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सुष्मिता देव कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल क्यों नहीं हुईं, जानें क्या है कारण

सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस पार्टी को बड़ा झटका देते हुए अग्रणी नेताओं में से एक सुष्मिता देव ने सोमवार को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफे की घोषणा कर दी. साथ ही वे पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाली अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस (AITC) में शामिल हो गईं. पढ़ें वरिष्ठ संवाददाता कृष्णानंद त्रिपाठी की रिपोर्ट.

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Published : Aug 16, 2021, 10:50 PM IST

नई दिल्ली : सुष्मिता देव अखिल भारतीय महिला कांग्रेस की अध्यक्ष थीं और कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की करीबी विश्वासपात्र भी रहीं. सुष्मिता, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल के दौरान लोकसभा में कांग्रेस पार्टी की सबसे मुखर आवाजों में से एक थीं, जब वह असम के सिलचर से लोकसभा सांसद थीं.

पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता संतोष मोहन देव की बेटी सुष्मिता देव लोकसभा में नारेबाजी कर सदन के वेल में आकर सरकार पर जमकर निशाना साधने वाले कांग्रेस के सभी सदस्यों में हमेशा सबसे आगे रहीं. लोकसभा में विरोध और प्रदर्शनों के दौरान उनके कारण ही कांग्रेस आलाकमान ने उन्हें सितंबर 2017 में लोकसभा में पार्टी की महिला विंग की राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया था.

सुष्मिता देव लोकसभा में राहुल गांधी के लिए इतनी महत्वपूर्ण थीं कि वे लोकसभा में उन कांग्रेस सांसदों की सूची में शामिल हो गईं, जिन्हें विशेष रूप से 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की चुनावी मशीनरी ने राहुल गांधी को सदन में अलग-थलग करने के लिए निशाना बनाया.

एक रणनीति के तहत भाजपा ने कर्नाटक में गुलबर्गा लोकसभा सीट से सदस्य मल्लिकार्जुन खड़गे और मध्य प्रदेश के गुना में ज्योतिरादित्य सिंधिया और असम के सिलचर लोकसभा क्षेत्र में सुष्मिता देव के खिलाफ अपने स्टार प्रचारकों को तैनात किया. तीनों लोकसभा में राहुल गांधी के भरोसेमंद सहयोगी 2019 में बीजेपी उम्मीदवारों से हार गए थे.

गुलबर्गा और गुना में भाजपा ने कांग्रेस खेमे में दलबदल कराया और खड़गे व सिंधिया को हराने के लिए पूर्व कांग्रेस कार्यकर्ताओं को आगे खड़ा किया. भाजपा ने कांग्रेस विधायक उमेश जी. जाधव को हथियार बनाया और उन्हें खड़गे के खिलाफ मैदान में उतारा, जो पिछले 10 वर्षों से सीट पर काबिज थे.

इसी तरह भाजपा ने गुना से अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए सिंधिया के खिलाफ कांग्रेस के असंतुष्ट किशन पाल सिंह यादव को मैदान में उतारा. जिस सीट पर सिंधिया 2002 के उपचुनाव से जीत रहे थे. गुना सीट का प्रतिनिधित्व ज्योतिरादित्य के पिता माधवराव सिंधिया ने किया था, जो सितंबर 2001 में उत्तर प्रदेश में एक विमान दुर्घटना में मारे गए थे.

इसी तरह सिलचर लोकसभा सीट पर भाजपा के स्टार प्रचारक सुष्मिता देव के खिलाफ उतारे गए. प्रधानमंत्री मोदी ने जनवरी और मार्च 2019 में खुद सिलचर का दौरा किया और आरएसएस के वरिष्ठ पदाधिकारी राम माधव ने 2019 के लोकसभा चुनाव में मतदान से दो दिन पहले सिलचर में डेरा डाल दिया.

तत्कालीन मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने भी सिलचर में रैलियां की. इससे पता चलता है कि भाजपा सुष्मिता देव को हराने के लिए कितनी लालायित रही. इसके अलावा पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए भाजपा के मास्टर रणनीतिकार हिमंत बिस्वा सरमा ने सुष्मिता देव की हार सुनिश्चित करने के लिए अपनी पूरी ऊर्जा लगा दी थी.

सुष्मिता देव ने कांग्रेस क्यों छोड़ी

सुष्मिता देव कांग्रेस पार्टी की अकेली युवा नेता नहीं हैं जो पार्टी से असंतुष्ट थीं. जिन्होंने हाल के दिनों में कांग्रेस छोड़ दी है. राहुल गांधी के सबसे भरोसेमंद सहयोगियों में से एक रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पिछले साल मार्च में कांग्रेस छोड़ दी थी. जब उन्हें कांग्रेस के दो वरिष्ठ नेताओं दिग्विजय सिंह और तत्कालीन कांग्रेस के मुख्यमंत्री कमलनाथ की संयुक्त शक्ति से मध्य प्रदेश की राजनीति में अलग-थलग करने की कोशिशें की गईं.

बाद में उन्होंने राज्य में कमलनाथ सरकार को गिराने में भाजपा की मदद की और उपहार स्वरुप उन्हें राज्यसभा की सीट दी गई. सिंधिया को इस साल जुलाई में कैबिनेट फेरबदल में नागरिक उड्डयन मंत्री भी बनाया गया.

इतना ही नहीं प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल के दौरान केंद्रीय राज्य मंत्री रहे जितिन प्रसाद ने भी कांग्रेस छोड़ दी और इस साल जून में भाजपा में शामिल हो गए. कांग्रेस पार्टी के सूत्रों के अनुसार सुष्मिता देव, जिन्हें 2017 में लोकसभा में सरकार पर तीखे हमलों के कारण कांग्रेस पार्टी की महिला विंग का प्रभार दिया गया था, 2019 के आम चुनाव के बाद से ही खुद को अलग-थलग महसूस कर रही थीं.

आम चुनावों के बाद उन्हें (सुष्मिता देव) उम्मीद थी कि किसी महत्वपूर्ण राज्य में पार्टी संगठन में प्रदेश प्रभारी बनाया जाएगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. तब से पार्टी से उनकी दूरी बढ़ गई थी. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल, जो कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद, मनीष तिवारी और शशि थरूर जैसे 22 अन्य वरिष्ठ नेताओं के साथ मिलकर एक दबाव समूह बनाकर पार्टी में आंतरिक सुधार की मांग कर रहे थे, ने सुष्मिता के इस्तीफे के बाद अपनी निराशा व्यक्त की.

सिब्बल ने एक ट्वीट में कहा कि सुष्मिता देव ने हमारी पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. युवा नेता हमें छोड़ रहे हैं. हम बूढ़ों को इसे मजबूत करने के हमारे प्रयासों के लिए दोषी ठहराया जाता है.

सिब्बल, जिन्होंने हाल ही में 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी दलों में एकता बनाने के लिए एक स्वतंत्र रात्रिभोज की मेजबानी की, राजस्थान में कांग्रेस के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच कड़वाहट से निपटने के लिए पार्टी की आलोचना की. सुष्मिता देव का जाना पहली घटना नहीं है जब कपिल सिब्बल ने कांग्रेस के युवा नेताओं के पार्टी छोड़ने के खतरों पर चिंता व्यक्त की है.

सिब्बल ने पिछले साल जुलाई में उस वक्त ट्विट किया, जब पार्टी की राजस्थान इकाई में गहलोत और पायलट खेमों के बीच तीखी गुटबाजी चल रही थी. उन्होंने लिखा था कि हमारी पार्टी के लिए चिंता का विषय है. क्या हम तभी जागेंगे जब हमारे अस्तबल से घोड़े निकल जाएंगे?

सिब्बल बाद में कांग्रेस के एक अन्य वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम से जुड़ गए, जिन्होंने सार्वजनिक रूप से सचिन पायलट से पार्टी में बने रहने और आंतरिक पार्टी तंत्र के माध्यम से गहलोत के साथ अपने मतभेदों को हल करने की अपील की थी. अंततः पायलट ने सरकार छोड़ दी लेकिन पार्टी के साथ बने रहे.

सुष्मिता देव बीजेपी में शामिल क्यों नहीं हुईं

मामले से परिचित लोगों के अनुसार हिमंत बिस्वा सरमा ने 2019 में सिलचर से लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए सुष्मिता देव को भाजपा का टिकट देने की पेशकश की थी. यह प्रस्ताव राहुल गांधी को लोकसभा में अलग-थलग करने की भाजपा की रणनीति का एक हिस्सा था.

भगवा पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में कर्नाटक के गुलबर्गा और मध्य प्रदेश के गुना में कांग्रेस नेताओं को हराकर राहुल गांधी के दो भरोसेमंद सहयोगियों को हराने में सफलता हासिल की थी. हालांकि सुष्मिता देव ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया. इस मामले से परिचित एक कांग्रेसी नेता ने ईटीवी भारत को बताया कि मेरी जानकारी के अनुसार सुष्मिता को 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा में शामिल होने के लिए हिमंत बिस्वा सरमा ने संपर्क किया था लेकिन उन्होंने इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया.

हिमंता ने सुष्मिता को चेतावनी दी कि अगर वे भाजपा में शामिल नहीं हुईं तो पार्टी सिलचर सीट से उनकी हार सुनिश्चित करेगी और यही हुआ भी. सुष्मिता देव के 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा के प्रस्ताव को ठुकराने के फैसले ने भी भविष्य में उनके लिए भगवा पार्टी के दरवाजे बंद कर दिए थे.

यह भी पढ़ें-कांग्रेस से इस्तीफा देकर टीएमसी में शामिल हुईं सुष्मिता देव, जानें इसके मायने

कांग्रेस नेता ने कहा कि भाजपा ने उनसे दूरी बनाए रखी. अन्यथा, वह इस साल असम में विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हो सकती थीं और हिमंत बिस्वा सरमा के मंत्रिमंडल में मंत्री भी बन सकती थीं. कांग्रेस नेता ने कहा कि उनके (सुष्मिता देव) जैसा व्यक्ति कांग्रेस छोड़कर टीएमसी में इसलिए शामिल हुआ क्योंकि पार्टी आलाकमान से उनके लिए राज्यसभा की सीट या कोई अन्य महत्वपूर्ण जिम्मेदारी नहीं दी गई.

नई दिल्ली : सुष्मिता देव अखिल भारतीय महिला कांग्रेस की अध्यक्ष थीं और कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की करीबी विश्वासपात्र भी रहीं. सुष्मिता, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल के दौरान लोकसभा में कांग्रेस पार्टी की सबसे मुखर आवाजों में से एक थीं, जब वह असम के सिलचर से लोकसभा सांसद थीं.

पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता संतोष मोहन देव की बेटी सुष्मिता देव लोकसभा में नारेबाजी कर सदन के वेल में आकर सरकार पर जमकर निशाना साधने वाले कांग्रेस के सभी सदस्यों में हमेशा सबसे आगे रहीं. लोकसभा में विरोध और प्रदर्शनों के दौरान उनके कारण ही कांग्रेस आलाकमान ने उन्हें सितंबर 2017 में लोकसभा में पार्टी की महिला विंग की राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया था.

सुष्मिता देव लोकसभा में राहुल गांधी के लिए इतनी महत्वपूर्ण थीं कि वे लोकसभा में उन कांग्रेस सांसदों की सूची में शामिल हो गईं, जिन्हें विशेष रूप से 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की चुनावी मशीनरी ने राहुल गांधी को सदन में अलग-थलग करने के लिए निशाना बनाया.

एक रणनीति के तहत भाजपा ने कर्नाटक में गुलबर्गा लोकसभा सीट से सदस्य मल्लिकार्जुन खड़गे और मध्य प्रदेश के गुना में ज्योतिरादित्य सिंधिया और असम के सिलचर लोकसभा क्षेत्र में सुष्मिता देव के खिलाफ अपने स्टार प्रचारकों को तैनात किया. तीनों लोकसभा में राहुल गांधी के भरोसेमंद सहयोगी 2019 में बीजेपी उम्मीदवारों से हार गए थे.

गुलबर्गा और गुना में भाजपा ने कांग्रेस खेमे में दलबदल कराया और खड़गे व सिंधिया को हराने के लिए पूर्व कांग्रेस कार्यकर्ताओं को आगे खड़ा किया. भाजपा ने कांग्रेस विधायक उमेश जी. जाधव को हथियार बनाया और उन्हें खड़गे के खिलाफ मैदान में उतारा, जो पिछले 10 वर्षों से सीट पर काबिज थे.

इसी तरह भाजपा ने गुना से अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए सिंधिया के खिलाफ कांग्रेस के असंतुष्ट किशन पाल सिंह यादव को मैदान में उतारा. जिस सीट पर सिंधिया 2002 के उपचुनाव से जीत रहे थे. गुना सीट का प्रतिनिधित्व ज्योतिरादित्य के पिता माधवराव सिंधिया ने किया था, जो सितंबर 2001 में उत्तर प्रदेश में एक विमान दुर्घटना में मारे गए थे.

इसी तरह सिलचर लोकसभा सीट पर भाजपा के स्टार प्रचारक सुष्मिता देव के खिलाफ उतारे गए. प्रधानमंत्री मोदी ने जनवरी और मार्च 2019 में खुद सिलचर का दौरा किया और आरएसएस के वरिष्ठ पदाधिकारी राम माधव ने 2019 के लोकसभा चुनाव में मतदान से दो दिन पहले सिलचर में डेरा डाल दिया.

तत्कालीन मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने भी सिलचर में रैलियां की. इससे पता चलता है कि भाजपा सुष्मिता देव को हराने के लिए कितनी लालायित रही. इसके अलावा पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए भाजपा के मास्टर रणनीतिकार हिमंत बिस्वा सरमा ने सुष्मिता देव की हार सुनिश्चित करने के लिए अपनी पूरी ऊर्जा लगा दी थी.

सुष्मिता देव ने कांग्रेस क्यों छोड़ी

सुष्मिता देव कांग्रेस पार्टी की अकेली युवा नेता नहीं हैं जो पार्टी से असंतुष्ट थीं. जिन्होंने हाल के दिनों में कांग्रेस छोड़ दी है. राहुल गांधी के सबसे भरोसेमंद सहयोगियों में से एक रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पिछले साल मार्च में कांग्रेस छोड़ दी थी. जब उन्हें कांग्रेस के दो वरिष्ठ नेताओं दिग्विजय सिंह और तत्कालीन कांग्रेस के मुख्यमंत्री कमलनाथ की संयुक्त शक्ति से मध्य प्रदेश की राजनीति में अलग-थलग करने की कोशिशें की गईं.

बाद में उन्होंने राज्य में कमलनाथ सरकार को गिराने में भाजपा की मदद की और उपहार स्वरुप उन्हें राज्यसभा की सीट दी गई. सिंधिया को इस साल जुलाई में कैबिनेट फेरबदल में नागरिक उड्डयन मंत्री भी बनाया गया.

इतना ही नहीं प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल के दौरान केंद्रीय राज्य मंत्री रहे जितिन प्रसाद ने भी कांग्रेस छोड़ दी और इस साल जून में भाजपा में शामिल हो गए. कांग्रेस पार्टी के सूत्रों के अनुसार सुष्मिता देव, जिन्हें 2017 में लोकसभा में सरकार पर तीखे हमलों के कारण कांग्रेस पार्टी की महिला विंग का प्रभार दिया गया था, 2019 के आम चुनाव के बाद से ही खुद को अलग-थलग महसूस कर रही थीं.

आम चुनावों के बाद उन्हें (सुष्मिता देव) उम्मीद थी कि किसी महत्वपूर्ण राज्य में पार्टी संगठन में प्रदेश प्रभारी बनाया जाएगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. तब से पार्टी से उनकी दूरी बढ़ गई थी. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल, जो कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद, मनीष तिवारी और शशि थरूर जैसे 22 अन्य वरिष्ठ नेताओं के साथ मिलकर एक दबाव समूह बनाकर पार्टी में आंतरिक सुधार की मांग कर रहे थे, ने सुष्मिता के इस्तीफे के बाद अपनी निराशा व्यक्त की.

सिब्बल ने एक ट्वीट में कहा कि सुष्मिता देव ने हमारी पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. युवा नेता हमें छोड़ रहे हैं. हम बूढ़ों को इसे मजबूत करने के हमारे प्रयासों के लिए दोषी ठहराया जाता है.

सिब्बल, जिन्होंने हाल ही में 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी दलों में एकता बनाने के लिए एक स्वतंत्र रात्रिभोज की मेजबानी की, राजस्थान में कांग्रेस के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच कड़वाहट से निपटने के लिए पार्टी की आलोचना की. सुष्मिता देव का जाना पहली घटना नहीं है जब कपिल सिब्बल ने कांग्रेस के युवा नेताओं के पार्टी छोड़ने के खतरों पर चिंता व्यक्त की है.

सिब्बल ने पिछले साल जुलाई में उस वक्त ट्विट किया, जब पार्टी की राजस्थान इकाई में गहलोत और पायलट खेमों के बीच तीखी गुटबाजी चल रही थी. उन्होंने लिखा था कि हमारी पार्टी के लिए चिंता का विषय है. क्या हम तभी जागेंगे जब हमारे अस्तबल से घोड़े निकल जाएंगे?

सिब्बल बाद में कांग्रेस के एक अन्य वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम से जुड़ गए, जिन्होंने सार्वजनिक रूप से सचिन पायलट से पार्टी में बने रहने और आंतरिक पार्टी तंत्र के माध्यम से गहलोत के साथ अपने मतभेदों को हल करने की अपील की थी. अंततः पायलट ने सरकार छोड़ दी लेकिन पार्टी के साथ बने रहे.

सुष्मिता देव बीजेपी में शामिल क्यों नहीं हुईं

मामले से परिचित लोगों के अनुसार हिमंत बिस्वा सरमा ने 2019 में सिलचर से लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए सुष्मिता देव को भाजपा का टिकट देने की पेशकश की थी. यह प्रस्ताव राहुल गांधी को लोकसभा में अलग-थलग करने की भाजपा की रणनीति का एक हिस्सा था.

भगवा पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में कर्नाटक के गुलबर्गा और मध्य प्रदेश के गुना में कांग्रेस नेताओं को हराकर राहुल गांधी के दो भरोसेमंद सहयोगियों को हराने में सफलता हासिल की थी. हालांकि सुष्मिता देव ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया. इस मामले से परिचित एक कांग्रेसी नेता ने ईटीवी भारत को बताया कि मेरी जानकारी के अनुसार सुष्मिता को 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा में शामिल होने के लिए हिमंत बिस्वा सरमा ने संपर्क किया था लेकिन उन्होंने इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया.

हिमंता ने सुष्मिता को चेतावनी दी कि अगर वे भाजपा में शामिल नहीं हुईं तो पार्टी सिलचर सीट से उनकी हार सुनिश्चित करेगी और यही हुआ भी. सुष्मिता देव के 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा के प्रस्ताव को ठुकराने के फैसले ने भी भविष्य में उनके लिए भगवा पार्टी के दरवाजे बंद कर दिए थे.

यह भी पढ़ें-कांग्रेस से इस्तीफा देकर टीएमसी में शामिल हुईं सुष्मिता देव, जानें इसके मायने

कांग्रेस नेता ने कहा कि भाजपा ने उनसे दूरी बनाए रखी. अन्यथा, वह इस साल असम में विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हो सकती थीं और हिमंत बिस्वा सरमा के मंत्रिमंडल में मंत्री भी बन सकती थीं. कांग्रेस नेता ने कहा कि उनके (सुष्मिता देव) जैसा व्यक्ति कांग्रेस छोड़कर टीएमसी में इसलिए शामिल हुआ क्योंकि पार्टी आलाकमान से उनके लिए राज्यसभा की सीट या कोई अन्य महत्वपूर्ण जिम्मेदारी नहीं दी गई.

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