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दो सौ से अधिक अर्थशास्त्रियों, शिक्षाविदों ने सरकार से एनएसएसओ रिपोर्ट जारी करने को कहा

कुछ मीडिया रिपोर्ट के अनुसार 2017-18 के उपभोक्ता व्यय सर्वे में औसत उपभोक्ता खपत में तीव्र गिरावट को दिखाया गया है. सर्वे के परिणाम को जारी नहीं किया जा रहा है क्योंकि वह अर्थव्यवसथा में नरमी के अन्य साक्ष्यों का समर्थन करता है.

दो सौ से अधिक अर्थशास्त्रियों, शिक्षाविदों ने सरकार से एनएसएसओ रिपोर्ट जारी करने को कहा
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Published : Nov 21, 2019, 10:58 PM IST

नई दिल्ली: अर्थशास्त्रियों और शिक्षाविदों ने एक बार फिर विभिन्न आंकड़ों को लेकर सरकार को घेरा है. दो सौ से अधिक अर्थशास्त्रियों और शिक्षाविदों ने सरकार से उपभोक्ता व्यय सर्वे 2017-18 समेत सभी सर्वे और रिपोर्ट जारी करने की अपील की है. उपभोक्ता व्यय सर्वे का काम राष्ट्रीय नमूना सर्वे कार्यालय (एनएसएसओ) ने पूरा किया है.

कुछ मीडिया रिपोर्ट के अनुसार 2017-18 के उपभोक्ता व्यय सर्वे में औसत उपभोक्ता खपत में तीव्र गिरावट को दिखाया गया है. सर्वे के परिणाम को जारी नहीं किया जा रहा है क्योंकि वह अर्थव्यवसथा में नरमी के अन्य साक्ष्यों का समर्थन करता है.

अर्थशास्त्रियों और शिक्षाविदों ने एक बयान में कहा, "यह गौर करने वाली बात है कि खपत सर्वेक्षण के आंकड़ों को राष्ट्रीय लेखा के वृहत आर्थिक अनुमानों से अलग परिणाम देने के लिये जाना जाता है."

इसके साथ ही राष्ट्रीय लेखा के अनुमान न केवल प्रशासनिक आंकड़ों पर आधारित होते हैं बल्कि ये एनएसएसओ तथा अन्य सर्वेक्षणों के मिलेजुले स्रोतों पर आधारित होते हैं. उनका कहना है कि कई समितियों ने इन विसंगतियों पर गौर किया है.

ये भी पढ़ें: मेडिक्लेम: अब रोकथाम का समय है

बयान में कहा गया है, "पारदर्शिता और जवाबदेही के हित में सभी आंकड़े बिना विलम्ब के जारी किये जाने चाहिए... सरकार जिस आंकड़े से असहमत है, उसके विश्लेषण के खिलाफ अपना पक्ष रख सकती है."

इसके अनुसार लेकिन यह तकनीकी दस्तावेज और सेमिनार के जरिये होना चाहिए. प्रतिकूल आंकड़े को जारी होने से रोकना ...न तो पारदर्शिता है और न ही तकनीकी रूप से अच्छी स्थिति है.

बयान में कहा गया है, "इसीलिए हम मांग करते हैं कि सरकार को 75वें उपभोक्ता व्यय सर्वे की रिपोर्ट और आंकड़े तत्काल जारी करने चाहिए. साथ ही सरकार को सामान्य प्रक्रियाओं के बाद अन्य सभी सर्वे आंकड़े जारी करने चाहिए."

जिन अर्थशास्त्रियों और शिक्षाविदों ने बयान जारी किया है, उसमें ए वैद्यनाथन और अभिजीत सेन (पूर्व योजना आयोग के सदस्य), विश्वजीत धर (जेएनयू), दिलीप मुखर्जी (बोस्टन यूनिवर्सिटी), मैत्रीश घटक (एलएसई), प्रभात पटनायक (जेएनयू के मानद प्रोफेसर) और थॉमस पिकेती (पेरिस स्कूल आफ एकोनोमिक्स) शामिल हैं.

नई दिल्ली: अर्थशास्त्रियों और शिक्षाविदों ने एक बार फिर विभिन्न आंकड़ों को लेकर सरकार को घेरा है. दो सौ से अधिक अर्थशास्त्रियों और शिक्षाविदों ने सरकार से उपभोक्ता व्यय सर्वे 2017-18 समेत सभी सर्वे और रिपोर्ट जारी करने की अपील की है. उपभोक्ता व्यय सर्वे का काम राष्ट्रीय नमूना सर्वे कार्यालय (एनएसएसओ) ने पूरा किया है.

कुछ मीडिया रिपोर्ट के अनुसार 2017-18 के उपभोक्ता व्यय सर्वे में औसत उपभोक्ता खपत में तीव्र गिरावट को दिखाया गया है. सर्वे के परिणाम को जारी नहीं किया जा रहा है क्योंकि वह अर्थव्यवसथा में नरमी के अन्य साक्ष्यों का समर्थन करता है.

अर्थशास्त्रियों और शिक्षाविदों ने एक बयान में कहा, "यह गौर करने वाली बात है कि खपत सर्वेक्षण के आंकड़ों को राष्ट्रीय लेखा के वृहत आर्थिक अनुमानों से अलग परिणाम देने के लिये जाना जाता है."

इसके साथ ही राष्ट्रीय लेखा के अनुमान न केवल प्रशासनिक आंकड़ों पर आधारित होते हैं बल्कि ये एनएसएसओ तथा अन्य सर्वेक्षणों के मिलेजुले स्रोतों पर आधारित होते हैं. उनका कहना है कि कई समितियों ने इन विसंगतियों पर गौर किया है.

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बयान में कहा गया है, "पारदर्शिता और जवाबदेही के हित में सभी आंकड़े बिना विलम्ब के जारी किये जाने चाहिए... सरकार जिस आंकड़े से असहमत है, उसके विश्लेषण के खिलाफ अपना पक्ष रख सकती है."

इसके अनुसार लेकिन यह तकनीकी दस्तावेज और सेमिनार के जरिये होना चाहिए. प्रतिकूल आंकड़े को जारी होने से रोकना ...न तो पारदर्शिता है और न ही तकनीकी रूप से अच्छी स्थिति है.

बयान में कहा गया है, "इसीलिए हम मांग करते हैं कि सरकार को 75वें उपभोक्ता व्यय सर्वे की रिपोर्ट और आंकड़े तत्काल जारी करने चाहिए. साथ ही सरकार को सामान्य प्रक्रियाओं के बाद अन्य सभी सर्वे आंकड़े जारी करने चाहिए."

जिन अर्थशास्त्रियों और शिक्षाविदों ने बयान जारी किया है, उसमें ए वैद्यनाथन और अभिजीत सेन (पूर्व योजना आयोग के सदस्य), विश्वजीत धर (जेएनयू), दिलीप मुखर्जी (बोस्टन यूनिवर्सिटी), मैत्रीश घटक (एलएसई), प्रभात पटनायक (जेएनयू के मानद प्रोफेसर) और थॉमस पिकेती (पेरिस स्कूल आफ एकोनोमिक्स) शामिल हैं.

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नई दिल्ली: अर्थशास्त्रियों और शिक्षाविदों ने एक बार फिर विभिन्न आंकड़ों को लेकर सरकार को घेरा है. दो सौ से अधिक अर्थशास्त्रियों और शिक्षाविदों ने सरकार से उपभोक्ता व्यय सर्वे 2017-18 समेत सभी सर्वे और रिपोर्ट जारी करने की अपील की है. उपभोक्ता व्यय सर्वे का काम राष्ट्रीय नमूना सर्वे कार्यालय (एनएसएसओ) ने पूरा किया है.

कुछ मीडिया रिपोर्ट के अनुसार 2017-18 के उपभोक्ता व्यय सर्वे में औसत उपभोक्ता खपत में तीव्र गिरावट को दिखाया गया है. सर्वे के परिणाम को जारी नहीं किया जा रहा है क्योंकि वह अर्थव्यवसथा में नरमी के अन्य साक्ष्यों का समर्थन करता है.

अर्थशास्त्रियों और शिक्षाविदों ने एक बयान में कहा, "यह गौर करने वाली बात है कि खपत सर्वेक्षण के आंकड़ों को राष्ट्रीय लेखा के वृहत आर्थिक अनुमानों से अलग परिणाम देने के लिये जाना जाता है."

इसके साथ ही राष्ट्रीय लेखा के अनुमान न केवल प्रशासनिक आंकड़ों पर आधारित होते हैं बल्कि ये एनएसएसओ तथा अन्य सर्वेक्षणों के मिलेजुले स्रोतों पर आधारित होते हैं. उनका कहना है कि कई समितियों ने इन विसंगतियों पर गौर किया है.

बयान में कहा गया है, "पारदर्शिता और जवाबदेही के हित में सभी आंकड़े बिना विलम्ब के जारी किये जाने चाहिए... सरकार जिस आंकड़े से असहमत है, उसके विश्लेषण के खिलाफ अपना पक्ष रख सकती है."

इसके अनुसार लेकिन यह तकनीकी दस्तावेज और सेमिनार के जरिये होना चाहिए. प्रतिकूल आंकड़े को जारी होने से रोकना ...न तो पारदर्शिता है और न ही तकनीकी रूप से अच्छी स्थिति है.

बयान में कहा गया है, "इसीलिए हम मांग करते हैं कि सरकार को 75वें उपभोक्ता व्यय सर्वे की रिपोर्ट और आंकड़े तत्काल जारी करने चाहिए. साथ ही सरकार को सामान्य प्रक्रियाओं के बाद अन्य सभी सर्वे आंकड़े जारी करने चाहिए."

जिन अर्थशास्त्रियों और शिक्षाविदों ने बयान जारी किया है, उसमें ए वैद्यनाथन और अभिजीत सेन (पूर्व योजना आयोग के सदस्य), विश्वजीत धर (जेएनयू), दिलीप मुखर्जी (बोस्टन यूनिवर्सिटी), मैत्रीश घटक (एलएसई), प्रभात पटनायक (जेएनयू के मानद प्रोफेसर) और थॉमस पिकेती (पेरिस स्कूल आफ एकोनोमिक्स) शामिल हैं.

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