4.5% पर पहुंच गई.

ये भी पढ़ें- बजट में कृषि क्षेत्र के लिए क्या हैं संभावनाएं? देखें विशेषज्ञ का आंकलन

विनिर्माण क्षेत्र में उदासी छायी हुई है. यह वह क्षेत्र है जो अर्ध-कुशल श्रम शक्ति के बड़े हिस्से को समायोजित करता है. वहीं, कृषि क्षेत्र और ग्रामीण विकास की हालत भी खस्ता है.

हाल ही में जारी वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक, ग्लोबल सोशल मोबिलिटी इंडेक्स और दावोस में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम समिट की ओर से ऑक्सफेम रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से संकेत दिया गया है कि भारत की धन सृजन दर में गिरावट आ रही है और अमीर-गरीब के बीच का अंतर बढ़ता ही जा रहा है और इस अंतर को कम करने के लिए ठोस कदम उठाए जाने चाहिए.

क्या हो आगे का रास्ता ?
सरकारी खर्च बढ़ाना एक बेहतर समाधान हो सकता है. वर्तमान आर्थिक मंदी का मुख्य कारण आपूर्ति की अड़चनों के बजाय कम खपत है. लोग खर्च करने से बचते हुए नजर आ रहें या उनके पास पैसों की कमी है. इसलिए सरकार को इस ओर कोई ठोस कदम उठाना होगा.

भारतीय रिजर्व बैंक की एक हालिया रिपोर्ट ने भी गिरते हुए उपभोक्ता विश्वास, व्यापार विश्वास और कारखानों द्वारा क्षमता उपयोग की दिशा में सुझाव दिया है जो मांग में गिरावट का संकेत देता है. इसलिए समाधान काफी हद तक अर्थव्यवस्था में मांग को बढ़ाने की ओर होना चाहिए.

साल 2019 में देश के बैंकों को विनियमित करने वाले रिजर्व बैंक ने प्रमुख ब्याज दर (रेपो रेट) को 135 आधार अंकों तक कम कर दिया. आरबीआई का मानना था कि रेपो दर कम हो जाने से ब्याज दरें कम हो जाएंगी. फिर यह मकान, कार खरीदने के लिए क्रेडिट मांग को बढ़ाएगा. दुर्भाग्य से उसका फायदा अभी तक जमीनी स्तर पर मिलता नहीं दिख रहा.

इस समय यह बेहतर होगा कि आगामी बजट में सार्वजनिक निवेशों और खर्च को समयबद्ध तरीके से बढ़ाकर आर्थिक मंदी से निपटने का प्रयास किया जाना चाहिए.

राजकोषीय घाटे का मिथक
सरल शब्दों में फिस्कल डेफिसिट किसी दिए गए वित्तीय वर्ष में सरकार द्वारा आवश्यक कुल उधार को दर्शाता है. यह आय और खर्च के बीच का अंतर है.

ऐसे तर्क हैं कि अधिक सरकारी खर्च राजकोषीय घाटे को बढ़ा सकते हैं और मंहगाई का कारण भी बन सकते हैं और अर्थव्यवस्था के बढ़ने की गति धीमी कर सकते हैं.

वहीं, आरबीआई की रिपोर्ट ने सुझाव दिया कि अर्थव्यवस्था में कम क्षमता है. इसलिए सरकारी खर्च अधिक रोजगार पैदा करेगा और लोगों के हाथों में अधिक आय उत्पन्न करेगा. जिसका उपयोग आगे उपभोग के लिए किया जाएगा और अर्थव्यवस्था पुनर्जीवित होगी.

इसके बाद व्यापार विश्वास और कर राजस्व में सुधार होगा. जिससे राजकोषीय स्थिति बेहतर हो जाएगी.

इसलिए अगर राजकोषीय घाटे के आंकड़े ज्यादा हैं तो चिंता करने की जरूरत नहीं है. वे वह कीमत हैं जो बेहतर कल के लिए हम आज चुका रहे हैं.

क्षेत्रवार खर्च की आवश्यकता
एक बार इस बात पर स्पष्टता हो जाए कि हमें खर्च करना चाहिए या नहीं और जवाब हां में आए तो एक और सवाल आता है कि कहां खर्च किया जाए.

कृषि एक ऐसा क्षेत्र है जो अधिक सरकारी निवेश के साथ बेहतर परिणाम दे सकता है. जीडीपी के प्रतिशत के रूप में कृषि आय 2012-18 के दौरान घटकर 3.1 प्रतिशत हो गई, जो 2002-11 की अवधि के दौरान 4.4 प्रतिशत थी.

बजट 2020: अधिक खर्च करें और सही खर्च करें
इन्फ्रास्ट्रक्चर पर अधिक सरकारी खर्च से अधिक रोजगार पैदा होंगे जिससे वस्तुओं और सेवाओं की मांग बढ़ेगी.
इस तरह के पैमाने पर कृषि आय में गिरावट निश्चित रूप से खपत को कम करेगी और इन आय को बढ़ाकर खपत की मांग को पुनर्जीवित करना चाहिए. यह ग्रामीण बुनियादी ढांचे और आपूर्ति श्रृंखलाओं में निवेश के माध्यम से किया जा सकता है. यह अर्थव्यवस्था को वापस उछाल देने में मदद करते हुए न केवल बुनियादी ढांचे को बदल देगा बल्कि देश के ग्रामीण दृष्टिकोण को भी बदल देगा.

सरकार को वित्त वर्ष 2020-21 का बजट इस तरह से बनाना चाहिए कि उसमें खर्च युक्तिसंगत हो. इसके लिए प्राथमिकता तय करनी होगी. खर्च इस रूप से हो, जिससे प्रत्यक्ष रोजगार सृजित हो और समाज के निचले तबकों की जेब में पैसा पहुंचे. इससे खपत बढ़ाने में मदद मिलेगी. यह समय खर्च करने से कहीं बेहतर सही तरीके से खर्च करने का है.

(डॉ. महेंद्र बाबू कुरुवा, सहायक प्रोफेसर, एच एन बी केंद्रीय विश्वविद्यालय, उत्तराखंड. उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं.)

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बजट 2020: माननीय वित्त मंत्री जी बजट में सरकारी खर्चों पर दें ध्यान 

नई दिल्ली: एक फरवरी को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण अपना पहला पूर्ण बजट पेश करेंगी. करोड़पति से लेकर आम आदमी तक और कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक पूरा देश इस बजट भाषण पर अपनी निगाहें लगाए रहेगा. देश को उम्मीद है कि यह बजट भारत के ढलती अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करेगा. 

भारतीय अर्थव्यवस्था फिलहाल 11 वर्षों में अपनी सबसे धीमी गति से बढ़ रही है. बेरोजगारी दर चार दशकों के उच्चतम स्तर पर है और खाने-पीने के समानों की कीमतें आसमान को छू रही हैं.

विनिर्माण क्षेत्र में उदासी छायी हुई है. यह वह क्षेत्र है जो अर्ध-कुशल श्रम शक्ति के बड़े हिस्से को समायोजित करता है. वहीं, कृषि क्षेत्र और ग्रामीण विकास की हालत भी खस्ता है.

हाल ही में जारी वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक, ग्लोबल सोशल मोबिलिटी इंडेक्स और दावोस में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम समिट की ओर से ऑक्सफेम रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से संकेत दिया गया है कि भारत की धन सृजन दर में गिरावट आ रही है और अमीर-गरीब के बीच का अंतर बढ़ता ही जा रहा है और इस अंतर को कम करने के लिए ठोस कदम उठाए जाने चाहिए. 



क्या हो आगे का रास्ता ?

सरकारी खर्च बढ़ाना एक बेहतर समाधान हो सकता है. वर्तमान आर्थिक मंदी का मुख्य कारण आपूर्ति की अड़चनों के बजाय कम खपत है. लोग खर्च करने से बचते हुए नजर आ रहें या उनके पास पैसों की कमी है. इसलिए सरकार को इस ओर कोई ठोस कदम उठाना होगा.

भारतीय रिजर्व बैंक की एक हालिया रिपोर्ट ने भी गिरते हुए उपभोक्ता विश्वास, व्यापार विश्वास और कारखानों द्वारा क्षमता उपयोग की दिशा में सुझाव दिया है जो मांग में गिरावट का संकेत देता है. इसलिए समाधान काफी हद तक अर्थव्यवस्था में मांग को बढ़ाने की ओर होना चाहिए. 

साल 2019 में देश के बैंकों को विनियमित करने वाले रिजर्व बैंक ने प्रमुख ब्याज दर (रेपो रेट) को 135 आधार अंकों तक कम कर दिया. आरबीआई का मानना था कि रेपो दर कम हो जाने से ब्याज दरें कम हो जाएंगी. फिर यह मकान, कार खरीदने के लिए क्रेडिट मांग को बढ़ाएगा. दुर्भाग्य से उसका फायदा अभी तक जमीनी स्तर पर मिलता नहीं दिख रहा.

इस समय यह बेहतर होगा कि आगामी बजट में सार्वजनिक निवेशों और खर्च को समयबद्ध तरीके से बढ़ाकर आर्थिक मंदी से निपटने का प्रयास किया जाना चाहिए.





राजकोषीय घाटे का मिथक

सरल शब्दों में फिस्कल डेफिसिट किसी दिए गए वित्तीय वर्ष में सरकार द्वारा आवश्यक कुल उधार को दर्शाता है. यह आय और खर्च के बीच का अंतर है.

ऐसे तर्क हैं कि अधिक सरकारी खर्च राजकोषीय घाटे को बढ़ा सकते हैं और मंहगाई का कारण भी बन सकते हैं और अर्थव्यवस्था के बढ़ने की गति धीमी कर सकते हैं. 

वहीं, आरबीआई की रिपोर्ट ने सुझाव दिया कि अर्थव्यवस्था में कम क्षमता है. इसलिए सरकारी खर्च अधिक रोजगार पैदा करेगा और लोगों के हाथों में अधिक आय उत्पन्न करेगा. जिसका उपयोग आगे उपभोग के लिए किया जाएगा और अर्थव्यवस्था पुनर्जीवित होगी.

इसके बाद व्यापार विश्वास और कर राजस्व में सुधार होगा. जिससे राजकोषीय स्थिति बेहतर हो जाएगी.

इसलिए अगर राजकोषीय घाटे के आंकड़े ज्यादा हैं तो चिंता करने की जरूरत नहीं है. वे वह कीमत हैं जो बेहतर कल के लिए हम आज चुका रहे हैं. 



क्षेत्रवार खर्च की आवश्यकता

एक बार इस बात पर स्पष्टता हो जाए कि हमें खर्च करना चाहिए या नहीं और जवाब हां में आए तो एक और सवाल आता है कि कहां खर्च किया जाए.

कृषि एक ऐसा क्षेत्र है जो अधिक सरकारी निवेश के साथ बेहतर परिणाम दे सकता है. जीडीपी के प्रतिशत के रूप में कृषि आय 2012-11 के दौरान घटकर 3.1 प्रतिशत हो गई, जो 2002-11 की अवधि के दौरान 4.4 प्रतिशत थी.

इस तरह के पैमाने पर कृषि आय में गिरावट निश्चित रूप से खपत को कम करेगी और इन आय को बढ़ाकर खपत की मांग को पुनर्जीवित करना चाहिए. यह ग्रामीण बुनियादी ढांचे और आपूर्ति श्रृंखलाओं में निवेश के माध्यम से किया जा सकता है. 

यह अर्थव्यवस्था को वापस उछाल देने में मदद करते हुए न केवल बुनियादी ढांचे को बदल देगा बल्कि देश के ग्रामीण दृष्टिकोण को भी बदल देगा.

सरकार को वित्त वर्ष 2020-21 का बजट इस तरह से बनाना चाहिए कि उसमें खर्च युक्तिसंगत हो. इसके लिए प्राथमिकता तय करनी होगी. खर्च इस रूप से हो, जिससे प्रत्यक्ष रोजगार सृजित हो और समाज के निचले तबकों की जेब में पैसा पहुंचे. इससे खपत बढ़ाने में मदद मिलेगी. यह समय खर्च करने से कहीं बेहतर सही तरीके से खर्च करने का है.


Conclusion:
Last Updated : Feb 18, 2020, 4:58 AM IST
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