नई दिल्ली: भारतीय प्रतिभूति एवं विनियम बोर्ड (सेबी) ने आईएलएंडएफएस मामले में पांच क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों के खिलाफ अपनी जांच का दायरा बढ़ाया है. संकटग्रस्त आईएलएंडएफएस समूह के नए बोर्ड द्वारा कराए फॉरेंसिंक आडिट में गंभीर खामियों का खुलासा किया गया है.
इसमें क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों और आईएलएंडएफएस समूह के पूर्व शीर्ष अधिकारियों के बीच मिलीभगत पर भी उंगली उठायी गयी है और निष्कर्ष निकाला गया है कि कमजोर वित्तीय स्थिति के बावजूद इस समूह की कंपनियों को शीर्ष वित्तीय रेटिंग दी गई.
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दो रेटिंग एजेंसियों के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों (सीईओ) को सेबी की जांच पूरी होने तक पहले ही जबरन अवकाश पर भेज दिया गया है. अधिकारियों ने बताया कि नियामक अब सभी पांचों एजेंसियों में संभावित प्रणालीगत खामियों की जांच कर रहा है. इसके अलावा नियामक रेटिंग प्रक्रियाओं में जानबूझकर गड़बड़ी करने के लिए कई लोगों की भूमिका की भी जांच कर रहा है.
ग्रांट थॉर्नटन द्वारा किए गए विशेष आडिट में इन्फ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज (आईएलएंडएफएस) के पूर्व प्रमुख कार्यकारियों और रेटिंग एजेंसियों के शीर्ष अधिकारियों के बीच ई-मेल के आदान प्रदान की समीक्षा की है. इस जांच में यह तथ्य सामने आया है कि रेटिंग एजेंसियों के अधिकारियों को गंभीर नकदी चिंताओं और समूह की कमजोर होती वित्तीय स्थिति की जानकारी थी.
विशेष आडिट की अंतरिम रिपोर्ट में कहा गया है कि आईएलएंडएफएस समूह के तत्कालीन महत्वपूर्ण अधिकारियों ने कई तरीकों का इस्तेमाल किया और रेटिंग एजेंसियों के अधिकारियों को उपहार या अन्य लाभ दिए जिससे जून, 2012 से जून, 2018 के दौरान आईएलएंडएफएस समूह को लगातार ऊंची रेटिंग मिलती रही.
रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि कई बार क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों ने रेटिंग को कम करने की तैयारी की लेकिन आईएलएंडएफएस समूह के अधिकरियों ने रेटिंग एजेंसी के अधिकारियों को लाभ-उपहार आदि देकर उन्हें ऐसा करने से रोक दिया.