नई दिल्ली: देश में महिलाओं के लिए गर्भपात कराने की समय सीमा बढ़ाए जाने की मांग लगातार की जा रही है. इस पर हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट ने महिला आयोग और केंद्र सरकार को नोटिस देकर जवाब मांगा है.
हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी जिसमें कहा गया था कि यदि महिला के गर्भ में पल रहे बच्चे के स्वास्थ्य को कोई खतरा है तो ऐसी स्थिति में उसे गर्भपात की अनुमति दी जानी चाहिए.
जबकि कानूनन कोई भी महिला 20 हफ्ते के अंदर अस्पताल से घर पर आ सकती है. जिसे बढ़ाकर 24 या 26 हफ्ते किए जाने की मांग की जा रही है.
इस पूरे मामले पर ईटीवी भारत ने डॉ. शिवानी गौर से की खास बातचीत की.
'बीमारियों के साथ जन्म लेता है बच्चा'
डॉ. शिवानी गौर ने बताया की समय सीमा बढ़ाई जाना इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि किसी भी गर्भ में पल रहे बच्चे की बीमारी का पता 12 से 20 हफ्ते की मैच्योरिटी के बाद ही चलता है.
यदि उसके बाद उसका गर्भपात नहीं कराया जाता तो ऐसे में बच्चा अस्वस्थ पैदा होता है या फिर कई बीमारियों के साथ उसका जन्म होता है. शिवानी गौर ने कहा कि कई बार मां के स्वास्थ्य के लिए भी खतरा होता है लेकिन वह गर्भपात नहीं कराने की स्थिति में अपनी जान जोखिम में डाल देती है.
'MTP एक्ट में बदलाव की जरूरत'
मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ़ प्रेग्नेंसी एक्ट 1971 के मुताबिक कोई भी महिला 20 हफ्ते के भीतर गर्भपात करा सकती है. आज के समय में इस चीज को बदले जाने की आवश्यकता इसलिए है क्योंकि समय बदल चुका है. टेक्नोलॉजी बदल चुकी है.
पहले के समय में यदि 20 हफ्ते के बाद गर्भपात किया जाता था तो महिला की जान को खतरा होता था लेकिन आज के समय में टेक्नोलॉजी बदल गई है. आधुनिक चीजें आ गई है जिससे कि महिला की जान को कोई खतरा नहीं है.
'गलत अबॉर्शन से महिलाओं की जान को खतरा'
डॉ. शिवानी गौर ने बताया वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन के मुताबिक हर साल भारत में 15 मिलियन अबॉर्शन होते हैं. जिसमें से 11 मिलियन अबॉर्शन गैर-कानूनी और अनरजिस्टर डॉक्टर द्वारा किए जाते हैं.
जिसमें कि अधिकतर महिलाओं की जान को खतरा होता है, और इससे कई महिलाओं की जान भी चली जाती है
इसलिए जरूरी है कि महिलाओं में जागरूकता हो और सरकार की तरफ से भी ऐसा प्रावधान किया जाए कि कोई भी महिला चाहे वह विवाहित हो या अविवाहित किसी महिला को भी गर्भपात कराए जाने के लिए किसी भी तरीके के कानून का सामना ना करना पड़े.
'सही समय पर ही प्रेग्नेंसी महिला का अधिकार'
डॉ. शिवानी ने बताया की हर एक महिला का यह अधिकार है कि वह जब किसी बच्चे के लिए हर तरीके से तैयार हो तभी उसे बच्चे को जन्म देने का अधिकार मिलना चाहिए ना की किसी दवाब में आकर.
भारत में आज भी कई ऐसी महिलाएं हैं जो इस चीज को लेकर जागरूक नहीं है और बच्चे में कोई खराबी होने पर वह उसे जन्म दे देती हैं. फिर वह बच्चा विकलांग या अपंग जन्म ले लेता है जिसके बाद उसका पूरा जीवन खराब होता है.