नई दिल्ली : काशी में ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर जिला अदालत से सुप्रीम कोर्ट तक सुनवाई हो रही है. हिंदू पक्ष का दावा है कि ज्ञानवापी में शिवलिंग की पहचान हो चुकी है. दीवारों पर सनातन धर्म से जुड़े प्रतीक चिह्न मौजूद हैं, इसलिए इसके मंदिर होने का दावा सही है. दूसरी ओर मुस्लिम पक्ष का दावा है कि शिवलिंग और हिंदू प्रतीक चिह्न मिलने का दावा निराधार है. अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी और मुस्लिम संगठन प्लेसेज ऑफ वरशिप एक्ट 1991 का हवाला देकर इस कार्रवाई का विरोध कर रहे हैं.
प्लेसेज ऑफ वरशिप एक्ट, 1991 क्यों आया
प्लेसेज ऑफ वरशिप एक्ट की जब भी कभी चर्चा होगी तो तीन नाम प्रमुखता से लिए जाएंगे. पहला पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव का, जिनके शासनकाल में यह एक्ट पास हुआ. दूसरा नाम कांग्रेस नेता शंकर राव चाह्वान का होगा, जिन्होंने संसद में बतौर गृहमंत्री प्लेसेज ऑफ वरशिप एक्ट, 1991 यानी उपासना स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम 1991 पेश किया था. तीसरा नाम है लालकृष्ण आडवाणी का, जिनकी रथयात्रा के कारण देश में बने माहौल के राजनीतिक काट के तौर पर कांग्रेस की सरकार प्लेसेज ऑफ वरशिप एक्ट लेकर आई.
लालकृष्ण आडवाणी कैसे बने कारण : 1989 के चुनाव में बीजेपी 85 सीटों के साथ देश की तीसरी बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी थी. बीजेपी ने गैर कांग्रेसी जनमोर्चा की सरकार को बाहर से समर्थन दे रखा था. राम मंदिर को लेकर अयोध्या समेत पूरे देश में गहमागहमी थी. हिंदू संगठन कार सेवा की मांग कर रहे थे. बीजेपी तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह से अयोध्या मसले का समाधान ढूंढने का दबाव बना रही थी. सरकार और बीजेपी के बीच कोई रास्ता नहीं निकला. इस बीच भारतीय जनता पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने 25 सितम्बर, 1990 को गुजरात के सोमनाथ मंदिर से अयोध्या तक की यात्रा निकाली. इस यात्रा के जरिये वह 12 राज्यों को कवर करने वाले थे. 30 अक्टूबर को आडवाणी अयोध्या में कारसेवा करने वाले थे. इससे पहले 23 अक्टूबर 1990 को बिहार के सोनपुर में जनता दल की सरकार की अगुवाई कर रहे लालू यादव ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया. बीजेपी ने जनमोर्चा की सरकार से समर्थन वापस ले लिया. 7 नवंबर 1990 को वी पी सिंह की सरकार गिर गई.
नरसिंह राव को एक्ट लागू करने की जल्दी क्यों थी? : इसके बाद 7 महीनों के लिए चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने और 6 मार्च 1991 को उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. देश में मध्यावधि चुनाव हुए. कांग्रेस को सबसे ज्यादा 232 सीटें मिलीं. भारतीय जनता पार्टी 120 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर रही. माना गया कि राजीव गांधी की हत्या के कारण कांग्रेस को सहानुभूति के तौर पर वोट मिले. मगर राम मंदिर का मुद्दा खत्म नहीं हुआ था और देश के बड़े वर्ग में राम मंदिर, रथयात्रा और लालकृष्ण आडवाणी का जादू बरकरार था. बीजेपी लगातार राम मंदिर को लेकर उग्र आंदोलन चला रही थी. 'अयोध्या तो झांकी है, काशी-मथुरा बाकी है' के नारे बुलंद हो रहे थे. चुनाव के दौरान कांग्रेस ने घोषणा पत्र में कानून बनाकर वर्तमान धार्मिक स्थलों को उसके वर्तमान स्वरूप में संरक्षित करने वादा किया था. 20 जून 1991 को नरसिंह राव की सरकार ने शपथ ली और प्लेसेज ऑफ वरशिप एक्ट 11 जुलाई 1991 को लागू हुआ.
क्या है प्लेसेज ऑफ वरशिप एक्ट
- प्लेसेज ऑफ वरशिप एक्ट 1991 की धारा 4 के अनुसार, किसी को भी किसी ऐसे धार्मिक स्थल के धार्मिक चरित्र को बदलने या अन्य कानूनी कार्यवाही शुरू करने की इजाजत नहीं देता, जैसा कि वह 15 अगस्त 1947 को था.
- एक्ट की धारा 4(2) में ये कहा गया है कि 15 अगस्त 1947 को मौजूद किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र में बदलाव से जुड़ा कोई मुकदमा, अपील या अन्य कार्यवाही किसी भी अदालत, न्यायाधिकरण या अन्य प्राधिकरण के समक्ष लंबित है, वो समाप्त हो जाएगी. ये आगे निर्धारित करता है कि ऐसे मामलों पर कोई नई कार्यवाही शुरू नहीं की जाएगी.
- इस एक्ट की धारा 5 में प्रावधान है कि ये अधिनियम रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले और इससे संबंधित किसी भी मुकदमे, अपील या कार्यवाही पर लागू नहीं होगा.
- यदि कोई इस एक्ट का उल्लंघन करने का प्रयास करता है तो उसे जुर्माना और तीन साल तक की जेल भी हो सकती है.
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