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सीबीआई के पास हजारों पेंडिंग केस हैं, फिर अपनी पीठ क्यों थपथपा रहे हैं चीफ? - mp criminal cases

सीबीआई चीफ ने दावा किया है कि 2021 तक एजेंसी 75 फीसदी कन्विक्शन रेट पाने के लिए काम कर रही है. उनके इस दावे में दम नहीं दिख रहा है क्योंकि सीबीआई के पास वर्षों पुराने केस पेंडिग पड़े हैं, जानिए सीबीआई सुस्त क्यों पड़ जाती है.

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Published : Oct 22, 2021, 5:33 PM IST

हैदराबाद : केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) किसी केस को हाथ में लेती है तो यह माना जाता है कि असलियत सामने आएगी. मगर ऐसा नहीं है. भारत में कई ऐसे चर्चित घटनाएं हुई हैं, जिसकी जांच सीबीआई ने की, मगर कोई नतीजा नहीं आया. इस जांच एजेंसी के पास हजारों मामले लंबित हैं. सीबीआई ने खुद सुप्रीम कोर्ट को दिए हलफनामे में यह स्वीकार किया है कि 31 दिसंबर, 2020 तक उसके पास 9,757 के पेंडिंग थे. इनमें से 3,249 मामले 10 से अधिक वर्षों से लंबित हैं. 500 मामले में 20 साल बाद भी सुनवाई के चल रही है.

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धीमी जांच के लिए सीबीआई को अक्सर सुप्रीम कोर्ट से फटकार लगती है.

दरअसल, 4 सितंबर को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की कार्यशैली पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जाहिर की थी. जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एम सुंदरेश की बेंच ने सीबीआई को सफलता दर पर आंकड़ा सौंपने को कहा था. CBI के निदेशक सुबोध कुमार जायसवाल ने सुप्रीम कोर्ट को सौंपे गए हलफनामे में बताया कि एजेंसी ने 2019 में 69.83 प्रतिशत और 2020 में 69.19 प्रतिशत मामलों को अंजाम तक पहुंचाया और दोषियों को सजा मिली. एक्सपर्ट सीबीआई के सफलता के दावे से सहमत नहीं हैं. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के के अनुसार 2020 में आईपीसी की धाराओं के तहत दर्ज मामलों में सजा का दर 59.2 प्रतिशत रहा.

क्यों सुस्त है सीबीआई का कन्विक्शन रेट : पिछले कुछ वर्षों में सीबीआई के पास ज्यादा केस रेफर होने लगे हैं. सीवीसी की रिपोर्ट के अनुसार काम की अधिकता, मैनपावर की कमी, करप्शन केसेज में कागजातों के वेरिफिकेशन, फारेंसिक लैब से रिपोर्ट मिलने में देरी और गवाहों के लापता होने के कारण जांच में देरी होती है. केंद्र में विपक्ष में रहने वाली पार्टी सीबीआई पर आरोप लगाते रहे हैं कि वह केंद्र सरकार के इशारों पर काम करती है. इस कारण कई मामलों की जांच सुस्त पड़ जाती है. सरकार के दखल के कारण ही विपक्ष के राजनेताओं के घर पर छापे मारे जाते हैं. पूर्व सीबीआई चीफ जोगिंदर सिंह ने एक इंटरव्यू में बताया था कि चारा घोटाले में उन पर केंद्र सरकार का भारी दबाव था.

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बाबरी विध्वंस मामले में करीब 20 साल सुनवाई हुई, मगर सभी आरोपी बरी हो गए.

सीबीआई को लेकर केंद्र और राज्यों में टकराव : सीबीआई किस राज्य में केस की जांच करेगी, यह केंद्र और राज्य के बीच अक्सर विवाद का मुद्दा बनता रहा है. अक्सर राज्य सरकारें सीबीआई को डायरेक्ट एंट्री की परमिशन देती है. मगर विवाद होने पर राज्यों को हक है कि वह केंद्रीय जांच एजेंसी की सीधी एंट्री को रोक ले. दिल्ली स्पेशल पुलिस एस्टेब्लिशमेंट (डीएसपीई) एक्ट की धारा-6 के अनुसार, राज्यों में जांच शुरू करने से पहले सीबीआई को स्टेट गवर्नमेंट से परमिशन मांगनी पड़ती है. अभी गैर बीजेपी शासित राज्य झारखंड, पश्चिम बंगाल, केरल, महाराष्ट्र, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रियों ने केंद्र पर दुरुपयोग का आरोप लगाते हुए सीबीआई की डायरेक्ट एंट्री बंद कर रखी है.

क्या सीबीआई जांच खुद से शुरू कर सकती है : सीबीआई गृह मंत्रालय के अधीन काम करती है. वह किसी भी मामले की जांच शिकायत मिलने और एफआईआर दर्ज करने ही शुरू कर सकती है. इसके लिए जरूरी है कि उसे केंद्र सरकार, हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट जांच करने का आदेश दे. राज्यों में वह राज्य सरकार की सिफारिश के आधार पर जांच तब शुरू करती है, जब गृह मंत्रालय इसकी इजाजत दे.

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आरुषि मर्डर केस और टू जी घोटाले में भी सीबीआई के हाथ कुछ नहीं लगा, जबकि जांच लंबी चली.

ऐसे मामले, जिसमें सीबीआई नतीजे तक नहीं पहुंची : जब भी कोई हाई प्रोफाइल वित्तीय घोटाला या क्राइम की घटना होती है तो मामला सीबीआई तक पहुंचता है. मगर कोयला आवंटन घोटाला, राष्ट्रमंडल खेल घोटाला, टू जी घोटाला, जैन हवाला कांड और आरुषि मर्डर केस समेत कई बहुचर्चित मामलों में सीबीआई किसी नतीजे तक नहीं पहुंच सकी . माल्‍या कर्ज मामला, लालू प्रसाद रेलवे होटल बिक्री, अगुस्‍ता वेस्‍टलैंड वीवीआईपी चॉपर घोटाला, शारदा और नारद जैसे घोटालों की जांच भी सीबीआई पूरी नहीं कर सकी है. रिपोर्टस के अनुसार, सीबीआई की विभिन्न अदालतों में सांसदों, विधायकों और राजनेताओं से जुड़े 123 मामले लंबित हैं. उत्तरप्रदेश से जुड़े गोमती रीवर फ्रंट घोटाला, हाथरस गैंगरेप केस, उन्नाव गैंगरेप कांड, देवरिया गर्ल शेल्टर सेक्स रैकेट, दिल्ली-सहारनपुर एक्सप्रेसवे घोटाले में भी सीबीआई के हाथ खाली ही हैं.

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जिया खान आत्महत्या केस 8 साल से अटका पड़ा है.

अन्य बड़े मामले, जो लटके पड़े हैं : एक्ट्रेस जिया खान के आत्महत्या मामले में 8 साल बाद सीबीआई कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई है. 2013 के इस केस में एक्टर सूरज पंचोली पर सेक्‍शन 306 के तहत ट्रायल चल रहा है.

अगस्त 2020 में सुशांत सिंह राजपूत सुसाइड केस में शुरूआती जांच के बाद अभी सीबीआई की छानबीन चल रही है. अभी तक इसमें कोई बड़ा खुलासा नहीं हुआ है.

केरल के पूर्व मुख्यमंत्री ओमन चांडी, कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव केसी वेणुगोपाल सहित 6 नेताओं के खिलाफ यौन शोषण के मामले में एफआईआर दर्ज तो हुई मगर मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई.

महंथ नरेंद्र गिरी की मौत का मामले की जांच भी सीबीआई कर रही है. इस केस में नरेंद्र गिरी के चेले आनंद गिरी को गिरफ्तार किया गया है.

एंटीलिया केस में महाराष्ट्र में अनिल देशमुख और सचिन वाझे के खिलाफ सीबीआई जांच जारी है.

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सुशांत केस में सीबीआई ने कितनी प्रगति की है, यह भी रहस्य ही है.

करप्शन से जंग के लिए बनी थी सीबीआई : दूसरे विश्व युद्ध के दौरान1941 में स्पेशल पुलिस फोर्स का गठन किया गया. युद्ध के बाद सरकारी विभागों में करप्शन बढ़ गया. 1946 में दिल्ली स्पेशल पुलिस एस्टेब्लिशमेंट यानी डीएसपीई एक्ट लागू किया गया और स्पेशल पुलिस फोर्स की कमान गृह विभाग को दी गई.1963 में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इसका नाम बदलकर केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो यानी सीबीआई कर दिया. उस दौर में इसका काम सरकारी कर्मचारियों के भ्रष्टाचार की शिकायतों की जांच करना था. वक्त के साथ इसका दायरा बढ़ता गया. 1965 से यह मर्डर, किडनैपिंग, साइबर क्राइम और आंतकवाद से जुड़े केस की जांच भी कर रही है. 1980 के दशक में कोर्ट ने सीबीआई को जांच की जिम्मेदारी देनी शुरू की. राम रहीम केस में सजा दिलाकर सीबीआई ने हाल में ही बड़ी सफलता हासिल की है.

हैदराबाद : केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) किसी केस को हाथ में लेती है तो यह माना जाता है कि असलियत सामने आएगी. मगर ऐसा नहीं है. भारत में कई ऐसे चर्चित घटनाएं हुई हैं, जिसकी जांच सीबीआई ने की, मगर कोई नतीजा नहीं आया. इस जांच एजेंसी के पास हजारों मामले लंबित हैं. सीबीआई ने खुद सुप्रीम कोर्ट को दिए हलफनामे में यह स्वीकार किया है कि 31 दिसंबर, 2020 तक उसके पास 9,757 के पेंडिंग थे. इनमें से 3,249 मामले 10 से अधिक वर्षों से लंबित हैं. 500 मामले में 20 साल बाद भी सुनवाई के चल रही है.

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धीमी जांच के लिए सीबीआई को अक्सर सुप्रीम कोर्ट से फटकार लगती है.

दरअसल, 4 सितंबर को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की कार्यशैली पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जाहिर की थी. जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एम सुंदरेश की बेंच ने सीबीआई को सफलता दर पर आंकड़ा सौंपने को कहा था. CBI के निदेशक सुबोध कुमार जायसवाल ने सुप्रीम कोर्ट को सौंपे गए हलफनामे में बताया कि एजेंसी ने 2019 में 69.83 प्रतिशत और 2020 में 69.19 प्रतिशत मामलों को अंजाम तक पहुंचाया और दोषियों को सजा मिली. एक्सपर्ट सीबीआई के सफलता के दावे से सहमत नहीं हैं. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के के अनुसार 2020 में आईपीसी की धाराओं के तहत दर्ज मामलों में सजा का दर 59.2 प्रतिशत रहा.

क्यों सुस्त है सीबीआई का कन्विक्शन रेट : पिछले कुछ वर्षों में सीबीआई के पास ज्यादा केस रेफर होने लगे हैं. सीवीसी की रिपोर्ट के अनुसार काम की अधिकता, मैनपावर की कमी, करप्शन केसेज में कागजातों के वेरिफिकेशन, फारेंसिक लैब से रिपोर्ट मिलने में देरी और गवाहों के लापता होने के कारण जांच में देरी होती है. केंद्र में विपक्ष में रहने वाली पार्टी सीबीआई पर आरोप लगाते रहे हैं कि वह केंद्र सरकार के इशारों पर काम करती है. इस कारण कई मामलों की जांच सुस्त पड़ जाती है. सरकार के दखल के कारण ही विपक्ष के राजनेताओं के घर पर छापे मारे जाते हैं. पूर्व सीबीआई चीफ जोगिंदर सिंह ने एक इंटरव्यू में बताया था कि चारा घोटाले में उन पर केंद्र सरकार का भारी दबाव था.

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बाबरी विध्वंस मामले में करीब 20 साल सुनवाई हुई, मगर सभी आरोपी बरी हो गए.

सीबीआई को लेकर केंद्र और राज्यों में टकराव : सीबीआई किस राज्य में केस की जांच करेगी, यह केंद्र और राज्य के बीच अक्सर विवाद का मुद्दा बनता रहा है. अक्सर राज्य सरकारें सीबीआई को डायरेक्ट एंट्री की परमिशन देती है. मगर विवाद होने पर राज्यों को हक है कि वह केंद्रीय जांच एजेंसी की सीधी एंट्री को रोक ले. दिल्ली स्पेशल पुलिस एस्टेब्लिशमेंट (डीएसपीई) एक्ट की धारा-6 के अनुसार, राज्यों में जांच शुरू करने से पहले सीबीआई को स्टेट गवर्नमेंट से परमिशन मांगनी पड़ती है. अभी गैर बीजेपी शासित राज्य झारखंड, पश्चिम बंगाल, केरल, महाराष्ट्र, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रियों ने केंद्र पर दुरुपयोग का आरोप लगाते हुए सीबीआई की डायरेक्ट एंट्री बंद कर रखी है.

क्या सीबीआई जांच खुद से शुरू कर सकती है : सीबीआई गृह मंत्रालय के अधीन काम करती है. वह किसी भी मामले की जांच शिकायत मिलने और एफआईआर दर्ज करने ही शुरू कर सकती है. इसके लिए जरूरी है कि उसे केंद्र सरकार, हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट जांच करने का आदेश दे. राज्यों में वह राज्य सरकार की सिफारिश के आधार पर जांच तब शुरू करती है, जब गृह मंत्रालय इसकी इजाजत दे.

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आरुषि मर्डर केस और टू जी घोटाले में भी सीबीआई के हाथ कुछ नहीं लगा, जबकि जांच लंबी चली.

ऐसे मामले, जिसमें सीबीआई नतीजे तक नहीं पहुंची : जब भी कोई हाई प्रोफाइल वित्तीय घोटाला या क्राइम की घटना होती है तो मामला सीबीआई तक पहुंचता है. मगर कोयला आवंटन घोटाला, राष्ट्रमंडल खेल घोटाला, टू जी घोटाला, जैन हवाला कांड और आरुषि मर्डर केस समेत कई बहुचर्चित मामलों में सीबीआई किसी नतीजे तक नहीं पहुंच सकी . माल्‍या कर्ज मामला, लालू प्रसाद रेलवे होटल बिक्री, अगुस्‍ता वेस्‍टलैंड वीवीआईपी चॉपर घोटाला, शारदा और नारद जैसे घोटालों की जांच भी सीबीआई पूरी नहीं कर सकी है. रिपोर्टस के अनुसार, सीबीआई की विभिन्न अदालतों में सांसदों, विधायकों और राजनेताओं से जुड़े 123 मामले लंबित हैं. उत्तरप्रदेश से जुड़े गोमती रीवर फ्रंट घोटाला, हाथरस गैंगरेप केस, उन्नाव गैंगरेप कांड, देवरिया गर्ल शेल्टर सेक्स रैकेट, दिल्ली-सहारनपुर एक्सप्रेसवे घोटाले में भी सीबीआई के हाथ खाली ही हैं.

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जिया खान आत्महत्या केस 8 साल से अटका पड़ा है.

अन्य बड़े मामले, जो लटके पड़े हैं : एक्ट्रेस जिया खान के आत्महत्या मामले में 8 साल बाद सीबीआई कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई है. 2013 के इस केस में एक्टर सूरज पंचोली पर सेक्‍शन 306 के तहत ट्रायल चल रहा है.

अगस्त 2020 में सुशांत सिंह राजपूत सुसाइड केस में शुरूआती जांच के बाद अभी सीबीआई की छानबीन चल रही है. अभी तक इसमें कोई बड़ा खुलासा नहीं हुआ है.

केरल के पूर्व मुख्यमंत्री ओमन चांडी, कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव केसी वेणुगोपाल सहित 6 नेताओं के खिलाफ यौन शोषण के मामले में एफआईआर दर्ज तो हुई मगर मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई.

महंथ नरेंद्र गिरी की मौत का मामले की जांच भी सीबीआई कर रही है. इस केस में नरेंद्र गिरी के चेले आनंद गिरी को गिरफ्तार किया गया है.

एंटीलिया केस में महाराष्ट्र में अनिल देशमुख और सचिन वाझे के खिलाफ सीबीआई जांच जारी है.

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सुशांत केस में सीबीआई ने कितनी प्रगति की है, यह भी रहस्य ही है.

करप्शन से जंग के लिए बनी थी सीबीआई : दूसरे विश्व युद्ध के दौरान1941 में स्पेशल पुलिस फोर्स का गठन किया गया. युद्ध के बाद सरकारी विभागों में करप्शन बढ़ गया. 1946 में दिल्ली स्पेशल पुलिस एस्टेब्लिशमेंट यानी डीएसपीई एक्ट लागू किया गया और स्पेशल पुलिस फोर्स की कमान गृह विभाग को दी गई.1963 में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इसका नाम बदलकर केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो यानी सीबीआई कर दिया. उस दौर में इसका काम सरकारी कर्मचारियों के भ्रष्टाचार की शिकायतों की जांच करना था. वक्त के साथ इसका दायरा बढ़ता गया. 1965 से यह मर्डर, किडनैपिंग, साइबर क्राइम और आंतकवाद से जुड़े केस की जांच भी कर रही है. 1980 के दशक में कोर्ट ने सीबीआई को जांच की जिम्मेदारी देनी शुरू की. राम रहीम केस में सजा दिलाकर सीबीआई ने हाल में ही बड़ी सफलता हासिल की है.

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