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India on Gaza truce: गाजा युद्धविराम को लेकर UN में भारत की भूमिका और पश्चिम एशिया संबंधों के बारे में जानें विशेषज्ञों की राय - संयुक्त राष्ट्र ने मानवीय संघर्ष विराम की मांग

इजरायल-हमास युद्ध को लेकर संयुक्त राष्ट्र ने मानवीय संघर्ष विराम की मांग की. इसके प्रस्ताव पर भारत मतदान से दूर रहा. अब इस बात को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं कि क्या इससे पश्चिम एशियाई देशों के साथ भारत के संबंधों में तनाव आएगा. पढ़ें ईटीवी भारत के अरूनिम भुइयां की रिपोर्ट... Indias on Gaza truce

Why Indias abstention from UN vote on Gaza truce  will not affect ties with West Asia
गाजा युद्धविराम को लेकर UN में भारत की भूमिका और पश्चिम एशिया संबंधों के बारे में जानें विशेषज्ञों की राय
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Oct 29, 2023, 8:02 AM IST

Updated : Oct 29, 2023, 8:08 AM IST

नई दिल्ली: भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के उस प्रस्ताव पर मतदान से परहेज किया जिसमें मौजूदा इजरायल-हमास युद्ध में तत्काल मानवीय संघर्ष विराम का आह्वान किया गया. हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि पश्चिम एशिया के देशों के साथ भारत के संबंधों पर असर पड़ने की संभावना नहीं है. भारत उन 45 देशों में शामिल है जिन्होंने नागरिकों की सुरक्षा और कानूनी और मानवीय दायित्वों को कायम रखने शीर्षक वाले यूएनजीए प्रस्ताव पर मतदान से परहेज किया. इसमें 120 देशों ने प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया. वहीं, अमेरिका और इजरायल सहित 14 अन्य ने इसके खिलाफ मतदान किया.

प्रस्ताव में यूएनजीए ने यह भी मांग की कि सभी पक्ष अंतरराष्ट्रीय मानवीय और मानवाधिकार कानूनों के तहत दायित्वों का तुरंत और पूरी तरह से पालन करें, विशेष रूप से नागरिकों और नागरिक वस्तुओं की सुरक्षा के संबंध में. इसने मानवीय कर्मियों, युद्ध में भाग लेने वाले व्यक्तियों और मानवीय सुविधाओं और संपत्तियों की सुरक्षा का भी आग्रह किया. गाजा पट्टी में सभी जरूरतमंद नागरिकों तक पहुंचने के लिए आवश्यक आपूर्ति और सेवाओं के लिए मानवीय पहुंच को सक्षम और सुविधाजनक बनाने का भी आग्रह किया.

इसके अलावा प्रस्ताव में फिलिस्तीनी नागरिकों संयुक्त राष्ट्र के कर्मचारियों और मानवीय कार्यकर्ताओं को गाजा के उत्तर में गाजा पट्टी के सभी क्षेत्रों को खाली करने और दक्षिण में स्थानांतरित करने के इजरायल के आदेश को रद्द करने का आह्वान किया गया. हालाँकि, भारत ने प्रस्ताव पर मतदान से परहेज किया क्योंकि वह आतंकवादी हमले के लिए फिलिस्तीनी आतंकवादी समूह हमास की निंदा करने में विफल रहा.

असेंबली ने भारत द्वारा समर्थित एक संशोधन को खारिज कर दिया, जिसने समूह का नाम रखा होगा. इससे अटकलें तेज हो गईं कि क्या इससे पश्चिम एशियाई देशों के साथ भारत के संबंधों पर असर पड़ेगा. लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसी सभी अटकलें निराधार हैं. इराक और जॉर्डन में पूर्व भारतीय राजदूत आर दयाकर के अनुसार पश्चिम एशियाई देशों के साथ भारत के संबंध मुख्य रूप से तीन कारणों से प्रभावित नहीं होंगे.

आर दयाकर विदेश मंत्रालय के पश्चिम एशिया डेस्क में भी कार्यरत थे. दयाकर ने 'ईटीवी भारत' को बताया, 'एक तो यह कि भारत ने उस प्रस्ताव के पक्ष या विपक्ष में मतदान न करने की सैद्धांतिक स्थिति अपनाई, जिसे वह एकतरफा मानता था. भारत ने एक तथ्यात्मक रुख अपनाया कि जिन घटनाओं के कारण मौजूदा युद्ध हुआ, उनमें हमास की भूमिका का प्रस्ताव में उल्लेख किया जाना चाहिए.'

भारत ने कनाडा द्वारा लाए गए प्रस्ताव में संशोधन का समर्थन किया था जिसमें हमास का नाम था और इजराइल में 7 अक्टूबर के हमलों की निंदा की थी, लेकिन यह पारित होने में विफल रहा, केवल 88 वोट मिले, जबकि इसके खिलाफ 54 वोट पड़े. इसमें 23 अनुपस्थित रहे. मसौदा संशोधन को अपनाया नहीं जा सका क्योंकि यह उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों का दो-तिहाई बहुमत प्राप्त करने में विफल रहा.

संयुक्त राष्ट्र में भारत की उप स्थायी प्रतिनिधि योजना पटेल ने मतदान के बाद कहा, '7 अक्टूबर को इजरायल में हुए आतंकी हमले चौंकाने वाले थे और निंदा के लायक थे. दुनिया को आतंकी कृत्यों के किसी भी औचित्य पर विश्वास नहीं करना चाहिए. आइए हम मतभेदों को दूर रखें, एकजुट हों और आतंकवादियों के प्रति शून्य सहिष्णुता का दृष्टिकोण अपनाएं.'

स्वतंत्र थिंक टैंक इमेजइंडिया के अध्यक्ष रोबिंदर सचदेव के अनुसार, मतदान से भारत का अनुपस्थित रहना भारत की आतंकवाद के प्रति शून्य सहिष्णुता की घोषित नीति को दर्शाता है. सचदेव ने कहा, 'पश्चिम एशियाई देश आतंकवाद के मुद्दे पर भारत के वैश्विक रुख से अच्छी तरह वाकिफ हैं. साथ ही, वे फिलिस्तीन मुद्दे (जो कि इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष को समाप्त करने के लिए दो-राज्य समाधान है) पर भारत के रुख को जानते हैं.'

दयाकर के अनुसार, भारत-पश्चिम एशिया संबंधों पर असर नहीं पड़ने का दूसरा कारण यह है कि कुछ अरब और अन्य मुस्लिम देशों ने भी प्रस्ताव पर मतदान से परहेज किया. दयाकर ने बताया, 'इराक और ट्यूनीशिया, दोनों अरब देश मतदान से अनुपस्थित रहे. इराक, अपनी स्वतंत्र विदेश नीति के हिस्से के रूप में अमेरिका और ईरान दोनों से समान दूरी बनाए रखता है.

लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि ट्यूनीशिया भी मतदान से दूर रहा जबकि ट्यूनीशिया ने कभी फिलिस्तीन मुक्ति संगठन के मुख्यालय के रूप में कार्य किया था. दयाकर ने कहा कि भारत-पश्चिम एशिया संबंधों पर असर नहीं पड़ने का तीसरा कारण यह है कि भारत हमेशा एकतरफा प्रस्तावों पर मतदान से दूर रहकर सैद्धांतिक रुख अपनाता है.

उन्होंने कहा, 'भारत ने एकतरफा प्रस्ताव में संतुलन की कमी को दूर करने की कोशिश की. भारत ने संतुलन की कमी को दूर करने के लिए संशोधन का समर्थन किया जिसे आवश्यक दो-तिहाई बहुमत नहीं मिला.' दयाकर ने बताया कि यह पहली बार नहीं है कि भारत ने फिलिस्तीन मुद्दे पर प्रस्ताव में मतदान से परहेज किया है. भारत ने हमेशा एकतरफा प्रस्तावों पर मतदान से परहेज किया है.

मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट ऑफ डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस के एसोसिएट फेलो एस सैमुअल सी राजीव ने कहा कि भारत ने संयुक्त राष्ट्र में इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष पर लगातार रुख बनाए रखा है. राजीव ने कहा, 'इसने ज्यादातर फिलिस्तीन मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के पक्ष में मतदान किया है, चाहे वह इजरायली निपटान गतिविधियों और दो-राज्य समाधान पर हो.

गाजा में वर्तमान संघर्ष की अनूठी विशेषताओं को पहचानना महत्वपूर्ण है, जिसे इजराइल हमास के साथ लड़ रहा है, जिसे अमेरिका और ब्रिटेन द्वारा आतंकवादी संगठन के रूप में नामित किया गया है.' उन्होंने कहा कि जहां भारत ने हमास के आतंकवादी हमलों की निंदा की है, वहीं उसने 7 अक्टूबर के हमलों के बाद फिलिस्तीनियों को सहायता भी भेजी है और अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून का सम्मान करने का आह्वान किया है, जो स्पष्ट रूप से इजरायल की ओर इशारा है.

ये भी पढ़ें- Hamas Two Commanders killed: IDF ने आतंकी संगठन हमास के दो कमांडरों को मार गिराया

राजीव ने कहा, 'भारत ने पिछले पांच वर्षों में फिलिस्तीनियों को 30 मिलियन डॉलर से अधिक की सहायता दी है.' सचदेव के अनुसार, प्रस्ताव पर मतदान से भारत का अनुपस्थित रहना देश की विदेश नीति के अनुरूप है. उन्होंने कहा, 'अगर हमास का उल्लेख करने वाला संशोधन प्रस्ताव में शामिल किया गया होता और भारत अभी भी मतदान से अनुपस्थित रहता, तो केवल भारत की विदेश नीति का एक बहुत अलग अर्थ हो सकता था.' तो क्या भारत ने प्रस्ताव पर मतदान से अनुपस्थित रहकर इजराइल पर एहसान किया है? दयाकर ने कहा,बिल्कुल नहीं, याद रखें, भारत ने मतदान में भाग नहीं लिया. वह इस्राइल पर तभी उपकार कर सकता था जब उसने प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया होता.'

नई दिल्ली: भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के उस प्रस्ताव पर मतदान से परहेज किया जिसमें मौजूदा इजरायल-हमास युद्ध में तत्काल मानवीय संघर्ष विराम का आह्वान किया गया. हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि पश्चिम एशिया के देशों के साथ भारत के संबंधों पर असर पड़ने की संभावना नहीं है. भारत उन 45 देशों में शामिल है जिन्होंने नागरिकों की सुरक्षा और कानूनी और मानवीय दायित्वों को कायम रखने शीर्षक वाले यूएनजीए प्रस्ताव पर मतदान से परहेज किया. इसमें 120 देशों ने प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया. वहीं, अमेरिका और इजरायल सहित 14 अन्य ने इसके खिलाफ मतदान किया.

प्रस्ताव में यूएनजीए ने यह भी मांग की कि सभी पक्ष अंतरराष्ट्रीय मानवीय और मानवाधिकार कानूनों के तहत दायित्वों का तुरंत और पूरी तरह से पालन करें, विशेष रूप से नागरिकों और नागरिक वस्तुओं की सुरक्षा के संबंध में. इसने मानवीय कर्मियों, युद्ध में भाग लेने वाले व्यक्तियों और मानवीय सुविधाओं और संपत्तियों की सुरक्षा का भी आग्रह किया. गाजा पट्टी में सभी जरूरतमंद नागरिकों तक पहुंचने के लिए आवश्यक आपूर्ति और सेवाओं के लिए मानवीय पहुंच को सक्षम और सुविधाजनक बनाने का भी आग्रह किया.

इसके अलावा प्रस्ताव में फिलिस्तीनी नागरिकों संयुक्त राष्ट्र के कर्मचारियों और मानवीय कार्यकर्ताओं को गाजा के उत्तर में गाजा पट्टी के सभी क्षेत्रों को खाली करने और दक्षिण में स्थानांतरित करने के इजरायल के आदेश को रद्द करने का आह्वान किया गया. हालाँकि, भारत ने प्रस्ताव पर मतदान से परहेज किया क्योंकि वह आतंकवादी हमले के लिए फिलिस्तीनी आतंकवादी समूह हमास की निंदा करने में विफल रहा.

असेंबली ने भारत द्वारा समर्थित एक संशोधन को खारिज कर दिया, जिसने समूह का नाम रखा होगा. इससे अटकलें तेज हो गईं कि क्या इससे पश्चिम एशियाई देशों के साथ भारत के संबंधों पर असर पड़ेगा. लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसी सभी अटकलें निराधार हैं. इराक और जॉर्डन में पूर्व भारतीय राजदूत आर दयाकर के अनुसार पश्चिम एशियाई देशों के साथ भारत के संबंध मुख्य रूप से तीन कारणों से प्रभावित नहीं होंगे.

आर दयाकर विदेश मंत्रालय के पश्चिम एशिया डेस्क में भी कार्यरत थे. दयाकर ने 'ईटीवी भारत' को बताया, 'एक तो यह कि भारत ने उस प्रस्ताव के पक्ष या विपक्ष में मतदान न करने की सैद्धांतिक स्थिति अपनाई, जिसे वह एकतरफा मानता था. भारत ने एक तथ्यात्मक रुख अपनाया कि जिन घटनाओं के कारण मौजूदा युद्ध हुआ, उनमें हमास की भूमिका का प्रस्ताव में उल्लेख किया जाना चाहिए.'

भारत ने कनाडा द्वारा लाए गए प्रस्ताव में संशोधन का समर्थन किया था जिसमें हमास का नाम था और इजराइल में 7 अक्टूबर के हमलों की निंदा की थी, लेकिन यह पारित होने में विफल रहा, केवल 88 वोट मिले, जबकि इसके खिलाफ 54 वोट पड़े. इसमें 23 अनुपस्थित रहे. मसौदा संशोधन को अपनाया नहीं जा सका क्योंकि यह उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों का दो-तिहाई बहुमत प्राप्त करने में विफल रहा.

संयुक्त राष्ट्र में भारत की उप स्थायी प्रतिनिधि योजना पटेल ने मतदान के बाद कहा, '7 अक्टूबर को इजरायल में हुए आतंकी हमले चौंकाने वाले थे और निंदा के लायक थे. दुनिया को आतंकी कृत्यों के किसी भी औचित्य पर विश्वास नहीं करना चाहिए. आइए हम मतभेदों को दूर रखें, एकजुट हों और आतंकवादियों के प्रति शून्य सहिष्णुता का दृष्टिकोण अपनाएं.'

स्वतंत्र थिंक टैंक इमेजइंडिया के अध्यक्ष रोबिंदर सचदेव के अनुसार, मतदान से भारत का अनुपस्थित रहना भारत की आतंकवाद के प्रति शून्य सहिष्णुता की घोषित नीति को दर्शाता है. सचदेव ने कहा, 'पश्चिम एशियाई देश आतंकवाद के मुद्दे पर भारत के वैश्विक रुख से अच्छी तरह वाकिफ हैं. साथ ही, वे फिलिस्तीन मुद्दे (जो कि इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष को समाप्त करने के लिए दो-राज्य समाधान है) पर भारत के रुख को जानते हैं.'

दयाकर के अनुसार, भारत-पश्चिम एशिया संबंधों पर असर नहीं पड़ने का दूसरा कारण यह है कि कुछ अरब और अन्य मुस्लिम देशों ने भी प्रस्ताव पर मतदान से परहेज किया. दयाकर ने बताया, 'इराक और ट्यूनीशिया, दोनों अरब देश मतदान से अनुपस्थित रहे. इराक, अपनी स्वतंत्र विदेश नीति के हिस्से के रूप में अमेरिका और ईरान दोनों से समान दूरी बनाए रखता है.

लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि ट्यूनीशिया भी मतदान से दूर रहा जबकि ट्यूनीशिया ने कभी फिलिस्तीन मुक्ति संगठन के मुख्यालय के रूप में कार्य किया था. दयाकर ने कहा कि भारत-पश्चिम एशिया संबंधों पर असर नहीं पड़ने का तीसरा कारण यह है कि भारत हमेशा एकतरफा प्रस्तावों पर मतदान से दूर रहकर सैद्धांतिक रुख अपनाता है.

उन्होंने कहा, 'भारत ने एकतरफा प्रस्ताव में संतुलन की कमी को दूर करने की कोशिश की. भारत ने संतुलन की कमी को दूर करने के लिए संशोधन का समर्थन किया जिसे आवश्यक दो-तिहाई बहुमत नहीं मिला.' दयाकर ने बताया कि यह पहली बार नहीं है कि भारत ने फिलिस्तीन मुद्दे पर प्रस्ताव में मतदान से परहेज किया है. भारत ने हमेशा एकतरफा प्रस्तावों पर मतदान से परहेज किया है.

मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट ऑफ डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस के एसोसिएट फेलो एस सैमुअल सी राजीव ने कहा कि भारत ने संयुक्त राष्ट्र में इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष पर लगातार रुख बनाए रखा है. राजीव ने कहा, 'इसने ज्यादातर फिलिस्तीन मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के पक्ष में मतदान किया है, चाहे वह इजरायली निपटान गतिविधियों और दो-राज्य समाधान पर हो.

गाजा में वर्तमान संघर्ष की अनूठी विशेषताओं को पहचानना महत्वपूर्ण है, जिसे इजराइल हमास के साथ लड़ रहा है, जिसे अमेरिका और ब्रिटेन द्वारा आतंकवादी संगठन के रूप में नामित किया गया है.' उन्होंने कहा कि जहां भारत ने हमास के आतंकवादी हमलों की निंदा की है, वहीं उसने 7 अक्टूबर के हमलों के बाद फिलिस्तीनियों को सहायता भी भेजी है और अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून का सम्मान करने का आह्वान किया है, जो स्पष्ट रूप से इजरायल की ओर इशारा है.

ये भी पढ़ें- Hamas Two Commanders killed: IDF ने आतंकी संगठन हमास के दो कमांडरों को मार गिराया

राजीव ने कहा, 'भारत ने पिछले पांच वर्षों में फिलिस्तीनियों को 30 मिलियन डॉलर से अधिक की सहायता दी है.' सचदेव के अनुसार, प्रस्ताव पर मतदान से भारत का अनुपस्थित रहना देश की विदेश नीति के अनुरूप है. उन्होंने कहा, 'अगर हमास का उल्लेख करने वाला संशोधन प्रस्ताव में शामिल किया गया होता और भारत अभी भी मतदान से अनुपस्थित रहता, तो केवल भारत की विदेश नीति का एक बहुत अलग अर्थ हो सकता था.' तो क्या भारत ने प्रस्ताव पर मतदान से अनुपस्थित रहकर इजराइल पर एहसान किया है? दयाकर ने कहा,बिल्कुल नहीं, याद रखें, भारत ने मतदान में भाग नहीं लिया. वह इस्राइल पर तभी उपकार कर सकता था जब उसने प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया होता.'

Last Updated : Oct 29, 2023, 8:08 AM IST
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