नई दिल्ली : टीएमसी का 'खेला शेष' करने के सपने देख रही बीजेपी का खुद का खेला हो गया. भारतीय जनता पार्टी के लिए यह मात्र एक राज्य की हार नहीं है बल्कि यह हार पार्टी को काफी प्रभावित करेगी.
जब राजनीतिक स्ट्रेटजिस्ट प्रशांत किशोर ने यह दावा किया था कि भारतीय जनता पार्टी डबल डिजिट में ही पश्चिम बंगाल में सिमट जाएगी तब भारतीय जनता पार्टी ने प्रशांत किशोर की खूब खिल्ली उड़ाई थी और खुद पार्टी के बड़े नेताओं ने ललकार कर कहा था कि टीएमसी ने अभी से हार मान ली है इस वजह से उनके सलाहकार बौखलाए कर बयान दे रहे हैं.
वही पार्टी आज इस बात पर मंथन कर रही है कि आखिर इतनी बड़ी गलती कहां हुई ,क्योंकि पार्टी के नेता इस बार आत्मविश्वास से लबरेज नजर आ रहे थे और लगातार पिछले एक साल से दावे प्रति दावे किए जा रहे थे, शायद यही ओवरकॉन्फिडेंस पार्टी को ले डूबा.
यही नहीं गलत नेताओं का चयन और अपने कार्यकरता को नाराज करना भी पार्टी को काफी नुकसान पहुंचा गया. अगर देखा जाए तो पार्टी ने अपने कैडर में आमूलचूल परिवर्तन कर दिया था और बीजेपी का कैडर बीजेपी का रह ही नहीं गया था, बल्कि वह टीएमसी और लेफ्ट के नेताओं से भर चुका था.
इससे पार्टी का अपना सालों का कैडर काफी नाराज चल रहा था, क्योंकि यह उनके लिए आत्म सम्मान से समझौता करने जैसा था. जो बीजेपी कार्यकर्ता सालों से लेफ्ट और टीएमसी के कार्यकर्ताओं की दमनकारी नीति झेलकर पार्टी का झंडा उठाए हुए थे, उन लोगों को रौंदकर पार्टी आगे बढ़ रही थी और यह पार्टी के लिए काफी नुकसानदेह साबित हुआ.
यही नहीं पार्टी के कुछ विश्वस्त सूत्रों का यह भी मानना है कि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं द्वारा गलत नेताओं का चयन किया गया. नाम ना लेने की शर्त पर पार्टी के एक नेता ने तो यहां तक कहा कि राज्य में पार्टी की कमान जिसके हाथ में दी गई, उन्होंने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को गलत सलाह दी और गलत प्रतिनिधियों को टिकट भी दिलवाया.
नाम न लेते हुए पार्टी के राज्य अध्यक्ष के ऊपर कटाक्ष करते हुए पार्टी के वरिष्ठ नेता का कहना था कि प्रदेश अध्यक्ष ने ऐसे लोगों को भी टिकट दिलवाया जिनकी पहले से हार निश्चित थी मगर वह उनके गुड लिस्ट में थे और कुछ ऐसे उम्मीदवारों की अवहेलना की गई, जिनकी जीत पक्की थी और जो जनाधार वाले नेता थे, जिनकी अपने इलाके में पकड़ काफी मजबूत थी.
बहरहाल कारण सिर्फ यही नहीं रहे बड़ी वजह बंगाली अस्मिता का भी रहा. भारतीय जनता पार्टी की तरफ से तुष्टीकरण की राजनीति को लेकर अत्यधिक प्रचार प्रसार किया जाना शायद बंगाल की जनता को रास नहीं आया, क्योंकि यदि बंगाल की संस्कृति पर गौर किया जाए, तो वहां हिंदू मुसलमान की राजनीति से बड़ी बंगाल की अस्मिता की राजनीति मायने रखती है और जिसे ममता बनर्जी ने बार-बार बीजेपी के लिए बाहरी शब्द का इस्तेमाल करके लोगों के मन में एक आउटसाइडर्स की छवि बना दी, जिसे लेकर वहां की जनता काफी जागरूक हो गई और हिंदू मुसलमान की राजनीति से ऊपर उठकर उन्होंने बंगाल की अस्मिता पर ठप्पा लगा दिया.
इसके अलावा अगर एक बड़ी वजह देखें, तो ममता बनर्जी के खिलाफ कोई बड़ा चेहरा नहीं उतारना भी भारतीय जनता पार्टी के लिए एक बड़ी गलती रहे पार्टी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के नाम पर ही पूरा चुनाव लड़ा और किसी एक ऐसे चेहरे को भी आगे नहीं बढ़ाया जो ममता बनर्जी को टक्कर दे सके. इससे भी लोग असमंजस की स्थिति में रहे और केंद्र के नेताओं के बदले राज्य के नेताओं के सशक्त चेहरों का साथ देना मुनासिब समझा.
पढ़ें - जनादेश स्वीकार्य, आत्मविश्लेषण करेंगे और गलतियां सुधारेंगे: कांग्रेस
रही सही कसर कोरोना में एक तरह से केंद्र की तरफ से हो रहे मिसमैनेजमेंट की भी रही. पार्टी के नेताओं द्वारा अंतिम समय तक रैलियों का रद्द नहीं किया जाना और कोरोना वायरस देश में मच रहे कोहराम ने भी इस चुनाव पर काफी असर डाला.
हालांकि बंगाल चुनाव में खुद ममता बनर्जी नंदीग्राम में अपनी सीट नहीं बचा पाई और शुभेंदु अधिकारी के हाथों उन्हें शिकस्त झेलनी पड़ी मगर टीएमसी ने दोबारा काउंटिंग की भी मांग की है.
ममता बनर्जी जहां नंदीग्राम की हार को स्वीकार करते हुए यह कह रही हैं कि नंदीग्राम के लोग जो भी जनादेश देंगे उसे वह स्वीकार करती हैं और उन्हें कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन उन्होंने 221 से अधिक सीटें जीती और बीजेपी चुनाव हार गई, जबकि बीजेपी के राज्य अध्यक्ष दिलीप घोष ने यह बयान दिया के पिछले चुनाव में हमने 3 सीटें जीती थी इस बार हमने 80 के आसपास की सीटें जीती है हमने बड़ा लक्ष्य रखा था. उस लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाए, लेकिन अपने नेतृत्व और कार्यकर्ताओं को धन्यवाद देता हूं.
वहीं राज्य के प्रभारी और राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने ममता बनर्जी को बधाई और कहा कि वह अपने कार्यकर्ताओं को अनुशासन में रहने के निर्देश दें ताकि वे जीत की खुशी में हमारे कार्यालयों को नुकसान ना पहुंचाएं.
यहां यह समझना होगा कि बंगाल की हार भारतीय जनता पार्टी के लिए मात्र एक राज्य की हार नहीं बल्कि यह पार्टी के लिए नाक की लड़ाई थी और यह राष्ट्रीय राजनीति पर भी बहुत ज्यादा असर डालेगी. जैसे ही ममता बनर्जी की पार्टी की जीत की शुरुआत हुई तमाम पार्टी के नेताओं ने बधाईयां देना शुरू कर दिया, जिनमें अरविंद केजरीवाल ,तेजस्वी यादव ,शरद पवार ,अखिलेश यादव, महबूबा मुफ्तीऔर कांग्रेस ने भी ममता बनर्जी को गर्मजोशी के साथ बधाई दी, जो आने वाले दिनों में राष्ट्रीय राजनीति के लिए भी एक बड़ा संकेत दे रहा है.
यह गठबंधन यदि वास्तविकता में 2024 से पहले तैयार होता है, तो भारतीय जनता पार्टी के लिए एक बड़ी चुनौती हो सकती है. भले ही पार्टी को आसाम में अच्छी जीत मिली पुडुचेरी में भी पार्टी का बढ़िया प्रदर्शन रहा, लेकिन जो दमखम पार्टी ने बंगाल के चुनाव में झोंका था.
उसमें शायद पार्टी के नेताओं के बीच भी यह समझने में चूक हो गई या यूं कहें कि वह जनता के मूड को भापने में असमर्थ रहे और इतना बड़ा लक्ष्य रख दिया की छोटी बातों पर पार्टी का ध्यान ही नहीं रहा और यह छोटी बातें ही पार्टी के हार का मुख्य वजह बन गई.