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भारत में नौकरी की समस्या कौशल समस्या है

भारत एक विषम स्थिति में है जहां एक ओर नौकरियों की कमी है या यूं कहें कि अच्छी नौकरियों की कमी है. जबकि दूसरी ओर नियोक्ता शिकायत करते हैं कि वे योग्य व्यक्तियों की कमी से पीड़ित हैं. इसी विषय पर पढ़ें धीरज नैय्यर के विचार..

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Published : Jul 20, 2020, 4:55 PM IST

भारत में नौकरी की समस्या कौशल समस्या है
भारत में नौकरी की समस्या कौशल समस्या है

नई दिल्ली: पिछले हफ्ते प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने विश्व युवा कौशल दिवस के अवसर कहा था कि स्किल, री-स्किल और अपस्किल का ये मंत्र जानना, समझना, और इसका पालन करना है. हम सभी के जीवन में बहुत महत्वपूर्ण है. इसके लिए मोदी सरकार ने फ्लैगशिप प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के लिए काफी संसाधन लगाए हैं. हालांकि, कोई भी कुशल कौशल क्रांति नहीं हुई है.

भारत एक विषम स्थिति में है जहां एक ओर नौकरियों की कमी है या यूं कहें कि अच्छी नौकरियों है. जिसके कारण सरकारों की लगातार आलोचना होती रही है. जबकि दूसरी ओर नियोक्ता शिकायत करते हैं कि वे योग्य व्यक्तियों की कमी से पीड़ित हैं. क्या समाज और राजव्यवस्था ने शिक्षा को स्किल से ज्यादा महत्व दिया है.

ये भी पढ़ें- कोरोना के कारण बढ़ी मसालों की मांग, निर्यात 23 प्रतिशत उछला

हर जगह समाज शिक्षा और कौशल के बीच अंतर करता है. पश्चिम में शिक्षकों की तुलना कई बार प्लंबरों से होती है. यह इस बात पर निर्भर करता है कि कोई व्यक्ति कहां खड़ा है. प्लंबर अक्सर शिक्षकों से अधिक कमाते हैं, यहां तक कि सार्वजनिक विश्वविद्यालयों के शिक्षक से भी ज्यादा. उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में कौशल अच्छा मौद्रिक रिटर्न प्रदान करते हैं और श्रम की गरिमा होती है.

भारत में सफेद कॉलर नौकरी करने वालों को ज्यादा सामाजिक प्राथमिकता मिलती है. जो आमतौर पर शिक्षित व्यक्तियों को मिलती है. यह आमतौर पर विश्वविद्यालय की डिग्री प्राप्त करने वाले लोगों होते हैं.

एक या दो विश्वविद्यालय डिग्री वाले लेने वाले लोग न्यूनतम स्तर की सरकारी नौकरियों (जो किसी विश्वविद्यालय डिग्री के साथ एक कुशल पेशे की तुलना में काफी कम भुगतान करेगा) के लिए भी अप्लाई करते हैं. यह शिक्षा को प्रथम प्राथमिकता देने के कारण होता हैं.

यह सामाजिक प्राथमिकता लंबी अवधि में नीतिगत विकल्पों में परिलक्षित होती है. भारत के राज्यों ने प्राथमिक शिक्षा और कौशल की अनदेखी करते हुए उच्च शिक्षा में निवेश किया है.

आखिरकार, एक व्यक्ति को एक कौशल सीखने के लिए कुछ बुनियादी शिक्षा का पालन करना चाहिए. लेकिन स्पष्ट रूप से प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय में शिक्षा लेने वालों की एक बहुत बड़ी संख्या खुद को कौशल शिक्षा की तरफ ना ले जाकर एक सामान्यीकृत उच्च शिक्षा की डिग्री का चयन करती है.

सरकार समाज को अपनी प्राथमिकताओं को बदलने में मदद कर सकती है. सरकार स्किलिंग संस्थानों को (उदाहरण के लिए आईटीआई) विश्वविद्यालय का दर्जा दे सकती है. कुछ लोग इस समानता की संभावना के साथ खिलाफ रहेंगे. कौशल विषय का चयन करने वाले लोग बीए या बी.एससी. इलेक्ट्रिकल, पाइपलाइन, बढ़ईगीरी, पाक कौशल, ब्यूटीशियन तकनीक से बेहतर जिंदगी जी सकते हैं. कौशल का स्वरूप भी बदल रहा है.

भविष्य उन लोगों का है जो तेजी से बदलते तकनीकी परिदृश्य के अनुकूल हो सकते हैं. कौशल विकास एक बीए (सामान्य) या बीएससी (सामान्य) पाठ्यक्रम की तरह हो सकते हैं जो सॉफ्ट और हार्ड स्किल्स की रेंज सिखाएं और जिससे रोजगार भी बढ़ें.

यदि भारत को एक कौशल क्रांति करना है तो शिक्षा और कौशल के बीच एक सहजता लाना होगा. इसके लिए प्राथमिक और माध्यमिक स्कूल प्रणाली को मजबूत करने की आवश्यकता है. विशेष रूप से सीखने पर ज्यादा जोर देने की जरूरत है.

कौशल के लिए योग्यता उन लोगों से अलग स्ट्रीम में स्थानांतरित हो जाती है जो कला या विज्ञान का अध्ययन करते हैं. अंत में दोनों व्यक्तियों के पास कॉलेज से स्नातक की डिग्री होगी. यही एकमात्र तरीका है जिससे कि सामाजिक प्राथमिकता बदल जाएगी.

(लेखक धीरज नैय्यर वेदांता रिसोर्स लिमिटेड में मुख्य अर्थशास्त्री हैं. ऊपर व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं)

नई दिल्ली: पिछले हफ्ते प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने विश्व युवा कौशल दिवस के अवसर कहा था कि स्किल, री-स्किल और अपस्किल का ये मंत्र जानना, समझना, और इसका पालन करना है. हम सभी के जीवन में बहुत महत्वपूर्ण है. इसके लिए मोदी सरकार ने फ्लैगशिप प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के लिए काफी संसाधन लगाए हैं. हालांकि, कोई भी कुशल कौशल क्रांति नहीं हुई है.

भारत एक विषम स्थिति में है जहां एक ओर नौकरियों की कमी है या यूं कहें कि अच्छी नौकरियों है. जिसके कारण सरकारों की लगातार आलोचना होती रही है. जबकि दूसरी ओर नियोक्ता शिकायत करते हैं कि वे योग्य व्यक्तियों की कमी से पीड़ित हैं. क्या समाज और राजव्यवस्था ने शिक्षा को स्किल से ज्यादा महत्व दिया है.

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हर जगह समाज शिक्षा और कौशल के बीच अंतर करता है. पश्चिम में शिक्षकों की तुलना कई बार प्लंबरों से होती है. यह इस बात पर निर्भर करता है कि कोई व्यक्ति कहां खड़ा है. प्लंबर अक्सर शिक्षकों से अधिक कमाते हैं, यहां तक कि सार्वजनिक विश्वविद्यालयों के शिक्षक से भी ज्यादा. उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में कौशल अच्छा मौद्रिक रिटर्न प्रदान करते हैं और श्रम की गरिमा होती है.

भारत में सफेद कॉलर नौकरी करने वालों को ज्यादा सामाजिक प्राथमिकता मिलती है. जो आमतौर पर शिक्षित व्यक्तियों को मिलती है. यह आमतौर पर विश्वविद्यालय की डिग्री प्राप्त करने वाले लोगों होते हैं.

एक या दो विश्वविद्यालय डिग्री वाले लेने वाले लोग न्यूनतम स्तर की सरकारी नौकरियों (जो किसी विश्वविद्यालय डिग्री के साथ एक कुशल पेशे की तुलना में काफी कम भुगतान करेगा) के लिए भी अप्लाई करते हैं. यह शिक्षा को प्रथम प्राथमिकता देने के कारण होता हैं.

यह सामाजिक प्राथमिकता लंबी अवधि में नीतिगत विकल्पों में परिलक्षित होती है. भारत के राज्यों ने प्राथमिक शिक्षा और कौशल की अनदेखी करते हुए उच्च शिक्षा में निवेश किया है.

आखिरकार, एक व्यक्ति को एक कौशल सीखने के लिए कुछ बुनियादी शिक्षा का पालन करना चाहिए. लेकिन स्पष्ट रूप से प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय में शिक्षा लेने वालों की एक बहुत बड़ी संख्या खुद को कौशल शिक्षा की तरफ ना ले जाकर एक सामान्यीकृत उच्च शिक्षा की डिग्री का चयन करती है.

सरकार समाज को अपनी प्राथमिकताओं को बदलने में मदद कर सकती है. सरकार स्किलिंग संस्थानों को (उदाहरण के लिए आईटीआई) विश्वविद्यालय का दर्जा दे सकती है. कुछ लोग इस समानता की संभावना के साथ खिलाफ रहेंगे. कौशल विषय का चयन करने वाले लोग बीए या बी.एससी. इलेक्ट्रिकल, पाइपलाइन, बढ़ईगीरी, पाक कौशल, ब्यूटीशियन तकनीक से बेहतर जिंदगी जी सकते हैं. कौशल का स्वरूप भी बदल रहा है.

भविष्य उन लोगों का है जो तेजी से बदलते तकनीकी परिदृश्य के अनुकूल हो सकते हैं. कौशल विकास एक बीए (सामान्य) या बीएससी (सामान्य) पाठ्यक्रम की तरह हो सकते हैं जो सॉफ्ट और हार्ड स्किल्स की रेंज सिखाएं और जिससे रोजगार भी बढ़ें.

यदि भारत को एक कौशल क्रांति करना है तो शिक्षा और कौशल के बीच एक सहजता लाना होगा. इसके लिए प्राथमिक और माध्यमिक स्कूल प्रणाली को मजबूत करने की आवश्यकता है. विशेष रूप से सीखने पर ज्यादा जोर देने की जरूरत है.

कौशल के लिए योग्यता उन लोगों से अलग स्ट्रीम में स्थानांतरित हो जाती है जो कला या विज्ञान का अध्ययन करते हैं. अंत में दोनों व्यक्तियों के पास कॉलेज से स्नातक की डिग्री होगी. यही एकमात्र तरीका है जिससे कि सामाजिक प्राथमिकता बदल जाएगी.

(लेखक धीरज नैय्यर वेदांता रिसोर्स लिमिटेड में मुख्य अर्थशास्त्री हैं. ऊपर व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं)

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