नई दिल्ली: भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान सौरव गांगुली ने कर अधिकारियों के खिलाफ एक मुकदमा जीता है. अधिकारियों ने 10 साल पहले 1.51 करोड़ रुपए कर की मांग की थी और उस पर 50 लाख रुपए से अधिक का जुर्माना लगाया था. सीमा शुल्क उत्पाद कर और सेवा कर अपीलीय न्यायाधिकरण (सीईएसटीएटी) की कोलकाता पीठ ने विभाग को आदेश दिया कि वह क्रिकेटर को 10 वर्ष से अधिक पुराने 1.51 करोड़ रुपए का सेवा कर और 50 लाख रुपए जुर्माने को ब्याज समेत वापस करे.
सोमवार को पारित आदेश में न्यायाधिकरण ने विभाग को सौरव गांगुली को एक महीने के भीतर पैसे वापस करने और ब्याज का भुगतान करने के लिए कहा है. 2014 में पूर्व क्रिकेटर से वसूले गए कर और जुर्माने पर 10 फीसदी ब्याज की गणना की जाएगी.
दिल्ली स्थित चार्टर्ड अकाउंटेंट और एएमआरजी एंड एसोसिएट्स के वरिष्ठ साझेदार रजत मोहन ने कहा कि विभिन्न अदालतों में लंबित इसी तरह के मामलों के लिए यह एक स्वागत योग्य फैसला है. रजत मोहन ने ईटीवी भारत को बताया कि सेवा कर व्यवस्था में शुल्क वसूली से जुड़े अन्य कलाकारों के मामलों पर इसका असर पड़ेगा. इसी तरह के मामलों के लिए समझाने-बुझाने में इस फैसले की बहुत अधिक अहमियत होगी.
कर विशेषज्ञ ने हालांकि स्पष्ट किया है कि यह फैसला समान सेवाएं देने पर जीएसटी के तहत लागू होगा क्योंकि वे जुलाई 2017 से लागू होने वाले नए कानून के तहत अच्छी तरह से परिभाषित हैं.
जीएसटी और अन्य अप्रत्यक्ष करों पर बहुत अधिक लिखने वाले टैक्स विशेषज्ञ ने कहा कि जीएसटी कानून में जो परिभाषाएं इस्तेमाल की गई हैं वे बहुत विस्तार से हैं. इसलिए इससे जीएसटी के तहत उक्त शुल्क की देनदारी प्रभावित नहीं होगी.
सौरव गांगुली के खिलाफ कर चोरी का मामला है क्या
वर्ष 2009 के नवंबर में कोलकाता के केंद्रीय उत्पाद शुल्क खुफिया महानिदेशालय ने इसकी जांच शुरू की कि कोलकाता नाइट राइडर्स टीम का भी प्रतिनिधित्व करने वाले क्रिकेटर सौरव गांगुली ने अपनी सेवा कर देनदारियों का निर्वहन नहीं किया.
विभाग ने गांगुली को सितंबर 2011 में विभिन्न उत्पादों के प्रचार, विपणन और बिक्री के लिए ब्रांड एंबेसडर के रूप में उनकी सेलिब्रिटी छवि को प्रस्तुत करने के लिए एक ‘कारण बताओ नोटिस’ जारी किया. विभाग ने कहा कि ये सेवाएं व्यावसायिक सहायक सेवाओं के दायरे में आती हैं और मशहूर क्रिकेटर ने उन पर सेवा कर का भुगतान नहीं किया .
कर अधिकारियों ने यह भी कहा कि इन सेवाओं के अलावा, गांगुली को अपने ब्रांड को बढ़ावा देने के लिए आईपीएल फ्रेंचाइजी कोलकाता नाइट राइडर्स से भी पैसा मिला जो कि उनके खेलने के कौशल के लिए मिले धन के अतिरिक्त था और ये सेवाएं वित्त अधिनियम के तहत व्यवसाय सहायता सेवा (बीएसएस) के दायरे में भी आएंगी. विभाग ने गांगुली पर जानकारी को छुपाने और उनके स्तर से दी गई इन दो सेवाओं पर अपनी सेवा कर देनदारियों का निर्वहन नहीं करने का आरोप भी लगाया.
कारण बताओ नोटिस में विभाग ने माना कि हालांकि 2010 से पहले आईपीएल आयोजनों के प्रायोजन पर बहुत हद तक सेवा कर का भुगतान नहीं किया गया था लेकिन आईपीएल प्रायोजन एक खेल आयोजन नहीं था बल्कि फ्रेंचाइजी की एक इकाई थी और इसलिए यह कर के योग्य था. इसलिए प्रायोजक से एक खिलाड़ी या एक टीम को प्राप्त फीस पर कर लगेगा.
कारण बताओ नोटिस में विभाग ने कहा कि गांगुली को वर्ष 2006 से जून 2010 के बीच 13.56 करोड़ रुपए मिले. ब्रांड प्रमोशन के लिए 2.62 करोड़ रुपए, लेख लिखने के लिए 23 लाख रुपए, टेलीविजन कार्यक्रमों में एंकरिंग के लिए 2 करोड़ रुपए और करीब 8.8 करोड़ रुपए क्रिकेट खेलने के लिए फीस के रूप में कोलकाता नाइट राइडर्स से मिले. जिस पर विभाग ने गांगुली को सेवा कर के रूप में 1.51 करोड़ रुपए का भुगतान करने को कहा.
विभाग ने अपने कारण बताओ नोटिस में कहा कि सौरव गांगुली ने सेवा कर के भुगतान से बचने के इरादे से भौतिक तथ्यों को दबाकर, भूल करके और नाकाम रहकर जो उन्हें सेवाकर देना था उस जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं किया. अगस्त 2010 में सेवा कर के तहत पंजीकृत हुए सौरव गांगुली ने 2010 के वित्त अधिनियम में बदलाव किए जाने के बाद जुलाई 2010 से सेवा कर का भुगतान करना शुरू कर दिया था.
सौरव गांगुली ने लगाया धोखाधड़ी का आरोप
अपनी प्रतिक्रिया में गंगुली ने कहा कि एक व्यक्ति के रूप में वह ब्रांड 'सौरव गांगुली' के पूरी तरह से मालिक थे और ब्रांड 'सौरव गांगुली ' को अन्य ब्रांडों के प्रचार के लिए एक सामान के रूप में पेश करने के अलावा कोई व्यवसाय करने या व्यवसायिक सेवा देने के लिए उनकी सक्रिय भूमिका, संस्था या बुनियादी संरचना की भूमिका नहीं थी.
गांगुली ने तर्क दिया कि ब्रांड 'सौरव गांगुली' के मालिक होने के नाते उन्हें किसी भी अन्य मुख्य व्यावसायिक गतिविधि के लिए सहायक व्यावसायिक सेवाएं प्रदान करने के लिए नहीं कहा जा सकता है और कुछ प्राथमिक व्यावसायिक गतिविधि के लिए सहायक सेवा प्रदान करने में एक सीधा जुड़ाव और नियमितता की उचित डिग्री होनी चाहिए.
गांगुली ने अपने बचाव में कोलकाता नाइट राइडर्स को व्यावसायिक सहायता सेवाएं (बीएसएस) देने के आरोप पर भी पलटवार करते हुए कहा कि उन्होंने सिर्फ एक अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी के रूप में आईपीएल फ्रैंचाइज़ी के लिए क्रिकेट खेला था और आईपीएल या केकेआर की ओर से किए गए व्यवसाय से उनका कोई लेना-देना नहीं था. आईपीएल के कारोबार में केकेआर ने सहायता की थी खिलाड़ी सौरव गांगुली ने नहीं.
सीईएसटीएटी ने पूर्व कप्तान को राहत दी
अपने आदेश में, न्यायाधिकरण ने लेख लिखने और टीवी एंकरिंग के बदले मिले पैसे के खिलाफ दो सेवा कर मांगों को अस्वीकार कर दिया क्योंकि वे विभाग की ओर से जारी शुरुआती कारण बताओ नोटिस में शामिल नहीं थे. इसके अलावा न्यायाधिकरण ने यह भी स्पष्ट किया कि ब्रांड संवर्धन (प्रोमोशन) पर सेवा कर 1 जुलाई 2010 से पहले लागू नहीं था. उसी दिन वित्त अधिनियम में धारा 65 (105) (जेडजेडबीबी) को शामिल किया गया था.
ट्रिब्यूनल के सामने मुश्किल सवाल यह था कि क्या सौरव गांगुली की ओर से ब्रांड प्रमोशन की दी गई सेवाएं वित्त अधिनियम की धारा 65 (105) (जेडजेडबीबी) के तहत कर योग्य थीं जो पहले चल रही थीं या वे धारा 65 (105) के तहत कर योग्य बन गईं थीं. 1 जुलाई, 2010 से वित्त अधिनियम का जेडजेडबीबी लागू हुआ.
ट्रिब्यूनल ने माना कि दोनों उप-वर्गों में एक समान शब्द होने के बावजूद एक गतिविधि पहले से मौजूद श्रेणी के तहत यदि बाद में उस गतिविधि को कर के दायरे में लाया गया हो तो सेवा कर लगाने के लिए पात्र नहीं होगी.
उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के कई निर्णयों पर भरोसा करते हुए कर न्यायाधिकरण ने कोलकाता नाइट राइडर्स के लिए क्रिकेट खेलने के लिए गांगुली को मिले फीस पर सेवा कर की मांग को भी खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि अगर कर योग्य सेवाओं से गैर कर योग्य सेवाओं को अलग करने का कोई तंत्र मौजूद नहीं है तो कानून के तहत एक समग्र अनुबंध कर योग्य नहीं है.
न्यायाधिकरण ने क्रिकेटर सौरभ गांगुली की ओर से भौतिक तथ्यों को दबाने के आरोपों पर समय सीमा बढ़ाने को लेकर आयुक्त की आलोचना भी की क्योंकि कारण बताओ नोटिस में आयुक्त ने यह नहीं बताया कि सौरव गांगुली ने कौन सा तथ्य दबाया था.
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