सरगुजा: अम्बिकापुर का स्वच्छता मॉडल पर्यावरण संरक्षण में बड़ी भूमिका निभा रहा है. यहां के स्वच्छता मॉडल में डोर टू डोर कचरा संग्रहण करने वाली स्वच्छता दीदीयां पर्यावरण के लिए हरित सेना की भूमिका निभा रही हैं. इन दीदियों की बदौलत शहर साफ व स्वच्छ बन सका है.
एसएलआरएम मॉडल रहा सफल: एसएलआरएम मॉडल के शुरू होने पर 2015 से अब तक 94 महीनों मे सिर्फ हमारे घरों, दुकानों व अन्य स्थानों से 1 लाख 43 हजार 820 टन कचरा संग्रहण किया है. यदि इस कचरे का कलेक्शन कर उसके प्रोसेसिंग नहीं करते, तो अब तक 5 से 6 एकड़ की भूमि पर कचरे का एक नया पहाड़ खड़ा हो गया होता. जो पर्यावरण प्रदूषण का बड़ा कारण बनता. यह मॉडल नहीं होता तो कचरे के कलेक्शन में खर्च होने वाले ईंधन से वायु प्रदूषण होता. ग्रीन हाउस इफेक्ट होता.
18 सेंटर में 470 स्वच्छता दीदी दे रहीं सेवाएं: स्वच्छ भारत मिशन के तहत अम्बिकापुर में एसएलआरएम मॉडल की स्थापना करने के साथ ही डोर टू डोर कचरा प्रबंधन की शुरुआत मार्च 2015 में की गई थी. इस मॉडल के तहत शहर में 18 एसएलआरएम सेंटर बनाए गए जिसमें 470 स्वच्छता दीदियां दिन भर कड़ी मेहनत कर लोगों के घरों से कचरा संग्रहण करती है. घरों से कलेक्ट हुए कचरे का प्राइमरी, सेकेंडरी व टर्सरी तीन स्तर पर सेग्रीगेशन कर दिया जाता है.
ट्रैक्टर के करीब 72 हजार ट्रिप बच गए: मार्च 2015 से अप्रैल 2023 तक के आंकड़ों पर नजर डाले तो अब तक शहर से स्वच्छता दीदियों ने एक डोर टू डोर कचरा प्रबंधन के तहत 1 लाख 43 हजार 820 टन कचरा का संग्रहण किया है. यदि एसएलआरएम मॉडल शहर में नही होता और स्वच्छता दीदियों के स्थान पर निगम पूर्व की तरह वार्डों के जगह जगह फेंके गए कचरे को ट्रैक्टर की मदद से उठवाने का कार्य करती तो इतने कचरे को उठाने के लिए ट्रैक्टर को प्रति ट्रिप अधिकतम 2 टन के हिसाब से भी 71 हजार 910 ट्रिप लगाने पड़ते.
7 लाख 19 हजार लीटर डीजल बचा: कचरा शहर की गलियों में, प्रमुख सड़कों पर पड़ा होता, तो प्रति ट्रिप 10 लीटर डीजल की भी खपत होती. जिससे 71 हजार 910 ट्रिप लगाने के लिए ट्रैक्टर को 7 लाख 19 हजार 100 लीटर डीजल खपत होता. ऐसे में पहले तो जगह जगह कचरा फेंके जाने से प्रदूषण होता ही, इसके साथ ही इतनी मात्रा में ईंधन के जलने से वायु प्रदूषण भी होता. इसके बाद 5 से 6 एकड़ में कचरे का डंपिंग यार्ड खड़ा हो जाता. जिससे स्वाइल प्रदूषण, ग्राउंड वाटर प्रदूषण और वायु प्रदूषण भी होता.
5 एकड़ जमीन में होता कचरे का पहाड़: अब तक एकत्रित किए गए 1 लाख 43 हजार 820 टन कचरा में से 92 हजार 44 टन कचरे को जैविक खाद के रूप में बदल गया. 51 हजार 775 टन सूखे कचरे को अलग कर उन्हें बेचकर कमाई भी कर ली है. इस कचरे को ट्रैक्टर की मदद से एकत्रित कर शहर से दूर ले जाया भी जाता, तो भी अब तक 5 से 6 एकड़ भूमि पर कचरे का नया पहाड़ खड़ा हो गया होता. जिससे भूमिगत जल और वायु प्रदूषित होतान और इसका सीधा असर हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता.
पर्यावरण संरक्षण के साथ हुई कमाई: पर्यावरण संरक्षण के साथ कचरे से अब तक 14 करोड़ से अधिक की कमाई की गई है. दीदियों ने गीला कचरा को खाद में बदलकर और सूखा कचरा को बेचकर 4.51 करोड़ की कमाई की है. जनता से अब तक दीदियों को यूजर चार्ज के रूप में 9.38 करोड़ रुपए से अधिक की राशि मिली है. जबकि पुरानी पद्धति से कचरा संग्रहण होता, तो इसमे में 7 लाख 19 हजार 100 लीटर डीजल खपत होता. जिसमें 7 करोड़ 20 लाख रुपए खर्च होते, जबकि लेबर और मेंटेनेंस में 3 करोड़ खर्च हो गए होते. निगम की राशि इस मॉडल में भी खर्च हुई है, लेकिन इससे दीदियों ने कमाई भी की है. जो 470 दीदियों के आजीविका का साधन बना. यह महिलाएं कचरे से अब प्रतिमाह 9 हजार की कमाई कर अपना घर चला रही हैं.