हैदराबाद: भारत पाकिस्तान बॉर्डर पर कंटीली तारों की दीवार के बारे में आप जानते होंगे. दुनियाभर में दो देशों के बीच ऐसी कंटीली दीवार के उदाहरणों की भरमार है. लेकिन दुनिया में कुछ देश ऐसे हैं जिन्होंने अपने पड़ोस से आने वाली कई तरह की मुसीबतों से बचने के लिए सरहद पर कई किलोमीटर लंबी कंक्रीट या स्टील की दीवार ही खड़ी कर दी. आखिर कौन से हैं वो देश और दीवार खड़ी करने का क्या मकसद है ?
सीरिया और ईरान के बॉर्डर पर तुर्की की दीवार
तुर्की द्वारा सीरिया और ईरान के बॉर्डर पर सैंकड़ों किलोमीटर लंबी दीवारों का निर्माण कार्य लगभग अंतिम चरण में है. तुर्की का ये प्रोजेक्ट साल 2016 में शुरू हुआ था. तुर्की की सरकार के मुताबिक 2020 के आखिर में सीरिया के बॉर्डर पर 911 किलोमीटर लंबी दीवार का काम पूरा हो चुका है और ईरान से लगती 560 किलोमीटर लंबे बॉर्डर पर 200 किलोमीटर की दीवार बना रहा है. तुर्की ने सीरिया की सीमा पर जो दीवार बनाई है वो चीन की दीवार (The Great Wall Of China) और मैक्सिको-अमेरिका बॉर्डर पर बनी दीवार के बाद दुनिया की तीसरी सबसे लंबी दीवार है.
ये दीवार थर्मल कैमरे, क्लोज़-अप सर्विलांस कैमरे, रडार, रिमोट कंट्रोल हथियार प्रणाली जैसी आधुनिक तकनीक से लैस हैं. हर 300 से 500 मीटर की दूरी तक एक वॉच टावर खड़ा किया गया है.
तुर्की के बॉर्डर पर ग्रीस की दीवार
यूनान (ग्रीस) पहले ही तुर्की की सीमा पर इस तरह की दीवार बना चुका है, जिसपर अत्याधुनिक सुरक्षा उपकरण लगे हुए हैं. ग्रीस ने बॉर्डर पर 200 किलोमीटर लंबी दीवार बनाई है, जिसपर आधुनिक कैमरे, साउंड कैनन और सेंसर लगे हुए हैं. दरअसल साल 2015 में सीरिया की जंग के बाद सीरिया और आस-पास के देशों के लाखों लोगों ने यूरोप का रुख करना शुरू किया. जिनमें से ज्यादातर लोग तुर्की से होते हुए ग्रीस और फिर यूरोप के दूसरे देशों तक पहुंचे थे.
अफगानिस्तान में तालिबान का कब्जा
करीब 20 साल बाद अफगानिस्तान पर तालिबान फिर से काबिज हो गया है. 15 अगस्त को जब तालिबान ने अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्जा किया तो दूसरे देशों के नागरिकों के अलावा कई अफगानी नागरिक भी अपना वतन छोड़ने की चाह में काबुल एयरपोर्ट पहुंचे थे. उसके बाद तो अफगान शरणार्थियों का नया मसला दुनिया के सामने खड़ा हो गया है.
वैसे ये पहली बार नहीं है जब अफगान शरणार्थी दूसरे मुल्कों का रुख कर रहे हैं. साल 2001 से पहले भी तालिबान के कब्जे के वक्त अफगानी नागरिकों ने दूसरे मुल्कों का रुख किया था. अफगानिस्तान के शरणार्थी ईरान के रास्ते तुर्की में दाखिल होते हैं और जिसकी सरहद यूरोप महाद्वीप का दरवाजा खोल देती है. ऐसे में मौजूदा हालात को देखते हुए ये दीवार अफगान शरणार्थियों के लिए मुश्किल तो बनेगी लेकिन तुर्की से लेकर ग्रीस जैसे देशों के दीवार बनाने के मकसद को एक बार फिर सही साबित करेंगी.
ऐसी दीवारें बनाने की क्या है वजह ?
1) अवैध प्रवासी और शरणार्थी- तुर्की और ग्रीस जैसे देशों का अपने बॉर्डर पर दीवार बनाने का सबसे प्रमुख उद्देश्य अवैध प्रवासियों और शरणार्थियों की तादाद पर लगाम लगाना है. दरअसल सीरिया में छिड़े गृह युद्ध के बाद लाखों सीरियाई नागरिकों ने तुर्की के रास्ते पड़ोसी देशों का रुख किया. तुर्की ने भी सीमाओं को खुला था रखा लेकिन संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक तुर्की में फिलहाल 35 से 40 लाख सीरियाई शरणार्थी हैं, जो दुनिया के किसी भी देश में मौजूद शरणार्थियों की सबसे बड़ी तादाद है लेकिन अब तुर्की किसी को भी अपनी सीमा पार करने की इजाजत नहीं देता.
ग्रीस ने भी तुर्की के बॉर्डर पर प्रवासियों को रोकने के लिए दीवार का निर्माण किया है. तुर्की ने फरवरी 2020 में प्रवासियों के लिए अपनी सीमा खोली थी लेकिन ग्रीस ने अपनी सीमा को पूरी तरह से बंद रखा था. इस तरह की दीवारों का निर्माण हाल के वर्षों में यूरोप में प्रवासियों के दाख़िल होने के प्रति विभिन्न देशों के रवैये की कठोरता को भी दर्शाता है.
2) सुरक्षा- देश की सीमा पर कांटों की दीवार हो या फिर कंक्रीट की, पहली नजर या इसका प्राथमिक उद्देश्य देश की सीमाओं की सुरक्षा करना ही होता है. भले तुर्की और ग्रीस की दीवार का प्राथमिक मकसद शरणार्थियों को रोकने का हो लेकिन सरहदों पर सुरक्षा के लिए दीवार बनाना दुश्मनों और घुसपैठियों के हमले से देश की सुरक्षा करना ही रहा है.
3) तस्करी- दुनिया के कई देश नशीले पदार्थों से लेकर हथियार और मानव अंगों से लेकर मानव तस्करी के दंश से जूझ रहे हैं. इस समस्या ने भी इस तरह की दीवारों को बनाने को बढ़ावा मिल रहा है, ताकि नशा, हथियार और मानव तस्करी जैसे अपराधों पर लगाम लगाई जा सके.
4) यूरोपियन यूनियन और तुर्की का समझौता- प्रवासियों को यूरोप में प्रवेश करने से रोकने के लिए यूरोपीय संघ ने मार्च 2016 में तुर्की के साथ एक ऐसा विवादास्पद समझौता किया था, जिसके तहत वो प्रवासियों को यूरोप में प्रवेश करने से रोकने के बदले तुर्की को पैसे का भुगतान करता था. दरअसल भौगोलिक स्थिति के हिसाब से तुर्की का बॉर्डर यूरोप की दहलीज पर खुलता है और एशियाई देशों से प्रवासियों की भीड़ का एक बड़ा हिस्सा तुर्की के रास्ते ही यूरोप तक पहुंच सकता है.
दुनिया में ऐसी दीवारें और भी हैं ?
1) अमेरिका-मैक्सिको की दीवार- इसे बॉर्डर वॉल या ट्रंप वॉल भी कहते हैं. दरअसल इस दीवार को कल्पना से सच्चाई में तब्दील करना का श्रेय अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप को जाता है. ट्रंप ने साल 2016 में अपने चुनाव अभियान के दौरान अमेरिका मैक्सिको की सरहद पर 1600 किलोमीटर से अधिक लंबी दीवार खड़ी करने का वादा किया था, साथ ही ट्रंप ने कहा था कि इस दीवार को बनाने की कीमत मैक्सिको अदा करेगा लेकिन मैक्सिको ने इससे साफ इनकार कर दिया था. राष्ट्रपति बनने के बाद ट्रंप ने निर्माण कार्य शुरू भी करवा दिया था.
अमेरिका और मैक्सिको के बीच 3145 किलोमीटर लंबी सरहद है. ट्रंप ने जिस 1600 किमी. लंबी दीवार बनाने का वादा किया था वो इस साल जनवरी की शुरुआत में लगभग 730 किलोमीटर बन चुकी है, जिसकी ऊंचाई 5 से 9 फीट रखी गई है साथ ही स्टील की इस दीवार की गहराई भी 6 फीट रखी गई थी ताकि नशे के तस्कर सुरंग ना बना सकें. लेकिन जो बाइडेन ने अमेरिका के राष्ट्रपति का पदभार संभालने के बाद इस दीवार के निर्माण पर रोक लगा दी.
2) इज़रायल की दीवार- 20 हजार वर्ग किलोमीटर एरिया वाले इजरायल का 1068 किमी. लंबा बॉर्डर है. इज़रायल ने 708 किलोमीटर लंबी है. कई जगह इस दीवार की ऊंचाई 16 फीट तक है, इस दीवार को जमीन से 8 फीट नीचे भी बनाया गया है. इज़रायल दुनिया का इकलौता यहूदी देश है और उसकी सीमा मिस्त्र, जॉर्डन, सीरिया, लेबनान और फलस्तीन जैसे देशों से लगी हुई है. जिनसे ये दीवार इजरायल की रक्षा करती है.
माना जाता है कि इस दीवार को बनाने का बजट 1 अरब डॉलर था लेकिन दीवार के बनते-बनते ये दोगुने से अधिक पहुंच गया. इजरायल ने भी माना है कि इस दीवार के चलते 90 फीसदी आतंकी हमले कम हुए हैं और सेना पर होने वाले उसके खर्च में भी कमी आई है.
3) बर्लिन की दीवार- दो देशों की सरहद का जिक्र हो तो बर्लिन की दीवार के जिक्र के बिना ये कहानी अधूरी है. बर्लिन शहर में 13 अगस्त 1961 को बनी एक दीवार ने रातों रात बर्लिन शहर और फिर जर्मनी को दो हिस्सों में बांट दिया. दरअसल दूसरे विश्व युद्ध के बाद जब जर्मनी दो हिस्सों में बंट गया तो सैंकड़ों लोग जिनमें कारीगर, व्यवसायी शामिल थे वो सियासी और अन्य कारणों से पूर्वी बर्लिन छोड़कर पश्चिमी बर्लिन जाने लगे, जिससे पूर्वी बर्लिन को आर्थिक और सियासी नुकसान होने लगा. जिसके बाद 160 किलोमीटर लंबी दीवार बनाई गई जिससे लोगों के प्रवासन में बहुत कमी देखी गई.
शुरुआत में कंटीली तारों की दीवार और फिर कंक्रीट की दीवार बनाई गई थी. लेकिन सोवियत संघ के कमजोर पड़ने के बाद दीवार का विरोध शुरू हुआ और प्रदर्शन होने लगे. आखिरकार 28 साल बाद 9 नवंबर 1989 को दीवार को तोड़ दिया गया. जिसके बाद दो हिस्सों में बंटा पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी भी एक हो गया. हालांकि दीवार के कई हिस्से आज भी बर्लिन में मौजूद हैं जो अब पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है.
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