नई दिल्ली : राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) के आदेश पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने रोक लगा दी. इस आदेश में एनसीडीआरसी ने सुपरटेक के प्रंबध निदेशक (एमडी) मोहित अरोड़ा को तीन साल के कारावास की सजा सुनाई थी. आदेश के तहत एक घर खरीदार द्वारा दायर एक मामले में आदेश का पालन नहीं करने के कारण उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट भी जारी किया गया था.
शुक्रवार को न्यायमूर्ति अमित बंसल ने रिएलिटी कंपनी को अदालत को अपनी सदाशयता दिखाने के लिए ₹1.75 करोड़ की बकाया राशि में से ₹50 लाख घर खरीदार के खाते में एक सप्ताह के भीतर जमा कराने का निर्देश दिया. अदालत ने कहा कि कंपनी के प्रबंध निदेशक को तीन साल सजा देने के एनसीडीआरसी के आदेश पर सुनवाई की अगली तारीख तक रोक रहेगी.
अदालत ने कंपनी और घर खरीदार दोनों को एनसीडीआरसी के आदेश के मुताबिक बकाया राशि का स्टेटमेंट रिकॉर्ड में पेश करने का भी निर्देश दिया. उच्च न्यायालय 20 सितंबर के उस आदेश को चुनौती देने वाली सुपरटेक की याचिका पर सुनवाई कर रहा था जिसमें अरोड़ा को तीन साल की जेल की सजा सुनाई गई थी और एनसीडीआरसी के निर्देशों का पालन न करने के लिए उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया था.
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एनसीडीआरसी का मामला यमुना एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास क्षेत्र में कंपनी की एक परियोजना में एक विला का कब्जा देने में देरी के लिए घर खरीदार की शिकायत से संबंधित है, जिसे एक करोड़ रुपये से अधिक की राशि लेकर आवंटित किया गया था.
सुपरटेक का पक्ष रख रहे वरिष्ठ अधिवक्ता संदीप सेठी ने दलील दी कि एनसीडीआरसी का आदेश उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 27 के प्रावधानों से परे था और ऐसा कोई प्रावधान नहीं था जो कंपनी द्वारा डिफ़ॉल्ट की स्थिति में एमडी पर आपराधिक या सिविल मामले में उन्हें उत्तरदायी बनाने के लिए प्रतिवर्ती दायित्व डालता है. वहीं, घर खरीदार कंवल बत्रा के वकील ने याचिका का विरोध किया और कहा कि कंपनी एनसीडीआरसी के आदेश का बार-बार उल्लंघन कर रही है.
(पीटीआई)