नई दिल्ली: सरकार ने देश में तेल एवं गैस का उत्पादन बढ़ाने और आयात कम करने के लिये हाइड्रोकार्बन खोज करने वाली कंपनियों को अब मूल्य निर्धारण और विपणन की आजादी देने का फैसला किया है. सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी ओएनजीसी और निजी क्षेत्र की रिलायंस इंडस्ट्रीज को नये खोज किये जाने वाले क्षेत्रों में मूल्य निर्धारण और विपणन की आजादी दी जायेगी.
इसके अलावा सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी यदि अपने मौजूदा तेल क्षेत्रों से उत्पादन बढ़ाती है तो उससे कम रॉयल्टी ली जायेगी. अधिकारियों ने इसकी जानकारी देते हुये बताया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में मंगलवार को हुई केन्द्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में एक नई खोज नीति को मंजूरी दी गई है. इस नीति में घरेलू स्तर पर तेल एवं गैस उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये कुछ नये उपायों की घोषणा की गई है.
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इसमें कहा गया है कि गैस की नई खोजों के लिये विपणन और मूल्य निर्धारण की आजादी कंपनियों को दी जायेगी. यह नियम उन क्षेत्रों पर लागू होगा जिनके लिये क्षेत्र विकास योजना (एफडीपी) अथवा निवेश प्रस्ताव को अभी मंजूरी दी जानी है. यह नियम सार्वजनिक अथवा निजी क्षेत्र दोनों कंपनियों पर लागू होगा.
ओएनजीसी के पास ऐसी कम से कम दो दर्जन खोज हैं जहां वह उत्पादन शुरू नहीं कर पाई है. इसकी एक बड़ी वजह यह है कि गैस का दाम सरकार द्वारा तय किया जाता है जो कि इसकी उत्पादन लागत से कम पड़ता है. रिलायंस की भी पूर्वी तटीय क्षेत्र एनईसी-25 में खोज कर रखी है. कंपनी मूल्य निर्धारण की आजादी मिलने के बाद इस क्षेत्र में उत्पादन शुरू कर सकती है.
अधिकारियों ने बताया कि ओएनजीसी और आयल इंडिया लिमिटेड (आयल) को प्रशासनिक मूल्य प्रणाली (एपीएम) अथवा नामांकन आधार पर दिये गये क्षेत्रों में अतिरिक्त गैस उत्पादन होने पर उन्हें प्रोत्साहन दिया जायेगा. यह प्रोत्साहन रायल्टी में 10 प्रतिशत कटौती के रूप में दिया जा सकता है. सामान्य कारोबार के मुकाबले अतिरिक्त उत्पादन परिदृष्य के बारे में तेल एवं गैस खोज क्षेत्र के नियामक हाइड्रोकार्बन महानिदेशालय (डीजीएच) द्वारा लिया जायेगा.
इन बदलावों के अलावा सरकार ने तेल एवं गैस खोज मामले में दो दशक पुरानी प्रणाली की तरफ लौटने का भी फैसला किया है. सरकार ने पिछले दो साल में तेल, गैस आवंटन की नई नीति को अपनाया था. नई नीति के तहत क्षेत्र का आवंटन कंपनियों को अधिकतम राजस्व हिस्सेदारी के आधार पर दिया जाता है जबकि इससे पहले कार्य प्रतिबद्धता के आधार पर क्षेत्रों का आवंटन किया जाता रहा है.
(भाषा):