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एमपी : कोरोना संक्रमितों के दाह संस्कार में महिलाएं बन रहीं मददगार

सरकारी गौशालाओं को संचालित करने वाली स्व-सहायता समूह की महिलाएं अपनी कमाई छोड़कर कोरोना मृतकों के अंतिम संस्कार के लिए गोबर से बनाए उपले ओर लकड़ियां दान कर रही हैं.

एमपी
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Published : May 1, 2021, 12:00 AM IST

सागर : कोरोना संक्रमित मरीजों की मौतों के चलते मुक्तिधाम में लकड़ियों की कमी होने लगी है. श्मशान घाट के दृश्यों की तस्वीरें आम आदमी के मन को विचलित कर देने वाली हैं. कहीं, अधजले शव पड़े हैं, तो कहीं अंतिम संस्कार के लिए घंटो लकड़ियों का इंतजार करना पड़ रहा है, तो कहीं लकड़ियां ही नहीं है.

संकट के इस समय में सरकारी गौशालाओं को संचालित करने वाली महिला स्व सहायता समूह अपनी कमाई छोड़कर मृतकों के अंतिम संस्कार के लिए गोबर से बनाए उपले ओर लकड़ियां दान कर रही हैं. दरअसल, प्रदेश सरकार द्वारा प्रदेश भर में पंचायत स्तर पर गौशालाएं में बनाई गई हैं.

इसके तहत सागर जिले में भी सरकार द्वारा 33 गौशालाएं बनाई गई. गौशालाओं में पंचायत क्षेत्र की लावारिस गायों की सेवा की जा रही हैं. जिले की 33 गौशालाओं में से 31 गौशाला महिला स्व सहायता समूह द्वारा संचालित की जाती हैं. महिला स्व सहायता समूह गायों की सेवा करने के अलावा दूध और गोबर के विभिन्न उत्पादों के जरिए कमाई करके गौशालाओं का संचालन करती हैं.

स्व सहायता समूह की महिलाएं गायों की सेवा तो करती ही हैं, इसके अलावा नियमित रूप से गाय के गोबर से बनने वाले विभिन्न उत्पादों के जरिए कमाई करके गौशालाओं के संचालन का खर्च भी जुटाती हैं. महिलाएं गोबर से उपले और गोबर की लकड़िया बनाती हैं.

कोरोना संक्रमितों के दाह संस्कार में महिलाएं बन रहीं मददगार

इसके अलावा वर्मी कंपोस्ट और जैविक खाद बीज तैयार करके बेचती हैं. इसके जरिए महिला स्व सहायता समूह की आमदनी होती है, जो गौशालाओं के संचालन के अलावा समूह की विभिन्न गतिविधियों में भी काम आती है.

मिसाल बनी रेवझां पंचायत गौशाला

सागर विकासखंड की रेवझां ग्राम पंचायत की गौशाला कोरोना काल में एक मिसाल बन कर सामने आई है. ग्राम पंचायत में संचालित गौशाला का संचालन स्थानीय आदिवासी और अनुसूचित जाति की महिलाओं के स्व सहायता समूह द्वारा किया जाता है. इस गौशाला में करीब 85 गायों को रखा गया है. बड़ादेव महिला स्व सहायता समूह द्वारा इस गौशाला का संचालन किया जाता है.

महिलाएं अपने स्वावलंबन से गौशाला में गायों की तो सेवा करती ही हैं, इसके अलावा उनके दूध और गोबर से बनने वाले विभिन्न उत्पादों के जरिए गौशालाओं का खर्च निकालती हैं. कोरोना संकट में महिलाओं ने अपनी कमाई छोड़कर मृतकों का अंतिम संस्कार अच्छे से हो, इसके लिए गौशाला में बनने वाले उपले और गोबर की लकड़ियां दान की हैं.

सामाजिक संगठन आए आगे
दरअसल, गौशाला संचालित करने वाले बड़ादेव महिला स्व सहायता समूह ने उपले और लकड़ी मृतकों के अंतिम संस्कार के लिए दान करने की इच्छा जाहिर की. स्व सहायता समूह की इस पहल का सब ने स्वागत किया. ग्राम पंचायत रेंवझा की गौशाला द्वारा सागर के सबसे व्यस्ततम नरयावली नाका मुक्तिधाम को 10 क्विंटल गोबर के उपले और लकड़ियां दान की गई हैं.

यह भी पढ़ें-70 साल में मिली स्वास्थ्य संरचना की विरासत पर्याप्त नहीं, राजनीति न करें : कोरोना पर सुप्रीम कोर्ट

इसके अलावा महिलाओं ने तय किया है कि जब तक हालात नहीं सुधरते हैं, तब तक वह उपले और गोबर की लकड़ियां दान करती रहेंगी. इन महिलाओं की सोच और दानवीरता से प्रभावित होकर अन्य महिला स्व सहायता समूह द्वारा संचालित गौशालाओं ने भी ऐसा ही कदम उठाया है.

सागर : कोरोना संक्रमित मरीजों की मौतों के चलते मुक्तिधाम में लकड़ियों की कमी होने लगी है. श्मशान घाट के दृश्यों की तस्वीरें आम आदमी के मन को विचलित कर देने वाली हैं. कहीं, अधजले शव पड़े हैं, तो कहीं अंतिम संस्कार के लिए घंटो लकड़ियों का इंतजार करना पड़ रहा है, तो कहीं लकड़ियां ही नहीं है.

संकट के इस समय में सरकारी गौशालाओं को संचालित करने वाली महिला स्व सहायता समूह अपनी कमाई छोड़कर मृतकों के अंतिम संस्कार के लिए गोबर से बनाए उपले ओर लकड़ियां दान कर रही हैं. दरअसल, प्रदेश सरकार द्वारा प्रदेश भर में पंचायत स्तर पर गौशालाएं में बनाई गई हैं.

इसके तहत सागर जिले में भी सरकार द्वारा 33 गौशालाएं बनाई गई. गौशालाओं में पंचायत क्षेत्र की लावारिस गायों की सेवा की जा रही हैं. जिले की 33 गौशालाओं में से 31 गौशाला महिला स्व सहायता समूह द्वारा संचालित की जाती हैं. महिला स्व सहायता समूह गायों की सेवा करने के अलावा दूध और गोबर के विभिन्न उत्पादों के जरिए कमाई करके गौशालाओं का संचालन करती हैं.

स्व सहायता समूह की महिलाएं गायों की सेवा तो करती ही हैं, इसके अलावा नियमित रूप से गाय के गोबर से बनने वाले विभिन्न उत्पादों के जरिए कमाई करके गौशालाओं के संचालन का खर्च भी जुटाती हैं. महिलाएं गोबर से उपले और गोबर की लकड़िया बनाती हैं.

कोरोना संक्रमितों के दाह संस्कार में महिलाएं बन रहीं मददगार

इसके अलावा वर्मी कंपोस्ट और जैविक खाद बीज तैयार करके बेचती हैं. इसके जरिए महिला स्व सहायता समूह की आमदनी होती है, जो गौशालाओं के संचालन के अलावा समूह की विभिन्न गतिविधियों में भी काम आती है.

मिसाल बनी रेवझां पंचायत गौशाला

सागर विकासखंड की रेवझां ग्राम पंचायत की गौशाला कोरोना काल में एक मिसाल बन कर सामने आई है. ग्राम पंचायत में संचालित गौशाला का संचालन स्थानीय आदिवासी और अनुसूचित जाति की महिलाओं के स्व सहायता समूह द्वारा किया जाता है. इस गौशाला में करीब 85 गायों को रखा गया है. बड़ादेव महिला स्व सहायता समूह द्वारा इस गौशाला का संचालन किया जाता है.

महिलाएं अपने स्वावलंबन से गौशाला में गायों की तो सेवा करती ही हैं, इसके अलावा उनके दूध और गोबर से बनने वाले विभिन्न उत्पादों के जरिए गौशालाओं का खर्च निकालती हैं. कोरोना संकट में महिलाओं ने अपनी कमाई छोड़कर मृतकों का अंतिम संस्कार अच्छे से हो, इसके लिए गौशाला में बनने वाले उपले और गोबर की लकड़ियां दान की हैं.

सामाजिक संगठन आए आगे
दरअसल, गौशाला संचालित करने वाले बड़ादेव महिला स्व सहायता समूह ने उपले और लकड़ी मृतकों के अंतिम संस्कार के लिए दान करने की इच्छा जाहिर की. स्व सहायता समूह की इस पहल का सब ने स्वागत किया. ग्राम पंचायत रेंवझा की गौशाला द्वारा सागर के सबसे व्यस्ततम नरयावली नाका मुक्तिधाम को 10 क्विंटल गोबर के उपले और लकड़ियां दान की गई हैं.

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इसके अलावा महिलाओं ने तय किया है कि जब तक हालात नहीं सुधरते हैं, तब तक वह उपले और गोबर की लकड़ियां दान करती रहेंगी. इन महिलाओं की सोच और दानवीरता से प्रभावित होकर अन्य महिला स्व सहायता समूह द्वारा संचालित गौशालाओं ने भी ऐसा ही कदम उठाया है.

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