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भारत को श्रम बाजार में सुधार, बैंकों का लेखा-जोखा दुरूस्त करने की जरूरत - जीडीपी विकास दर

गोपीनाथ ने कहा कि यह मौजूदा सरकार का दूसरा कार्यकाल है और उनके लिये राजनीतिक रूप से संरचनात्मक सुधारों को आगे बढ़ाने के लिये उपयुक्त समय है. घरेलू खपत में कमी के साथ विनिर्माण क्षेत्र में नरमी के कारण सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष की जुलाई-सितंबर तिमाही में 4.5 प्रतिशत रही. यह छह साल का न्यूनतम स्तर है.

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भारत को श्रम बाजार में सुधार, बैंकों का लेखा-जोखा दुरूस्त करने की जरूरत
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Published : Dec 16, 2019, 6:10 PM IST

वॉशिंगटन: अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) की मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ ने कहा कि भारत सरकार को घरेलू मांग में नरमी दूर करने के लिये बैंकों के लेखा जोखा को साफ करने तथा श्रम बाजार में लचीलापन जैसे बुनियादी सुधारों को आगे बढ़ाना चाहिए.

चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर छह साल के न्यूनतम स्तर पर पहुंचने के बीच उन्होंने यह बात कही है. गोपीनाथ (48) इस सप्ताह भारत जा रही हैं.

उन्होंने पीटीआई भाषा से बातचीत में कहा, "इस समय भारतीय अर्थव्यवस्था में चक्रीय उतार चढ़ाव की स्थिति और संरचनात्मक चुनौतियों को देखते हुए हम घरेलू मांग में नरमी से निपटने वाली नीतियों के साथ उत्पादकता बढ़ाने तथा मध्यम अवधि में रोजगार सृजन में सहायक नीतियों की सिफारिश करते हैं."

गोपीनाथ ने कहा कि यह मौजूदा सरकार का दूसरा कार्यकाल है और उनके लिये राजनीतिक रूप से संरचनात्मक सुधारों को आगे बढ़ाने के लिये उपयुक्त समय है. घरेलू खपत में कमी के साथ विनिर्माण क्षेत्र में नरमी के कारण सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष की जुलाई-सितंबर तिमाही में 4.5 प्रतिशत रही. यह छह साल का न्यूनतम स्तर है. कोलकाता में जन्मीं 48 वर्षीय अर्थशास्त्री ने कहा कि सरकार की नीति प्राथमिकताओं में भरोसेमंद राजकोषीय मजबूती के रास्ते को भी शामिल किया जाना चाहिए.

ये भी पढ़ें: जीएसटी संग्रह कम रहने से राज्यों को क्षतिपूर्ति के भुगतान में देरी: सीतारमण

उन्होंने कहा, "इसके लिये कर्ज के उच्च स्तर तथा सरकारी व्यय एवं घाटे के वित्त पोषण में कमी लाने की जरूरत है. इससे निजी निवेश के लिये वित्तीय संसाधन उपलब्ध होगा. यह सब्सिडी खर्च को युक्तिसंगत बनाकर तथा कर आधार बढ़ाने के उपायों के जरिये होना चाहिए."

एक सवाल के जवाब में गोपीनाथ ने कहा कि सरकार का मध्यम अवधि में लक्ष्य 5,000 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था पर पहुंचने का है. इसमें निवेश पर जोर सही है. इसी प्रकार ग्रामीण अर्थव्यवस्था को समर्थन देने, बुनियादी ढांच व्यय में तेजी, माल एवं सेवा कर (जीएसटी) को दुरूस्त करना, प्रत्यक्ष कर सुधार तथा व्यापार अनुकूल नीति एजेंडा को आगे बढ़ाने की प्रतिबद्धता को उपयुक्त ठहराया. उन्होंने अन्य बातों के अलावा सरकार के लिये नीतियों के मोर्चे पर तीन प्राथमिकताएं बतायीं.

गोपीनाथ ने कहा कि पहला, बैंक, अन्य वित्तीय संस्थानों तथा कंपनी बही-खातों को दुरूस्त करना तथा बैंक कर्ज में तेजी लाने के लिये सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में संचालन व्यवस्था को और बेहतर करना. साथ ही गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) में नकदी दबाव से उभरते वाले जोखिम पर नजर रखते हुए कर्ज प्रावधान की दक्षता को बढ़ाना शामिल हैं. इसके अलावा एनबीएफसी की निगरानी और नियमन को मजबूत करने की जरूरत है.

उन्होंने मध्यम अवधि में केंद्र तथा राज्य स्तर पर राजकोषीय मजबूती का आह्वान किया. उनकी राय में इसके लिये सार्वजनिक कर्ज के स्तर में कमी, कर कानूनों के अनुपालन तथा अनुशासन में सुधार के कदमों के साथ राजकोषीय प्रशासन में सुधार पर जोर देना होगा.

गोपीनाथ के अनुसार और अंत में प्रतिस्पर्धा और संचालन में सुधार के लिये श्रम, भूमि और उत्पाद बाजार में सुधारों के साथ बुनियादी ढांचा क्षेत्र में निवेश की जरूरत है ताकि भारत की बढ़ते युवा कार्य बल के लिये अच्छी और बेहतर नौकरियां सृजित हो सके.

उन्होंने यह भी कहा, "चौतरफा समावेशी वृद्धि के लिये स्वास्थ्य और शिक्षा में सुधार जरूरी है."

वॉशिंगटन: अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) की मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ ने कहा कि भारत सरकार को घरेलू मांग में नरमी दूर करने के लिये बैंकों के लेखा जोखा को साफ करने तथा श्रम बाजार में लचीलापन जैसे बुनियादी सुधारों को आगे बढ़ाना चाहिए.

चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर छह साल के न्यूनतम स्तर पर पहुंचने के बीच उन्होंने यह बात कही है. गोपीनाथ (48) इस सप्ताह भारत जा रही हैं.

उन्होंने पीटीआई भाषा से बातचीत में कहा, "इस समय भारतीय अर्थव्यवस्था में चक्रीय उतार चढ़ाव की स्थिति और संरचनात्मक चुनौतियों को देखते हुए हम घरेलू मांग में नरमी से निपटने वाली नीतियों के साथ उत्पादकता बढ़ाने तथा मध्यम अवधि में रोजगार सृजन में सहायक नीतियों की सिफारिश करते हैं."

गोपीनाथ ने कहा कि यह मौजूदा सरकार का दूसरा कार्यकाल है और उनके लिये राजनीतिक रूप से संरचनात्मक सुधारों को आगे बढ़ाने के लिये उपयुक्त समय है. घरेलू खपत में कमी के साथ विनिर्माण क्षेत्र में नरमी के कारण सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष की जुलाई-सितंबर तिमाही में 4.5 प्रतिशत रही. यह छह साल का न्यूनतम स्तर है. कोलकाता में जन्मीं 48 वर्षीय अर्थशास्त्री ने कहा कि सरकार की नीति प्राथमिकताओं में भरोसेमंद राजकोषीय मजबूती के रास्ते को भी शामिल किया जाना चाहिए.

ये भी पढ़ें: जीएसटी संग्रह कम रहने से राज्यों को क्षतिपूर्ति के भुगतान में देरी: सीतारमण

उन्होंने कहा, "इसके लिये कर्ज के उच्च स्तर तथा सरकारी व्यय एवं घाटे के वित्त पोषण में कमी लाने की जरूरत है. इससे निजी निवेश के लिये वित्तीय संसाधन उपलब्ध होगा. यह सब्सिडी खर्च को युक्तिसंगत बनाकर तथा कर आधार बढ़ाने के उपायों के जरिये होना चाहिए."

एक सवाल के जवाब में गोपीनाथ ने कहा कि सरकार का मध्यम अवधि में लक्ष्य 5,000 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था पर पहुंचने का है. इसमें निवेश पर जोर सही है. इसी प्रकार ग्रामीण अर्थव्यवस्था को समर्थन देने, बुनियादी ढांच व्यय में तेजी, माल एवं सेवा कर (जीएसटी) को दुरूस्त करना, प्रत्यक्ष कर सुधार तथा व्यापार अनुकूल नीति एजेंडा को आगे बढ़ाने की प्रतिबद्धता को उपयुक्त ठहराया. उन्होंने अन्य बातों के अलावा सरकार के लिये नीतियों के मोर्चे पर तीन प्राथमिकताएं बतायीं.

गोपीनाथ ने कहा कि पहला, बैंक, अन्य वित्तीय संस्थानों तथा कंपनी बही-खातों को दुरूस्त करना तथा बैंक कर्ज में तेजी लाने के लिये सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में संचालन व्यवस्था को और बेहतर करना. साथ ही गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) में नकदी दबाव से उभरते वाले जोखिम पर नजर रखते हुए कर्ज प्रावधान की दक्षता को बढ़ाना शामिल हैं. इसके अलावा एनबीएफसी की निगरानी और नियमन को मजबूत करने की जरूरत है.

उन्होंने मध्यम अवधि में केंद्र तथा राज्य स्तर पर राजकोषीय मजबूती का आह्वान किया. उनकी राय में इसके लिये सार्वजनिक कर्ज के स्तर में कमी, कर कानूनों के अनुपालन तथा अनुशासन में सुधार के कदमों के साथ राजकोषीय प्रशासन में सुधार पर जोर देना होगा.

गोपीनाथ के अनुसार और अंत में प्रतिस्पर्धा और संचालन में सुधार के लिये श्रम, भूमि और उत्पाद बाजार में सुधारों के साथ बुनियादी ढांचा क्षेत्र में निवेश की जरूरत है ताकि भारत की बढ़ते युवा कार्य बल के लिये अच्छी और बेहतर नौकरियां सृजित हो सके.

उन्होंने यह भी कहा, "चौतरफा समावेशी वृद्धि के लिये स्वास्थ्य और शिक्षा में सुधार जरूरी है."

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वॉशिंगटन: अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) की मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ ने कहा कि भारत सरकार को घरेलू मांग में नरमी दूर करने के लिये बैंकों के लेखा जोखा को साफ करने तथा श्रम बाजार में लचीलापन जैसे बुनियादी सुधारों को आगे बढ़ाना चाहिए.

चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर छह साल के न्यूनतम स्तर पर पहुंचने के बीच उन्होंने यह बात कही है. गोपीनाथ (48) इस सप्ताह भारत जा रही हैं.

उन्होंने पीटीआई भाषा से बातचीत में कहा, "इस समय भारतीय अर्थव्यवस्था में चक्रीय उतार चढ़ाव की स्थिति और संरचनात्मक चुनौतियों को देखते हुए हम घरेलू मांग में नरमी से निपटने वाली नीतियों के साथ उत्पादकता बढ़ाने तथा मध्यम अवधि में रोजगार सृजन में सहायक नीतियों की सिफारिश करते हैं."

गोपीनाथ ने कहा कि यह मौजूदा सरकार का दूसरा कार्यकाल है और उनके लिये राजनीतिक रूप से संरचनात्मक सुधारों को आगे बढ़ाने के लिये उपयुक्त समय है. घरेलू खपत में कमी के साथ विनिर्माण क्षेत्र में नरमी के कारण सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष की जुलाई-सितंबर तिमाही में 4.5 प्रतिशत रही. यह छह साल का न्यूनतम स्तर है. कोलकाता में जन्मीं 48 वर्षीय अर्थशास्त्री ने कहा कि सरकार की नीति प्राथमिकताओं में भरोसेमंद राजकोषीय मजबूती के रास्ते को भी शामिल किया जाना चाहिए.

उन्होंने कहा, "इसके लिये कर्ज के उच्च स्तर तथा सरकारी व्यय एवं घाटे के वित्त पोषण में कमी लाने की जरूरत है. इससे निजी निवेश के लिये वित्तीय संसाधन उपलब्ध होगा. यह सब्सिडी खर्च को युक्तिसंगत बनाकर तथा कर आधार बढ़ाने के उपायों के जरिये होना चाहिए."

एक सवाल के जवाब में गोपीनाथ ने कहा कि सरकार का मध्यम अवधि में लक्ष्य 5,000 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था पर पहुंचने का है. इसमें निवेश पर जोर सही है. इसी प्रकार ग्रामीण अर्थव्यवस्था को समर्थन देने, बुनियादी ढांच व्यय में तेजी, माल एवं सेवा कर (जीएसटी) को दुरूस्त करना, प्रत्यक्ष कर सुधार तथा व्यापार अनुकूल नीति एजेंडा को आगे बढ़ाने की प्रतिबद्धता को उपयुक्त ठहराया. उन्होंने अन्य बातों के अलावा सरकार के लिये नीतियों के मोर्चे पर तीन प्राथमिकताएं बतायीं.

गोपीनाथ ने कहा कि पहला, बैंक, अन्य वित्तीय संस्थानों तथा कंपनी बही-खातों को दुरूस्त करना तथा बैंक कर्ज में तेजी लाने के लिये सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में संचालन व्यवस्था को और बेहतर करना. साथ ही गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) में नकदी दबाव से उभरते वाले जोखिम पर नजर रखते हुए कर्ज प्रावधान की दक्षता को बढ़ाना शामिल हैं. इसके अलावा एनबीएफसी की निगरानी और नियमन को मजबूत करने की जरूरत है.

उन्होंने मध्यम अवधि में केंद्र तथा राज्य स्तर पर राजकोषीय मजबूती का आह्वान किया. उनकी राय में इसके लिये सार्वजनिक कर्ज के स्तर में कमी, कर कानूनों के अनुपालन तथा अनुशासन में सुधार के कदमों के साथ राजकोषीय प्रशासन में सुधार पर जोर देना होगा.

गोपीनाथ के अनुसार और अंत में प्रतिस्पर्धा और संचालन में सुधार के लिये श्रम, भूमि और उत्पाद बाजार में सुधारों के साथ बुनियादी ढांचा क्षेत्र में निवेश की जरूरत है ताकि भारत की बढ़ते युवा कार्य बल के लिये अच्छी और बेहतर नौकरियां सृजित हो सके.

उन्होंने यह भी कहा, "चौतरफा समावेशी वृद्धि के लिये स्वास्थ्य और शिक्षा में सुधार जरूरी है."


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