नई दिल्ली: केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने फैसला किया है कि वह भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल) समेत पांच सरकारी कंपनियों के विनिवेश को बेचेगी. सरकार भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड में अपनी पूरी हिस्सेदारी को बेचेगी.
सरकार के पास बीपीसीएल में 53.29 प्रतिशत की हिस्सेदारी है. यहां यह बता दें कि असम की नुमालीगढ़ की रिफाइनरी में सरकार के 61 प्रतिशत के हिस्से को इससे बाहर रखा गया है.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा था कि यह केवल शेयरों की बिक्री नहीं है, बल्कि पूरे प्रबंधन को हस्तांतरित किया जाएगा. उन्होंने कहा कि ये फैसला नीति आयोग की सिफारिश पर सरकार की ओर से लिया गया है.
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बाजार विश्लेषकों की राय माने तो सरकार का यह कदम सकारात्मक है क्योंकि सरकार का मानना है कि उसे व्यापार में नहीं रहना चाहिए. यह बाजार की उम्मीदों के अनुरूप एक अच्छा कदम है. उनका मानना है कि यह विनिवेश पूर्ववर्ती रणनीतिक विनिवेशों के विपरीत हैं. इसमें प्रबंधन नियंत्रण के हस्तांतरण की बात कही गई है.
सरकार का यह फैसला निश्चित रूप से कंपनी की वास्तविक मूल्यांकन करने में मदद करेगा. विशेषज्ञ की राय है कि इन सीपीएसई के सही मूल्य मिलने के बाद शेयरधारकों को और अधिक फायदा होगा, खासकर बीपीसीएल के मामले में.
भारत में किसी भी ओएमसी में हिस्सेदारी खरीदने से कंपनी देश की तीसरी सबसे बड़ी और दुनिया भर में सबसे तेजी गति बढ़ते पेट्रोलियम बाजारों में शामिल होने का मौका मिलेगा.
बीपीसीएल 2.4x वित्तवर्ष 20 मूल्य-प्रति-बुक और 10.7x वित्तवर्ष 20 ईवी/ एबिटडा पर ट्रेड कर रहा है. इसकी तुलना में वैश्विक सहकर्मी 1.2x वित्तवर्ष 20 मूल्य-प्रति-बुक और 6.7x वित्तवर्ष 20 ईवी/एबिटडा पर व्यापार करते हैं. इसलिए, बीपीसीएल अपने वैश्विक साथियों की तुलना में एक बेहतर उद्यम है.
सऊदी अरब भारत में ऊर्जा, शोधन, पेट्रोकेमिकल, बुनियादी ढांचे, कृषि, खनिज और खनन के क्षेत्रों में संभावित रूप से 100 बिलियन अमरीकी डॉलर का निवेश करने पर विचार कर रहा है.
सऊदी अरब की सबसे बड़ी तेल कंपनी अरामको की रिलायंस इंडस्ट्रीज के साथ प्रस्तावित साझेदारी ने दोनों देशों के बीच बढ़ते ऊर्जा संबंधों की रणनीतिक प्रकृति को दर्शाया है. अरामको का भारत में निवेश करने का फैसला अरामको की वैश्विक डाउनस्ट्रीम रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. इसलिए अरामको भी अपने वैश्विक कारोबार को बढ़ाने के मकसद से बीपीसीएल को खरीदने में रुचि रखी हुई है.
बीपीसीएल विनिवेश प्रक्रिया से एनआरएल को बाहर निकालने के कारणों पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है. नुमालीगढ़ रिफाइनरी कर्मचारी संघ (एनआरईयू), जो अपने निजीकरण की संभावना के खिलाफ विरोध कर रहा है ने इस निर्णय का स्वागत किया था.
असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर उनसे अनुरोध किया था कि अगर बीपीसीएल का निजीकरण और विनिवेश किया जाए तो भी वह एनआरएल के पीएसयू की स्थिति बनाए रखें.
सरकार के फैसले के बाद असम में विरोध प्रदर्शन शुरु हो गए हैं और यह मुद्दा एक राजनीतिक मुद्दा बन गया है. एनआरएल 1985 के असम समझौते के अनुसार स्थापित किया गया था. ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन जो एकॉर्ड के हस्ताक्षरकर्ता में से एक हैं, उन्होंने सरकार को नुमालीगढ़ की रिफाइनरी में विनिवेश ना करने धमकी दी है.
नुमालीगढ़ रिफाइनरी असम समझौते के हिस्से के रूप में स्थापित की गई थी. एएएसयू की गोलाघाट इकाई के अध्यक्ष अंशुमान बोरा ने कहा कि वे केंद्र से अनुरोध करना चाहते हैं कि भविष्य में राज्य की संपत्ति का निजीकरण न करें.
कांग्रेस के सांसद गौरव गोगोई, रिपुन बोरा, प्रद्युत बोरदोलोई और अब्दुल खालेक ने संसद के बाहर धरना दिया था. इस दौरान में उन्होंने "नुमालीगढ़ रिफाइनरी-असम की धड़कन" और "असम बचाओ, भारत बचाओ" जैसे नारे लिखे हुए तख्तियां पकड़ी हुई थी.
(लेखक- डॉ हिरण्मय राय, यूनिवर्सिटी ऑफ पेट्रोलियम एंड एनर्जी स्टडीज देहरादून में अर्थशास्त्र और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार विभाग के प्रमुख हैं)