हैदराबाद : पंजाब मामलों के प्रभारी महासचिव हरीश रावत ने शायद इसीलिए बयान दिया कि अगला चुनाव नवजोत सिंह सिद्धू के नेतृत्व में लड़ा जाएगा. रावत के बयान को लेकर दूसरी पार्टियां कांग्रेस को घेर रही हैं कि क्या दलितों का इस्तेमाल सिर्फ संकट से बचने के लिए किया जा रहा है. हालांकि, चन्नी की हाईकमान तक पहुंच है और, जैसा भी मामला हो, नवजोत सिद्धू को चन्नी का चेहरा इसलिए फिट बैठता है, क्योंकि वह शायद कभी नहीं चाहेंगे कि एक अनुभवी जाट सिख को मुख्यमंत्री बनाया जाए.
दूसरी ओर, चन्नी लंबे समय से मुख्यमंत्री बनने के लिए मुहिम चला रहे थे और दो-तीन बार दलित विधायकों की अलग बैठकें कर चुके थे. भले ही वह कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार में मंत्री थे, लेकिन शायद वह मुख्यमंत्री का पद संभालने के लिए तैयार (सक्षम) प्रतीत नहीं हो रहे थे.
चरनजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाना कांग्रेस पार्टी के लिए फायदेमंद हो सकता है क्योंकि आरक्षित सीटों पर उनके रविदासिया समुदाय का काफी प्रभाव है. एक ओर जहां अन्य दल किसी दलित को उपमुख्यमंत्री बनाने का वादा कर रहे थे, वहीं कांग्रेस ने दलित वर्ग से आने वाले चन्नी को मुख्यमंत्री बना दिया है. चन्नी पंजाब के पहले दलित मुख्यमंत्री बने हैं.
अकाली दल ने बसपा के साथ गठबंधन की घोषणा के समय दलित को उपमुख्यमंत्री बनाने का वादा किया था. भाजपा दलित चेहरा लाने की बात करती रही है और आम आदमी पार्टी ने भी दलितों पर अन्य दलों पर केवल दलितों के बारे में बात करने का आरोप लगाकर इस वर्ग की उपेक्षा करने का आरोप लगाया. हालांकि, कांग्रेस ने दलित मुख्यमंत्री बनाकर इन पार्टियों को फिलहाल खामोश कर दिया है.
दलित समुदाय कैप्टन अमरिंदर सिंह के पक्ष में मतदान करता रहा है और आगामी विधानसभा चुनावों में उनका रुख क्या होगा, शायद इसीलिए दलित समाज को अपनी ओर खींचने के लिए कांग्रेस पार्टी में संभावित नुकसान की भरपाई के लिए चन्नी को आगे किया है.
ऐसा भी लगता है कि चन्नी को आगे लाकर कांग्रेस ने दलित समुदाय को प्राथमिकता दी है. यह राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर की सलाह पर उठाया गया कदम भी प्रतीत होता है. हालांकि, कांग्रेस इस दलित कार्ड के जाल में फंस सकती है, इसलिए उसे सभी वर्गों में समन्वय स्थापित करने और सभी को खुश करने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी.
जाति आधारित समीकरण
जब जाति आधारित समीकरण की बात आती है, तो राजनीति सिखों, हिंदुओं और दलितों के इर्द-गिर्द घूमती है. सिख अकालियों और कांग्रेस को वोट देते हैं और शहरी इलाकों में हिंदू भाजपा को वोट देते हैं, लेकिन व्यक्तिगत पसंद के कारण वे कैप्टन पर भी भरोसा करते हैं. दलितों के वोट बंटे हुए हैं, ज्यादातर कांग्रेस और फिर अकाली दल और भाजपा में, लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को इस वर्ग से भारी समर्थन मिला था. पार्टी के अधिकांश विधायक दलित समुदाय से आए थे.
दलित को मुख्यमंत्री बनाकर कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक बाबू कांशीराम को पंजाब का मुख्यमंत्री बनने का सपना पूरा करने की अपनी कोशिश में कामयाब होती नजर आ रही है. ऐसे में कांग्रेस दलित मुख्यमंत्री बना कर इस समुदाय को अपने पक्ष में करना चाहती है.
दूसरी ओर, पार्टी दलितों को मुख्यमंत्री बनाकर सिखों और हिंदुओं को नाराज नहीं करना चाहती थी, और इसीलिए जाट सिख चेहरे सुखजिंदर सिंह रंधावा और हिंदू चेहरे ओम प्रकाश सोनी को उपमुख्यमंत्री बनाया गया है और इससे सामाजिक संतुलन बनाने की कोशिश की गई है.
सामाजिक संतुलन बिठाना चुनौती
ऐसे में यह भी देखना जरूरी है कि सामाजिक संतुलन के बीच मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे दलित नेता किस हद तक पंजाब में स्वतंत्र फैसले लेने की ताकत रखते हैं. नई कैबिनेट का गठन होना बाकी है. यह देखना होगा कि कांग्रेस पार्टी पंजाब के नेताओं के साथ किस हद तक तालमेल बिठा पाएगी और पुराने चेहरों में किसे जगह मिलेगी और कौन नया होगा. शायद कांग्रेस को कैबिनेट गठन में यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि उन नेताओं को कैबिनेट में शामिल किया जाए, जिनके पास सरकार को चलाने का अनुभव हो और वे सीएम चन्नी के मददगार साबित हो सकें.
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पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिद्धू ने 'कैप्टन हटाओ' अभियान के दौरान ऐसे वादे और सपने दिखाए हैं कि इस सरकार के बाकी कार्यकाल के दौरान उन्हें पूरा करना नए मुख्यमंत्री चरनजीत सिंह चन्नी के लिए एक बड़ी चुनौती होगी. पंजाब में आज भी कृषि कानून सबसा बड़ा मुद्दा है.
ऐसी अटकलें हैं कि कैप्टन अमरिंदर सिंह, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपनी निकटता के साथ, किसानों के मुद्दे को हल करके एक बड़ा धमाका कर सकते हैं और इस तरह पंजाब में राजनीतिक लाभ हासिल कर सकते हैं. ऐसे में यह कुछ समय बाद ही स्पष्ट हो सकेगा कि पार्टियों द्वारा चलाए जा रहे राजनीतिक कार्ड कितने प्रभावी हैं.