हैदराबाद : देश-दुनिया में प्राकृतिक आपदा, युद्ध, आर्थिक संकट, आतंक जैसी समस्याओं के कारण हर साल लाखों की संख्या में लोग रिफ्यूजी (शरणार्थी) बनने को मजबूर हैं. रिफ्यूजी की समस्या के कारण कई देश लंबे समय से जूझ रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र संघ के अधीन संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (UNHCR) समेत विश्व के कई देश एक साथ रिफ्यूजी संकट को खत्म करने और हर इंसान को बेहतर सुविधा और सम्मान वाले जीवन उपलब्ध कराने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है.
यूएनएचसीआर के आंकड़ों के अनुसार दुनिया के 52 फीसदी शरणार्थी केवल तीन देशों से आते हैं. अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा की आवश्यकता वाले सभी शरणार्थियों में से आधे से अधिक शर्णार्थी इन्हीं तीन देशों से आते हैं. इनमें सीरियाई अरब गणराज्य से 6.8 मिलियन, यूक्रेन 5.7 मिलियन और अफगानिस्तान 5.7 मिलियन शर्णार्थी शामिल हैं.
38 फीसदी शर्णार्थी 5 देशों में शरण लिये हुए हैं. तुर्की में 3.6 मिलियन लोगों के साथ शरणार्थियों की सबसे बड़ी संख्या है. इसके बाद 3.4 मिलियन लोगों के साथ इस्लामी राष्ट्र ईरान है. इसके बाद 2.5 मिलियन लोगों के साथ कोलंबिया तीसरे स्थान पर है, जिसमें अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा की आवश्यकता वाले अन्य लोग शामिल हैं. बता दें कि कुल शर्णार्थियों में 43.3 मिलियन बाल शर्णार्थी हैं.
2022 के अंत जमा आंकड़ों के अनुसार 108.4 मिलियन लोग जबरन विस्थापित हुए हैं. अनुमान के मुताबिक 43.3 मिलियन (40 प्रतिशत) 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चे हैं. दुनिया में 1.9 मिलियन बच्चे शरणार्थी के रूप में पैदा हुए हैं. साल 2018 और 2022 के बीच हर साल औसतन 385,000 बच्चे शरणार्थी के रूप में पैदा हुए हैं.
संयुक्त राष्ट संघ के आंकड़ों के अनुसार 31 जनवरी 2022 तक म्यांमार और अफगानिस्तान से 46,000 से अधिक शरणार्थी और शरण चाहने वाले यूएनएचसीआर भारत के साथ पंजीकृत बतायें जा रहे हैं. भारत में शरण ले रहे शरणार्थियों में 46 फीसदी महिलाएं और लड़कियां हैं. वहीं 36 फीसदी बच्चे हैं.
भारत दशकों से विभिन्न शरणार्थी समूहों की मेजबानी कर रहा है और कई जबरन विस्थापित व्यक्तियों के लिए समाधान खोज चुका है. यूएनएचसीआर ने भारत के 11 राज्यों में शरणार्थियों की सहायता के लिए सरकार और उसके लोगों के प्रयासों का समर्थन करता है. शरणार्थियों को बेहतर जीवन के लिए यूएनएचसीआर भारत में अलग-अलग सरकारी-गैर सरकारी संस्थाओं के साथ मिलकर काम कर रहा है.
भारत में इन शरणार्थियों के मॉनिटरिंग भारत सरकार के अधीन अलग मंत्रालय की ओर से किया जाता है. यूएनएचसीआर इंडिया ऑफिस मालदीव को भी कवर करता है. यूएनएचसीआर ऑफिस शरणार्थियों की मदद के लिए क्षमता निर्माण, समावेशन और पलायन के लिए मजबूर लोगों की इंटरनेशनल सिक्यूरिटी पर बारीकी से काम करता है.
1951 रिफ्यूजी कन्वेंशन और इसका 1967 प्रोटोकॉल से रिफ्यूजियों को मिले हैं अधिकार
शरणार्थी दुनिया के सबसे कमजोर लोगों में से हैं. 1951 रिफ्यूजी कन्वेंशन और 1967 रिफ्यूजी प्रोटोकॉल उनकी सुरक्षा में मदद करता है. वे एकमात्र वैश्विक लीगल दस्तावेज हैं जो एक शरणार्थी के जीवन के सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं को कवर करते हैं. रिफ्यूजियों के लिए बने इंटरनेशनल लॉ के अनुसार शरणार्थी कम से कम, किसी दिए गए देश में अन्य विदेशी नागरिकों के लिए निर्धारित मानकों के आधार पर समान व्यवहार के पात्र हैं.
1951 रिफ्यूजी कन्वेंशन के अनुसार शरणार्थियों के अधिकारों के बारे में विस्तार से वर्णन किया गया गया है. इसमें शरणार्थियों के अपने मेजबान देश के प्रति दायित्वों पर भी प्रकाश डाला गया है. 1951 के कन्वेंशन की आधारशिला गैर-वापसी का सिद्धांत मुख्य है. इसके अनुसार एक शरणार्थी को ऐसे देश में नहीं लौटाया जाना चाहिए जहां उसे अपने जीवन या स्वतंत्रता के लिए गंभीर खतरा हो. वहीं इसके तहत सुरक्षा का दावा उन शरणार्थियों की ओर से नहीं किया जा सकता है जिन्हें देश की सुरक्षा के लिए खतरा माना जाता है या विशेष रूप से गंभीर अपराध के लिए दोषी पाया गया है.
1951 कन्वेंशन में निहित मुख्य अधिकार :
- कड़ाई से परिभाषित शर्तों को छोड़कर, निष्कासित न किए जाने का अधिकार.
- एक अनुबंधित राज्य के क्षेत्र में अवैध प्रवेश के लिए दंडित नहीं होने का अधिकार.
- शरण लेने के दौरान काम करने का अधिकार.
- आवास का अधिकार.
- शिक्षा का अधिकार.
- सार्वजनिक राहत और सहायता का अधिकार.
- धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार.
- अदालतों तक पहुंचने का अधिकार.
- पहचान और यात्रा दस्तावेज जारी किए जाने का अधिकार.
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