नई दिल्ली: नगालैंड के मोन जिले के ओटिंग गांव में 13 ग्रामीणों की हत्या मामले में 30 सैन्यकर्मियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी नहीं मिली है (Nagaland firing). इसे लेकर पूर्वी नगालैंड पीपुल्स ऑर्गनाइजेशन (ईएनपीओ) के सचिव मनवांग (Manwang) ने शुक्रवार को ईटीवी भारत से कहा, 'हमने अपनी अगली कार्रवाई तय करने के लिए अपनी कार्यकारी समिति की बैठक बुलाई है. चाहे हम गृह मंत्रालय से संपर्क करें या रक्षा मंत्रालय से, हमारी कार्यकारी समिति अंतिम फैसला लेगी.'
ईएनपीओ एक शीर्ष आदिवासी निकाय है जो पूर्वी नगालैंड बनाने की मांग करता रहा है. पिछले साल, ईएनपीओ ने 5 दिसंबर, 2021 के विरोध के निशान के रूप में नगालैंड में आदिवासियों से मेगा हॉर्नबिल उत्सव का बहिष्कार करने के लिए कहा था.
वहीं, नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (NSCN-Issac Muivah) के सचिव आर जॉन ने पूर्वोत्तर राज्यों में लागू सशस्त्र बल विशेष (शक्ति) अधिनियम (AFSPA) की कड़ी निंदा की है.
जॉन ने इस संवाददाता को बताया कि 'जब तक कठोर AFSPA सक्रिय रहता है, तब तक सेना मानवाधिकारों के प्रति घोर अहंकार के साथ चलती रहेगी.' नगालैंड पुलिस महानिदेशक के कार्यालय ने गुरुवार को सूचित किया है कि भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के सैन्य मामलों के विभाग ने सभी 30 आरोपी सेना अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी देने से इनकार कर दिया है.
डीजीपी कार्यालय ने कहा कि कानून के अनुसार, राज्य अपराध सेल पुलिस स्टेशन और विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा अभियोजन स्वीकृति से इनकार करने के तथ्य को जिला और सत्र न्यायाधीश अदालत, मोन को सूचित किया गया है. 13 नागरिकों की हत्या के बाद नगालैंड सरकार ने पूरी घटना की जांच के लिए एक SIT का गठन किया था.
एसआईटी ने जांच पूरी होने के बाद 24 मार्च 2022 को इस घटना में शामिल असम राइफल्स के सैन्य कर्मियों के खिलाफ रक्षा मंत्रालय के सैन्य मामलों के विभाग से मुकदमा चलाने की मंजूरी मांगी थी. एसआईटी ने अपनी जांच में निष्कर्ष निकाला है कि पीड़ितों को 'मारने के स्पष्ट इरादे से' गोली मारी गई थी.
गौरतलब है कि सुरक्षा बलों के कर्मियों के खिलाफ सशस्त्र बल विशेष की धारा 197 (2) सीआरपीसी की धारा 6 के तहत उनके द्वारा की गई किसी भी कार्रवाई के लिए भारत सरकार से अभियोजन स्वीकृति की आवश्यकता है. हाल ही में गृह मंत्रालय ने नगालैंड में AFSPA को छह महीने की एक और अवधि के लिए बढ़ा दिया, जो 1 अप्रैल से शुरू हुआ.
एसआईटी द्वारा अपनी रिपोर्ट सौंपे जाने के महीनों बाद, जुलाई 2022 में आरोपी सेना के जवानों की पत्नियां सर्वोच्च न्यायालय से मामले पर आगे की कार्यवाही पर अंतरिम रोक लगवाने में सफल रहीं.
संपर्क करने पर रक्षा मंत्रालय या गृह मंत्रालय का कोई भी अधिकारी टिप्पणी के लिए उपलब्ध नहीं हुआ. वर्तमान में गृह मंत्रालय के पास असम राइफल्स पर प्रशासनिक अधिकार है जबकि रक्षा मंत्रालय के पास इसका परिचालन नियंत्रण है. हत्या के बाद गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में बयान दिया था कि यह घटना 'गलत पहचान' का मामला थी.
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