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भारत-चीन के बीच हो चुकी 12 दौर की वार्ता, क्या निकलेगा सार्थक हल?

भारत और चीन के बीच शनिवार को हुई वरिष्ठ कमांडर स्तर की बारहवीं दौर की वार्ता 'रचनात्मक' होने के साथ-साथ केवल इस बात को रेखांकित करती है कि दोनों देशों के बीच जटिल सीमा मुद्दे का स्थायी समाधान केवल शीर्ष राजनीतिक स्तर पर वार्ता करके ही हासिल किया जा सकता है. पढ़िए वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की रिपोर्ट

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Published : Aug 3, 2021, 7:14 PM IST

नई दिल्ली : दो एशियाई देशों, भारत और चीन के बीच अब तक के बीच पूर्वी लद्दाख (Eastern Ladakh) में सीमा पर जारी गतिरोध को खत्म करने के लिए 12 दौर की वरिष्ठ कमांडर (Senior Commander ) स्तर की वार्ता हो चुकी है. इस दौरान न केवल रोष, हठ, छल, बल्कि सहानुभूतिपूर्ण समझ और ईमानदारी के विभिन्न रंग देखने को मिले.

बातचीत के दौरान 'असहायता' को स्पष्ट रूप से व्यक्त नहीं किया गया. हालांकि यह दोनों पक्षों के अधिकारियों के लिए प्रमुख भावना हो सकती है, क्योंकि दोनों पक्षों को कुछ ऐसा मामला हल करने के लिए प्रत्यायोजित किया गया है जिसके लिए उनके पास स्पष्ट रूप से जनादेश (mandate) नहीं है.

हालांकि एक तथ्य यह भी है कि दोनों पक्षों के प्रतिनिधिमंडलों में लेह स्थित 14 कोर के कमांडर, पीएलए के दक्षिण शिनजियांग सैन्य जिले (South Xinjiang Military District) के कमांडर, वरिष्ठ राजनयिक और अन्य शामिल हैं और जो अन्य समानांतर तंत्रों (parallel mechanisms ) पर प्रगति का पालन कर रहे हैं जैसे कि भारत-चीन सीमा मामलों पर परामर्श और समन्वय (Working Mechanism for Consultation) कार्य तंत्र.

चीन के साथ वार्ता का पूरा दायरा चीन अध्ययन समूह (China Study Group) द्वारा तय किया जाता है, जो कैबिनेट सचिव, गृह सचिव, विदेश सचिव, रक्षा सचिव, सेना, नौसेना और IAF और इंटेलिजेंस ब्यूरो (Intelligence Bureau) और रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (Research and Analysis Wing) के प्रमुख सदस्य का एक समूह है, जिसकी अध्यक्षता राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (National Security Advisor) करता है.

एजेंडा को मंजूरी मिलने के बाद ही सेना जमीनी स्तर पर बातचीत करती है और उसका जायजा लेती है.

वैचारिक मतभेदों (perception differences) के कारण सीमा पर उत्पन्न मौजूदा गतिरोध को हल करने के लिए कमांडर-स्तरीय वार्ता का चल रहा तंत्र स्थापित किया गया है, लेकिन बातचीत करने वाले सैन्य और नौकरशाही के प्राथमिक जनादेश के साथ 'विघटन और डी-एस्केलेट' (disengage and de-escalate) मुद्दों को हल करने में तभी सक्षम हो सकेंगे, जब एक आम सीमा (common border) पर समझौता हो जाए.

चीनी 1959 की क्लेम लाइन (claim line) के आधार पर क्षेत्रों की बहाली की मांग करते हैं, एक लाइन जिसे पहले पूर्व चीनी पीएम चाउ एल-लाई (former Chinese PM Chou el-Lai) द्वारा प्रस्तावित किया गया था और जिसे उनके भारतीय समकक्ष जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) ने ठुकरा दिया था, लेकिन जब एक साझा सीमा पर कोई समझौता नहीं होता है, तो बातचीत गलत आधार से शुरू होती है और कुछ भी हासिल नहीं होता. कुछ भी हो, 12 दौर की बातचीत से संकेत मिल रहा है कि सीमा गतिरोध को केवल भारत और चीन के राजनीतिक नेतृत्व (India and China political leaderships) ही खत्म कर सकते हैं.

अच्छी बात यह है कि दोनों देशों में मजबूत राष्ट्रवादी सरकारें ( pro-nationalists governments) हैं. नरेंद्र मोदी और शी जिनपिंग जैसे नेताओं के साथ-साथ उन्हें लंबे समय से चले आ रहे मुद्दे को हल करने के लिए अपने किसी भी पूर्ववर्तियों की तुलना में कहीं अधिक मजबूत स्थिति में रखा गया है.

जटिल पहलू यह है कि यह अब केवल दो देशों के बीच सीमा का मुद्दा नहीं रह गया है. यह अब एक रणनीतिक क्षेत्र बन गया है, जिसमें बड़ी शक्तियों के हित और कल्पना शामिल है. ऐसे में जब तक शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व शामिल नहीं होता, तब तक संकल्प को पूरा करना मुश्किल नजर आता है.

पढ़ें - सीमा पर शांति बहाली के लिए चीन को ही आगे आना होगा : पूर्व राजनयिक

नवीनतम दौर की वार्ता शनिवार (31 जुलाई, 2021) को वास्तविक नियंत्रण रेखा (Line of Actual Control ) के पास चुशुल में हुई थी. इससे पहले भारत के विदेश मंत्री की 14 जुलाई को दुशांबे (Dushanbe ) में अपने चीनी समकक्ष के साथ बैठक हुई थी, जबकि 25 जून को WMCC की मीटिंग हुई थी.

इससे पहले 9 अप्रैल, 6 जून, 22 जून, 30 जून, 14 जुलाई, 2 अगस्त, 21 सितंबर, 12 अक्टूबर, 6 नवंबर, 24 जनवरी और 20 फरवरी को ग्यारह दौर की कमांडर स्तरीय वार्ता हो चुकी हैं.

अपेक्षित रूप से सोमवार को एक संयुक्त बयान (joint statement) में कहा गया. दोनों पक्षों ने नोट किया कि बैठक का यह दौर रचनात्मक था, जिसने आपसी समझ (mutual understanding) को और बढ़ाया. वे इन शेष मुद्दों को मौजूदा समझौतों और प्रोटोकॉल के अनुसार शीघ्रता से हल करने और बातचीत और वार्ता की गति को बनाए रखने पर सहमत हुए हैं.

नई दिल्ली : दो एशियाई देशों, भारत और चीन के बीच अब तक के बीच पूर्वी लद्दाख (Eastern Ladakh) में सीमा पर जारी गतिरोध को खत्म करने के लिए 12 दौर की वरिष्ठ कमांडर (Senior Commander ) स्तर की वार्ता हो चुकी है. इस दौरान न केवल रोष, हठ, छल, बल्कि सहानुभूतिपूर्ण समझ और ईमानदारी के विभिन्न रंग देखने को मिले.

बातचीत के दौरान 'असहायता' को स्पष्ट रूप से व्यक्त नहीं किया गया. हालांकि यह दोनों पक्षों के अधिकारियों के लिए प्रमुख भावना हो सकती है, क्योंकि दोनों पक्षों को कुछ ऐसा मामला हल करने के लिए प्रत्यायोजित किया गया है जिसके लिए उनके पास स्पष्ट रूप से जनादेश (mandate) नहीं है.

हालांकि एक तथ्य यह भी है कि दोनों पक्षों के प्रतिनिधिमंडलों में लेह स्थित 14 कोर के कमांडर, पीएलए के दक्षिण शिनजियांग सैन्य जिले (South Xinjiang Military District) के कमांडर, वरिष्ठ राजनयिक और अन्य शामिल हैं और जो अन्य समानांतर तंत्रों (parallel mechanisms ) पर प्रगति का पालन कर रहे हैं जैसे कि भारत-चीन सीमा मामलों पर परामर्श और समन्वय (Working Mechanism for Consultation) कार्य तंत्र.

चीन के साथ वार्ता का पूरा दायरा चीन अध्ययन समूह (China Study Group) द्वारा तय किया जाता है, जो कैबिनेट सचिव, गृह सचिव, विदेश सचिव, रक्षा सचिव, सेना, नौसेना और IAF और इंटेलिजेंस ब्यूरो (Intelligence Bureau) और रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (Research and Analysis Wing) के प्रमुख सदस्य का एक समूह है, जिसकी अध्यक्षता राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (National Security Advisor) करता है.

एजेंडा को मंजूरी मिलने के बाद ही सेना जमीनी स्तर पर बातचीत करती है और उसका जायजा लेती है.

वैचारिक मतभेदों (perception differences) के कारण सीमा पर उत्पन्न मौजूदा गतिरोध को हल करने के लिए कमांडर-स्तरीय वार्ता का चल रहा तंत्र स्थापित किया गया है, लेकिन बातचीत करने वाले सैन्य और नौकरशाही के प्राथमिक जनादेश के साथ 'विघटन और डी-एस्केलेट' (disengage and de-escalate) मुद्दों को हल करने में तभी सक्षम हो सकेंगे, जब एक आम सीमा (common border) पर समझौता हो जाए.

चीनी 1959 की क्लेम लाइन (claim line) के आधार पर क्षेत्रों की बहाली की मांग करते हैं, एक लाइन जिसे पहले पूर्व चीनी पीएम चाउ एल-लाई (former Chinese PM Chou el-Lai) द्वारा प्रस्तावित किया गया था और जिसे उनके भारतीय समकक्ष जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) ने ठुकरा दिया था, लेकिन जब एक साझा सीमा पर कोई समझौता नहीं होता है, तो बातचीत गलत आधार से शुरू होती है और कुछ भी हासिल नहीं होता. कुछ भी हो, 12 दौर की बातचीत से संकेत मिल रहा है कि सीमा गतिरोध को केवल भारत और चीन के राजनीतिक नेतृत्व (India and China political leaderships) ही खत्म कर सकते हैं.

अच्छी बात यह है कि दोनों देशों में मजबूत राष्ट्रवादी सरकारें ( pro-nationalists governments) हैं. नरेंद्र मोदी और शी जिनपिंग जैसे नेताओं के साथ-साथ उन्हें लंबे समय से चले आ रहे मुद्दे को हल करने के लिए अपने किसी भी पूर्ववर्तियों की तुलना में कहीं अधिक मजबूत स्थिति में रखा गया है.

जटिल पहलू यह है कि यह अब केवल दो देशों के बीच सीमा का मुद्दा नहीं रह गया है. यह अब एक रणनीतिक क्षेत्र बन गया है, जिसमें बड़ी शक्तियों के हित और कल्पना शामिल है. ऐसे में जब तक शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व शामिल नहीं होता, तब तक संकल्प को पूरा करना मुश्किल नजर आता है.

पढ़ें - सीमा पर शांति बहाली के लिए चीन को ही आगे आना होगा : पूर्व राजनयिक

नवीनतम दौर की वार्ता शनिवार (31 जुलाई, 2021) को वास्तविक नियंत्रण रेखा (Line of Actual Control ) के पास चुशुल में हुई थी. इससे पहले भारत के विदेश मंत्री की 14 जुलाई को दुशांबे (Dushanbe ) में अपने चीनी समकक्ष के साथ बैठक हुई थी, जबकि 25 जून को WMCC की मीटिंग हुई थी.

इससे पहले 9 अप्रैल, 6 जून, 22 जून, 30 जून, 14 जुलाई, 2 अगस्त, 21 सितंबर, 12 अक्टूबर, 6 नवंबर, 24 जनवरी और 20 फरवरी को ग्यारह दौर की कमांडर स्तरीय वार्ता हो चुकी हैं.

अपेक्षित रूप से सोमवार को एक संयुक्त बयान (joint statement) में कहा गया. दोनों पक्षों ने नोट किया कि बैठक का यह दौर रचनात्मक था, जिसने आपसी समझ (mutual understanding) को और बढ़ाया. वे इन शेष मुद्दों को मौजूदा समझौतों और प्रोटोकॉल के अनुसार शीघ्रता से हल करने और बातचीत और वार्ता की गति को बनाए रखने पर सहमत हुए हैं.

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