नई दिल्ली: सरकार यूरिया के लिये पोषण आधारित सब्सिडी दर तय करने पर विचार कर रही है. यह कदम उर्वरकों के संतुलित इस्तेमाल और इस उद्योग में कार्यकुशलता को बढ़ावा देने के लिये उठाया जा रहा है. सूत्रों ने यह जानकारी दी है.
सरकार ने वर्ष 2010 में पोषक तत्वों पर आधारित सब्सिडी (एनबीएस) की शुरुआत की थी. इसके तहत यूरिया को छोड़कर सब्सिडीयुकत फास्फेट और पोटाश (पी एण्ड के) वाले उर्वरकों के प्रत्येक ग्रेड के लिये वार्षिक आधार पर सब्सिडी की राशि तय कर दी जाती है. यह राशि इन उर्वरकों में मौजूदा पोषण तत्वों के आधार पर तय की जाती है.
एक उच्चस्तरीय सूत्र ने बताया, "पी एण्ड के मामले में हमने पहले ही एनबीएस को शुरू कर दिया है लेकिन यूरिया के मामले में इसके क्रियान्वयन की चिंताओं को देखते हुये इस पर अब तक अमल नहीं हो पाया. अब नई सरकार इसे अमल में ला सकती है."
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एक सूत्र ने बताया कि उर्वरक मंत्रालय यूरिया के लिये भी एनबीएस दर तय करने को लेकर विचार कर रहा है. उन्होंने बताया, "इसके तौर तरीकों पर विचार विमर्श चल रहा है." उनका कहना है कि यूरिया के लिये भी एनबीएस दर तय होने से उर्वरक उद्योग में कार्यकुशलता बढ़ाने के साथ ही यूरिया का संतुलित उपयोग भी बढ़ेगा. इसके साथ ही प्रतिस्पर्धा में भी सुधार आयेगा.
वर्तमान में केवल यूरिया ही एकमात्र नियंत्रित उर्वरक है जिसे सांविधिक रूप से अधिसूचित एकसमान दर पर बेचा जाता है. इसका अधिकतम खुदरा बिक्री मूल्य 5,360 रुपये प्रति टन है. यह सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाला उर्वरक है कयोंकि इस पर सबसे ज्यादा सब्सिडी दी जाती है.
सूत्रों का कहना है कि कुछ आशंकाओं के चलते यूरिया के लिये एनबीएस आधारित दरें तय नहीं की गई लेकिन अब अधिकारियों का मानना है इस समस्या को सुलझा लिया जायेगा.
एक आशंका यह भी है कि पी एण्ड के उर्वरकों की तरह यदि यूरिया के दाम भी नियंत्रणमुक्त कर दिये जाते हैं तो यह महंगा हो जायेगा. ऐसे मामले में सरकार का कहना है कि दाम को पूरी तरह नियंत्रणमुक्त नहीं किया जायेगा बल्कि बाजार स्थिति के मुताबिक मूल्य को एक दायरे में रखा जायेगा.
इस मूल्य दायरे को समय समय पर संशोधित किया जाता रहेगा. देश में 2018- 19 में 240 लाख टन यूरिया विनिर्माण किया गया. घरेलू मांग को पूरा करने के लिये इसके ऊपर 69 लाख टन यूरिया का आयात भी किया गया.