हैदराबाद: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अचानक ही ऐसे नेताओं को आगे कर देती है, जिसके बारे में राजनीतिक विश्लेषक भी ठीक से अंदाजा नहीं लगा पाते हैं. बिहार में भी कुछ ऐसा ही हुआ. पार्टी ने सीमांचल इलाके से जीत हासिल करने वाले तारकिशोर प्रसाद और चंपारण से चुनाव जीतने वालीं रेणु देवी को बड़ी जिम्मेदारी दे दी. भाजपा ने यह फैसला बड़ी सोची-समझी रणनीति के तहत किया है. पार्टी हर हाल में चाहती है कि महिला वोटर दूसरी ओर न छिटके और कोर वोटर (वैश्य समुदाय) भी उससे नाराज न हो.
भाजपा अब जो भी गुणा-भाग कर रही है, वह आने वाले चुनाव के मद्देनजर किया जा रहा है. वह न सिर्फ नया नेतृत्व खड़ा कर रही है, बल्कि नीतीश के वोट बैंक में भी सेंध लगाने की कोशिश है. नीतीश ने पिछले 15 सालों में अति पिछड़ा समुदाय, महादलित और महिला वोटरों को लेकर कई फैसले किए हैं. भाजपा हर हाल में इसे छिटकने देना नहीं चाहती है. इसलिए महिला वोटरों को संदेश देने के लिए पार्टी ने रेणु देवी को आगे किया है.
दरअसल, भाजपा की नजर महिला वोट बैंक के साथ-साथ अतिपिछड़ा समुदाय पर है. तारकिशोर प्रसाद वैश्य जाति से आते हैं और रेणु देवी अति पिछड़ा वर्ग के साथ-साथ महिला हैं. इस बार की जीत में महिलाओं की भूमिका निर्णायक रही है. बिहार में महिलाएं शराबबंदी को लेकर बहुत ही सकारात्मक रहीं हैं. वे ये भी मानती हैं कि महिला सुरक्षा और कानून व्यवस्था के मामले में भी राजद से बेहतर भाजपा-जदयू का शासनकाल रहा है.
एनडीए सरकार ने बिहार की स्कूली लड़कियों के लिए पोशाक और साइकिल योजना चलाई थी. यह काफी हद तक सफल रही है. इसके अलावा कन्या विवाह योजना, लाडली लक्ष्मी योजना, कन्या सुरक्षा योजनाओं से भी लड़कियों को काफी फायदा पहुंचा. भाजपा चाहती है कि महिलाओं को आगे कर बिहार में बड़ा राजनीतिक संदेश दिया जाए. वैसे, राजद ने भी राबड़ी देवी को आगे किया था, लेकिन राजनीतिक विश्लेषक उसे परिवारवाद का हिस्सा मानते हैं, न कि महिला नेतृत्व को आगे करना.
रेणु देवी भाजपा के कोर वोट बैंक में भी बिल्कुल फिट बैठती हैं. उन्होंने दुर्गावाहिनी से अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत की थी. दुर्गावाहिनी आरएसएस की धार्मिक मामलों की शाखा का महिला सांस्कृतिक संगठन है. उसके बाद उन्होंने स्वयं सहायता समूह के लिए काम किया. भाजपा की महिला मोर्चा संगठन में अपनी अलग पहचान बनाई. उन्होंने राम मंदिर आंदोलन और 1992 में जम्मू-कश्मीर तिरंगा यात्रा में भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था. लिहाजा भाजपा उनके जरिए जाति और धर्म दोनों को साध सकती है.
वह अमित शाह की टीम में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी रह चुकीं हैं. उनका चंपारण इलाके में अच्छा प्रभाव है.
इस बार 59.69 फीसदी महिलाओं ने वोट दिए. 26 महिलाएं विधानसभा पहुंचीं. भाजपा से नौ महिला उम्मीदवार ने चुनाव जीता. जदयू से छह महिला विधायक बनीं हैं.
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वैश्य समुदाय भाजपा का कोर वोटर रहा है. सुशील मोदी इसी समुदाय से आते हैं. उन्हें हटाने के बाद कहीं वैश्य वोटरों के बीच नकारात्मक संदेश न चल जाए, इसलिए तारकिशोर प्रसाद को उप मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया गया. इस बार भाजपा के कुल 15 विधायक ऐसे हैं, जो वैश्य समुदाय से हैं. कुल 24 विधायक वैश्य समुदाय से जीते हैं.
दूसरी बड़ी वजह है तारकिशोर प्रसाद सीमांचल इलाके से हैं. सीमांचल में वोट को लेकर ध्रुवीकरण होता रहा है. पार्टी हर हाल में चाहती है कि इस बार सीमांचल से जो उसे सफलता हासिल हुई है, जनता के बीच उसका संदेश जाना आवश्यक है.
तारकिशोर प्रसाद खांटी भाजपाई भी हैं. उन्होंने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से अपनी राजनीति की शुरुआत की थी. ऐसा कहा जाता है कि उनके संबंध सुशील मोदी से अच्छ रहे हैं. लिहाजा, नीतीश को भी इनके साथ काम करने में कोई परेशानी नहीं होगी.
अति पिछड़ा समुदाय अहम
नीतीश कुमार जब पहली बार सीएम बने थे, तो उन्हें पता था कि लालू के पास मुस्लिम और यादव का जबरदस्त वोट बैंक है. लिहाजा, उन्हें अगर लंबे समय तक राजनीति करनी है, तो अपना अलग वोट बैंक तैयार करना होगा. इसी क्रम में उन्होंने पिछड़ा समुदाय में अतिपिछड़ा समुदाय का उल्लेख किया. दलितों में महादलित का वोट बैंक बनाने की कोशिश की. लेकिन यह वोट बैंक कहीं दूसरी ओर न चल जाए, भाजपा ने बड़ी सूझ-बूझ से इसे अपने साथ रखने के लिए चाल चलनी शुरू कर दी है.