हैदराबाद : पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के बीच दो ऑडियो टेप सामने आए हैं. एक टेप मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और पूर्वी मेदिनीपुर के एक भाजपा जिला उपाध्यक्ष प्रलय पॉल की है. इसमें ममता उस कार्यकर्ता से टीएमसी को मदद करने की अपील कर रहीं हैं. दूसरे टेप में भाजपा नेता मुकुल रॉय और पार्टी के दूसरे नेताओं के बीच की है. इसमें मुकुल रॉय चुनाव आयोग पहुंचकर बूथ एजेंट की नियुक्ति में नियमों में संशोधन करवाने की बात कर रहे हैं. हालांकि, दोनों ही टेपों की सत्यता की पुष्टि नहीं हुई है. इस बीच ममता बनर्जी ने नंदीग्राम की घटना पर एक बयान जारी कर उससे भी बड़ा धमाका कर दिया.
ममता ने कहा कि 14 मार्च 2007 को नंदीग्राम में हुई गोलीबारी के पीछे शिशिर अधिकारी और शुभेंदु अधिकारी थे. इस घटना में 14 लोग मारे गए थे. ममता नंदीग्राम के रियापाड़ा में जनसभा को संबोधित कर रहीं थीं. यहां से ममता बनर्जी और शुभेंदु अधिकारी आमने-सामने हैं. नंदीग्राम के किसान भूमि अधिग्रहण का विरोध कर रहे थे. वाम सरकार ने पेट्रोलियम, केमिकल्स और पेट्रोकेमिकल्स का उद्योग लगाने के लिए सालिम ग्रुप को जमीन देने का फैसला किया था. यह इंडोनेशिया की कंपनी है.
अधिकारी परिवार पर हमला बोलते हुए ममता ने कहा कि हां, मैं मानती हूं कि मैं बहुत कुछ नहीं कर सकी, क्योंकि मैं भद्रलोक से आती हूं. लेकिन आपको याद होगा कि घटना वाले दिन कुछ लोग हवाई चप्पल में आए थे. उन्होंने गोलीबारी की थी. मैं पूरे दावे और तथ्यों के साथ कह सकती हूं कि उस दिन पिता-पुत्र (अधिकारी परिवार) की अनुमति के बगैर पुलिस नंदीग्राम नहीं आ सकती थी.
ममता के इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर टिप्पणियों की बाढ़ आ गई. कुछ लोगों ने कहा कि आखिरकार दीदी ने अपने कट्टर राजनीतिक 'दुश्मन' बुद्धदेव भट्टाचार्य के दामन पर लगे 'खून के दाग' को धो दिया.
ऐसे में यह सवाल बहुत ही स्वाभाविक है कि आखिर ममता ने 14 सालों बात ये बात क्यों कही ? वह भी चुनाव के मौके पर. आज वह एक तरीके से सबसे कठिन चुनाव का सामना कर रहीं हैं. उनके सामने उनका पूर्व सहयोगी मैदान में है. इस बयान के जरिए दीदी क्या संदेश देना चाहती हैं ? क्या वाम शासन को वह पूरी तरह से पाक साफ मानती हैं ? क्या इसे भुलाया जा सकता है कि ममता ने पूरी जिंदगी उसी वाम के खिलाफ लड़ाई लड़ी. वाम की 'राख' पर ही ममता आगे बढ़ी हैं. ऐसे में लोगों के मन में ये सवाल बार-बार कौंध रहे हैं.
पूर्वी मेदिनीपुर का नंदीग्राम इलाका हमेशा से वाम का गढ़ रहा है. यहां पर दो ब्लॉक हैं. दो पंचायत समिति और 17 ग्राम पंचायत हैं. एक तरह हल्दिया और दूसरी तरफ हुगली, दोनों के बीच का यह इलाका है. हल्दिया और हुगली दोनों ही जगहों पर उद्योगों का कंप्लेक्स है. 3.5 लाख की आबादी है. 2.7 लाख मतदाता हैं. 27 फीसदी अल्पसंख्यक समुदाय से आते हैं.
तृणमूल रणनीतिकार अल्पसंख्यक समुदाय को अपना सुरक्षित वोट मान रहे हैं. ब्लॉक वन में अधिकांश अल्पसंख्यक रहते हैं. उनका आकलन है कि वे ममता बनर्जी को वोट करेंगे. इसके ठीक उलट शुभेंदु मुख्य रूप से ब्लॉक 2 पर निर्भर हैं. शुभेंदु इस क्षेत्र को बेहतर तरीके से समझते हैं. वह स्थानीय भी हैं. शुभेंदु की पूरी कोशिश है कि हिंदुओं का अधिकांश मत उन्हें मिले.
गंगासागर से करीब होने की वजह से नंदीग्राम में वैष्णव और कीर्तन मंडली की अच्छी खासी उपस्थिति है. शुभेंदु को उम्मीद है कि वे भी उनके पक्ष में मतदान करेंगे. उनके कीर्तन की गूंज ईवीएम तक जरूर पहुंचेगी.
टीएमसी और भाजपा के बीच प्रतिष्ठा की लड़ाई बन चुकी इस सीट पर वाम दल का क्या हाल है, इसे पूरी तरह से नकारा नहीं जा सकता है. 2011 में भी जब टीएमसी की जीत हुई थी, वाम दल को यहां पर 60 हजार वोट हासलि हुआ था. 2016 में वाम दल को 53 हजार वोट मिले थे, जबकि इस चुनाव में लेफ्ट बुरी तरह से हार चुका था. 2019 लोकसभा चुनाव में तामलुक संसदीय सीट पर लेफ्ट को 1.4 लाख वोट मिले थे. नंदीग्राम तामलुक का ही हिस्सा है.
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नंदीग्राम से सीपीएम ने मीनाक्षी मुखर्जी को उम्मीदवार बनाया है. जाहिर है, मीनाक्षी को मिले मत, नंदीग्राम से लड़ रहे उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला करेंगे. क्या यही वजह तो नहीं है कि ममता ने लेफ्ट के पक्ष में बयान जारी कर दिया है. हो सकता है ममता की कोशिश हो कि लेफ्ट का वोट कहीं भाजपा को चला न जाए, इसलिए उन्होंने यह बयान दिया हो.
शुभेंदु को भी पता है कि उनके सामने इस बार लक्ष्मण सेठ नहीं, बल्कि ममता बनर्जी हैं. ममता के बारे में कुछ भी कहना मुश्किल है. वह अचानक ही कई तरह के फैसले ले लेती हैं. विरोधी उनकी इसी अनप्रेडक्टिेबिलिटी से डरते हैं. भाजपा को पता है कि ममता को हराना इतना आसान नहीं है. वह कड़ी चुनौती देने वाली हैं. लिहाजा, ममता के सहयोगी द्वारा उन्हें हराया जाना, इतना आसान नहीं होगा.
कुछ पर्यवेक्षकों का मानना है कि हो सकता है ममता बहुत दूर की सोच रहीं हों. शायद बंगाल में अगर किसी पार्टी को स्पष्ट बहुमत न मिले, तो वैसी स्थिति में वह लेफ्ट का भी साथ ले सकती हैं. यही वजह है कि सचमुच नंदीग्राम का संघर्ष बहुत ही रोचक होता जा रहा है.