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अमेरिका, रूस और चीन में किसने की ईरान की मदद, बना डाला खतरनाक मिसाइल - किसने की मदद ईरान की हाइपरसोनिक मिसाइल

Who helped Iran to get Hypersonic Missile : अमेरिका, रूस और चीन के अलावा दुनिया के किसी भी देश के पास हाइपरसोनिक मिसाइल विकसित करने की क्षमता नहीं है. ऐसे में सवाल उठता है कि ईरान ने कहां से इस मिसाइल को विकसित कर लिया. ईरान का दावा है कि उसने अपने आप इस मिसाइल को डेवलप किया. पेश है वरिष्ठ पत्रकार अरुणिम भुइंया की रिपोर्ट.

iran hypersonic missile
ईरान का हाइपर सोनिक मिसाइल
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 24, 2023, 7:41 PM IST

नई दिल्ली : हाल ही में ईरान ने एक लॉंग रेंज मिसाइल का परीक्षण किया है. यह इजराइल तक आक्रमण करने की क्षमता रखता है. हालांकि, वर्तमान में वह इसका उपयोग करेगा, ऐसा कोई कारण नहीं दिख रहा है. ईरान ने खुद कहा है कि यह मिसाइल उसने अपनी आत्मरक्षा के लिए बनाया है.

पिछले सप्ताह ईरान ने फत्ताह मिसाइल का एक अपग्रेडेड वर्जन फत्ताह 11 लॉंच किया. उसने इसे आशूरा एरोस्पेस साइंस एवं टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी में आयोजित एक प्रदर्शनी के दौरान प्रदर्शित किया. ईरान का दावा है कि इस मिसाइल को बनाने में विदेशी सहयोग नहीं लिया गया है. उसने यह भी कहा कि इसमें ग्लाइड क्षमता है. ईरान के अनुसार आप इसे हाइपर सोनिक ग्लाइड व्हीकल और हाइपर सोनिक क्रूज मिसाइल की श्रेणी में रख सकते हैं. ईरानी मीडिया ने बताया कि इस तरह के हाइपर सोनिक मिसाइल विकसित करने की क्षमता दुनिया के मात्र चार देशों के पास है.

ईरानी रेवोल्यूशन गार्ड कॉर्प्स एरोस्पेस फोर्स ने इस साल की शुरुआत में ही बताया था कि वह इसे स्वदेशी तकनीक के आधार पर विकसित कर रहा है. ईरान के अनुसार इस मिसाइल की रेंज 1700 किमी है. यह मैक 13-15 की स्पीड (ध्वनि की गति से 13 गुना अधिक) से लक्ष्य तक पहुंच सकता है. यह इंटरसेप्ट भी कर सकता है और उसे नष्ट करने की भी क्षमता रखता है.

अब इस विषय पर बहस छिड़ चुकी है कि आखिर ईरान के पास ऐसी क्षमता कहां से आई, या फिर किसी ने चोरी छिपे मदद की है. ईरान मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम (एमटीसीआर) का सदस्य नहीं है. एमटीसीआर का सदस्य भारत है. यह मुख्य रूप से मिसाइल टेक्नोलॉजी के प्रसार को लेकर दिशा निर्देश जारी करता है. कुल 35 देश इसके सदस्य हैं. एमसीटीआर का यह काम है कि वह उन टेक्नोलॉजी के प्रसार पर रोक लगाए, जिसमें 500 किलो से अधिक पेलोड को 300 किमी के अधिक के रेंज तक जाने की क्षमता है. एमसीटीआर का कोई भी सदस्य किसी बाहरी देश को इस तरह की तकनीक प्रदान नहीं कर सकता है. आम तौर पर यहां पर आम सहमति के आधार पर ही फैसला लिया जाता है.

इससे पहले ईरान के पास कभी भी ऐसा मिसाइल नहीं रहा है, जिसकी क्षमता 300 किमी से अधिक हो. अनुमान लगाया जा रहा है कि ईरान ने इसे अपने करीबी देश से हासिल किया होगा. यह तकनीक इस समय अमेरिका, रूस और चीन के पास है. रूस के पास एवांगाडे एचजीवी (जरकॉन) है. यह एक अंतर महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल सिस्टम है, जिसे शिप और मिसाइल से छोड़ा जा सकता है. इसे परमाणु हथियार से लैस किया जा सकता है.

चीन के पास डीएफ-17 मिसाइल सिस्टम है. यह एक मिडिल रेंज बैलिस्टिक मिसाइल है. इसके जरिए हाइपर सोनिक ग्लाइड व्हीकल लॉंच किया जा सकता है. यह एक अंतरमहाद्वीपीय मिसाइल है, जिसे मॉडिफाइ किया जा सकता है और यह न्यूक्लियर हथियार को ले जा सकता है. चीन ने दो हाइपर सोनिक हथियार का परीक्षण किया है. सबसे इंटेरेस्टिंग बात यह है कि इन दोनों देशों की तुलना में अमेरिका पीछे है.

ईरान के दावों के अनुसार फत्ताह 11 मिसाइल सिर्फ इजराइल ही नहीं, बल्कि इंडियन ओसियन में तैनात यूएस फिफ्थ फ्लीट तक पहुंच रखता है. दूसरी बात इस मिसाइल के परीक्षण का समय है. इजराइल और हमास युद्ध के ठीक बीच इसका परीक्षण किया गया है. इसके जरिए ईरान क्या संदेश देना चाह रहा है. क्या यह इजराइल को धमकी देना चाहता है.

पूर्व राजदूत आर दयाकर ने कहा कि क्षमता रखना एक बात होती है, लेकिन मंशा अलग चीज है. ईटीवी भारत से बात करते हुए उन्होंने कहा कि ईरान सीधे तौर पर युद्ध में शामिल नहीं होगा. अगर ईरान अपने आप इजराइल पर मिसाइल से हमला करता है, तो ईरान के दिन लद चुके हैं. इसलिए बहुत संभव है कि ईरान इसे एक डिटरेंस के तौर पर ही उपयोग करेगा.

दयाकर ने बताया कि ईरान चारों ओर इजराइल के समर्थक देशों से घिरा है. उत्तर में अजरबैजान और पश्चिम में ईराकी कुर्दिस्तान, यूएई और बहरीन है. पश्चिम में ही इंडियन ओसियन में यूएस नेवल है. बहरीन और यूएई अब्राहम अकॉर्ड पर हस्ताक्षर कर चुके हैं. यानी वे इजराइल से औपचारिक संबंध रखने के पक्षधर हैं.

इसके साथ ही ईरान ने भी इजराइल को घेरने के लिए प्रॉक्सी का सहारा लिया है. इजराइल के उत्तर में वह हिजबुल्लाह को मजबूत कर रहा है. हिजबुल्लाह लेबनान के दक्षिण इलाके में रहते हैं. इजराइल के दक्षिण में यमन है, और यहां पर हौती विद्रोही सक्रिय हैं. सीरिया में शिया चरमपंथी हैं. पूर्व में इराक है. हमास और फिलिस्तीन इस्लामिक जिहाद ईरान के समर्थक हैं. ये सभी 330 किमी के दायरे में हैं.

अब ऐसे में सवाल उठता है कि ईरान ने हाइपर मिसाइल तकनीक कहां से प्राप्त की. सूत्र का दावा है कि हो सकता है ईरान ने इसे दूसरे देश से चोरी छिपे हासिल कर लिया हो, बहुत संभव है रूस से. वैसे, ईरान ने घरेलू स्तर पर भी इसे विकसित कर लिया हो, तो आपको आश्चर्य नहीं होना चाहिए. हालांकि, आपको याद रखना चाहिए कि ईरान ने रूस को संकट के समय में ड्रोन से मदद की थी, जिस समय उसे इसकी सबसे अधिक जरूरत थी. ईरान ने 2016 में रूस से एस-300 मिसाइल सिस्टम भी हासिल किया है. इसकी क्षमता 300 किमी है.

ये भी पढ़ें : मध्य पूर्व में ईरान के 'प्रॉक्सी' से इजराइल और अमेरिका भी 'परेशान'

नई दिल्ली : हाल ही में ईरान ने एक लॉंग रेंज मिसाइल का परीक्षण किया है. यह इजराइल तक आक्रमण करने की क्षमता रखता है. हालांकि, वर्तमान में वह इसका उपयोग करेगा, ऐसा कोई कारण नहीं दिख रहा है. ईरान ने खुद कहा है कि यह मिसाइल उसने अपनी आत्मरक्षा के लिए बनाया है.

पिछले सप्ताह ईरान ने फत्ताह मिसाइल का एक अपग्रेडेड वर्जन फत्ताह 11 लॉंच किया. उसने इसे आशूरा एरोस्पेस साइंस एवं टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी में आयोजित एक प्रदर्शनी के दौरान प्रदर्शित किया. ईरान का दावा है कि इस मिसाइल को बनाने में विदेशी सहयोग नहीं लिया गया है. उसने यह भी कहा कि इसमें ग्लाइड क्षमता है. ईरान के अनुसार आप इसे हाइपर सोनिक ग्लाइड व्हीकल और हाइपर सोनिक क्रूज मिसाइल की श्रेणी में रख सकते हैं. ईरानी मीडिया ने बताया कि इस तरह के हाइपर सोनिक मिसाइल विकसित करने की क्षमता दुनिया के मात्र चार देशों के पास है.

ईरानी रेवोल्यूशन गार्ड कॉर्प्स एरोस्पेस फोर्स ने इस साल की शुरुआत में ही बताया था कि वह इसे स्वदेशी तकनीक के आधार पर विकसित कर रहा है. ईरान के अनुसार इस मिसाइल की रेंज 1700 किमी है. यह मैक 13-15 की स्पीड (ध्वनि की गति से 13 गुना अधिक) से लक्ष्य तक पहुंच सकता है. यह इंटरसेप्ट भी कर सकता है और उसे नष्ट करने की भी क्षमता रखता है.

अब इस विषय पर बहस छिड़ चुकी है कि आखिर ईरान के पास ऐसी क्षमता कहां से आई, या फिर किसी ने चोरी छिपे मदद की है. ईरान मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम (एमटीसीआर) का सदस्य नहीं है. एमटीसीआर का सदस्य भारत है. यह मुख्य रूप से मिसाइल टेक्नोलॉजी के प्रसार को लेकर दिशा निर्देश जारी करता है. कुल 35 देश इसके सदस्य हैं. एमसीटीआर का यह काम है कि वह उन टेक्नोलॉजी के प्रसार पर रोक लगाए, जिसमें 500 किलो से अधिक पेलोड को 300 किमी के अधिक के रेंज तक जाने की क्षमता है. एमसीटीआर का कोई भी सदस्य किसी बाहरी देश को इस तरह की तकनीक प्रदान नहीं कर सकता है. आम तौर पर यहां पर आम सहमति के आधार पर ही फैसला लिया जाता है.

इससे पहले ईरान के पास कभी भी ऐसा मिसाइल नहीं रहा है, जिसकी क्षमता 300 किमी से अधिक हो. अनुमान लगाया जा रहा है कि ईरान ने इसे अपने करीबी देश से हासिल किया होगा. यह तकनीक इस समय अमेरिका, रूस और चीन के पास है. रूस के पास एवांगाडे एचजीवी (जरकॉन) है. यह एक अंतर महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल सिस्टम है, जिसे शिप और मिसाइल से छोड़ा जा सकता है. इसे परमाणु हथियार से लैस किया जा सकता है.

चीन के पास डीएफ-17 मिसाइल सिस्टम है. यह एक मिडिल रेंज बैलिस्टिक मिसाइल है. इसके जरिए हाइपर सोनिक ग्लाइड व्हीकल लॉंच किया जा सकता है. यह एक अंतरमहाद्वीपीय मिसाइल है, जिसे मॉडिफाइ किया जा सकता है और यह न्यूक्लियर हथियार को ले जा सकता है. चीन ने दो हाइपर सोनिक हथियार का परीक्षण किया है. सबसे इंटेरेस्टिंग बात यह है कि इन दोनों देशों की तुलना में अमेरिका पीछे है.

ईरान के दावों के अनुसार फत्ताह 11 मिसाइल सिर्फ इजराइल ही नहीं, बल्कि इंडियन ओसियन में तैनात यूएस फिफ्थ फ्लीट तक पहुंच रखता है. दूसरी बात इस मिसाइल के परीक्षण का समय है. इजराइल और हमास युद्ध के ठीक बीच इसका परीक्षण किया गया है. इसके जरिए ईरान क्या संदेश देना चाह रहा है. क्या यह इजराइल को धमकी देना चाहता है.

पूर्व राजदूत आर दयाकर ने कहा कि क्षमता रखना एक बात होती है, लेकिन मंशा अलग चीज है. ईटीवी भारत से बात करते हुए उन्होंने कहा कि ईरान सीधे तौर पर युद्ध में शामिल नहीं होगा. अगर ईरान अपने आप इजराइल पर मिसाइल से हमला करता है, तो ईरान के दिन लद चुके हैं. इसलिए बहुत संभव है कि ईरान इसे एक डिटरेंस के तौर पर ही उपयोग करेगा.

दयाकर ने बताया कि ईरान चारों ओर इजराइल के समर्थक देशों से घिरा है. उत्तर में अजरबैजान और पश्चिम में ईराकी कुर्दिस्तान, यूएई और बहरीन है. पश्चिम में ही इंडियन ओसियन में यूएस नेवल है. बहरीन और यूएई अब्राहम अकॉर्ड पर हस्ताक्षर कर चुके हैं. यानी वे इजराइल से औपचारिक संबंध रखने के पक्षधर हैं.

इसके साथ ही ईरान ने भी इजराइल को घेरने के लिए प्रॉक्सी का सहारा लिया है. इजराइल के उत्तर में वह हिजबुल्लाह को मजबूत कर रहा है. हिजबुल्लाह लेबनान के दक्षिण इलाके में रहते हैं. इजराइल के दक्षिण में यमन है, और यहां पर हौती विद्रोही सक्रिय हैं. सीरिया में शिया चरमपंथी हैं. पूर्व में इराक है. हमास और फिलिस्तीन इस्लामिक जिहाद ईरान के समर्थक हैं. ये सभी 330 किमी के दायरे में हैं.

अब ऐसे में सवाल उठता है कि ईरान ने हाइपर मिसाइल तकनीक कहां से प्राप्त की. सूत्र का दावा है कि हो सकता है ईरान ने इसे दूसरे देश से चोरी छिपे हासिल कर लिया हो, बहुत संभव है रूस से. वैसे, ईरान ने घरेलू स्तर पर भी इसे विकसित कर लिया हो, तो आपको आश्चर्य नहीं होना चाहिए. हालांकि, आपको याद रखना चाहिए कि ईरान ने रूस को संकट के समय में ड्रोन से मदद की थी, जिस समय उसे इसकी सबसे अधिक जरूरत थी. ईरान ने 2016 में रूस से एस-300 मिसाइल सिस्टम भी हासिल किया है. इसकी क्षमता 300 किमी है.

ये भी पढ़ें : मध्य पूर्व में ईरान के 'प्रॉक्सी' से इजराइल और अमेरिका भी 'परेशान'

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