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जबर्दस्ती ब्याज माफी ठीक नहीं, इससे बैंकों का वित्तीय जोखिम बढ़ेगा: सुप्रीम कोर्ट से आरबीआई - सुप्रीम कोर्ट से आरबीआई

रिजर्व बैंक ने किस्त भुगतान पर रोक के दौरान ब्याज लगाने को चुनौती देने वाली याचकिा का जवाब देते हुये कहा कि उसका नियामकीय पैकेज, एक स्थगन, रोक की प्रकृति का है, इसे माफी अथवा इससे छूट के तौर पर नहीं माना जाना चाहिये.

जबर्दस्ती ब्याज माफी ठीक नहीं, इससे बैंकों का वित्तीय जोखिम बढ़ेगा: सुप्रीम कोर्ट से आरबीआई
जबर्दस्ती ब्याज माफी ठीक नहीं, इससे बैंकों का वित्तीय जोखिम बढ़ेगा: सुप्रीम कोर्ट से आरबीआई
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Published : Jun 4, 2020, 10:16 AM IST

नई दिल्ली: रिजर्व बैंक ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि कोरोना वायरस महामारी के मद्देनजर वह कर्ज किस्त के भुगतान में राहत के हर संभव उपाय कर रहा है, लेकिन जबर्दस्ती ब्याज माफ करवाना उसे सही निर्णय नहीं लगता है क्योंकि इससे बैंकों की वित्तीय स्थिति बिगड़ सकती है और जिसका खामियाजा बैंक के जमाधारकों को भी भुगतना पड़ सकता है.

रिजर्व बैंक ने किस्त भुगतान पर रोक के दौरान ब्याज लगाने को चुनौती देने वाली याचकिा का जवाब देते हुये कहा कि उसका नियामकीय पैकेज, एक स्थगन, रोक की प्रकृति का है, इसे माफी अथवा इससे छूट के तौर पर नहीं माना जाना चाहिये.

ये भी पढ़ें- भारतीयों और भारतीय व्यवसायों के लिए हर संभव प्रयास करेंगे: अनुराग ठाकुर

रिजर्व बैंक ने कोरोना वायरस लॉकडाउन के कारण आर्थिक गतिविधियों के बंद रहने के दौरान पहले तीन माह और उसके बाद फिर तीन माह और कर्जदारों को उनकी बैंक किस्त के भुगतान से राहत दी है. कर्ज की इन किस्तों का भुगतान 31 अगस्त के बाद किया जा सकेगा. इस दौरान किस्त नहीं चुकाने पर बैंक की तरफ से कोई कार्रवाई नहीं की जायेगी.

रिजर्व बैंक ने उच्चतम न्यायालय में सौंपे हलफनामे में कहा है, "कोरोना वायरस महामारी के प्रसार के बीच वह तमाम क्षेत्रों को राहत पहुंचाने के लिये हर संभव उपाय कर रहा है. लेकिन इसमें जबर्दस्ती बैंकों को ब्याज माफ करने के लिये कहना उसे सूजबूझ वाला कदम नहीं लगता है, क्योंकि इससे बैंकों की वित्तीय वहनीयता के समक्ष जोखिम खड़ा हो सकता है और उसके कारण जमाकर्ताओं के हितों को भी नुकसान पहुंच सकता है."

केन्द्रीय बैंक ने कहा है कि जहां तक उसे बैंकों के नियमन के प्राप्त अधिकार की बात है वह बैंकों में जमाकर्ताओं के हितों की सुरक्षा और वित्तीय स्थिरता बनाये रखने को लेकर है, इसके लिये भी यह जरूरी है कि बैंक वित्तीय तौर पर मजबूत और मुनाफे में हों.

शीर्ष अदालत ने 26 मई को केन्द्र सरकार और रिजर्व बैंक से रोक की अवधि के दौरान ब्याज की वसूली करने के खिलाफ दायर याचिका पर जवाब देने को कहा था. यह याचिका आगरा के निवासी गजेंद्र शर्मा ने दायर की.

(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली: रिजर्व बैंक ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि कोरोना वायरस महामारी के मद्देनजर वह कर्ज किस्त के भुगतान में राहत के हर संभव उपाय कर रहा है, लेकिन जबर्दस्ती ब्याज माफ करवाना उसे सही निर्णय नहीं लगता है क्योंकि इससे बैंकों की वित्तीय स्थिति बिगड़ सकती है और जिसका खामियाजा बैंक के जमाधारकों को भी भुगतना पड़ सकता है.

रिजर्व बैंक ने किस्त भुगतान पर रोक के दौरान ब्याज लगाने को चुनौती देने वाली याचकिा का जवाब देते हुये कहा कि उसका नियामकीय पैकेज, एक स्थगन, रोक की प्रकृति का है, इसे माफी अथवा इससे छूट के तौर पर नहीं माना जाना चाहिये.

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रिजर्व बैंक ने कोरोना वायरस लॉकडाउन के कारण आर्थिक गतिविधियों के बंद रहने के दौरान पहले तीन माह और उसके बाद फिर तीन माह और कर्जदारों को उनकी बैंक किस्त के भुगतान से राहत दी है. कर्ज की इन किस्तों का भुगतान 31 अगस्त के बाद किया जा सकेगा. इस दौरान किस्त नहीं चुकाने पर बैंक की तरफ से कोई कार्रवाई नहीं की जायेगी.

रिजर्व बैंक ने उच्चतम न्यायालय में सौंपे हलफनामे में कहा है, "कोरोना वायरस महामारी के प्रसार के बीच वह तमाम क्षेत्रों को राहत पहुंचाने के लिये हर संभव उपाय कर रहा है. लेकिन इसमें जबर्दस्ती बैंकों को ब्याज माफ करने के लिये कहना उसे सूजबूझ वाला कदम नहीं लगता है, क्योंकि इससे बैंकों की वित्तीय वहनीयता के समक्ष जोखिम खड़ा हो सकता है और उसके कारण जमाकर्ताओं के हितों को भी नुकसान पहुंच सकता है."

केन्द्रीय बैंक ने कहा है कि जहां तक उसे बैंकों के नियमन के प्राप्त अधिकार की बात है वह बैंकों में जमाकर्ताओं के हितों की सुरक्षा और वित्तीय स्थिरता बनाये रखने को लेकर है, इसके लिये भी यह जरूरी है कि बैंक वित्तीय तौर पर मजबूत और मुनाफे में हों.

शीर्ष अदालत ने 26 मई को केन्द्र सरकार और रिजर्व बैंक से रोक की अवधि के दौरान ब्याज की वसूली करने के खिलाफ दायर याचिका पर जवाब देने को कहा था. यह याचिका आगरा के निवासी गजेंद्र शर्मा ने दायर की.

(पीटीआई-भाषा)

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