मुंबई: 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हुए नारायण राणे को हाल ही में लंबी अटकलों के बाद केंद्रीय मोदी कैबिनेट में मंत्री बनाया गया है. राजनीतिक विश्लेषक का कहना है कि कोंकण क्षेत्र से भाजपा ने एक बड़े नेता को शामिल किया है. लेकिन क्या वह भाजपा के सहज हो सकेंगे.
राणे ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत शिवसेना से की थी. लेकिन उद्धव ठाकरे के साथ तनावपूर्ण संबंध हो जाने के बाद उन्होंने 2005 में पार्टी छोड़ दी थी. इसके बाद वह इसके बाद वह कांग्रेस में शामिल हो गए लेकिन यहां उन्हें पार्टी के कुछ बड़े नामों के अलावा कांग्रेस आलाकमान के साथ भी तनावपूर्ण संबंधों का सामना करना पड़ा. फलस्वरूप उन्होंने कांग्रेस से भी इस्तीफा दे दिया.
इतना ही नहीं इसके बाद उन्होंने अपनी स्वाभिमान पार्टी की स्थापना की, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले इसका भाजपा में विलय कर दिया. वहीं भाजपा ने उन्हें राज्यसभा से सदस्य बनाया और अब उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया है. लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अगर राणे ने अपना स्वभाव नहीं बदला तो उन्हें भाजपा में भी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा.
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राजनीतिक विश्लेषक के मुताबिक राणे को भाजपा के दृष्टिकोण और पार्टी नेतृत्व के साथ तालमेल बिठाना होगा. क्योंकि भाजपा में अनुशासन महत्वपूर्ण है और राणे एक अलग विचारक हैं. विश्लेषकों का कहना है कि इसलिए वह पार्टी में फिट होने का प्रबंधन कैसे करेंगे, निकट भविष्य में यह देखना महत्वपूर्ण होगा.
वहीं कांग्रेस नेता सचिन सावंत ने कहा कि राणे एक आक्रामक नेता हैं और वह पार्टी लाइन से बाहर जाते थे. उन्होंने कहा कि भाजपा के स्थानीय नेताओं को कैबिनेट में मंत्री बनाए जाने के बाद राणे से स्वभाव की वजह से कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है.
कांग्रेस नेता भाई जगताप ने कहा कि कोरोना संकट की मौजूदा स्थिति में राणे की असली परीक्षा होगी क्योंकि उनके पास छोटे और मध्यम व्यवसायों को पुनर्जीवित करने का एक बड़ा काम है.वहीं राजनीतिक विश्लेषक अजय वैद्य ने कहा कि राणे एक आक्रामक नेता हैं, लेकिन उन्हें भाजपा में विनम्र रहना होगा. क्योंकि राणे के लिए कोई विकल्प नहीं है.