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दिल्ली : जंतर मंतर पर लगी महिला किसान संसद, 33 फीसदी आरक्षण का बिल लाने की मांग उठी

दिल्ली के जंतर मंतर पर देश की संसद के समानांतर में चल रहे किसान संसद में सोमवार को महिलाओं के लिए विशेष सत्र का आयोजन किया गया. साथ ही महिला संसद में यह प्रस्ताव पारित किया गया है कि 33% आरक्षण का बिल जल्द लाया जाए और महिलाओं की सहभागिता देश की संसद में सुनिश्चित की जाए.

सुहासिनी अली
सुहासिनी अली
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Published : Jul 27, 2021, 1:12 AM IST

नई दिल्ली : दिल्ली के जंतर मंतर पर देश की संसद के समानांतर में चल रहे किसान संसद में सोमवार को महिलाओं के लिए विशेष सत्र का आयोजन किया गया. साथ ही महिला संसद में यह प्रस्ताव पारित किया गया है कि 33% आरक्षण का बिल जल्द लाया जाए और महिलाओं की सहभागिता देश की संसद में सुनिश्चित की जाए. हालांकि महिला किसानों और नेताओं ने सत्र में विशेष रूप से आवश्यक वस्तु अधिनियम को निरस्त किये जाने के सरकार के प्रयास पर चर्चा की.

बढ़ती महंगाई और आवश्यक वस्तु अधिनियम

महिला किसानों का कहना है कि आवश्यक वस्तु अधिनियम सीधे सीधे उनको प्रभवित करेगा क्योंकि इसका बढ़ती महंगाई से भी संबंध है. साथ ही इस कानून से भविष्य में राशन वितरण प्रणाली भी खत्म हो जाएगी. महिला संसद में जिन विषयों पर चर्चा हुई और जो प्रस्ताव पारित किये गए इस पर ईटीवी भारत ने अखिल भारतीय किसान सभा की नेता सुहासिनी अली से विशेष बातचीत की.

अखिल भारतीय किसान सभा नेता सुहासिनी अली से ईटीवी भारत की बातचीत

सुहासिनी अली ने आज के सत्र में पहले भाग की अध्यक्षता की. सुहासिनी अली का कहना है कि तीन कृषि कानून और उसके विरोध में चल रहे आंदोलन पर चर्चा हुई है लेकिन चर्चा का मुख्य बिंदु बढ़ती महंगाई और उसमें आवश्यक वस्तु अधिनियम को खत्म करने की बात पर भी विस्तार से चर्चा हुई. महिलाओं ने पूरी गहराई से इस पर जानकारी जुटा कर इसके क्या नुकसान है यह बताया गया है.

देश की संसद में महिलाओं की बढ़े सहभागिता

संदेश यही है कि यदि महिलाओं को अवसर दिया जाए तो वह कोई भी काम कर सकती हैं. देश की संसद में महिलाओं के लिये जगह नहीं है और वहां केवल 8 से 10 फीसदी ही महिला सांसद हैं. आज महिला संसद में यह प्रस्ताव पारित किया गया है कि 33% आरक्षण का बिल जल्द लाया जाए और महिलाओं की सहभागिता देश की संसद में सुनिश्चित की जाए.

सुहासिनी अली कहना है कि इस तरह के जन संसद में भाग लेने से महिलाओं का आत्मविश्वास बढ़ेगा. 200 महिलाओं में 110 महिलाओं ने चर्चा में भाग लिया. आम तौर पर देश में महिलाओं को किसान के रूप में मान्यता नहीं मिलती है लेकिन अब वह भी उठने लगी हैं अपने अधिकारों के लिये. सुहासिनी अली ने विश्वास जताया कि जब किसानों की जीत के साथ आंदोलन का समापन होगा तो महिलाओं को भी जरूर किसान का दर्जा मिल सकेगा.

कुपोषण, बेरोजगारी व भुखमरी पर चर्चा

महिला किसान संसद में कुपोषण, बेरोजगारी और भुखमरी पर भी चर्चा हुई. भारत कुपोषण के मामले में 94वें नंबर पर है ऐसे में यदि जनवितरण प्रणाली को खत्म किया गया तो यह स्थिति और खराब हो सकती है. भारत सरकार में मंत्री और दिल्ली से सांसद मीनाक्षी लेखी द्वारा किसानों को 'मवाली' कहे जाने का मुद्दा भी महिला किसान संसद में छाया रहा. सत्र में इसके खिलाफ निंदा प्रस्ताव भी पारित किया गया. लोग यदि यहां आएंगे या मीडिया के माध्यम से देखेंगे तो उन्हें जरूर समझ में आएगा कि लोकशाही और जनवादी का वास्तविक अर्थ क्या होता है.

पढ़ें : जंतर-मंतर पर आयोजित महिला किसान संसद में सर्वसम्मति से पारित हुए दो प्रस्ताव


संसद के मॉनसून सत्र में चल रही कार्यवाही और हंगामे पर टिप्पणी करते हुए सुहासिनी अली ने कहा कि आज देश की संसद में लोगों को अपनी बात कहने का या विरोध जताने का मौका नहीं दिया जा रहा है.

आवाज उठाने पर सभापति सांसदों को बाहर कर देते हैं और सरकार किसी भी मुद्दे पर ठीक से जवाब नहीं दे पाती है. सरकार को पेगासस मुद्दे पर जबाब देना चाहिए कि जासूसी सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करने के लिये जो पैसा विदेश में दिया गया वह किसने दिया. इसी तरह से तीन कृषि कानून के मुद्दे पर भी सरकार जबाब नहीं देती है. सरकार सिर्फ अपनी बात कहती है और आंदोलन कर रहे किसानों के लिये मवाली, देशद्रोही, खालिस्तानी जैसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है.

आंदोलनरत किसान मोर्चा ने सभी सांसदों को व्हिप जारी कर कृषि कानून के मुद्दे को संसद में मजबूती से उठाने के लिये कहा था लेकिन बाद में किसान मोर्चा के नेताओं ने निराशा जताई. हालांकि सुहासिनी अली का कहना है कि विपक्ष उनके मुद्दों को उठाने का प्रयास कर रहा है. बाद में पेगासस का मुद्दा भी आ गया लेकिन सबसे पहला मुद्दा विपक्ष ने कृषि कानूनों का ही उठाया था. और वह आगे भी इसको रखते रहेंगे.

नई दिल्ली : दिल्ली के जंतर मंतर पर देश की संसद के समानांतर में चल रहे किसान संसद में सोमवार को महिलाओं के लिए विशेष सत्र का आयोजन किया गया. साथ ही महिला संसद में यह प्रस्ताव पारित किया गया है कि 33% आरक्षण का बिल जल्द लाया जाए और महिलाओं की सहभागिता देश की संसद में सुनिश्चित की जाए. हालांकि महिला किसानों और नेताओं ने सत्र में विशेष रूप से आवश्यक वस्तु अधिनियम को निरस्त किये जाने के सरकार के प्रयास पर चर्चा की.

बढ़ती महंगाई और आवश्यक वस्तु अधिनियम

महिला किसानों का कहना है कि आवश्यक वस्तु अधिनियम सीधे सीधे उनको प्रभवित करेगा क्योंकि इसका बढ़ती महंगाई से भी संबंध है. साथ ही इस कानून से भविष्य में राशन वितरण प्रणाली भी खत्म हो जाएगी. महिला संसद में जिन विषयों पर चर्चा हुई और जो प्रस्ताव पारित किये गए इस पर ईटीवी भारत ने अखिल भारतीय किसान सभा की नेता सुहासिनी अली से विशेष बातचीत की.

अखिल भारतीय किसान सभा नेता सुहासिनी अली से ईटीवी भारत की बातचीत

सुहासिनी अली ने आज के सत्र में पहले भाग की अध्यक्षता की. सुहासिनी अली का कहना है कि तीन कृषि कानून और उसके विरोध में चल रहे आंदोलन पर चर्चा हुई है लेकिन चर्चा का मुख्य बिंदु बढ़ती महंगाई और उसमें आवश्यक वस्तु अधिनियम को खत्म करने की बात पर भी विस्तार से चर्चा हुई. महिलाओं ने पूरी गहराई से इस पर जानकारी जुटा कर इसके क्या नुकसान है यह बताया गया है.

देश की संसद में महिलाओं की बढ़े सहभागिता

संदेश यही है कि यदि महिलाओं को अवसर दिया जाए तो वह कोई भी काम कर सकती हैं. देश की संसद में महिलाओं के लिये जगह नहीं है और वहां केवल 8 से 10 फीसदी ही महिला सांसद हैं. आज महिला संसद में यह प्रस्ताव पारित किया गया है कि 33% आरक्षण का बिल जल्द लाया जाए और महिलाओं की सहभागिता देश की संसद में सुनिश्चित की जाए.

सुहासिनी अली कहना है कि इस तरह के जन संसद में भाग लेने से महिलाओं का आत्मविश्वास बढ़ेगा. 200 महिलाओं में 110 महिलाओं ने चर्चा में भाग लिया. आम तौर पर देश में महिलाओं को किसान के रूप में मान्यता नहीं मिलती है लेकिन अब वह भी उठने लगी हैं अपने अधिकारों के लिये. सुहासिनी अली ने विश्वास जताया कि जब किसानों की जीत के साथ आंदोलन का समापन होगा तो महिलाओं को भी जरूर किसान का दर्जा मिल सकेगा.

कुपोषण, बेरोजगारी व भुखमरी पर चर्चा

महिला किसान संसद में कुपोषण, बेरोजगारी और भुखमरी पर भी चर्चा हुई. भारत कुपोषण के मामले में 94वें नंबर पर है ऐसे में यदि जनवितरण प्रणाली को खत्म किया गया तो यह स्थिति और खराब हो सकती है. भारत सरकार में मंत्री और दिल्ली से सांसद मीनाक्षी लेखी द्वारा किसानों को 'मवाली' कहे जाने का मुद्दा भी महिला किसान संसद में छाया रहा. सत्र में इसके खिलाफ निंदा प्रस्ताव भी पारित किया गया. लोग यदि यहां आएंगे या मीडिया के माध्यम से देखेंगे तो उन्हें जरूर समझ में आएगा कि लोकशाही और जनवादी का वास्तविक अर्थ क्या होता है.

पढ़ें : जंतर-मंतर पर आयोजित महिला किसान संसद में सर्वसम्मति से पारित हुए दो प्रस्ताव


संसद के मॉनसून सत्र में चल रही कार्यवाही और हंगामे पर टिप्पणी करते हुए सुहासिनी अली ने कहा कि आज देश की संसद में लोगों को अपनी बात कहने का या विरोध जताने का मौका नहीं दिया जा रहा है.

आवाज उठाने पर सभापति सांसदों को बाहर कर देते हैं और सरकार किसी भी मुद्दे पर ठीक से जवाब नहीं दे पाती है. सरकार को पेगासस मुद्दे पर जबाब देना चाहिए कि जासूसी सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करने के लिये जो पैसा विदेश में दिया गया वह किसने दिया. इसी तरह से तीन कृषि कानून के मुद्दे पर भी सरकार जबाब नहीं देती है. सरकार सिर्फ अपनी बात कहती है और आंदोलन कर रहे किसानों के लिये मवाली, देशद्रोही, खालिस्तानी जैसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है.

आंदोलनरत किसान मोर्चा ने सभी सांसदों को व्हिप जारी कर कृषि कानून के मुद्दे को संसद में मजबूती से उठाने के लिये कहा था लेकिन बाद में किसान मोर्चा के नेताओं ने निराशा जताई. हालांकि सुहासिनी अली का कहना है कि विपक्ष उनके मुद्दों को उठाने का प्रयास कर रहा है. बाद में पेगासस का मुद्दा भी आ गया लेकिन सबसे पहला मुद्दा विपक्ष ने कृषि कानूनों का ही उठाया था. और वह आगे भी इसको रखते रहेंगे.

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