भोजपुर : बिहार में अगुवानी पुल के बाद एक और पुल पर खतरा मंडरा रहा है. इस पुल को लेकर अब रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव तक बात पहुंच चुकी है. इस पुल को लेकर स्थानीय लोगों और रेल मंत्री में पत्राचार भी हो रहा है. आशंका जताई जा रही है कि ये पुल भी कभी भी नीचे आ सकता है. इसीलिए, अंग्रेजों के जमाने में बना कोइलवर पुल के गिरने की आशंका को देखते हुए समाजिक कार्यकर्ता डॉक्टर गोपाल कृष्ण ने रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव को चिट्ठी लिखी है. उन्होंने अपने लेटर में ये आशंका जताई है कि अगर जल्द इस पुल की मरम्मत नहीं की गई तो ये कभी भी गिर सकता है.
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''सोन नदी में हो रहे बालू खनन की वजह से पुल के पिलर की स्थिति जर्जर हो चुकी है. यह रेलवे का मुख्य मार्ग है. कई दर्जन ट्रेनें इस रुट पर चलती हैं. पुल की जर्जर हालत लगातार खराब होती जा रही है. अगर रेलवे इस पुल की मरम्मती और नये पुल का निर्माण नहीं करवाती है तो कभी भी कोई बड़ी दुर्घटना हो सकती है.'' - डॉक्टर गोपाल कृष्ण, सामाजिक कार्यकर्ता
पिलर के नीचे से हटाया बालू : इसके पीछे उन्होंने बालू माफिया को जिम्मेदार बताया है. कहा है कि पुल के पिलर की हालत एकदम जर्जर हो चुकी है. पिलर के चारों तरफ बालू का खनन कर लेने से पुल जर्जर हो चुका है. ये पुल दिल्ली हावड़ा रेलवे का मुख्य मार्ग है. जिसपर रोजाना दर्जनों ट्रेनें गुजरती हैं. अगर ये पुल गिरा तो कभी भी बड़ी दुर्घटना घट सकती है.
19वीं सदी का शानदार नमूना है कोइलवर पुल : कोइलवर पुल अद्भुद इंजीनियरिंग की मिसाल है. ये पुल तब का बना हुआ है जब आज की तरह इतनी मशीनें नहीं थी. इक्कीसवीं सदी में भी ये पुल सेवाएं दे रहा है. पुल पर आज भी ट्रेनें धड़ल्ले से दौड़तीं हैं. हालांकि इसी पुल को जर्जर बताकर समाजिक कार्यकर्ता ने गिरने की आशंका जताई है.
160 साल से खड़ा है यह पुल : 1857 में देश का पहला स्वतंत्रता संग्राम हुआ और उसके ठीक पांच साल बाद पटना और आरा के बीच सोन नदी पर कोईलवर पुल का उदघाटन हुआ. ये एक रेल सह सड़क पुल है. संभवतः ये देश का सबसे पुराना रेल पुल हो जो 160 साल बाद भी शान से अपनी सेवाएं दे रहा है.
1881 में सर्वे, 5 साल में पुल बनकर तैयार : ईस्ट इंडिया रेलवे कंपनी ने 1851 में सोन नदी पर रेल पुल बनाए जाने के लिए सर्वे की शुरुआत की थी. ब्रिटिश सरकार ने इस पुल का निर्माण 1856 में शुरू कराया. पांच साल में पुल बनकर तैयार हो गया. इसे रेल सह सड़क पुल को 1862 में यातायात के लिए खोल दिया गया.
फिल्म गांधी में दिखाई गई थी इस पुल की झलक : लगभग डेढ़ किलोमीटर (1440 मीटर) लंबे इस पुल का उदघाटन तत्कालीन वायसराय लार्ड एल्गिन ने किया था. इस पुल का डिजाइन जेम्स मिडोज रेनडेल और सर मैथ्यु डिग्बी वाइट ने किया था. रिचर्ड एटनबरो की फिल्म गांधी में इस पुल की छोटी सी झलक देखी जा सकती है.