नई दिल्ली : निजी एयरलाइन वाहक जेट एयरवेज, जिसने पिछले 25 वर्षों से भारत और दुनिया के आकाश में उड़ान भरी आज धन की कमी में डूबता जहाज बन गया है. वर्तमान में यह न केवल भारत की सबसे लंबी सेवा देने वाले निजी निजी एयरलाइंस का अंत है, बल्कि कंपनी के 23,000 कर्मचारियों का भविष्य भी दांव पर है.
प्रशासन को उनकी समस्यों को सुनाने के लिए जेट एयरवेज के कर्मचारी राष्ट्रीय राजधानी में जंतर मंतर पर इकट्ठा हुए और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनके हवाई चप्पल से हवाई जहाज तक के सपने को याद दिलाकर जेट एयरवेज को बचाने का आग्रह किया. अप्रैल 2017 में, शिमला-दिल्ली मार्ग पर क्षेत्रीय संपर्क योजना के तहत पहली उड़ान फ्लाइट को हरी झंडी दिखाते हुए, मोदी ने कहा था कि वह एक चप्पल पहनने वाले को भी हवाई जहाज से यात्रा करते हुए देखना चाहते हैं.
ईटीवी भारत से बात करते हुए परेशान एयरलाइंस के कर्मचारियों में से एक ने कहा "यह केवल एक एयरलाइन नहीं है, यह कुछ के लिए रोजगार है, कुछ के लिए एक सपना है, कुछ के लिए बच्चों का भविष्य है और कुछ के लिए व्यवसाय है और यह सूची अंतहीन है. जेट एयरवेज के बंद होने से न केवल 23,000 कर्मचारी प्रभावित होंगे, बल्कि कई ऐसे लोग हैं जो हमारे साथ जुड़कर अपना व्यवसाय चला रहे हैं, वो सभी प्रभावित होंगे."
जेट एयरवेज नवंबर 2018 में बाजार के 14 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ देश में हवाई यात्रा सेवाओं का एक महत्वपूर्ण प्रदाता हुआ करता था. ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए एक कर्मचारी ने कहा कि हमारे देश के नेता हवाई यात्रा को सस्ती कर सबसे के लिए लाभदायक बनाना चाहते थे, लेकिन अब सरकार मौन है और चुनाव में व्यस्त है.
सोसाइटी फॉर वेलफेयर ऑफ इंडियन पायलट (एसडब्ल्यूआईपी) के एक प्रतिनिधि ने कहा, " हम श्रम और रोजगार मंत्रालय को 6 मार्च 2019 को लिखे पत्र में यह संज्ञान दिया कि जेट एयरवेज के कर्मचारियों के एक खंड को पिछले सात महीनों से समय पर वेतन का भुगतान नहीं किया गया है. यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि एसडब्ल्यूआईपी का गठन 1998 में जेट एयरवेज के पायलटों द्वारा प्रबंधन के साथ हस्तक्षेप करने के उद्देश्य से किया गया था.
प्रदर्शनकारी कर्मचारियों ने सरकार से आपातकालीन धन की प्रक्रिया में तेजी लाने का आग्रह किया, क्योंकि यह उनकी आजीविका के लिए बहुत महत्वपूर्ण है.
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