हैदराबाद : हर साल 3 जुलाई को अंतरराष्ट्रीय प्लास्टिक बैग मुक्त दिवस (International Plastic Bag Free Day) के रूप में मनाया जाता है. इसका मकसद प्लास्टिक को लेकर जागरुकता के अलावा दुनिया में लगातार फैल रहे प्लास्टिक कचरे और प्रदूषण के प्रति सजग करना है. इसके लिए कई तरह के कार्यक्रम आयोजित होते हैं. प्लास्टिक खतरनाक है इसकी जानकारी तो सबको है लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि ये खतरा इतना बढ़ गया है कि जल्द अगर मुनासिब कदम नहीं उठाए गए तो बहुत देर हो जाएगी.
प्लास्टिक हमारे चारों ओर है
आज के दौर में हम प्लास्टिक से घिरे हुए हैं. रोजमर्रा के इस्तेमाल की शायद ही कोई चीज होगी जो प्लास्टिक से ना बनी हो. बड़े-बड़े बाजारों से लेकर सब्जी मंडी में आज भी प्लास्टिक में खुलेआम सामान बिक रहा है. प्लास्टिक अपनी मजूबूती और तरह तरह के रंगों से आकर्षित तो करता है लेकिन ये उतना ही हानिकारक भी है खासकर सिंगल यूज़ यानि एक बार इस्तेमाल होने वाला प्लास्टिक (जैसे प्लास्टिक की थैलियां). प्लास्टिक से फैलने वाला कचरा हर तरह के प्रदूषण के लिए जिम्मेदार होता है.
इस पृथ्वी पर मौजूद प्लास्टिक वायु प्रदूषण से लेकर जल प्रदूषण तक का जिम्मेदार है. इसके अलावा प्लास्टिक जमीन की सेहत के लिए भी ठीक नहीं है. जमीन पर प्लास्टिक के ढेर और नदियों से लेकर समुंद्र तक में तैरता प्लास्टिक पर्यावरण के लिए खतरे की घंटी है.
प्लास्टिक की थैलियों का इस्तेमाल औसतन सिर्फ 25 मिनट के लिए किया जाता है और प्लास्टिक को गलने में कम से कम 1000 साल लगते हैं. साथ ही दुनिया के महासागरों और पृथ्वी को प्रदूषित करने में सिर्फ चंद मिनट लगते हैं. अधिकांश लोग इस तथ्य से अनजान हैं कि दुनिया भर में हर सेकेंड 1.60 लाख प्लास्टिक का उपयोग हो रहा है. और एक साल में एक से पांच ट्रिलियन प्लास्टिक बैग. इसका मतलब है हर एक मिनट में 10 मिलियन प्लास्टिक बैग. दुनियाभर में इनमें से महज एक से तीन फीसदी ही रिसाइकल किया जाता है.
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महामारी और प्लास्टिक
दुनिया इस वक्त कोरोना महामारी के दौर से गुजर रही है. लेकिन इस दौर में कई और भी ऐसी समस्याएं हैं जो सालों से किसी महामारी जैसी ही हैं. इनमें से एक है प्लास्टिक, जिससे पूरी दुनिया को दो-चार होना पड़ता है. प्लास्टिक धरती की सेहत बिगाड़ता है जिसका सीधा असर हमारी सेहत पर पड़ता है. ऐसे में ये सवाल जस का तस खड़ा है कि प्लास्टिक कचरे का निपटान कैसे होगा.
कोरोना वायरस ने प्लास्टिक के खिलाफ कई देशों की मुहिम को झटका भी दिया है. पीएम मोदी ने साल 2019 में सिंगल यूज़ प्लास्टिक को चरणबद्ध तरीके से साल 2022 तक पूरी तरह से खत्म करने की बात कही थी. इस लक्ष्य को पाने के लिए सिंगल यूज़ प्लास्टिक को इकट्ठा करके उसे री-साइकिल करने के लिए एक पूरी व्यवस्था की जरूरत होगी. इस तरह की पहल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी की गई थी. संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ने नॉर्वे और जापान के सहयोग से यह जानने की कोशिश की है कि प्लास्टिक कैसे नदियों और महासागरों को प्रदूषित कर रहा है.
महामारी के दौर में इन कोशिशों को ना सिर्फ झटका लगा है बल्कि प्लास्टिक का कचरा इस दौर में और भी बढ़ा है. कोरोना काल के दौरान विशेष रूप से सिंगल यूज़ प्लास्टिक मास्क, सेनिटाइज़र बोतलें, व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण, खाद्य पैकेजिंग, पानी की बोतलें, खुदरा सामान जैसे रूप में लगातार बढ़ा है. समय के साथ, यह प्लास्टिक पांच मिलीमीटर से भी छोटे सूक्ष्म कणों में विखण्डित हो जाएगा. जिन्हें माइक्रोप्लास्टिक्स के रूप में जाना जाता है और जल निकायों और खेत की मिट्टी के माध्यम से हमारे भोजन और हवा में मिल जाएगा. पर्यावरण प्रदूषण से बचने के लिये, प्लास्टिक का उचित भण्डारण व निपटान ज़रूरी है
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक अभी तक उत्पादित सम्पूर्ण प्लास्टिक का केवल नौ प्रतिशत ही री-साइकिल किया गया है, जबकि इसका 79 प्रतिशत भाग दुनियाभर के लैंडफिल और हमारी हवा, पानी, मिट्टी और अन्य प्राकृतिक प्रणालियों में पाया जा सकता है.
प्लास्टिक की प्रकृति में कोई जगह नहीं
प्लास्टिक की जगह हमारे शरीर में नहीं है और प्रकृति में उसका कोई स्थान नहीं है. लेकिन फिर भी प्लास्टिक महत्वपूर्ण है. टिकाऊ वस्तुओं, दवा और खाद्य सुरक्षा में इसकी केन्द्रीय भूमिका होने के कारण, इससे पूरी तरह से छुटकारा पाना व्यावहारिक नहीं है. इसके बजाय, हमें इस बारे में अधिक विचारशील होना चाहिये कि हम कब, कहां और कैसे इसका उपयोग करते हैं.
प्लास्टिक के निपटारे के लिए क्या करना होगा
हमें एक ऐसे दृष्टिकोण की आवश्यकता है जिसमें नए जीवाश्म ईंधन-आधारित प्लास्टिक के निर्माण को कम करना, अपशिष्ट संग्रह और निपटान में सुधार करना और विकल्पों का विकास और उपयोग करना शामिल हो. इन मोर्चों पर हम तुरन्त कई कदम उठा सकते हैं, यहाँ तक कि कोविड-19 के खिलाफ संघर्ष के दौरान भी, इस बात को ध्यान में रखना होगा कि हमें सिंगल यूज़ प्लास्टिक से बचने की कोशिश हर हाल में करनी होगी. प्लास्टिक प्रदूषण पूरी दुनिया की समस्या है ऐसे में सरकार से लेकर समाज के हर पक्ष और हर नागरिक को इसके लिए प्रयास करने होंगे.
सबसे पहले, हमें यह सुनिश्चित करना चाहिये कि जितनी तेज़ी से प्लास्टिक कचरे का उत्पादन हो रहा है, उसी गति से उसका संग्रह भी हो सके. कचरे के निपटान के संचालन की बेहतर योजना और जल्दी-जल्दी कूड़े का निपटान ही इस समस्या को कम कर सकता है. प्लास्टिक के हानिकारक प्रभावों के लिए व्यापक तौर पर लोगों को जागरुक करना होगा.
दूसरा प्लास्टिक कचरे को शुरू में ही अलग करना होगा ताकि उसे रीसायकिल किया जा सके. महामारी के दौर में इसे आदत बनाना होगा जिससे प्लास्टिक का निपटारा आसान हो जाएगा. इसके अलावा सिंगल यूज़ प्लास्टिक के जो भी विकल्प मौजूद हैं उन्हें बढ़ावा देना होगा. जहां ऐसे विकल्प उपलब्ध नहीं हैं वहां उन्हें विकसित करना होगा ताकि सबसे पहले इस तरह के प्लास्टिक से छुटकारा मिल सके.
खतरे की घंटी हर पल बज रही है
दुनिया भर में हर सेकेंड 1.60 लाख प्लास्टिक का उपयोग होता है. यानि हर मिनट एक करोड़ प्लास्टिक बैग का इस्तेमाल होता है. जानकारों के मुताबिक रोजाना लाखों टन प्लास्टिक नदियों और समुद्र तक पहुंच रहा है. जमीन से लेकर समुद्र तक प्लास्टिक का ढेर इंसान के साथ-साथ समुद्री जीवों के लिए भी खतरा है. विशेषज्ञों के मुताबिक अगर प्लास्टिक का इसी तरह बेतहाशा इस्तेमाल होता रहा तो वो दिन दूर नहीं जब समुद्र में मछलियों से ज्यादा प्लास्टिक होगा. कई समुद्री इलाकों में तो ये स्थिति नजर भी आने लगी है.
पहल हो रही है लेकिन नाकाफी है
भारत समेत कई देशों ने प्लास्टिक के इस्तेमाल को कम करने या सिंगल यूज प्लास्टिक के इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए कई कदम उठाए हैं लेकिन दुनियाभर में उठाए जा रहे ये कदम नाकाफी साबित हो रहे हैं. जागरुकता की कमी के साथ प्लास्टिक के विकल्प की कमी या विकल्प का महंगा होना भी इस पहल की राह का बड़ा रोड़ा है. इसके अलावा प्लास्टिक किसी एक क्षेत्र विशेष या देश की समस्या नहीं है. ये एक वैश्विक समस्या है जिससे पार पाने के लिए सबको अपनी भागीदारी निभानी होगी. उत्पादन में कमी से लेकर इसके इस्तेमाल में कमी और इसको इकट्ठा करने से लेकर इसके निस्तारण या रीसाइकिल के लिए जरूरी कदम उठाने होंगे. और इसके लिए सरकार और समाज दोनों को व्यापक स्तर पर साथ चलना होगा.
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