नई दिल्ली: देश में करोबारी धारणा जून, 2016 से अपने निचले स्तर पर आ गई है. सोमवार को जारी एक सर्वे में कहा गया है कि इसकी वजह यह है कि कंपनियां अर्थव्यवस्था की सुस्ती, सरकारी नीतियों तथा पानी की कमी को लेकर चिंतित हैं.
आईएचएस मार्किट इंडिया व्यापार परिदृश्य में कहा गया है कि गतिविधियां सुस्त रहने से कंपनियां के मुनाफे में गिरावट आ सकती है. कंपनियों में नियुक्तियों पर भी इसका असर पड़ सकता है. कंपनियों का पूंजीगत खर्च भी कम होगा.
सर्वे के अनुसार आगे उत्पादन वृद्धि की संभावना देख रही निजी क्षेत्र की कंपनियों का आंकड़ा फरवरी के 18 प्रतिशत से घटकर जून में 15 प्रतिशत पर आ गया. यह जून, 2016 के और अक्टूबर, 2009 के आंकड़े के बराबर है. सर्वे में कहा गया है कि जून में भारत में कारोबारी धारणा संयुक्त रूप से निचले स्तर पर आ गई. वर्ष 2009 से तुलनात्मक आंकड़े उपलब्ध हैं और कारोबारी धारणा उसके बाद से सबसे निचले स्तर पर है.
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सर्वे में कहा गया है कि पानी की कमी,सार्वजनिक नीतियों तथा कमजोर बिक्री आंकड़ों से कारोबारी धारणा प्रभावित हुई है. कंपनियों को आने वाले समय में रुपये की विनिमय दर गिरने को लेकर भी चिंता है. उनका मानना है कि यदि ऐसा हुआ तो आयातित सामान महंगा होगा. कुशल श्रमिकों की कमी, कर दरें बढ़ने, वित्तीय परेशानियां और ग्राहकों की ओर से रियायतें मांगे जाने पर जोर बढ़ते रहने की वजह से भी धारणा प्रभावित हुई है.
आईएचएस मार्किट की प्रधान अर्थशास्त्री पोलियाना डे लीमा ने कहा कि उभरते बाजारों में यह देखा गया है कि जून में कारोबारी धारणा कमजोर रही है. आर्थिक वृद्धि की निरंतरता को लेकर चिंतायें बढ़ने, पानी को लेकर बढ़ती चिंता, सार्वजनिक नीतियों और नियमन को लेकर धारणा में कमी रही है.
हालांकि सरकार की कारोबार के अनुकूल नीतियों और बेहतर वित्तीय प्रवाह जारी रहने को लेकर वर्ष के दौरान आने वाले समय में उत्पादन और मुनाफा बढ़ने की उम्मीद कहीं न कहीं बनी हुई है.