मुंबई: इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च (इंड-रा) का अनुमान है कि छोटी निजी डेयरी कंपनियां कोविड-19 महामारी के चालते पैदा आर्थिक व्यवधानों से गंभीर रूप से प्रभावित होंगी. इनमें से ज्यादातर मिठाई की दुकानों और कस्बों में स्थानीय स्तर पर दूध की आपूर्ति पर निर्भर करने वाली है.
कोविड-19 महामारी के कारण आर्थिक गतिविधियों में आये व्यवधानों तथा होटल, रेस्तरां, बेकरी और मिठाई की दुकानों, थिएटरों और मॉल जैसे गैर-आवश्यक वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों को बंद किये जाने के बावजूद, इंड-रा अनुमान है कि तरल और थैली के दूध, अल्ट्रा-हाई टेंपरेचर दूध तथा मक्खन, पनीर एवं चीज जैसे डेयरी उत्पादों को घरेलू मांग से निरंतर समर्थन मिलता रहेगा. इसने कहा है कि संगठित सहकारिता क्षेत्र एवं निगमित क्षेत्र के डेयरी नेटवर्क बाधित हैं.
हालांकि, सहकारी समितियों के साथ-साथ स्थापित निजी डेयरियों ने अपने नेटवर्क के किसानों से दूध खरीदना जारी रखा है, जो दूध के बच जाने पर उसे स्किम्ड दूध पाउडर, घी और अन्य प्रसंस्कृत उत्पादों में परिवर्तित करते हैं. इंडस्ट्रीज़-रा को उम्मीद है कि वित्त वर्ष 2021 में दूध और दूध उत्पादों की घरेलू खपत बढ़ जाएगी.
मछली पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, लॉकडाऊन के पहले चरण में मार्च 2019 में डेयरी सहकारी समितियों द्वारा दूध की खरीद पहले के 5.1 करोड़ लीटर प्रतिदिन (एमपीएलडी) से बढ़कर 5.6 करोड़ लीटर प्रति दिन (एमपीएलडी) हो गई.
एजेंसी ने अनुमान लगाया है कि वित्त वर्ष 2021 में विनिर्मित डेयरी उत्पादों का उत्पादन 10 प्रतिशत की वार्षिक दर से बढ़कर 2,83,336 करोड़ रुपये का हो जाएगा, जो वित्त वर्ष 2020 में 2,56,589 करोड़ रुपये का रहने का अनुमान है.
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भोजन, अनाज और दालों के बाद भोजन पर होने वाले व्यय में सबसे अधिक हिस्सेदारी दूध और दूध उत्पादों की घरेलू खपत की है, जो वित्तवर्ष 2012-से वित्तवर्ष 2018 के दौरान औसतन 21 प्रतिशत रहा है.
रिपोर्ट के अनुसार तेजी से बढ़ती शहरी आबादी की जरूरतों को पूरा करने के लिए, मांग के अनुरूप दूध का उत्पादन भी बढ़ाने की जरुरत है.
इंड-रा ने वित्तवर्ष 2021 में दूध उत्पादन बढ़कर 20.8 करोड़ टन होने का अनुमान जताया है जो वित्तवर्ष 2021 में 19.8 करोड़ टन था.
सरकार का वित्तवर्ष 2024 तक 30 करोड़ टन दुग्ध उत्पादन करने का लक्ष्य है ताकि डेयरी उत्पादों की बढ़ती मांग को पूरा किया जा सके और डेयरी व्यवसाय को भारत में छोटे और सीमांत किसानों और भूमिहीन श्रमिकों के लिए आजीविका का स्थायी स्रोत बनाया जा सके
(पीटीआई-भाषा)