नई दिल्ली : भगोड़े व्यापारी नीरव मोदी की हिरासत आज समाप्त हो रही है और इस बात की संभावना है कि वह जमानत के लिए एक और प्रयास करेगा. लेकिन नीरव को सलाखों के पीछे रखने के लिए भारतीय एजेंसियां सीबीआई और ईडी के अधिकारी लंदन पहुंच गए हैं और क्राउन प्रॉसिक्यूशन सर्विस (सीपीएस) को नए सबूत सौंप दिए हैं.
लोकसभा चुनाव से पहले नीरव मोदी की गिरफ्तारी तेजी से एक राजनीतिक मुद्दा बन गया है. सरकार और उसके समर्थकों ने एक सतर्क चौकीदार की छवि का आह्वान किया है; हालांकि विपक्ष ने आरोप लगाया, "सरकार नीरव मोदी को चुनावी मुद्दा बनाने के लिए वापस ला रही है." इम सभी के बीच सब इस गिरफ्तारी के राजनीतिक पहलू पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, और इस दौरान क्रोनिज्म का मुख्य मुद्दा आसानी से दब गया है.
2014 के आम चुनावों में भाजपा की जीत का मुख्य कारण 2जी, 3जी, सीडब्ल्यूजी और अन्य क्रोनिज्म के आरोपों से कांग्रेस का घिरा होना था. भाजपा ने चुनावों के दौरान एक भावनात्मक नारा दिया था "न खाउंगा, न खाने दूंगा". इस भावनात्मक अपील ने तत्कालीन चुनावों में भाजपा को जीतने में मदद की. लेकिन पिछले पांच वर्षों में मतदाताओं ने दो बड़े अरबपतियों शराब दिग्गज विजय माल्या और नीरव मोदी का पलायन देखा. अब जब दोनों पर शिकंजा कसकर भारत वापस लाने की कवायद जारी है, तो आगामी चुनावों में भाजपा के लिए उम्मीदें बढ़ सकती है.
इन गिरफ्तारियों के बावजूद, सरकार या प्रशासन उस व्यवस्था पर टिप्पणी करने के लिए तैयार नहीं है जिसने व्यवस्था को खोखला कर दिया है. इसके अलावा, क्रोनिज्म भी लगातार सरकारों में अविश्वास का कारण बना. जनता का विश्वास सरकार के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. आरोप लगाए गए हैं कि वर्तमान सरकार हर क्षेत्र में बढ़ते क्रोनिज्म में उतर गई है. लगातार बढ़ते लिंचिंग के मुद्दे, केवल कुछ चुनिंदा बिजनेस टायकून और नौकरशाहों के एक विशिष्ट समूहों का पक्ष लेना क्या क्रोनिज्म नहीं है? जो लोग अधिक से अधिक सरकारी शक्ति और खर्च का उपभोग करते हैं, उन्हें यह ध्यान देना चाहिए कि यह शक्ति बाद में क्रोनिज्म में तब्दील हो जाती है.
यह पहली बार नहीं है कि मोदी ने कुछ गलत किया है. इससे पहले 2015 में भी सीमा शुल्क एजेंटों ने उन पर आरोप लगाया था कि वे हांगकांग और यूएई को निर्यात के लिए बनाए गए आभूषणों में कम मूल्य के रत्नों का उपयोग करते हुए उच्च मूल्य की गुणवत्ता, शुल्क मुक्त पॉलिश वाले हीरे का आयात करके करों में वृद्धि कर रहे हैं. लेकिन उन्होंने एक अच्छे अभिनेता के रूप में इस मुद्दे को सुलझाया और एक बहुत ही संस्कारी और ईमानदार व्यक्ति होने की छाप छोड़ी.
इस देश के अमीरों के पास हर चीज की अधिमान्य पहुंच है, जबकि गरीबों के पास पर्याप्त संख्या में गुणवत्ता की शिक्षा, चिकित्सा देखभाल, वित्त आदि जैसी मूलभूत सेवाओं तक की पहुंच नहीं है. देश में 100 से अधिक अरबपति हैं और एक अंतरराष्ट्रीय एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार उनकी संपत्ति में पिछले साल 4,891 बिलियन रुपये की वृद्धि हुई है. अरबपतियों की संपत्ति में लगभग 73 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि 67 प्रतिशत गरीब भारतीयों के धन में सिर्फ एक प्रतिशत की वृद्धि देखी गई.
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बैंक ट्रेड यूनियनों का कहना है कि ये 67 प्रतिशत भारतीय अपना धन बचाने और बढ़ाने के लिए बैंकों पर निर्भर हैं; जबकि अमीर बड़ी परियोजनाओं को स्थापित करने के लिए ऋण लेते हैं और बाद में विलफुल डिफॉल्टर्स के तौर पर खुद को स्थापित कर लेते हैं. एस्सार स्टील, एस्सार ऑयल जैसे कुछ विलफुल डिफॉल्टरों को कारोबार से बाहर कर दिया गया है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ करने की जरूरत है.
इस प्रकार अब सरकार के लिए विश्वास और सहयोग के बारे में सोचने का सही समय है. विश्वास और सहयोग सामाजिक पूंजी है और यह तभी हासिल की जा सकती है, जब क्रोनिज्म पर नियंत्रण किया जा सके. शोधकर्ताओं ने साबित किया है कि अधिक विश्वास और सामाजिक पूंजी समाज में बेहतर परिणामों से संबंधित हैं.
नीरव मोदी क्रोनिज्म का एक बड़ा उदाहरण है. वह दूसरा ग्लिटजी अरबपति है, जो कानून की पकड़ में आने से पहले देश के कानून व्यवस्था का मजाक उड़ाते फरार हो गया. उसने हमेशा एक विलासितापूर्ण जीवन को पसंद किया, जो उन लोगों की जीवनशैली का उपहास उड़ाता है, जिनके पैसे व लूट के फरार हुआ है. यहां तक कि पासपोर्ट रद्द और निरस्त होने के बाद भी देशों की यात्रा जारी रखी. हो सकता है कि ब्रिटेन की अदालत को भी नीरव मोदी की यह हरकत दिखी और उसकी जमानत याचिका को रद्द कर उसे 'फ्लाइट रिस्क' पर डाल दिया.
अब सरकार उसे अपने आरोपों का सामना करने के लिए ब्रिटेन से प्रत्यापित करना चाहती है कि कैसे उसने पीएसयू बैंकों से अवैध रूप से धन प्राप्त धन की सहायता से मुंबई से मकाऊ तक साम्राज्य स्थापित किया. आम आदमी के मन में फिलहाल यही सवाल है कि क्या यह प्रत्यार्पण सफल होगा? विजय माल्या के रूप में देश की कानूनी प्रणाली का मजाक उड़ाने वाले पहले अरबपति ब्रिटेन में जमानत पर बाहर हैं और उन्होंने ब्रिटेन की अदालत के प्रत्यर्पण आदेश के खिलाफ अपील की है.
इस सरकार को राजनीतिक ग्लैमर का त्याग करने और शीघ्रता से कार्य करने और अपने कुशल 'चौकीदार' के भावनात्मक नारे को साबित करने की आवश्यकता है, अन्यथा ऐसे मोटे पूंजीपति क्रोनिज़्म का लाभ उठाते रहेंगे.