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गर्भपात की समय सीमा बढ़ाने पर HC ने मांगा जवाब, डॉक्टर से समझिए पूरा मामला

गर्भपात कराने की समय सीमा बढ़ाए जाने की मांग को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट ने महिला आयोग और केंद्र सरकार को नोटिस देकर जवाब मांगा है. इस पूरे मामले पर ईटीवी भारत ने गाइनोकोलॉजिस्ट डॉ. शिवानी गौर से की खास बातचीत.

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Published : May 30, 2019, 2:00 PM IST

गाइनोकोलॉजिस्ट डॉ. शिवानी गौर

नई दिल्ली: देश में महिलाओं के लिए गर्भपात कराने की समय सीमा बढ़ाए जाने की मांग लगातार की जा रही है. इस पर हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट ने महिला आयोग और केंद्र सरकार को नोटिस देकर जवाब मांगा है.

हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी जिसमें कहा गया था कि यदि महिला के गर्भ में पल रहे बच्चे के स्वास्थ्य को कोई खतरा है तो ऐसी स्थिति में उसे गर्भपात की अनुमति दी जानी चाहिए.

जबकि कानूनन कोई भी महिला 20 हफ्ते के अंदर अस्पताल से घर पर आ सकती है. जिसे बढ़ाकर 24 या 26 हफ्ते किए जाने की मांग की जा रही है.

ईटीवी भारत ने की खास बातचीत


इस पूरे मामले पर ईटीवी भारत ने डॉ. शिवानी गौर से की खास बातचीत की.

'बीमारियों के साथ जन्म लेता है बच्चा'
डॉ. शिवानी गौर ने बताया की समय सीमा बढ़ाई जाना इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि किसी भी गर्भ में पल रहे बच्चे की बीमारी का पता 12 से 20 हफ्ते की मैच्योरिटी के बाद ही चलता है.

यदि उसके बाद उसका गर्भपात नहीं कराया जाता तो ऐसे में बच्चा अस्वस्थ पैदा होता है या फिर कई बीमारियों के साथ उसका जन्म होता है. शिवानी गौर ने कहा कि कई बार मां के स्वास्थ्य के लिए भी खतरा होता है लेकिन वह गर्भपात नहीं कराने की स्थिति में अपनी जान जोखिम में डाल देती है.

'MTP एक्ट में बदलाव की जरूरत'
मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ़ प्रेग्नेंसी एक्ट 1971 के मुताबिक कोई भी महिला 20 हफ्ते के भीतर गर्भपात करा सकती है. आज के समय में इस चीज को बदले जाने की आवश्यकता इसलिए है क्योंकि समय बदल चुका है. टेक्नोलॉजी बदल चुकी है.

पहले के समय में यदि 20 हफ्ते के बाद गर्भपात किया जाता था तो महिला की जान को खतरा होता था लेकिन आज के समय में टेक्नोलॉजी बदल गई है. आधुनिक चीजें आ गई है जिससे कि महिला की जान को कोई खतरा नहीं है.

'गलत अबॉर्शन से महिलाओं की जान को खतरा'
डॉ. शिवानी गौर ने बताया वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन के मुताबिक हर साल भारत में 15 मिलियन अबॉर्शन होते हैं. जिसमें से 11 मिलियन अबॉर्शन गैर-कानूनी और अनरजिस्टर डॉक्टर द्वारा किए जाते हैं.

जिसमें कि अधिकतर महिलाओं की जान को खतरा होता है, और इससे कई महिलाओं की जान भी चली जाती है

इसलिए जरूरी है कि महिलाओं में जागरूकता हो और सरकार की तरफ से भी ऐसा प्रावधान किया जाए कि कोई भी महिला चाहे वह विवाहित हो या अविवाहित किसी महिला को भी गर्भपात कराए जाने के लिए किसी भी तरीके के कानून का सामना ना करना पड़े.

'सही समय पर ही प्रेग्नेंसी महिला का अधिकार'
डॉ. शिवानी ने बताया की हर एक महिला का यह अधिकार है कि वह जब किसी बच्चे के लिए हर तरीके से तैयार हो तभी उसे बच्चे को जन्म देने का अधिकार मिलना चाहिए ना की किसी दवाब में आकर.

भारत में आज भी कई ऐसी महिलाएं हैं जो इस चीज को लेकर जागरूक नहीं है और बच्चे में कोई खराबी होने पर वह उसे जन्म दे देती हैं. फिर वह बच्चा विकलांग या अपंग जन्म ले लेता है जिसके बाद उसका पूरा जीवन खराब होता है.

नई दिल्ली: देश में महिलाओं के लिए गर्भपात कराने की समय सीमा बढ़ाए जाने की मांग लगातार की जा रही है. इस पर हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट ने महिला आयोग और केंद्र सरकार को नोटिस देकर जवाब मांगा है.

हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी जिसमें कहा गया था कि यदि महिला के गर्भ में पल रहे बच्चे के स्वास्थ्य को कोई खतरा है तो ऐसी स्थिति में उसे गर्भपात की अनुमति दी जानी चाहिए.

जबकि कानूनन कोई भी महिला 20 हफ्ते के अंदर अस्पताल से घर पर आ सकती है. जिसे बढ़ाकर 24 या 26 हफ्ते किए जाने की मांग की जा रही है.

ईटीवी भारत ने की खास बातचीत


इस पूरे मामले पर ईटीवी भारत ने डॉ. शिवानी गौर से की खास बातचीत की.

'बीमारियों के साथ जन्म लेता है बच्चा'
डॉ. शिवानी गौर ने बताया की समय सीमा बढ़ाई जाना इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि किसी भी गर्भ में पल रहे बच्चे की बीमारी का पता 12 से 20 हफ्ते की मैच्योरिटी के बाद ही चलता है.

यदि उसके बाद उसका गर्भपात नहीं कराया जाता तो ऐसे में बच्चा अस्वस्थ पैदा होता है या फिर कई बीमारियों के साथ उसका जन्म होता है. शिवानी गौर ने कहा कि कई बार मां के स्वास्थ्य के लिए भी खतरा होता है लेकिन वह गर्भपात नहीं कराने की स्थिति में अपनी जान जोखिम में डाल देती है.

'MTP एक्ट में बदलाव की जरूरत'
मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ़ प्रेग्नेंसी एक्ट 1971 के मुताबिक कोई भी महिला 20 हफ्ते के भीतर गर्भपात करा सकती है. आज के समय में इस चीज को बदले जाने की आवश्यकता इसलिए है क्योंकि समय बदल चुका है. टेक्नोलॉजी बदल चुकी है.

पहले के समय में यदि 20 हफ्ते के बाद गर्भपात किया जाता था तो महिला की जान को खतरा होता था लेकिन आज के समय में टेक्नोलॉजी बदल गई है. आधुनिक चीजें आ गई है जिससे कि महिला की जान को कोई खतरा नहीं है.

'गलत अबॉर्शन से महिलाओं की जान को खतरा'
डॉ. शिवानी गौर ने बताया वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन के मुताबिक हर साल भारत में 15 मिलियन अबॉर्शन होते हैं. जिसमें से 11 मिलियन अबॉर्शन गैर-कानूनी और अनरजिस्टर डॉक्टर द्वारा किए जाते हैं.

जिसमें कि अधिकतर महिलाओं की जान को खतरा होता है, और इससे कई महिलाओं की जान भी चली जाती है

इसलिए जरूरी है कि महिलाओं में जागरूकता हो और सरकार की तरफ से भी ऐसा प्रावधान किया जाए कि कोई भी महिला चाहे वह विवाहित हो या अविवाहित किसी महिला को भी गर्भपात कराए जाने के लिए किसी भी तरीके के कानून का सामना ना करना पड़े.

'सही समय पर ही प्रेग्नेंसी महिला का अधिकार'
डॉ. शिवानी ने बताया की हर एक महिला का यह अधिकार है कि वह जब किसी बच्चे के लिए हर तरीके से तैयार हो तभी उसे बच्चे को जन्म देने का अधिकार मिलना चाहिए ना की किसी दवाब में आकर.

भारत में आज भी कई ऐसी महिलाएं हैं जो इस चीज को लेकर जागरूक नहीं है और बच्चे में कोई खराबी होने पर वह उसे जन्म दे देती हैं. फिर वह बच्चा विकलांग या अपंग जन्म ले लेता है जिसके बाद उसका पूरा जीवन खराब होता है.

Intro:देश में महिलाओं के लिए गर्भपात कराने की समय सीमा बढ़ाए जाने की मांग लगातार की जा रही है इस पर हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट ने महिला आयोग और केंद्र सरकार को नोटिस देकर जवाब मांगा, दरअसल हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी जिसमें कहा गया था कि यदि महिला के गर्भ में पल रहे बच्चे के स्वास्थ्य को कोई खतरा है तो ऐसी स्थिति में उसे गर्भपात की अनुमति दी जानी चाहिए. जबकि कानूनन कोई भी महिला 20 हफ्ते के अंदर घर पर आ सकती है जिसे बढ़ाकर 24 या 26 हफ्ते किए जाने की मांग की जा रही है.


Body:20 हफ्तों बाद ही पता चलता है बीमारी का पता
इस पर विशेषज्ञों का कहना है कि गर्भ में पल रहे बच्चे की किसी बीमारी के बारे में 12 से 20 हफ्ते के बाद ही पता चलता है ऐसी स्थिति में बच्चा और स्वस्थ पैदा हो जाता है, वही इस पर आखिरकार क्या है असल वजह और क्यों 20 से बढ़ाकर 24 से 26 हफ्ते किए जाने की मांग लगातार की जा रही है इस पर हमने डॉक्टर शिवानी गौर से बात की जिन्होंने हमें बताया की जो मांग है बहुत जरूरी है और बिल्कुल जायज मांग है

एमटीपी एक्ट में बदलाव की जरूरत
क्योंकि मेडिकल टर्मिनेशन आफ प्रेगनेंसी एक्ट 1971 के मुताबिक कोई भी महिला 20 हफ्ते के भीतर गर्भपात करा सकती है लेकिन आज के समय में इस चीज को बदले जाने की आवश्यकता इसलिए है क्योंकि समय बदल चुका है टेक्नोलॉजी बदल चुकी है पहले के समय में यदि 20 हफ्ते के बाद गर्भपात किया जाता था तो महिला की जान को खतरा होता था लेकिन आज के समय में और टेक्नोलॉजी बदल गई है आधुनिक चीजें आ गई है जिससे कि महिला की जान को कोई खतरा नहीं है

बीमारियों के साथ जन्म ले लेता है बच्चा
डॉ शिवानी गौर ने बताया की समय सीमा बढ़ाई जाना इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि किसी भी गर्भ में पल रहे बच्चे की बीमारी का पता 12 से 20 हफ्ते की मैच्योरिटी के के बाद ही पता चलता है और यदि उसके बाद उसका गर्भपात नहीं कराया जाता तो ऐसे में बच्चा और स्वस्थ पैदा होता है या फिर कई बीमारियों के साथ उसका जन्म होता है जिससे कि वह आने वाले जीवन में कई मुश्किलों का सामना करता है शिवानी गौर ने कहा कि कई बार मां के स्वास्थ्य के लिए भी खतरा होता है लेकिन वह गर्भपात नहीं कराने की स्थिति में अपनी जान जोखिम में डाल देती है

11 मिलियन महिलाएं कराती हैं गलत अबॉर्शन
अवैध अस्पतालों और डॉक्टरों द्वारा किया जाता है गर्भपात
डॉ शिवानी कौर ने बताया वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन के मुताबिक हर साल भारत में 15 मिलीयन अबॉर्शन होते हैं जिसमें से 11 मिलीयन अबॉर्शन अनऑथराइज्ड और अनरजिस्टर डॉक्टर द्वारा किए जाते हैं जिसमें की अधिकतर महिलाओं की जान को खतरा होता है और इससे कई महिलाओं की जान भी चली जाती है

गलत अबॉर्शन से महिलाओं की जान को होता है खतरा
डॉ शिवानी ने बताया कि कई बार महिलाओं को इसके बारे में जानकारी नहीं होती और वह नहीं जान पाती कि वह कब गर्भवती हुई और कई बार सर के चलते या किसी कारण से वह इस चीज को छुपाती हैं जिसके चलते उनके गर्भ में पल रहे बच्चे को भी कई बीमारियां हो जाती हैं और उनकी जान को भी खतरा होता है इसलिए जरूरी है किसके लिए महिलाओं में जागरूकता हो और सरकार की तरफ से भी ऐसा प्रावधान किया जाए कि कोई भी महिला चाहे वह विवाहिता हो या अविवाहित आ उसको भी गर्भपात कराए जाने के लिए कई तरीके के कानून का सामना ना करना पड़े


Conclusion:सही समय पर ही प्रेगनेंसी महिला का अधिकार
डॉ शिवानी ने बताया की हर एक महिला का यह अधिकार है कि वह जब किसी बच्चे के लिए हर तरीके से तैयार है तभी उसे बच्चे को जन्म देने का अधिकार मिलना चाहिए ना की किसी दवाब में आकर क्योंकि भारत में आज भी कई ऐसी महिलाएं हैं जो इस चीज को लेकर जागरूक नहीं है और बच्चे में कोई खराबी होने पर वह उसे जन्म दे देती हैं और फिर वह बच्चा विकलांग या अपंग जन्म ले लेता है जिसके बाद उसका पूरा जीवन खराब होता है
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