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भारतीय कॉफी की पांच किस्‍मों को मिला जीआई टैग - Coffee production in India

भारत में 3.66 लाख कॉफी किसानों द्वारा तकरीबन 4.54 लाख हेक्‍टेयर क्षेत्र में कॉफी उगायी जाती है. इनमें से 98 प्रतिशत छोटे किसान हैं. कॉफी की खेती मुख्‍यत: भारत के दक्षिणी राज्‍यों में की जाती है.

भारतीय कॉफी की पांच किस्‍मों को मिला जीआई टैग
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Published : Mar 29, 2019, 11:55 PM IST

नई दिल्ली: भारत सरकार के वाणिज्‍य एवं उद्योग मंत्रालय के उद्योग एवं आंतरिक व्‍यापार संवर्धन विभाग ने हाल ही में भारतीय कॉफी की पांच किस्‍मों को भौगोलिक संकेतक (जीआई) प्रदान किया है. जीआई प्रमाणन से जो विशिष्‍ट मान्‍यता एवं संरक्षण मिलता है उससे भारत के कॉफी उत्‍पादक विशिष्‍ट क्षेत्रों में उगायी जाने वाली कॉफी की अनूठी खूबियों को बनाये रखने में आवश्‍यक खर्च करने के लिए प्रोत्‍साहित होंगे.

यही नहीं, इससे विश्‍व भर में भारतीय कॉफी की मौजूदगी भी बढ़ जायेगी और इसके साथ ही देश के कॉफी उत्‍पादकों को अपनी प्रीमियम कॉफी की अधिकतम कीमत प्राप्‍त करने में भी मदद मिलेगी.

ये भी पढ़ें-आज से शुरू होगी भारत, बांग्लादेश के बीच लक्जरी क्रूज यात्रा

ये किस्‍में निम्‍नलिखित हैं :

कूर्ग अराबिका कॉफी – यह मुख्‍यत: कर्नाटक के कोडागू जिले में उगायी जाती है.

वायानाड रोबस्‍टा कॉफी – यह मुख्‍यत: वायानाड जिले में उगायी जाती है जो केरल के पूर्वी हिस्‍से में अवस्थित है.

चिकमगलूर अराबिका कॉफी – यह विशेष रूप से चिकमगलूर जिले में उगायी जाती है. यह दक्‍कन के पठार में अवस्थित है जो कर्नाटक के मलनाड क्षेत्र से वास्‍ता रखता है.

अराकू वैली अराबिका कॉफी – इसे आंध्र प्रदेश के विशाखापत्‍तनम जिले और ओडिशा क्षेत्र की पहाडि़यों से प्राप्‍त कॉफी के रूप में वर्णित किया जाता है जो 900-1100 माउंट एमएसएल की ऊंचाई पर अवस्थित है. जनजातियों द्वारा तैयार की जाने वाली अराकू कॉफी के लिए जैव अवधारणा अपनायी जाती है जिसके तहत जैविक खाद एवं हरित खाद का व्‍यापक उपयोग किया जाता है और जैव कीटनाशक प्रबंधन से जुड़े तौर-तरीके अपनाये जाते हैं.

बाबाबुदनगिरीज अराबिका कॉफी – यह भारत में कॉफी के उद्गम स्‍थल में उगायी जाती है और यह क्षेत्र चिकमंगलूर जिले के मध्‍य क्षेत्र में अवस्थित है. इसे हाथ से चुना जाता है और प्राकृतिक किण्वन द्वारा संसाधित किया जाता है. इसमें चॉकलेट सहित विशिष्‍ट फ्लैवर होता है. कॉफी की यह किस्‍म सुहावना मौसम में तैयार होती है. यही कारण है कि इसमें विशेष स्‍वाद और खुशबू होती है.

इससे पहले भारत की एक अनोखी विशिष्‍ट कॉफी 'मानसूनी मालाबार रोबस्टा कॉफी' को जीआई प्रमाणन दिया गया था.

भारत में कॉफी का उत्पादन
भारत में 3.66 लाख कॉफी किसानों द्वारा तकरीबन 4.54 लाख हेक्‍टेयर क्षेत्र में कॉफी उगायी जाती है. इनमें से 98 प्रतिशत छोटे किसान हैं. कॉफी की खेती मुख्‍यत: भारत के दक्षिणी राज्‍यों में की जाती है.

  • कर्नाटक – 54 प्रतिशत
  • केरल- 19 प्रतिशत
  • तमिलनाडु – 8 प्रतिशत
  • आंध्र प्रदेश एवं ओडिशा – 17.2 प्रतिशत
  • पूर्वोत्‍तर राज्‍यों – 1.8 प्रतिशत
    भारतीय कॉफी की पांच किस्‍मों को मिला जीआई टैग
    भारत में कॉफी का उत्पादन

भारत पूरी दुनिया में एकमात्र ऐसा देश है जहां कॉफी की समूची खेती छाया वाले माहौल में की जाती है, इसे हाथ से चुना जाता है और फिर धूप में सुखाया जाता है. दुनिया में कॉफी की कुछ सर्वोत्‍तम किस्‍में भारत में ही उगायी जाती हैं, इन्‍हें पश्चिमी एवं पूर्वी घाटों के जनजातीय किसानों द्वारा उगाया जाता है, जो विश्‍व में जैव विविधता वाले दो प्रमुख स्‍थल (हॉट स्‍पॉट) हैं. भारतीय कॉफी विश्‍व बाजार में अत्‍यंत ऊंची कीमतों पर बेची जाती है. यूरोप में तो इसकी बिक्री प्रीमियम कॉफी के रूप में होती है.

जीआई टैग क्या है?
सरल शब्दों में समझें तो जीआई टैग या भौगोलिक संकेत एक प्रकार का मुहर है जो किसी भी उत्पाद के लिए प्रदान किया जाता है. इस मुहर के प्राप्त होने के जाने के बाद पूरी दुनिया में उस उत्पाद को महत्व प्राप्त हो जाता है साथ ही उस क्षेत्र को सामूहिक रूप से इसके उत्पादन का एकाधिकार प्राप्त हो जाता है. लेकिन इसके लिए शर्त है की उस उत्पाद का उत्पादन या प्रोसेसिंग उसी क्षेत्र में होना चाहिए जहां के लिए जीआई टैग (GI Tag) लिया जाना है.

संरक्षित भौगोलिक संकेत का उपयोग कौन कर सकता है?
संरक्षित भौगोलिक संकेत का उपयोग करने का अधिकार परिभाषित भौगोलिक क्षेत्र के उत्पादकों का है, जो उत्पाद के लिए उत्पादन की विशिष्ट परिस्थितियों का अनुपालन करते हैं.

कॉफी उत्पादकों की कैसे मदद करेगा जीआई टैग ?
आइए हम अराकू कॉफी उत्पादकों का उदाहरण लें. जीआई पंजीकरण के साथ, अब अराकु कॉफी निर्माता अपने कॉफी बागानों में उगाए गए कॉफी के लिए "अराकू वैली अरेबिका" शब्द के उपयोग को बाहर नहीं कर सकते हैं.

जीआई प्रमाणन के साथ आने वाली मान्यता और संरक्षण भारत के कॉफी उत्पादकों को उस विशेष क्षेत्र में विकसित कॉफी के विशिष्ट गुणों को बनाए रखने में निवेश करने की अनुमति देगा. यह दुनिया में भारतीय कॉफी की दृश्यता को भी बढ़ाएगा और उत्पादकों को अपनी प्रीमियम कॉफी के लिए अधिकतम मूल्य प्राप्त करने की अनुमति देगा.

नई दिल्ली: भारत सरकार के वाणिज्‍य एवं उद्योग मंत्रालय के उद्योग एवं आंतरिक व्‍यापार संवर्धन विभाग ने हाल ही में भारतीय कॉफी की पांच किस्‍मों को भौगोलिक संकेतक (जीआई) प्रदान किया है. जीआई प्रमाणन से जो विशिष्‍ट मान्‍यता एवं संरक्षण मिलता है उससे भारत के कॉफी उत्‍पादक विशिष्‍ट क्षेत्रों में उगायी जाने वाली कॉफी की अनूठी खूबियों को बनाये रखने में आवश्‍यक खर्च करने के लिए प्रोत्‍साहित होंगे.

यही नहीं, इससे विश्‍व भर में भारतीय कॉफी की मौजूदगी भी बढ़ जायेगी और इसके साथ ही देश के कॉफी उत्‍पादकों को अपनी प्रीमियम कॉफी की अधिकतम कीमत प्राप्‍त करने में भी मदद मिलेगी.

ये भी पढ़ें-आज से शुरू होगी भारत, बांग्लादेश के बीच लक्जरी क्रूज यात्रा

ये किस्‍में निम्‍नलिखित हैं :

कूर्ग अराबिका कॉफी – यह मुख्‍यत: कर्नाटक के कोडागू जिले में उगायी जाती है.

वायानाड रोबस्‍टा कॉफी – यह मुख्‍यत: वायानाड जिले में उगायी जाती है जो केरल के पूर्वी हिस्‍से में अवस्थित है.

चिकमगलूर अराबिका कॉफी – यह विशेष रूप से चिकमगलूर जिले में उगायी जाती है. यह दक्‍कन के पठार में अवस्थित है जो कर्नाटक के मलनाड क्षेत्र से वास्‍ता रखता है.

अराकू वैली अराबिका कॉफी – इसे आंध्र प्रदेश के विशाखापत्‍तनम जिले और ओडिशा क्षेत्र की पहाडि़यों से प्राप्‍त कॉफी के रूप में वर्णित किया जाता है जो 900-1100 माउंट एमएसएल की ऊंचाई पर अवस्थित है. जनजातियों द्वारा तैयार की जाने वाली अराकू कॉफी के लिए जैव अवधारणा अपनायी जाती है जिसके तहत जैविक खाद एवं हरित खाद का व्‍यापक उपयोग किया जाता है और जैव कीटनाशक प्रबंधन से जुड़े तौर-तरीके अपनाये जाते हैं.

बाबाबुदनगिरीज अराबिका कॉफी – यह भारत में कॉफी के उद्गम स्‍थल में उगायी जाती है और यह क्षेत्र चिकमंगलूर जिले के मध्‍य क्षेत्र में अवस्थित है. इसे हाथ से चुना जाता है और प्राकृतिक किण्वन द्वारा संसाधित किया जाता है. इसमें चॉकलेट सहित विशिष्‍ट फ्लैवर होता है. कॉफी की यह किस्‍म सुहावना मौसम में तैयार होती है. यही कारण है कि इसमें विशेष स्‍वाद और खुशबू होती है.

इससे पहले भारत की एक अनोखी विशिष्‍ट कॉफी 'मानसूनी मालाबार रोबस्टा कॉफी' को जीआई प्रमाणन दिया गया था.

भारत में कॉफी का उत्पादन
भारत में 3.66 लाख कॉफी किसानों द्वारा तकरीबन 4.54 लाख हेक्‍टेयर क्षेत्र में कॉफी उगायी जाती है. इनमें से 98 प्रतिशत छोटे किसान हैं. कॉफी की खेती मुख्‍यत: भारत के दक्षिणी राज्‍यों में की जाती है.

  • कर्नाटक – 54 प्रतिशत
  • केरल- 19 प्रतिशत
  • तमिलनाडु – 8 प्रतिशत
  • आंध्र प्रदेश एवं ओडिशा – 17.2 प्रतिशत
  • पूर्वोत्‍तर राज्‍यों – 1.8 प्रतिशत
    भारतीय कॉफी की पांच किस्‍मों को मिला जीआई टैग
    भारत में कॉफी का उत्पादन

भारत पूरी दुनिया में एकमात्र ऐसा देश है जहां कॉफी की समूची खेती छाया वाले माहौल में की जाती है, इसे हाथ से चुना जाता है और फिर धूप में सुखाया जाता है. दुनिया में कॉफी की कुछ सर्वोत्‍तम किस्‍में भारत में ही उगायी जाती हैं, इन्‍हें पश्चिमी एवं पूर्वी घाटों के जनजातीय किसानों द्वारा उगाया जाता है, जो विश्‍व में जैव विविधता वाले दो प्रमुख स्‍थल (हॉट स्‍पॉट) हैं. भारतीय कॉफी विश्‍व बाजार में अत्‍यंत ऊंची कीमतों पर बेची जाती है. यूरोप में तो इसकी बिक्री प्रीमियम कॉफी के रूप में होती है.

जीआई टैग क्या है?
सरल शब्दों में समझें तो जीआई टैग या भौगोलिक संकेत एक प्रकार का मुहर है जो किसी भी उत्पाद के लिए प्रदान किया जाता है. इस मुहर के प्राप्त होने के जाने के बाद पूरी दुनिया में उस उत्पाद को महत्व प्राप्त हो जाता है साथ ही उस क्षेत्र को सामूहिक रूप से इसके उत्पादन का एकाधिकार प्राप्त हो जाता है. लेकिन इसके लिए शर्त है की उस उत्पाद का उत्पादन या प्रोसेसिंग उसी क्षेत्र में होना चाहिए जहां के लिए जीआई टैग (GI Tag) लिया जाना है.

संरक्षित भौगोलिक संकेत का उपयोग कौन कर सकता है?
संरक्षित भौगोलिक संकेत का उपयोग करने का अधिकार परिभाषित भौगोलिक क्षेत्र के उत्पादकों का है, जो उत्पाद के लिए उत्पादन की विशिष्ट परिस्थितियों का अनुपालन करते हैं.

कॉफी उत्पादकों की कैसे मदद करेगा जीआई टैग ?
आइए हम अराकू कॉफी उत्पादकों का उदाहरण लें. जीआई पंजीकरण के साथ, अब अराकु कॉफी निर्माता अपने कॉफी बागानों में उगाए गए कॉफी के लिए "अराकू वैली अरेबिका" शब्द के उपयोग को बाहर नहीं कर सकते हैं.

जीआई प्रमाणन के साथ आने वाली मान्यता और संरक्षण भारत के कॉफी उत्पादकों को उस विशेष क्षेत्र में विकसित कॉफी के विशिष्ट गुणों को बनाए रखने में निवेश करने की अनुमति देगा. यह दुनिया में भारतीय कॉफी की दृश्यता को भी बढ़ाएगा और उत्पादकों को अपनी प्रीमियम कॉफी के लिए अधिकतम मूल्य प्राप्त करने की अनुमति देगा.

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भारतीय कॉफी की पांच किस्‍मों को मिला जीआई टैग

नई दिल्ली: भारत सरकार के वाणिज्‍य एवं उद्योग मंत्रालय के उद्योग एवं आंतरिक व्‍यापार संवर्धन विभाग ने हाल ही में भारतीय कॉफी की पांच किस्‍मों को भौगोलिक संकेतक (जीआई) प्रदान किया है. जीआई प्रमाणन से जो विशिष्‍ट मान्‍यता एवं संरक्षण मिलता है उससे भारत के कॉफी उत्‍पादक विशिष्‍ट क्षेत्रों में उगायी जाने वाली कॉफी की अनूठी खूबियों को बनाये रखने में आवश्‍यक खर्च करने के लिए प्रोत्‍साहित होंगे. 



यही नहीं, इससे विश्‍व भर में भारतीय कॉफी की मौजूदगी भी बढ़ जायेगी और इसके साथ ही देश के कॉफी उत्‍पादकों को अपनी प्रीमियम कॉफी की अधिकतम कीमत प्राप्‍त करने में भी मदद मिलेगी.

ये किस्‍में निम्‍नलिखित हैं :

कूर्ग अराबिका कॉफी – यह मुख्‍यत: कर्नाटक के कोडागू जिले में उगायी जाती है.

वायानाड रोबस्‍टा कॉफी – यह मुख्‍यत: वायानाड जिले में उगायी जाती है जो केरल के पूर्वी हिस्‍से में अवस्थित है.

चिकमगलूर अराबिका कॉफी – यह विशेष रूप से चिकमगलूर जिले में उगायी जाती है. यह दक्‍कन के पठार में अवस्थित है जो कर्नाटक के मलनाड क्षेत्र से वास्‍ता रखता है.

अराकू वैली अराबिका कॉफी – इसे आंध्र प्रदेश के विशाखापत्‍तनम जिले और ओडिशा क्षेत्र की पहाडि़यों से प्राप्‍त कॉफी के रूप में वर्णित किया जाता है जो 900-1100 माउंट एमएसएल की ऊंचाई पर अवस्थित है. जनजातियों द्वारा तैयार की जाने वाली अराकू कॉफी के लिए जैव अवधारणा अपनायी जाती है जिसके तहत जैविक खाद एवं हरित खाद का व्‍यापक उपयोग किया जाता है और जैव कीटनाशक प्रबंधन से जुड़े तौर-तरीके अपनाये जाते हैं.

बाबाबुदनगिरीज अराबिका कॉफी – यह भारत में कॉफी के उद्गम स्‍थल में उगायी जाती है और यह क्षेत्र चिकमंगलूर जिले के मध्‍य क्षेत्र में अवस्थित है. इसे हाथ से चुना जाता है और प्राकृतिक किण्वन द्वारा संसाधित किया जाता है. इसमें चॉकलेट सहित विशिष्‍ट फ्लैवर होता है. कॉफी की यह किस्‍म सुहावना मौसम में तैयार होती है. यही कारण है कि इसमें विशेष स्‍वाद और खुशबू होती है.



इससे पहले भारत की एक अनोखी विशिष्‍ट कॉफी 'मानसूनी मालाबार रोबस्टा कॉफी' को जीआई प्रमाणन दिया गया था.



 

भारत में कॉफी का उत्पादन

भारत में 3.66 लाख कॉफी किसानों द्वारा तकरीबन 4.54 लाख हेक्‍टेयर क्षेत्र में कॉफी उगायी जाती है. इनमें से 98 प्रतिशत छोटे किसान हैं. कॉफी की खेती मुख्‍यत: भारत के दक्षिणी राज्‍यों में की जाती है:

कर्नाटक – 54 प्रतिशत

केरल- 19 प्रतिशत

तमिलनाडु – 8 प्रतिशत

आंध्र प्रदेश एवं ओडिशा – 17.2 प्रतिशत 

पूर्वोत्‍तर राज्‍यों – 1.8 प्रतिशत 



भारत पूरी दुनिया में एकमात्र ऐसा देश है जहां कॉफी की समूची खेती छाया वाले माहौल में की जाती है, इसे हाथ से चुना जाता है और फिर धूप में सुखाया जाता है. दुनिया में कॉफी की कुछ सर्वोत्‍तम किस्‍में भारत में ही उगायी जाती हैं, इन्‍हें पश्चिमी एवं पूर्वी घाटों के जनजातीय किसानों द्वारा उगाया जाता है, जो विश्‍व में जैव विविधता वाले दो प्रमुख स्‍थल (हॉट स्‍पॉट) हैं. भारतीय कॉफी विश्‍व बाजार में अत्‍यंत ऊंची कीमतों पर बेची जाती है. यूरोप में तो इसकी बिक्री प्रीमियम कॉफी के रूप में होती है.





जीआई टैग क्या है?

सरल शब्दों में समझें तो जीआई टैग या भौगोलिक संकेत एक प्रकार का मुहर है जो किसी भी उत्पाद के लिए प्रदान किया जाता है. इस मुहर के प्राप्त होने के जाने के बाद पूरी दुनिया में उस उत्पाद को महत्व प्राप्त हो जाता है साथ ही उस क्षेत्र को सामूहिक रूप से इसके उत्पादन का एकाधिकार प्राप्त हो जाता है. लेकिन इसके लिए शर्त है की उस उत्पाद का उत्पादन या प्रोसेसिंग उसी क्षेत्र में होना चाहिए जहां के लिए जीआई टैग (GI Tag) लिया जाना है.



संरक्षित भौगोलिक संकेत का उपयोग कौन कर सकता है?

संरक्षित भौगोलिक संकेत का उपयोग करने का अधिकार परिभाषित भौगोलिक क्षेत्र के उत्पादकों का है, जो उत्पाद के लिए उत्पादन की विशिष्ट परिस्थितियों का अनुपालन करते हैं.



कॉफी उत्पादकों की कैसे मदद करेगा जीआई टैग ?

आइए हम अराकू कॉफी उत्पादकों का उदाहरण लें. जीआई पंजीकरण के साथ, अब अराकु कॉफी निर्माता अपने कॉफी बागानों में उगाए गए कॉफी के लिए "अराकू वैली अरेबिका" शब्द के उपयोग को बाहर नहीं कर सकते हैं.

जीआई प्रमाणन के साथ आने वाली मान्यता और संरक्षण भारत के कॉफी उत्पादकों को उस विशेष क्षेत्र में विकसित कॉफी के विशिष्ट गुणों को बनाए रखने में निवेश करने की अनुमति देगा. यह दुनिया में भारतीय कॉफी की दृश्यता को भी बढ़ाएगा और उत्पादकों को अपनी प्रीमियम कॉफी के लिए अधिकतम मूल्य प्राप्त करने की अनुमति देगा.


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